भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
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सांविधानिक विधि

भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

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 27-Jun-2024

परिचय:

भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) एक संवैधानिक पदाधिकारी है, जो सरकारों, सरकारी निकायों एवं राज्य संचालित निगमों की आय और व्यय का लेखा-परीक्षण करता है।

  • CAG का कार्य सार्वजनिक संसाधनों पर स्वतंत्र एवं विश्वसनीय आश्वास्ति प्रदान करना तथा सार्वजनिक क्षेत्र की लेखापरीक्षा में अग्रणी रहना है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक क्या है?

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के भाग V के अध्याय V में निहित अनुच्छेद 148-151 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के संबंध में प्रावधान है।
  • यह भारत की सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्था है।
  • CAG का कार्य, उच्च गुणवत्ता वाली लेखापरीक्षा एवं लेखांकन के माध्यम से उत्तरदायित्व, पारदर्शिता तथा सुशासन को बढ़ावा देना तथा विधानमंडल, जनता और कार्यपालिका को स्वतंत्र एवं समय पर आश्वासन प्रदान करना है कि सार्वजनिक धन का संग्रह व उपयोग प्रभावी और कुशलतापूर्वक किया जा रहा है।

CAG के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 148: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
  • अनुच्छेद 149: CAG के कर्त्तव्य और शक्तियाँ
  • अनुच्छेद 150: संघ और राज्यों के खातों का प्रारूप
  • अनुच्छेद 151: लेखापरीक्षा रिपोर्ट
  • अनुच्छेद 279: “शुद्ध आय” की गणना

CAG की पृष्ठभूमि क्या है?

  • वर्ष 1858 में इसे भारत सरकार का महालेखाकार कहा जाता था। वर्ष 1860 में इसका नाम परिवर्तित कर भारत का महालेखा परीक्षक किया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 166 के अंतर्गत भारत के महालेखा परीक्षक की नियुक्ति महामहिम (ब्रिटिश सम्राट) द्वारा की जाती थी।
  • वी. नरहरि राव (1948-54) स्वतंत्र भारत के पहले CAG थे।
  • स्वतंत्रता से पूर्व इस पद पर आसीन होने वाले प्रथम व्यक्ति माननीय एडमंड ड्रमंड (1860-62) थे।

नियुक्ति एवं सेवा की शर्तें क्या हैं?

  • COI के अनुच्छेद 148(1) में प्रावधान है कि CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
  • COI के अनुच्छेद 148(3) के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का वेतन एवं सेवा की अन्य शर्तें, संसद विधि द्वारा निर्धारित करेगी तथा जब तक वे निर्धारित नहीं हो जाती हैं, तब तक वे दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट होंगी।
  • अनुच्छेद 148 (4) में प्रावधान है कि एक बार जब CAG अपने पद से हट जाता है तो वह सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय में नियुक्ति के लिये अपात्र हो जाता है।
  • अनुच्छेद 148 (5) में यह प्रावधान है कि इस संविधान और संसद द्वारा बनाए गए किसी विधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग में सेवारत व्यक्तियों की सेवा की शर्तें तथा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की प्रशासनिक शक्तियाँ ऐसी होंगी, जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित की जाएँ।
  • नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, जिसके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवारत व्यक्तियों को या उनके संबंध में देय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन, भारत की संचित निधि द्वारा भारित किये जाएंगे।

CAG को हटाने की प्रक्रिया क्या है?

  • COI के अनुच्छेद 148(1) के अनुसार, CAG को उसी तरीके से और उसी आधार पर हटाया जाएगा, जिस तरह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • COI के अनुच्छेद 124(4) में सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने का आधार माना गया है। प्रक्रिया यह है कि इस प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित राष्ट्रपति के आदेश द्वारा पारित किया जाना चाहिये।

CAG की शक्तियाँ और कर्त्तव्य क्या हैं?

  • COI के अनुच्छेद 149 के अनुसार, CAG संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अंतर्गत निर्धारित कार्यों और कर्त्तव्यों का पालन करेगा।
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ एवं सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 (DPC अधिनियम) इसके लिये स्थापित विधि है।
  • DPC अधिनियम के अध्याय III में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों और शक्तियों का प्रावधान है।
  • DPC अधिनियम की धारा 10 में प्रावधान है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संघ और राज्य के खातों के संकलन के लिये उत्तरदायी होंगे।
  • DPC अधिनियम की धारा 11 में प्रावधान है कि CAG लेखा रिपोर्ट तैयार करेगा तथा उसे राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपालों और विधान सभा वाले संघ शासित प्रदेशों के प्रशासकों को प्रस्तुत करेगा।
  • DPC अधिनियम की धारा 12 में प्रावधान है कि CAG संघ और राज्यों को सूचना देगा तथा सहायता प्रदान करेगा।
  • अधिनियम की धारा 13 में प्रावधान है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का यह कर्त्तव्य होगा कि:
  • भारत की तथा प्रत्येक राज्य की तथा प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र की, जिसमें विधानसभा हो, संचित निधि से सभी व्ययों की लेखापरीक्षा करना तथा यह सुनिश्चित करना कि लेखाओं में दर्शाई गई धनराशियाँ, उस सेवा या प्रयोजन के लिये विधिक रूप से उपलब्ध तथा प्रयोज्य थीं, जिसके लिये उनका उपयोग या आवंटन किया गया है तथा क्या व्यय उस प्राधिकारी के अनुरूप है, जो उसे नियंत्रित करता है।
  • संघ और राज्यों के आकस्मिकता निधि तथा लोक लेखा से संबंधित सभी लेन-देन की लेखापरीक्षा करना;
  • संघ या राज्य के किसी विभाग में रखे गए सभी व्यापार, विनिर्माण, लाभ और हानि खातों तथा तुलन-पत्रों और अन्य सहायक खातों की लेखापरीक्षा करना; तथा प्रत्येक मामले में उसके द्वारा लेखापरीक्षित व्यय, लेन-देन या खातों पर रिपोर्ट करना।

CAG के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या हैं? 

  • अरविंद गुप्ता बनाम भारत संघ (2013):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार ने अपने संसाधनों का जिस मितव्ययिता, दक्षता और प्रभावशीलता से उपयोग किया है, उसकी जाँच करने के लिये CAG का कार्य वर्ष 1971 के अधिनियम में अंतर्निहित है।
    • न्यायालय ने CAG (DPC) अधिनियम, 1971 के अंतर्गत तैयार लेखापरीक्षा एवं लेखा विनियमन, 2007 में कोई असंवैधानिकता नहीं पाई, जो CAG को निष्पादन लेखापरीक्षा करने का अधिकार देता है।
  • रघुनाथ केलकर बनाम भारत संघ (2009):
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत इस मामले में, CAG द्वारा व्यापक लेखापरीक्षा करने में विफलता का आरोप लगाया गया था।
    • न्यायालय ने CAG (DPC) अधिनियम की धारा 23 के विस्तार पर विचार किया। न्यायालय ने कहा कि लेखापरीक्षा का समय, विस्तार एवं सीमा सभी मामले CAG के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और यह ऐसा मामला नहीं है जिस पर न्यायालय को विचार करना चाहिये।
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाम भारत का CAG (2010):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा तय इस मामले में, CAG (DPC) अधिनियम की धारा 14, 15 और 19 के तहत CAG की लेखापरीक्षा करने की शक्तियों पर विचार किया गया था।
    • याचिकाकर्त्ता ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के खातों की लेखापरीक्षा करने के लिये 1971 अधिनियम की धारा 14 (2) के अधीन शक्तियों को लागू करने और प्रयोग करने के लिये CAG के अधिकार को चुनौती दी, जो अपने स्वयं के अधिनियम अर्थात NDDB अधिनियम, 1987 द्वारा शासित है और जिसमें किसी भी अन्य विधान की तुलना में NDDB अधिनियम को आच्छादित प्रभाव देने का प्रावधान है।
  • अरुण कुमार अग्रवाल बनाम भारत संघ (2013):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या CAG की लेखापरीक्षा रिपोर्ट को न्यायालय द्वारा राहत प्रदान करने या कार्यवाही आरंभ करने के आधार के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने कहा कि CAG की रिपोर्ट सदैव संसद द्वारा जाँच के अधीन होती है तथा रिपोर्ट प्राप्त करने के उपरांत यह संसद को तय करना होता है कि उसे CAGकी रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणी देनी है या नहीं।
  • श्री एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार एवं अन्य (2013):
    • न्यायालय ने इस मामले में माना कि अनुच्छेद 148 ने भारत के CAG के रूप में एक संवैधानिक पदाधिकारी का सृजन किया है।
    • CAG सरकार द्वारा किये गए सभी व्ययों का औचित्य, वैधानिकता और वैधता की जाँच करता है तथा सरकारी खातों पर प्रभावी नियंत्रण रखता है।
  • एसोसिएशन ऑफ यूनिफाइड टेली सर्विसेज़ प्रोवाइडर्स एवं अन्य बनाम भारत संघ (2014):
    • इसमें CAG को दूरसंचार कंपनियों के राजस्व का लेखा परीक्षण करने की शक्ति प्रदान की गई है।