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सांविधानिक विधि

लोकपाल एवं लोकायुक्त

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 18-Mar-2024

परिचय:

प्रशासन की संसदीय प्रणाली और पारंपरिक पैटर्न पर न्यायिक समीक्षा की कमियों ने विश्व को गलत निर्णयों या कुप्रशासन या लोक अधिकारियों के भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिये वैकल्पिक प्रणालियों या अतिरिक्त संस्थानों के बारे में सोचने के लिये प्रेरित किया है।

  • लोकतंत्र और ओंबुड्समैन के बीच एक अविभेद्य संबंध है। लोकतंत्र का मुख्य विचार यह है कि व्यक्तियों के विशेषाधिकारों और अवसरों को उचित तथा संरक्षित किया जाएगा तथा उनकी वास्तविक शिकायतों को समाप्त किया जाएगा।

इसकी उत्पत्ति एवं विकास क्या है?

  • स्वीडन ओंबुड्समैन संस्था की मूल भूमि है और न्यूज़ीलैंड पहला राष्ट्रमंडल देश था जिसने वर्ष 1962 में इस संस्था की स्थापना की थी।
  • स्वीडन में ओंबुड्समैन का कार्यालय वर्ष 1809 में संविधान द्वारा ही बनाया गया था।
  • इस संस्था के अधिकारी संसद के नामांकित व्यक्ति होते हैं और इसमें केवल उन्हीं व्यक्तियों को नामांकित किया जाता है जिनका चयन अनुभवी न्यायाधीशों द्वारा किया जाता है।
  • वह किसी व्यक्ति द्वारा की गई शिकायत या स्वत: संज्ञान पर किसी मामले की जाँच कर सकता है। वह न केवल संसद के प्रतिनिधि के रूप में विधि के पालन की निगरानी और संसद को रिपोर्ट करने के लिये होता है, बल्कि उन अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये भी होता है, जिन्होंने विधि के विपरीत या पक्षपात के साथ या लापरवाही से कार्य किया है।

भारत में लोकपाल और लोकायुक्त की अवधारणा क्या है?

  • वर्ष 1959 में “लोकपाल” के प्रकार के लिये "ओंबुड्समैन" शब्द तत्कालीन वित्त मंत्री सी. डी. देशमुख द्वारा गढ़ा गया था।
  • वर्ष 1966 में, इस मुद्दे पर विचार करने के लिये एक प्रशासनिक सुधार आयोग नियुक्त किया गया था।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों के आधार पर लोकपाल विधेयक संसद में पेश किया गया। किंतु इससे पहले कि यह राज्यसभा में पारित हो पाता, लोकसभा भंग हो गई और विधेयक समाप्त हो गया।
  • बाद के वर्षों में कई प्रयास किये गए, लेकिन इसे पारित नहीं किया जा सका, यह स्पष्ट रूप से विधेयक को पारित करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।
  • वर्ष 2004 में, संयुक्त राष्ट्र ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक अभिसमय अपनाया जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, तकनीकी सहायता और संपत्ति की वसूली का समर्थन करता है तथा अखंडता, जवाबदेही तथा स्पष्ट प्रशासन को बढ़ावा देता है। लेकिन भारत ने वर्ष 2010 में इस अभिसमय का अनुमोदन किया।
  • लोकपाल संस्था की स्थापना की मांग को वर्ष 2011 में नई गति मिली जब सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हज़ारे "जन लोकपाल विधेयक" को आगे बढ़ाने के लिये आमरण अनशन पर बैठ गए।
  • इसमें केंद्रीय सतर्कता आयोग, सतर्कता विभागों और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की भ्रष्टाचार विरोधी शाखा जैसी भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों का लोकपाल के साथ विलय का प्रस्ताव है।

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 क्या है?

  • वर्ष 2011 में यह विधेयक पुनः लोकसभा में पेश किया गया और उसी वर्ष यह विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किया गया, परंतु यह विधेयक कई संशोधनों के साथ वर्ष 2013 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया।
  • 45 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 पारित हो गया।
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 16 जनवरी, 2014 को लागू हुआ।

राज्यों में लोकायुक्त कौन होते हैं?

  • पहले "नियामक सुधार आयोग" (1966) के सुझावों को आगे बढ़ाते हुए, राज्यों के लिये "लोकायुक्त" नामक ओंबुड्समैन की स्थापना की गई।
  • ये कानून भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के आरोपों की जाँच के लिये "लोकायुक्त" की नियुक्ति का प्रावधान करते हैं।
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम की धारा 63 राज्यों में लोकायुक्त संस्था की स्थापना का प्रावधान करती है।

लोकपाल की स्थापना की क्या प्रक्रिया है?

  • 2013 के अधिनियम "लोकपाल" की स्थापना का प्रावधान है, इसके अनुसार, लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य शामिल होंगे, जिनमें से 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य होंगे।
  • इसमें यह भी प्रावधान है कि लोकपाल के कम-से-कम पचास प्रतिशत सदस्य महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्गों से संबंधित होंगे।
  • धारा 4 लोकपाल के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के चयन के उद्देश्य से "चयन समिति" का विवरण देती है। इस उच्चस्तरीय "चयन समिति" में शामिल हैं:
    • प्रधानमंत्री;
    • लोकसभा के अध्यक्ष;
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता;
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश; और
    • राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाने वाला एक प्रख्यात न्यायविद्,
  • चयन समिति लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन के लिये पारदर्शी तरीके से अपनी प्रक्रिया को विनियमित करेगी।

लोकपाल सर्च कमिटी क्या है?

  • लोकपाल सर्च कमिटी लोकपाल के सदस्यों की चयन प्रक्रिया में सहायता के लिये गठित एक निकाय है, जो भारत में एक भ्रष्टाचार-विरोधी ओंबुड्समैन संस्था है।
  • लोकपाल सर्च कमिटी चयन समिति को लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिये नामों की सिफारिश करने के लिये ज़िम्मेदार होती है।
  • चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश, या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश और भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित एक प्रख्यात न्यायविद् शामिल होते हैं।

नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित कानून क्या है?

  • नियुक्ति:
    • धारा 6 के अनुसार, अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य को, चयन समिति की सिफारिशों पर, राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर एवं मुहर के तहत वारंट द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
  • कार्यकाल:
    • वह अपने कार्यालय में प्रवेश करने की तिथि से 5 वर्ष की अवधि के लिये या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।
    • वह राष्ट्रपति को संबोधित करके अपने पद से इस्तीफा दे सकता है या धारा 37 में दिये गए तरीके से अपने पद से हटाया जा सकता है।
  • वेतन:
    • धारा 7 के अनुसार, अध्यक्ष का वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान होंगी तथा अन्य सदस्यों का वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान होगा।
    • धारा 13 में प्रावधान है कि लोकपाल का व्यय भारत की संचित निधि पर लगाया जाएगा।
  • निष्कासन और निलंबन:
    • धारा 37 लोकपाल के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को हटाने और निलंबित करने से संबंधित है।

लोकपाल की जाँच शाखा और अभियोजन शाखा क्या है?

  • धारा 11 में कहा गया है कि लोकपाल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दण्डनीय लोक द्वारा किये गए, कथित किसी भी अपराध की प्रारंभिक जाँच करने के लिये जाँच निदेशक की अध्यक्षता में एक जाँच का गठन करेगा।
  • धारा 12 में प्रावधान है कि लोकपाल एक अभियोजन शाखा का गठन करेगा। लोकपाल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप से संबंधित उकसावे, रिश्वत देने और साज़िश के कार्य में शामिल किसी भी व्यक्ति के किसी भी कार्य या आचरण की जाँच कर सकता है।