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कलकत्ता उच्च न्यायालय
« »02-Feb-2024
परिचय:
कलकत्ता उच्च न्यायालय भारतीय न्यायपालिका में कानूनी कौशल और ऐतिहासिक महत्त्व का संप्रतीक है।
- वर्ष 1862 में स्थापित, यह भारत के सबसे प्राचीन उच्च न्यायालय के रूप में कार्य करता है और देश के कानूनी परिदृश्य, विशेषकर भारत के पूर्वी क्षेत्र में एक सर्वोपरि स्थान रखता है।
- अपने समृद्ध इतिहास, उल्लेखनीय मामलों, वास्तुशिल्प चमत्कार और आधुनिक भारत में उभरती भूमिका के माध्यम से, कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा कानूनी प्रवचन को आकार देने और न्याय के सिद्धांतों को कायम रखने का कार्य जारी है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- 26 जून, 1862 को महारानी विक्टोरिया द्वारा जारी लेटर्स पेटेंट के माध्यम से प्रेसीडेंसी टाउन में स्थापित भारत के तीन उच्च न्यायालयों में से एक, कलकत्ता उच्च न्यायालय, भारत का सबसे पुराना उच्च न्यायालय होने का गौरव रखता है।
- प्रारंभ में 1 जुलाई, 1862 को फोर्ट विलियम में न्यायिक उच्च न्यायालय के रूप में नामित, वर्ष 1861 के उच्च न्यायालय अधिनियम के तहत, यह फोर्ट विलियम स्थित उच्चतम न्यायालय का उत्तराधिकारी बना।
- वर्ष 2001 में शहर का नाम कलकत्ता से कोलकाता करने के आधिकारिक परिवर्तन के बावजूद, संस्था ने अपना मूल नाम बरकरार रखा।
- हालाँकि चेन्नई और मुंबई समकक्षों के साथ कोलकाता उच्च न्यायालय का नाम बदलने का प्रस्ताव करने वाले एक विधेयक को 5 जुलाई, 2016 को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था, फिर भी उच्च न्यायालय को इसके पूर्व शीर्षक से जाना जाता है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय का वास्तुशिल्प चमत्कार कैसा है?
- कलकत्ता उच्च न्यायालय की वास्तुशिल्प की भव्यता दर्शनीय है।
- उच्च न्यायालय भवन का डिज़ाइन बेल्जियम में क्लॉथ हॉल, य्प्रेस (Ypres) पर आधारित है।
- वाल्टर ग्रानविले द्वारा डिज़ाइन की गई यह इमारत यूरोपीय और मुगल वास्तुकला के तत्त्वों को सहजता से मिश्रित कर प्रस्तुत करती है, गुंबदों की जटिल संरचना राजसी स्तंभों एवं अलंकृत अंदरूनी भागों को प्रदर्शित करती है।
- इसकी भव्य अग्रभित्ति (बड़ी इमारत की सामने से दिखाई देने वाली दीवार)और राजसी गुंबद न्यायपालिका से जुड़े अधिकार एवं गरिमा का प्रतीक हैं, जो इसे कोलकाता के वास्तुशिल्प चमत्कारों में से एक होने का गौरव दिलाता है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के कानूनी अधिकार क्षेत्र क्या हैं?
- पश्चिम बंगाल और केंद्रशासित प्रदेश अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण के रूप में, कलकत्ता उच्च न्यायालय एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र रखता है।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय (अधिकार क्षेत्र का विस्तार) अधिनियम 1953 के अनुसार, कलकत्ता उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का विस्तार 2 मई, 1950 से चंद्रनगर (अब चंदननगर के रूप में जाना जाता है) तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को शामिल करने के लिये किया गया था।
- इसके अलावा, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर और पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी डिवीज़न के मुख्यालय जलपाईगुड़ी में अतिरिक्त सर्किट बेंच की स्थापना की।
- यह सिविल, आपराधिक, संवैधानिक और प्रशासनिक मामलों सहित विविध प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है, जिससे यह कानून के शासन को बनाए रखने एवं पूरे क्षेत्र में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय की संरचना कैसी है?
- 1 जुलाई, 1862 को इसकी स्थापना पर बार्न्स पीकॉक उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश बने।
- उनके बाद, रोमेश चंद्र मित्तर ने पहले भारतीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया, जबकि फणी भूषण चक्रवर्ती स्थायी रूप से इस पद पर रहने वाले प्रथम भारतीय थे।
- शंकर प्रसाद मित्रा के नाम कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सबसे लंबे कार्यकाल का रिकॉर्ड है।
- न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 72 है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय की शर्तों में लेटर पेटेंट क्या संदर्भित करता है?
- कलकत्ता उच्च न्यायालय, भारत के कई उच्च न्यायालयों के समान, एक लेटर्स पेटेंट के तहत संचालित होता है।
- शब्द "लेटर्स पेटेंट" एक प्रकार के कानूनी लिखत या दस्तावेज़ को संदर्भित करता है जो किसी राजा या सरकार द्वारा जारी किया जाता है, जो न्यायालय को कुछ अधिकार, विशेषाधिकार या शक्तियाँ प्रदान करता है।
- भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में "लेटर्स पेटेंट" शब्द विशेष रूप से उस दस्तावेज़ को संदर्भित करता है जो उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं नियमों को स्थापित और परिभाषित करता है।