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वाणिज्यिक विधि

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

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 01-Mar-2024

परिचय:

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड की स्थापना 12 अप्रैल, 1988 को भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा एक अनौपचारिक इकाई के रूप में हुई थी।
  • इसे वर्ष 1992 में वैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ जब भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 30 जनवरी, 1992 को प्रभावी हुआ।

SEBI कैसे अस्तित्व में आया?

  • SEBI के अस्तित्व में आने से पूर्व, पूंजी निर्गम नियंत्रक, नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजी निर्गम (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 से अधिकार प्राप्त था।
    • अप्रैल, 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में SEBI का गठन किया गया था।
  • प्रारंभ में SEBI बिना किसी कानूनी शक्ति वाला एक अकानूनी निकाय था।
    • यह स्वायत्त हो गया और SEBI अधिनियम, 1992 द्वारा इसे कानूनी शक्तियाँ दी गईं।
  • SEBI का मुख्यालय मुंबई में स्थित है। SEBI के क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।

SEBI की संरचना क्या है?

  • बोर्ड और समितियाँ:
    • SEBI बोर्ड में एक अध्यक्ष तथा कई अन्य पूर्णकालिक और अंशकालिक सदस्य होते हैं।
    • SEBI आवश्यकता पड़ने पर उस समय के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर गौर करने के लिये विभिन्न समितियों की नियुक्ति भी करता है।
    • SEBI की लगभग 42 समितियाँ हैं, जिनमें कॉर्पोरेट गवर्नेंस समिति, निष्पक्ष बाज़ार आचरण समिति, साइबर सुरक्षा पर उच्च शक्ति संचालन समिति, मध्यवर्ती सलाहकार समिति आदि शामिल हैं।
  • प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT):
    • इसके अलावा, SEBI के निर्णय से व्यथित महसूस करने वाली संस्थाओं के हितों की रक्षा के लिये एक प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) का गठन किया गया है।
    • SAT में एक पीठासीन अधिकारी और दो अन्य सदस्य होते हैं।
    • इसमें वही शक्तियाँ हैं जो एक सिविल न्यायालय में निहित होती हैं। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति SAT के निर्णय या आदेश से व्यथित महसूस करता है, तो वह उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है।

SEBI की शक्तियाँ और कार्य क्या हैं?

  • निकाय का प्रकार:
    • SEBI एक अर्द्ध-विधायी और अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो नियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, जाँच कर सकता है, निर्णय पारित कर सकता है तथा ज़ुर्माना लगा सकता है।
  • कार्य:
    • जारीकर्त्ता - एक बाज़ार प्रदान करना जिसमें जारीकर्त्ता अपना वित्त बढ़ा सकते हैं।
    • निवेशक - सुरक्षा और स्पष्ट और सटीक जानकारी की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • मध्यवर्ती - मध्यस्थों के लिये एक प्रतिस्पर्धी पेशेवर बाज़ार को सक्षम करना।
  • संशोधन:
    • प्रतिभूति विधि (संशोधन) अधिनियम, 2014 द्वारा, SEBI 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक मूल्य की किसी भी मनी पूलिंग योजना को विनियमित करने और अननुपालन के मामलों में संपत्ति संलग्न करने में सक्षम है।
  • अन्य कार्य:
    • SEBI अध्यक्ष के पास "खोज और ज़ब्ती कार्रवाई" का आदेश देने का अधिकार है। SEBI बोर्ड उसके द्वारा जाँच किये जा रहे किसी भी प्रतिभूति लेनदेन के संबंध में किसी भी व्यक्ति या संस्था से टेलीफोन कॉल डेटा रिकॉर्ड जैसी जानकारी भी मांग सकता है।
    • SEBI उद्यम पूंजी कोष और म्यूचुअल फंड सहित सामूहिक निवेश योजनाओं के कामकाज के रजिस्ट्रीकरण एवं विनियमन का कार्य करता है।
    • यह स्व-नियामक संगठनों को बढ़ावा देने और विनियमित करने तथा प्रतिभूति बाज़ारों से संबंधित धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिये भी कार्य करता है।

SEBI की समान अवसर नीति क्या है?

  • SEBI वर्ष 2019 में समान अवसर नीति का आधिकारिक परिपत्र लेकर आया।
  • यह निःशक्त व्यक्तियों (PwD) को SEBI के समक्ष समान अवसर प्रदान करता है।
  • यह निःशक्त व्यक्तियों को सुविधाएँ, पोस्ट, सहायक उपकरण और अन्य सुविधाएँ प्रदान करता है।

SEBI से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • हाल के वर्षों में SEBI की भूमिका अधिक जटिल हो गई है, पूंजी बाज़ार नियामक एक दोराहे पर मौजूद है।
  • बाज़ार आचरण के विनियमन पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है और विवेकपूर्ण विनियमन पर कम ज़ोर दिया गया है।
  • SEBI की कानूनी प्रवर्तन शक्तियाँ अमेरिका और ब्रिटेन में उसके समकक्षों की तुलना में अधिक हैं क्योंकि इसके पास गंभीर आर्थिक क्षति पहुँचाने के लिये कहीं अधिक शक्तियाँ मौजूद हैं।
  • ये आर्थिक गतिविधियों पर गंभीर प्रतिबंध लगा सकते है, तथा संदेह के आधार पर किये जाते हैं, जिससे प्रभावित लोगों को कुछ हद तक निवारक हिरासत की तरह, संदेह को गलत साबित करने का भार उठाना पड़ता है।
  • इसकी विधायी शक्तियाँ लगभग पूर्ण हैं क्योंकि SEBI अधिनियम अधीनस्थ कानून बनाने के लिये व्यापक विवेक प्रदान करता है।
  • बाज़ार के पास पूर्व परामर्श का घटक और नियमों की समीक्षा की प्रणाली, यह देखने के लिये कि क्या वे अपने उद्देश्य को पूरा कर चुके हैं, काफी हद तक अनुपस्थित है। परिणामस्वरूप, नियामक का भय व्यापक होता है।
  • विनियमन, विशेष रूप से आंतरिक व्यापार जैसे क्षेत्रों में, चाहे नियम हों या प्रवर्तन, पूर्णतः सही नहीं है।
  • प्रतिभूतियों की पेशकश करने वाले दस्तावेज़ काफी वज़नदार हैं और उच्च गुणवत्ता के वास्तविक खुलासे के बजाय औपचारिक अनुपालन तक सीमित हो गए हैं।