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महत्त्वपूर्ण संस्थान

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

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 12-Oct-2023

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)

  • वर्ष 1945 में स्थापित ICJ, संयुक्त राष्ट्र (UN) का प्रमुख न्यायिक अंग है, जो अप्रैल, 1946 से कार्यशील है।
  • इसका मुख्यालय द हेग, नीदरलैंड में स्थित है।
  • यह राज्यों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है और संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् तथा अन्य विशिष्ट एजेंसियों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय प्रदान करता है।
  • इसमें 193 देश शामिल हैं, जिसके वर्तमान अध्यक्ष जोन ई. डोनॉग्यू हैं और उपाध्यक्ष किरिल गेवोर्गियन हैं।

ICJ के गठन का इतिहास

  • देशों के बीच कानूनी विवादों को निपटाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का विचार पहली बार राष्ट्र संघ की वार्ता के दौरान प्रस्थापित किया गया था, जिसकी प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् स्थापना हुई थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय (PCIJ) की स्थापना वर्ष 1920 में राष्ट्र संघ की प्रसंविदा के अनुच्छेद 14 के तहत राष्ट्र संघ की न्यायिक शाखा के रूप में की गई थी।
  • PCIJ ने वर्ष 1922 से वर्ष 1940 तक कार्य किया और कई मामलों को निपटाया, सलाहकारी राय प्रदान की और देशों के बीच विवादों का निपटारा किया।
  • जी.एच. हैकवर्थ (संयुक्त राज्य अमेरिका) समिति को वर्ष 1945 में भविष्य के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के लिये एक मसौदा क़ानून तैयार करने का कार्य सौंपा गया था।
  • PCIJ ने अंतिम बार अक्तूबर, 1945 में बैठक की और अपने अभिलेखागार और चीज़बस्त को वीन ICJ में हस्तांतरित करने का संकल्प लिया, जिसे अपने पूर्ववर्ती की तरह, शांति के स्थान (पीस पैलेस) के रूप में अपना स्थान मिलना था।
  • अप्रैल, 1946 में PCIJ को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और ICJ ने पहली बार बैठक करते हुए, PCIJ के अंतिम अध्यक्ष न्यायाधीश जोस गुस्तावो ग्युरेरो (अल साल्वाडोर) को अपना अध्यक्ष चुना।

ICJ की संरचना

  • न्यायालय में 15 न्यायाधीशों को स्थान दिया गया, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा नौ वर्ष की पदावधि के लिये चुने जाते हैं। ये अंग एक साथ परंतु अलग-अलग मतदान करते हैं।
  • निर्वाचित होने के लिये, एक उम्मीदवार को दोनों निकायों में पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिये।
  • निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये, प्रत्येक तीन वर्ष में न्यायालय के एक तिहाई हिस्से का चयन किया जाता है, जिसमें न्यायाधीश पुनः चुनाव के पात्र होते हैं।
  • ICJ को उसके प्रशासनिक अंग, रजिस्ट्री द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इसकी आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेज़ी और फ्रेंच हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अन्य अंगों के विपरीत, न्यायालय का गठन विभिन्न सरकारों के प्रतिनिधियों द्वारा नहीं हुआ है। न्यायालय के सदस्य स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं जिनका पहला कार्य, अपने कर्त्तव्यों को ग्रहण करने से पहले, खुले न्यायालय में एक औपचारिक घोषणा करना है, कि वे अपनी शक्तियों का प्रयोग निष्पक्ष और कर्त्तव्यनिष्ठा के साथ करेंगे।
  • अपनी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये, न्यायालय के किसी भी सदस्य को तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता जब तक कि अन्य सदस्यों की सर्वसम्मत राय में वह आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता/करती है। वास्तव में ऐसा कभी नहीं हुआ।

ICJ के क्षेत्राधिकार और कार्यप्रणाली

  • ICJ एक विश्व न्यायालय के रूप में कार्य करता है, जिसके दो-तरफा क्षेत्राधिकार हैं, अर्थात् इसमें देशों के बीच उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए कानूनी विवाद (विवादास्पद मामले) और संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष अभिकरणों (सलाहकार कार्यवाही) द्वारा संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय हेतु अनुरोध शामिल है।
  • केवल वे देश जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं और जो न्यायालय के कानून के पक्षकार बन गए हैं या जिन्होंने कुछ शर्तों के तहत इसके क्षेत्राधिकार को स्वीकार कर लिया है, विवादास्पद मामलों में पक्षकार हैं।
  • जिन देशों के पास न्यायालय में मान्यता प्राप्त कोई स्थायी प्रतिनिधि नहीं है। वे सामान्यतः अपने विदेश मंत्री या नीदरलैंड में मान्यता प्राप्त अपने राजदूत के माध्यम से रजिस्ट्रार के साथ संवाद करते हैं।
  • जब वे न्यायालय के समक्ष किसी मामले में पक्षकार होते हैं तो उनका प्रतिनिधित्व एक अभिकर्त्ता द्वारा किया जाता है। चूँकि इसमें अंतर्राष्ट्रीय संबंध दाँव पर होते हैं, इसलिये अभिकर्त्ता एक विशेष राजनयिक मिशन का प्रमुख भी होता है जिसके पास एक संप्रभु राज्य को प्रतिबद्ध करने की शक्तियाँ होती हैं।
  • इसका निर्णय अंतिम होता है, जो किसी मामले के पक्षकारों पर बाध्यकारी है और अपील के बिना है (अधिक-से-अधिक, यह उस स्थिति में व्याख्या या संशोधन के लिये खुला हो सकता है, यदि कोई नया तथ्य प्रकाश में आता है)।
  • चार्टर पर हस्ताक्षर करके, संयुक्त राष्ट्र का एक सदस्य देश किसी भी मामले में न्यायालय के निर्णय का पालन करने का वचन देता है, जिसमें वह एक पक्षकर होता है।
  • एक देश जो मानता है कि दूसरा पक्षकार न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के तहत उस पर दायित्वों का पालन करने में विफल रहा है, वह इस मामले को सुरक्षा परिषद् के समक्ष ला सकता है, जिसे निर्णय को प्रभावी बनाने के लिये किये जाने वाले उपायों की सिफारिश करने या निर्णय लेने का अधिकार है।
  • ऊपर वर्णित प्रक्रिया एक सामान्य प्रक्रिया है, हालाँकि कार्यवाही के इस अनुक्रम को आनुषंगिक कार्यवाही द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
  • ICJ एक पूर्ण न्यायालय के रूप में अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करता है, लेकिन पक्षकारों के अनुरोध पर यह विशिष्ट मामलों की जाँच के लिये तदर्थ सदन/कोष्ठ की भी स्थापना कर सकता है।
  • न्यायालय के समक्ष सलाहकारी कार्यवाही, केवल संयुक्त राष्ट्र के पाँच अंगों और संयुक्त राष्ट्र परिवार या संबद्ध संगठनों के 16 विशेष अभिकरणों हेतु खुली है।
  • सलाहकारी कार्यवाही में न्यायालय द्वारा प्रदान की गई राय अनिवार्य रूप से सलाहकारी होती है, जो बाध्यकारी नहीं होती।

ICJ के कामकाज की सीमाएँ

  • ICJ की कुछ सीमाएँ हैं, ये मुख्य रूप से संरचनात्मक, परिस्थितिजन्य और न्यायालय को उपलब्ध कराए गए भौतिक संसाधनों से संबंधित हैं।
  • इसके पास युद्ध अपराधों या मानवता के विरुद्ध अपराधों के आरोपी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का कोई अधिकार नहीं है। चूँकि यह एक आपराधिक न्यायालय नहीं है, इसलिये इसमें कार्यवाही शुरू करने में सक्षम कोई अभियोजक नहीं है।
  • यह उन न्यायालयों से भिन्न है जो मानवाधिकार अभिसमयों के उल्लंघन के आरोपों से निपटते हैं, जिसके तहत उन्हें स्थापित किया गया था, जिसमें उन देशों के आवेदन भी शामिल हैं जहाँ न्यायालय व्यक्तियों के आवेदनों पर विचार कर सकता है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेतु संभव नहीं है।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का क्षेत्राधिकार सामान्य है और इस प्रकार यह 'समुद्र के कानून के लिये अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण' (International Tribunal for the Law of the Sea- ITLOS) से भिन्न है।
  • यह न्यायालय कोई उच्चतम न्यायालय नहीं है, जिसकी ओर राष्ट्रीय न्यायालय रुख कर सकें; यह व्यक्तियों के लिये अंतिम समागम (last resort) न्यायालय के रूप में कार्य नहीं करता है। न ही यह किसी अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के लिये अपीलीय न्यायालय है। हालाँकि, यह माध्यस्थम् पंचाट की वैधता पर शासन कर सकता है।
  • यह न्यायालय किसी विवाद की सुनवाई तभी कर सकता है जब एक या अधिक राज्यों द्वारा ऐसा करने का अनुरोध किया जाए। यह अपनी पहल पर किसी विवाद से नहीं निपट सकता। इसके कानून के तहत, इसे अपनी इच्छानुसार संप्रभु राज्यों के कृत्यों की जाँच करने और उन पर शासन करने की अनुमति नहीं है।
  • ICJ का क्षेत्राधिकार केवल सहमति पर आधारित है, अनिवार्य क्षेत्राधिकार नहीं।
  • इसे शक्तियों के पूर्ण पृथक्करण का अधिकार नहीं है, जबकि सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य उन मामलों के प्रवर्तन पर वीटो करने में सक्षम होते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों के लिये जिन्होंने सहमति दी थी, उन्हें बाध्य किया था।

ICJ में विवाद सुलझाने की सामान्य प्रक्रिया

  • न्यायालय मामलों को संभालने में एक संरचित और औपचारिक प्रक्रिया का पालन करता है।
  • विवादास्पद मामले आमतौर पर एक देश द्वारा दूसरे देश के विरुद्ध लिखित आवेदन या अभ्यावेदन प्रस्तुत करने से शुरू होते हैं।
  • तब प्रतिवादी देश एक प्रति-अभ्यावेदन प्रस्तुत करता है।
  • लिखित दलीलों के आदान-प्रदान के पश्चात्, न्यायालय मौखिक सुनवाई करता है, जहाँ दोनों पक्षकार अपनी दलीलें प्रस्तुत करते हैं और न्यायाधीशों के सवालों का जवाब देते हैं।
  • न्यायालय की केवल दो भाषाएँ हैं, इसलिये कार्यवाही के दौरान लिखित और मौखिक रूप से कही गई सभी सामग्री का अनुवाद किया जाता है।
  • तत्पश्चात फैसला एक सार्वजनिक सत्र में सुनाया जाता है, और न्यायालय का फैसला शामिल पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है।
  • किसी मामले की स्थापना शामिल पक्षकारों के बीच एक विशेष समझौते की अधिसूचना के माध्यम से भी की जा सकती है।
  • सलाहकारी मामलों में, संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् किसी कानूनी प्रश्न पर सलाहकारी राय का अनुरोध कर सकता है, जिसमें मामले के समापन के बाद सार्वजनिक बैठक में राय व्यक्त की जाती है।
  • जबकि न्यायालय के पास अपने स्वयं की प्रवर्तन प्रक्रिया का अभाव है, देशों के अंतर्राष्ट्रीय कानून के मामले के रूप में इसके फैसलों का अनुपालन करने की अपेक्षा की जाती है। ऐसा न करने पर कूटनीतिक और राजनीतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

वे कौन से मामले हैं जिनमें भारत ICJ में शामिल था?

  • पुर्तगाल बनाम भारत (वर्ष 1960):
    • यह मामला भारतीय क्षेत्र पर राईट ऑफ़ पैसेज से संबंधित था।
    • ICJ ने माना कि "भारत का पैसेज से इनकार पुर्तगाल के राईट ऑफ़ पैसेज के विनियमन और नियंत्रण के अधिकारों के अंतर्गत था"।
  • भारत बनाम पाकिस्तान (वर्ष 1972):
    • इस मामले में ICAO परिषद् के अधिकार क्षेत्र से संबंधित एक अपील शामिल थी।
    • ICJ ने माना कि भारत सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करना उसके अधिकार क्षेत्र में है।
  • पाकिस्तान बनाम भारत (वर्ष 1973):
    • पाकिस्तानी युद्धबंदियों के मुकदमे में पाकिस्तान ने ICJ को सूचित किया कि उसने इस मुद्दे पर भारत के साथ एक समझौता किया है।
  • पाकिस्तान बनाम भारत, समापन (वर्ष 2000):
    • इसमें 10 अगस्त, 1999 की हवाई घटना शामिल थी
    • ICJ ने पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया और 14-2 के अनुपात से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया।
  • मार्शल द्वीप बनाम भारत (वर्ष 2016):
    • इसमें परमाणु हथियारों की होड़ को रोकने और परमाणु निरस्त्रीकरण से संबंधित बातचीत से संबंधित दायित्व शामिल थे।
    • ICJ ने 9-7 के अनुपात से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया और मामले को खारिज कर दिया।
  • भारत बनाम पाकिस्तान (वर्ष 2017):
    • इस मामले में एक भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव शामिल था, जिसे पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था और जासूसी का आरोप लगाया गया था।
    • वर्ष 2019 में ICJ ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि पाकिस्तान को जाधव की सजा की समीक्षा और पुनर्विचार करना चाहिये तथा उन्हें राजनयिक पहुँच प्रदान करनी चाहिये।