आयकर अपीलीय अधिकरण
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आयकर अपीलीय अधिकरण

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 25-Jul-2024

परिचय:

भारत में आयकर विभाग (ITD) के विरुद्ध करदाताओं के लिये अपील का पहला स्तर आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष होता है।

  • CIT(A) के निर्णयों को चुनौती देने के इच्छुक करदाताओं के लिये अपील का अगला स्तर आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT) के समक्ष होता है।
  • ITAT, विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधीन है तथा वित्त मंत्रालय से स्वतंत्र है।

आयकर अपीलीय अधिकरण का इतिहास:

  • आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT) की स्थापना जनवरी 1941 में हुई थी और यह एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था है।
  • इसे “मदर ट्रिब्यूनल” के नाम से जाना जाता है और इसकी सफलता के कारण भारत में कई अन्य अधिकरणों की स्थापना हुई।
  • ITAT द्वारा पारित आदेश अंतिम होते हैं, उच्च न्यायालय में अपील केवल तभी की जा सकती है जब निर्धारण हेतु कोई महत्त्वपूर्ण विधिक प्रश्न उत्पन्न हो।
  • ITAT का आदर्श वाक्य “निष्पक्ष सुलभ सतत् न्याय” है, जिसका सामान्य अर्थ है “निष्पक्ष, आसान और त्वरित न्याय।”
  • ITAT के पहले अध्यक्ष श्री मोहम्मद मुनीर डार थे।

आयकर अपीलीय अधिकरण की पीठें:

  • वर्ष 1941 में इसकी शुरुआत हुई, जिसमें छह सदस्यों के साथ- दिल्ली, कोलकाता (कलकत्ता) और एक मुंबई (बॉम्बे) में तीन पीठें गठित की गईं।
  • पीठों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है और वर्तमान में ITAT के 27 विभिन्न स्थानों पर 63 पीठ स्थित हैं, जो उच्च न्यायालय वाले लगभग सभी शहरों को समाहित करती हैं।

ITAT की संरचना:

  • ITAT में अधिकांश अपीलों की सुनवाई दो निर्णायक सदस्यों वाली खंडपीठ द्वारा की जाती है: एक लेखाकार सदस्य और एक न्यायिक सदस्य।
  • एक लेखाकार सदस्य का चयन, चार्टर्ड अकाउंटेंट या सेवारत वरिष्ठ आयकर अधिकारियों के समूह से किया जाता है तथा एक न्यायिक सदस्य का चयन बार (अर्थात् एक अभ्यासरत अधिवक्ता) या न्यायपालिका (आयकर अपीलीय अधिकरण) से किया जाता है।
  • यह देखते हुए कि ITAT के समक्ष अपील में तथ्य या विधिक प्रश्न शामिल हो सकते हैं, लेखाकार सदस्य तथ्यात्मक लेखांकन मुद्दों के संबंध में विशेषज्ञता प्रदान करते हैं और न्यायिक सदस्य विधिक या न्यायिक विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
  • खंडपीठ के निर्णयों के लिये सदस्यों की सहमति आवश्यक है।
  • जब इस पीठ दो सदस्यों की राय भिन्न-भिन्न होती है, तो मामला तीसरे ITAT सदस्य को भेजा जाता है और बहुमत का निर्णय, अंतिम निर्णय के रूप में प्रदान किया जाता है।
  • ITAT द्वारा पारित आदेश अंतिम होते हैं, उच्च न्यायालय में अपील केवल तभी की जा सकती है जब निर्धारण हेतु कोई महत्त्वपूर्ण विधिक प्रश्न उपस्थित हो।
  • ITAT के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री चंद्रकांत वसंत भडांग हैं।

ITAT के सदस्यों की नियुक्ति:

  • इससे पहले ITAT के सदस्यों का चयन एक समिति द्वारा किया जाता था, जिसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित एक वर्तमान उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, ITAT के अध्यक्ष और विधि एवं न्याय मंत्रालय के एक सचिव शामिल होते थे।
    • समिति ने साक्षात्कार तथा अभ्यर्थियों की पृष्ठभूमि एवं उपलब्धियों की समीक्षा के आधार पर चयन किया।
    • नियुक्त किये गये व्यक्तियों की योग्यता के संबंध में चिंता व्यक्त की गयी थी।
    • यह बात इस तथ्य से और अधिक रूप से स्पष्ट हो गई कि ITAT के सदस्य एक बार नियुक्त हो जाने के उपरांत, अर्द्ध-न्यायिक होने के कारण, अपने निर्णयों के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराए जा सकते तथा उन्हें पदच्युत करना कठिन होता है।
    • अतः आदेशों की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2017 में ITAT सदस्य चयन समिति की संरचना में परिवर्तन किया तथा वर्ष 2020 में समिति का पुनर्गठन किया।
    • वित्त अधिनियम 2017 (भारत) के आधार पर नियमों के माध्यम से किये गए परिवर्तनों में, सरकार द्वारा-
      • समिति में विधि एवं न्याय मंत्रालय के एक प्रतिनिधि के साथ-साथ सरकार के दो अन्य प्रतिनिधि भी शामिल किये गये।
      • वर्ष 2017 में किया गया एक अन्य परिवर्तन यह था कि आवेदक समूह से लेखाकार और न्यायिक निर्णायक ITAT सदस्यों का चयन करने वाली समिति से उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश को हटा दिया गया।
    • ITAT के सदस्यों के चयन में न्यायपालिका की भागीदारी को समाप्त करने के निर्णय की बार द्वारा आलोचना की गई। ITAT के सदस्यों के आदेशों की समीक्षा न्यायपालिका द्वारा की जाती है।
    • रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड एवं अन्य (2020) मामले में उच्चतम न्यायालय ने अधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति के नियमों को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसमें न्यायपालिका की भूमिका वस्तुतः अनुपस्थित थी और यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का सीधा उल्लंघन था।
  • उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के आलोक में, सरकार ने वर्ष 2020 में बनाए गए नियमों में इन दो परिवर्तनों को उलट दिया। हालाँकि सरकार ने वित्त मंत्रालय के एक सचिव को मूल चयन समिति में जोड़ा, जो वर्ष 2017 से पहले अस्तित्व में थी।
    • इस बात की आलोचना की गई कि चूँकि आयकर विभाग, जो वित्त मंत्रालय के अधीन आता है, ITAT के समक्ष अपीलों में निरंतर पक्षकार है, अतः इस संशोधन से हितों का टकराव उत्पन्न हो गया है।
    • उपरोक्त समस्या के समाधान के लिये सरकार ने 4 अप्रैल 2021 को जारी एक अध्यादेश में वित्त मंत्रालय के सचिव की भूमिका को मतदान न करने वाले सदस्य सचिव तक सीमित कर दिया।

ITAT की चुनौतियाँ:

  • पिछले कुछ वर्षों में, ITAT की चुनौतियाँ मुख्य रूप से विधि एवं न्याय मंत्रालय (प्रशासनिक अभिभावक) के साथ-साथ वित्त मंत्रालय और आयकर विभाग से अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखने से संबंधित रही हैं।
  • भारत सरकार ने ITAT सदस्य की भूमिका को स्थायी पद से बदलकर एक निश्चित अवधि तक निर्धारित कर दिया है तथा ITAT सदस्य आवेदन की पात्रताओं में भी परिवर्तन किया है, जिसके परिणामस्वरूप ITAT की स्वतंत्रता के लिये संभावित चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।