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गुजरात उच्च न्यायालय

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 11-Oct-2024

परिचय

गुजरात उच्च न्यायालय की स्थापना 1 मई, 1960 को बॉम्बे और गुजरात राज्यों के विभाजन के कारण हुई थी। 

  • माननीय न्यायमूर्ति सुंदरलाल त्रिकमलाल देसाई गुजरात उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश थे। 
  • यह राष्ट्र के केंद्र में न्याय का प्रतीक बनकर उपस्थित होता है।
  • यह भारत के विधिक ढाँचे को विकसित करने और कानून के शासन को सुनिश्चित करने में सक्रिय रूप से संलग्न होता है।
  • उच्च न्यायालय को भारत के संविधान, 1950 के भाग VI के अध्याय V से अपनी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।  
    • मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना आवश्यक होता है। 
  • राष्ट्रपति गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) की नियुक्ति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा औपचारिक प्रक्रिया के माध्यम से करता हैं।  
    • इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना और गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश का पालन करना शामिल होता है।  
  • इसके अतिरिक्त, भारत के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों से सलाह लेने की बाध्यता होती है, जबकि गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिए उम्मीदवार का सुझाव देते समय अपने दो सबसे वरिष्ठ सहयोगी न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिये। 

अधिकारिता 

मूल अधिकारिता:

  • गुजरात उच्च न्यायालय नियम, 1993 के तहत उच्च न्यायालय अपनी मूल अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है। 
  • गुजरात उच्च न्यायालय अपनी मूल अधिकारिता के तहत मामलों की सुनवाई के लिये प्रथम दृष्टया न्यायालय हो सकता है।
  • भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत मौलिक अधिकारों और किसी अन्य उद्देश्य के लिये रिट अधिकारिता उच्च न्यायालय की मूल अधिकारिता का हिस्सा है।
  • एकल न्यायाधीश पीठ या खंडपीठ भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत मामलों की सुनवाई कर सकती है।

अपीलीय अधिकारिता 

  • उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध दायर अपीलों पर पुनः सुनवाई कर सकता है।
  • इसके पास सिविल और आपराधिक दोनों प्रकार की अपीलीय अधिकारिता होती ।
  • यह अपनी अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा पारित निर्णय को रद्द या बरकरार रख सकता है। 

पर्यवेक्षी अधिकारिता 

  • भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय को अपनी अधिकारिता वाले सभी न्यायालयों और अधिकरणों पर अधीक्षण प्राप्त होता है।
  • यह एक अधिभावी अधिकारिता होती है जिसका प्रयोग अधीनस्थ न्यायालयों और अधिकरणों के अंतिम निर्णयों पर भी किया जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय सशस्त्र बलों से संबंधित अधिकरण पर इस अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकता।

धनीय अधिकारिता 

  • धनीय अधिकारिता से तात्पर्य विवाद के विषय-वस्तु में शामिल विशिष्ट मौद्रिक मूल्य या वित्तीय राशि के आधार पर मामलों की सुनवाई करने के लिये न्यायालय के अधिकार या सीमा से है। 
  • गुजरात उच्च न्यायालय के पास 1 करोड़ से अधिक के विवाद वाले मुकदमों पर कोई अधिकारिता नहीं है।