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सिविल कानून
हकम सिंह बनाम मेसर्स गैमॉन (इंडिया) लिमिटेड (1971)
«21-Feb-2025
परिचय
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें कहा गया है कि पक्षकार किसी ऐसे न्यायालय को अधिकारिता नहीं दे सकते, जिसके पास संहिता के अंतर्गत अधिकारिता नहीं है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति जे.सी. शाह एवं न्यायमूर्ति के.एस. हेगड़े की दो सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया।
तथ्य
- 5 अक्टूबर 1960 को, हकम सिंह (अपीलकर्ता) ने गैमॉन इंडिया लिमिटेड (प्रतिवादी) के लिये निर्माण कार्य करने पर सहमति व्यक्त की, जो भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत एक कंपनी थी, जिसका मुख्य व्यवसायिक केंद्र बॉम्बे में था।
- संविदा के खंड 12 में विवादों के मामले में माध्यस्थता का प्रावधान था।
- खंड 13 में यह निर्धारित किया गया था कि कार्य चाहे कहीं भी किया गया हो, संविदा बॉम्बे में किया गया माना जाएगा, तथा केवल बॉम्बे न्यायालयों के पास अधिकारिता होगी।
- जब विवाद उत्पन्न हुए, तो हकम सिंह ने माध्यस्थम अधिनियम, 1940 की धारा 20 के अंतर्गत माध्यस्थता की मांग करते हुए वाराणसी न्यायालय में एक याचिका दायर की।
- प्रतिवादी ने यह तर्क देते हुए आपत्ति जताई कि खंड 13 के अनुसार केवल बॉम्बे न्यायालयों के पास अधिकारिता है।
शामिल मुद्दे
- क्या इस विवाद पर केवल बॉम्बे का न्यायालयों की ही अधिकारिता थी?
- क्या सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 20 (a) का स्पष्टीकरण II केवल सरकारी निगमों को संदर्भित करता है या भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कंपनियों को भी संदर्भित करता है?
टिप्पणी
- CPC माध्यस्थम अधिनियम, 1940 की धारा 41 के आधार पर माध्यस्थम अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही पर लागू होती है।
- CPC की धारा 20(ए) के अंतर्गत स्पष्टीकरण II के साथ पढ़ने पर, प्रतिवादी कंपनी पर बॉम्बे में वाद लाया जा सकता था, जहाँ उसका मुख्य व्यवसायिक केंद्र था।
- पक्षकार किसी ऐसे न्यायालय को अधिकारिता नहीं दे सकते, जिसके पास संहिता के अंतर्गत अधिकारिता नहीं है।
- हालाँकि, जहाँ दो या अधिक न्यायालयों को CPC के अंतर्गत अधिकारिता प्राप्त है, वहाँ उन न्यायालयों में से किसी एक में विवादों की सुनवाई करने के लिये पक्षों के बीच समझौता वैध है और सार्वजनिक नीति के विपरीत नहीं है।
- ऐसे करार भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 28 का उल्लंघन नहीं करते हैं।
- स्पष्टीकरण II से धारा 20 में "निगम" शब्द में भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कंपनियाँ शामिल हैं, न कि केवल सांविधिक निगम।
- चूँकि बॉम्बे न्यायालयों को CPC के अंतर्गत अधिकारिता प्राप्त थी (क्योंकि प्रतिवादी का मुख्य कार्यालय वहाँ था), इसलिये यह करार कि केवल बॉम्बे न्यायालयों को अधिकारिता प्राप्त होगी, बाध्यकारी था।
- अपील को लागत के साथ खारिज कर दिया गया।
निष्कर्ष
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें CPC की धारा 20 और अनन्य अधिकारिता खंड पर चर्चा किया गया है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पक्षकार किसी ऐसे न्यायालय को अधिकारिता नहीं दे सकते जिसके पास संहिता के अंतर्गत अधिकारिता नहीं है।