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सांविधानिक विधि

पंचायत

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 12-Jan-2024

परिचय:

भारत में पंचायत एक महत्त्वपूर्ण संस्था है जो ज़मीनी स्तर पर स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाती है।

  • भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित इस विकेन्द्रीकृत प्रणाली का उद्देश्य, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों को शामिल करके लोकतांत्रिक सिद्धांतों, सामाजिक न्याय एवं समान विकास को बढ़ावा देना है।
  • संस्कृत में "पंचायती राज" शब्द का शाब्दिक अर्थ "ग्राम परिषद का शासन" है, इसकी जड़ें पारंपरिक ग्राम प्रशासन प्रणाली में निहित हैं।

भारत में पंचायतों की विकास यात्रा:

  • बलवंत राय मेहता समिति (1957):
    • पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश सबसे पहले वर्ष 1957 में बलवंत राय मेहता समिति ने की थी।
    • इसमें ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के रूप में पंचायती राज संस्थानों की त्रिस्तरीय प्रणाली पर बल दिया था।
  • अशोक मेहता समिति (1977):
    • मध्यस्थ स्तर को समाप्त करते हुए इसमें पंचायती राज की दो-स्तरीय प्रणाली की सिफारिश की गई थी।
    • इसमें स्थानीय स्वशासन को मज़बूत करने के क्रम में शक्तियों एवं कार्यों के विकेंद्रीकरण पर बल दिया गया था।
  • संवैधानिक संशोधन:
    • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
    • इसके द्वारा गाँव, मध्यवर्ती (ब्लॉक) और ज़िला स्तरों पर पंचायती राज की त्रिस्तरीय प्रणाली को स्थापित किया गया।
    • 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थानों में अनुसूचित जाति (SCs), अनुसूचित जनजाति (STs) और महिलाओं के लिये आरक्षण प्रदान किया गया था।
    • इसके द्वारा नियमित निर्वाचन हेतु राज्य चुनाव आयोगों का गठन किया गया था।
    • इसने पंचायतों और नगर पालिकाओं को शक्तियों तथा ज़िम्मेदारियों का हस्तांतरण किया।

पंचायतों के संबंध में भारत के संविधान, 1950 के प्रमुख प्रावधान:

  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:
    • अनुच्छेद 40: इसमें कहा गया है कि राज्य, ग्राम पंचायतों को गठित करने के लिये कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियाँ एवं अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने के लिये आवश्यक हों।
  • भाग IX - पंचायतें:
    • अनुच्छेद 243: परिभाषाएँ: यह अनुच्छेद ज़िला, ग्राम सभा, मध्यवर्ती स्तर, पंचायत, पंचायत क्षेत्र, जनसंख्या एवं गाँव को परिभाषित करता है।
  • अनुच्छेद 243A: ग्राम सभा
    • इसमें कहा गया है कि ग्राम सभा ऐसी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है तथा ग्राम स्तर पर ऐसे कार्य कर सकती है जो राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा प्रदान करे।
  • अनुच्छेद 243B – 243 O: पंचायत
    • ये अनुच्छेद ग्राम, मध्यवर्ती और ज़िला स्तर पर पंचायतों के गठन व संरचना का प्रावधान करते हैं।
    • इनमें पंचायतों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण संबंधी प्रावधान हैं। ये अनुच्छेद पंचायतों की शक्तियों, अधिकार और ज़िम्मेदारियों का भी विवरण प्रदान करते हैं।

पंचायत का गठन:

  • भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 243B के तहत पंचायतों के गठन का उल्लेख किया गया है।
  • इसके प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और ज़िला स्तर पर पंचायतों का गठन किया जाएगा।
  • उपर्युक्त खंड में किसी भी तथ्य के बावजूद, बीस लाख से कम आबादी वाले राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन नहीं किया जा सकता है।

पंचायतों के कार्य:

  • स्थानीय योजना और विकास:
    • पंचायतें स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय के लिये योजनाएँ बनाने और लागू करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • इसमें कृषि, बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और निर्धनता उन्मूलन की योजनाएँ शामिल है।
  • संसाधन संग्रहण:
    • पंचायतों के पास करों, शुल्कों और अनुदानों के माध्यम से संसाधन संग्रहण की शक्ति है।
    • यह वित्तीय स्वायत्तता उन्हें स्थानीय विकास परियोजनाएँ शुरू करने तथा अपने समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये सशक्त बनाती हैं।
  • सामाजिक न्याय:
    • पंचायतें भूमि वितरण, निर्धनता उन्मूलन और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के कल्याण से संबंधित मुद्दों को हल करके सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • पंचायत के निर्वाचनों में SCs, STs और महिलाओं के लिये आरक्षण का उद्देश्य निर्णय लेने में उनका प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी सुनिश्चित करना है।
  • विवाद समाधान:
    • पंचायतें स्थानीय विवाद समाधान मंच के रूप में कार्य करती हैं, जो विवादों को निपटाने तथा समुदाय के अंदर सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में मदद करती हैं।
  • सरकारी कार्यक्रमों का कार्यान्वयन:
    • पंचायतें, ज़मीनी स्तर पर सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन में सहायक हैं। वे सरकार और स्थानीय आबादी के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करती हैं।

लोकतंत्र पर पंचायत का प्रभाव:

  • स्थानीय सशक्तीकरण:
    • पंचायती राज व्यवस्था, स्थानीय समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हिस्सेदारी देकर सशक्त बनाती है।
    • इससे निर्वाचित प्रतिनिधियों की उन लोगों के प्रति जवाबदेही बढ़ती है जिनकी वे सेवा करते हैं।
  • सामाजिक समावेश:
    • पंचायत चुनावों में हाशिये पर स्थित समुदायों के लिये आरक्षण के प्रावधान से सामाजिक समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
    • इससे ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों को शासन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये मंच मिलता है।
  • ग्रामीण विकास:
    • पंचायतें, ग्रामीण विकास पहलों की योजना बनाने तथा उन्हें लागू करने, गाँवों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने एवं स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • लोकतांत्रिक मूल्य:
    • पंचायती राज व्यवस्था से ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है, जिससे नागरिकों में ज़िम्मेदारी तथा भागीदारी की भावना विकसित होती है।
  • संघर्ष समाधान:
    • स्थानीय स्तर पर विवाद समाधान मंच के रूप में कार्य करके पंचायतें, सामाजिक सद्भाव बनाए रखने तथा समुदायों के अंदर विवादों को सुलझाने में योगदान देती हैं।