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राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण

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 19-Oct-2023

परिचय

  • राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) भारत में एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है, जो भारतीय व्यवसायों से संबंधित मामलों के निदेशन का कार्य करता है।
  • इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के प्रावधानों के तहत 1 जून, 2016 को किया गया था तथा यह देश में भारतीय व्यवसायों को नियंत्रित करने वाले वैधानिक ढाँचे का एक अभिन्न हिस्सा है।
  • NCLT का प्राथमिक उद्देश्य कंपनी विधि एवं दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) से संबंधित विवादों व मामलों के समाधान के लिये एक विशेष मंच प्रदान करना है।
  • यह अधिकरण व्ययसाय संबंधी प्रशासन सुनिश्चित करने तथा शेयरधारकों, लेनदारों व अन्य हितधारकों के हितों की रक्षा करने में अहम भूमिका निभाता है।

NCLT की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • न्यायाधीश वी.बालकृष्ण इराडी की अध्यक्षता वाली इराडी समिति (2000) ने सर्वप्रथम NCLT के गठन की सिफारिश की थी।
  • NCLT की स्थापना से पूर्व, भारतीय व्यवसायों से संबंधित मामलों का निपटान तत्कालीन प्राथमिक अर्द्ध-न्यायिक निकाय कंपनी लॉ बोर्ड द्वारा किया जाता था।
    • इसकी स्थापना कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत कंपनी लॉ से संबंधित विवादों के समाधान के लिये की गई थी।
  • NCLT की स्थापना पूर्ववर्ती कंपनी लॉ बोर्ड तथा औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR) के स्थान पर की गई थी।
    • BIFR की स्थापना भारत में रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 के तहत की गई थी।
  • समय के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में कई परिवर्तन हुए तथा व्यावसायिक गतिविधियों में वृद्धि देखी गई, जिसके परिणामस्वरुप जटिल व्यवसाय संबंधी विवादों, दिवालिया मामलों तथा कंपनी विधि से संबंधित मामलों के समाधान के लिये एक विशेष अधिकरण का होना आत्यावश्यक हो गया था।
    • कंपनी अधिनियम, 2013, जिसने कंपनी अधिनियम, 1956 का स्थान लिया, द्वारा भारत में व्यावसायिक कंपनियों के लिये नियामक ढाँचे में कई परिवर्तन किये गए।
    • नए अधिनियम में किये गए परिवर्तनों में एक बड़ा बदलाव NCLT की स्थापना थी।
  • NCLT, कंपनी लॉ बोर्ड (CLB) तथा औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR) जैसे व्यवसायों से संबंधित विवादों से निपटने वाले विभिन्न मंचों के अधिकार क्षेत्र को और अधिक सशक्त करने के उद्देश्य से शुरु हुआ।

NCLT की अधिकारिता 

  • कंपनी लॉ के अधीन:
    • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 280 कंपनी अथवा उसके खिलाफ किसी भी वाद, कार्यवाही अथवा दावे के निपटान के लिये NCLT की अधिकारिता से संबंधित है।
    • यह कंपनियों के विलयन तथा समामेलन से संबंधित मामलों पर निर्णय लेता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि यह प्रक्रिया का आयोजन वैधानिक प्रावधानों के अनुसार हुआ है।
    • कंपनी अधिनियम, 2013 के अध्याय XVI में, विनिर्दिष्ट कंपनी के अन्यायपूर्ण आचरण और कुप्रबंध से संबंधित मामले NCLT की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं।
  • IBC अधिनियम के तहत:
    • NCLT दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के तहत कॉर्पोरेट इंसोल्वेंसी रिज़ोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) शुरू करने एवं उसकी देखरेख करने के लिये एक प्रमुख अधिकरण है।
  • कंपनी का परिसमापन:
    • अध्याय XX कंपनियों के स्वैच्छिक अथवा वैवश्यक परिसमापन का प्रावधान करता है, तथा अधिकरण इस प्रक्रिया से संबंधित मामलों को निपटाता है।
  • सीमित देयता भागीदारी (LLP):
    • कंपनियों के अतिरिक्त, LLP भी NCLT की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं।
    • यह अधिकरण LLP के निगमन, निर्वहन और विघटन से संबंधित विवादों व मामलों पर न्यायनिर्णयन कर सकता है।
  • क्लास एक्शन सूट/ वर्ग अनुयोजित वाद:
    • NCLT को क्लास एक्शन सूट ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त है, जो शेयरधारकों अथवा जमाकर्त्ताओं द्वारा एक समूह को अभिकथित सदोष कार्यों के लिये किसी कंपनी के खिलाफ सामूहिक रूप से वाद करने का प्रावधान करता है।
    • यह प्रावधान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह अल्पसंख्यक हितधारकों को सशक्त बनाता है तथा कॉर्पोरेट प्रशासन व पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
  • समझौता और विन्यास:
    • यह अधिकरण कंपनी अधिनियम, 2013 के अध्याय XV के तहत किसी कंपनी तथा उसके लेनदारों अथवा सदस्यों के बीच समझौतों और व्यवस्थाओं की समीक्षा करता है एवं उन्हें स्वीकृति प्रदान करता है।
  • विनियामक प्राधिकारियों से उद्भूत होने वाले मामलों का न्यायनिर्णयन:
    • NCLT विभिन्न नियामक प्राधिकरणों के निर्णयों से उद्भूत होने वाले मामलों के लिये एक अपीली मंच के रूप में कार्य करता है।
    • इसमें कंपनी रजिस्‍ट्रार (RoC), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), तथा भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) के आदेशों के खिलाफ अपील करना शामिल है।

NCLT की संरचना

  • NCLT भारत के विभिन्न शहरों में स्थित विभिन्न पीठों के माध्यम से संचालित होता है।
    • इन पीठों को उनके संबंधित क्षेत्रीय अधिकारिता में आने वाले मामलों की सुनवाई के लिये नामित किया गया है।
  • NCLT के अध्यक्ष, 16 न्यायिक तथा 9 तकनीकी सदस्यों के साथ, इन पीठों की अध्यक्षता करते हैं।
    • न्यायिक सदस्यों के पास आमतौर पर विधि क्षेत्र की विशेषज्ञता होती है तथा वे अधिकरण की न्यायिक शाखा के रूप में कार्य करते हैं।
    • तकनीकी सदस्य को जटिल कॉर्पोरेट मामलों की समग्र समझ होती है तथा वे वित्त, लेखा एवं व्यवसाय जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं।
  • NCLT एक अर्द्ध-न्यायिक क्षमता में कार्य करता है, जिसका अर्थ है, कि यह न्यायिक तथा प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों से संबंधित कार्यों को संभालता है।

क्या NCLT सिविल न्यायालय की शक्तियों से संपन्न है?

  • हालाँकि NCLT को कंपनियों से संबंधित मामलों की सुनवाई और उन मामलों में निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है, किंतु इसमें सिविल न्यायालय की व्यापक अधिकारिता का अभाव है।
  • सिविल न्यायालय व्यापक श्रेणी के व्यवहारिक विवादों का समाधान करता है, जिनमें संपत्ति, संविदा, परिवार विधि एवं अन्य व्यवहारिक मुद्दों से संबंधित मामले शामिल हैं।
    • NCLT की अधिकारिता विशेष रूप से कॉर्पोरेट तथा कंपनी से संबंधित मामलों पर केंद्रित है।
  • हालाँकि, इसमें सिविल न्यायालय के समान निम्नलिखित संदर्भों में कुछ शक्तियाँ हैं:
    • समन के संदर्भ में
    • निरीक्षण एवं पूछताछ के संदर्भ में
    • साक्षियों की उपस्थिति के संदर्भ में
    • न्यायालय अवमान के संदर्भ में