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महत्त्वपूर्ण संस्थान
पटना उच्च न्यायालय
« »29-May-2024
परिचय:
पटना उच्च न्यायालय की स्थापना 3 फरवरी 1916 को हुई थी।
- पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 1916 में मुख्य न्यायाधीश एवं छः अवर न्यायाधीशों के साथ अपना कार्य प्रारंभ किया था।
- बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के अंतर्गत 2000 में राँची में पटना उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच को अलग कर झारखंड उच्च न्यायालय बना दिया गया।
पटना उच्च न्यायालय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- 22 मार्च 1912 को भारत के गवर्नर-जनरल द्वारा एक घोषणा की गई।
- इस घोषणा से बिहार एवं उड़ीसा को एक अलग प्रांत का दर्जा दिया गया।
- 09 फरवरी 1916 को लेटर्स पेटेंट द्वारा पटना उच्च न्यायालय अस्तित्त्व में आया तथा 26 फरवरी 1916 को सिविल, आपराधिक, एडमिरल्टी, वैवाहिक, वसीयतनामा एवं इंटेस्टेट, नामांकन आदि से संबंधित सभी मामले पटना उच्च न्यायालय को दे दिये गए।
- इस उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश सर एडवर्ड मेनार्ड डेस चैंप्स चैमियर थे।
- पटना उच्च न्यायालय का भवन 03 फरवरी 1916 को वायसराय सर चार्ल्स हार्डिंग द्वारा पूरा किया गया तथा कार्य प्रारंभ हुआ।
- पटना उच्च न्यायालय ने बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्रों पर अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया।
- वर्ष 1948 में उड़ीसा के लिये एक अलग उच्च न्यायालय बनाया गया।
- वर्ष 1972 में राँची में एक सर्किट बेंच का गठन किया गया।
- 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य अस्तित्त्व में आया तथा झारखंड उच्च न्यायालय के रूप में एक अलग उच्च न्यायालय का गठन किया गया।
झारखंड उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में कौन-सा ज़िला न्यायालय आता है?
झारखंड उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या कितनी है?
- मुख्य न्यायाधीश सहित कुल न्यायाधीशों की संख्या 53 है।
- वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश सहित 36 न्यायाधीश हैं।
- झारखंड के अलग होने (वर्ष 2000) के बाद पहली बार पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 35 से अधिक हुई है।
पटना उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति क्या है?
- विधिक सहायता समिति का गठन पटना उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1991 में किया गया था।
- इस समिति का मुख्य उद्देश्य बिहार के प्रत्येक गरीब व्यक्ति को विधिक सहायता प्रदान करना है।
- इस उद्देश्य के लिये समिति द्वारा अधिवक्ताओं का चयन किया जाता है तथा वे ज़रूरतमंद लोगों को उनके मामलों में सहायता प्रदान करते हैं।
- समिति द्वारा प्रतिवर्ष लोक न्यायालयों का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें अनेक मामलों का निपटारा किया जाता है।
- समिति द्वारा विधिक जागरूकता फैलाने तथा विभिन्न समितियों के लिये गैर सरकारी संगठनों को भी सम्मिलित किया जाता है।
- समिति न्यायालय के भार को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा लोगों को निःशुल्क न्याय दिलाने के लिये न्यायालय तक पहुँचने में सहायता करती है।
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के निर्देशों के अनुसार समिति के लिये कमज़ोर तथा श्रमिक वर्ग प्राथमिकता में है।
पटना उच्च न्यायालय की किशोर न्याय पर्यवेक्षक समिति क्या है?
- पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा वर्ष 2008 में किशोर न्याय पर्यवेक्षक समिति का गठन किया गया था।
- इस समिति का मुख्य उद्देश्य किशोर न्याय अधिनियम, 2000 (JJ एक्ट) एवं यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो एक्ट) के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करना है।
- किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के अधीन स्थापित रिमांड होम की स्थिति एवं कार्यों की निगरानी के लिये समिति का गठन किया गया था।
- इस समिति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- JJ अधिनियम एवं पॉक्सो अधिनियम के अधीन वर्णित संस्थाओं या प्राधिकरणों की स्थापना सुनिश्चित करें।
- ज़िला न्यायाधीशों से तिमाही आधार पर रिपोर्ट का मूल्यांकन करें।
- पीड़ितों को पीड़ित मुआवज़ा राशि का वितरण सुनिश्चित करें।
- एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) एवं एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के सामाजिक ऑडिट से संबंधित रिपोर्ट वार्षिक आधार पर प्रस्तुत करना सुनिश्चित करें।
- शिशु देखभाल संस्थानों का पर्यवेक्षण।
- बच्चों की पोषण, शिक्षा, मानसिक, मनोवैज्ञानिक आदि जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को सुनिश्चित करना।
- बच्चों के लिये विधिक सहायता एवं पुनर्वास सुनिश्चित करना।
- प्रत्येक ज़िले में बाल हितैषी न्यायालयों एवं संवेदनशील साक्षी न्यायालयों के स्थापना की निगरानी करना।
- नीति एवं नियम बनाना तथा उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
- पुलिस अधिकारियों, अभियोजकों, न्यायिक अधिकारियों आदि के लिये कार्यक्रम, सेमिनार एवं पाठ्यक्रम आयोजित करना।
- JJ अधिनियम के अंतर्गत दत्तक लेने की प्रक्रिया की निगरानी करना।
पटना उच्च न्यायालय में डिजिटलीकरण:
- स्टूडियो आधारित वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामलों की सुनवाई 19 मार्च 2020 को शुरू की गई थी तथा पटना उच्च न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामलों की सुनवाई करने वाला पहला उच्च न्यायालय था।
- ई-सेवा केंद्र:
- मार्च 2021 में पटना उच्च न्यायालय में ई-सेवा केंद्र की स्थापना की गई।
- मामले की स्थिति, सुनवाई की अगली तिथि आदि से संबंधित पूछताछ को संभालना एवं ऑनलाइन आवेदन की सुविधा प्रदान करना।
- कई ज़िला न्यायालयों में सेवा केंद्र स्थापित करने से समय की बचत होती है, लंबी यात्रा से छुटकारा मिलता है तथा लागत कम होती है।
- अधिवक्ताओं के लिये ई-पास:
- कोविड-19 के दौरान अधिवक्ताओं के प्रवेश के लिये ई-पास की भी शुरुआत हो गई है। इसे कॉज लिस्ट डेटा के साथ सिंक्रोनाइज़ किया गया है, ताकि आवश्यक हितधारक ई-पास जनरेट कर सकें।
- लाइव प्रसारण:
- न्यायालयी कार्यवाही का प्रतिदिन YouTube पर सीधा प्रसारण किया गया। न्यायालयी कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग मार्च 2021 में शुरू की गई थी।