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महत्त्वपूर्ण संस्थान

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय

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 28-Feb-2025

परिचय  

  • हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय स्वतंत्रता के बाद भारत के विकसित होते न्यायिक परिदृश्य का एक प्रमाण है। 
  • 1971 में हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिलने पर स्थापित इस न्यायालय ने इस हिमालयी राज्य में न्याय और सांविधानिक मूल्यों को कायम रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

स्वतंत्रता-पूर्व युग 

  • भारत की स्वतंत्रता से पहले, जिसे अब हिमाचल प्रदेश के रूप में जाना जाता है, में कई रियासतें थीं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी प्रशासनिक प्रणाली और विधि थी 
  • इनमें से अधिकांश रियासतों में शासन, शासकों या उनके वज़ीरों (मंत्रियों) के विवेक पर संचालित होता था, जिनकी घोषणाएँ विधि मानी जाती थीं। 
  • न्याय के लिये यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण जल्द ही भारत की स्वतंत्रता के बाद एक अधिक संरचित प्रणाली का रास्ता बना देगा। 

हिमाचल प्रदेश का गठन 

  • हिमाचल प्रदेश का गठन 15 अप्रैल 1948 को 26 शिमला पहाड़ी राज्यों और 4 पंजाब पहाड़ी राज्यों को एक केंद्रीय प्रशासित क्षेत्र में एकीकृत करके किया गया था। 
  • यह प्रशासनिक एकीकरण 1 अप्रैल, 1954 को और आगे बढ़ा, जब बिलासपुर के कुछ हिस्सों को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया।  
  • नवगठित क्षेत्र ने एक मुख्य आयुक्त के नेतृत्व में शिमला में अपना मुख्यालय स्थापित किया।  

प्रारंभिक प्रशासनिक संरचना  

  • हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्य आयुक्त श्री एन.सी. मेहता थे, जिनकी सहायता उनके डिप्टी श्री ई. पेंडरल मून, आई.सी.एस. ने की थी।  
  • शासन कार्यों का समर्थन करने के लिये, प्रशासनिक मामलों पर मुख्य आयुक्त को सलाह देने के लिये 30 सितंबर 1948 को एक सलाहकार परिषद का गठन किया गया था।  

हिमाचल प्रदेश में न्यायिक प्रणाली का विकास 

न्यायिक आयुक्त का न्यायालय (1948-1967) 

  • केंद्र सरकार ने 15 अगस्त 1948 को अधिनियमित हिमाचल प्रदेश (न्यायालय) आदेश, 1948 के माध्यम से प्रारंभिक न्यायिक ढाँचे की स्थापना की। 
  • आदेश के पैराग्राफ 3 के अंतर्गत, हिमाचल प्रदेश के लिये न्यायिक आयुक्त न्यायालय की स्थापना की गई, जो शिमला के केल्स्टन क्षेत्र में "हारविंग्टन" में स्थित है। 
  • इस न्यायालय को न्यायिक आयुक्त न्यायालय अधिनियम, 1950 के अधीन उच्च न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गईं। 
  • इसके साथ ही, जिला एवं सेशन न्यायाधीशों के दो न्यायालय और 27 अधीनस्थ न्यायालय स्थापित किये गए। 
  • पंजाब उच्च न्यायालय के नियमों और आदेशों को उपयुक्त संशोधनों के साथ, इन न्यायालयों पर लागू किया गया 
  • शिमला और कांगड़ा के लिये दो अतिरिक्त जिला एवं सेशन न्यायाधीश न्यायालयों की स्थापना के साथ 1967 में न्यायिक बुनियादी ढाँचे का विस्तार हुआ। 

दिल्ली उच्च न्यायालय की हिमाचल पीठ (1967-1971) 

  • 1966 में भारत सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय अधिनियम बनाया, जो 1 मई 1967 को लागू हुआ। 
  • केंद्र सरकार ने इस अधिनियम के संचालन को हिमाचल प्रदेश केंद्र शासित प्रदेश तक विस्तारित किया, तथा न्यायिक आयुक्त के न्यायालय के स्थान पर शिमला में दिल्ली उच्च न्यायालय की हिमाचल पीठ की स्थापना की। 
  • इस पीठ ने पुराने उच्च न्यायालय भवन में काम करना शुरू किया, जिसे "रेवेन्सवुड" (Ravenswood) के नाम से जाना जाता 
  • उस समय माननीय न्यायमूर्ति के.एस. हेगड़े दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। 
  • शिमला में दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली सर्किट पीठ में माननीय न्यायमूर्ति एस.के. कपूर और माननीय न्यायमूर्ति हरदयाल हार्डी शामिल थे। 

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की स्थापना (1971)  

  • जब हिमाचल प्रदेश ने 1971 में राज्य का दर्जा प्राप्त किया, तो इसने अपना स्वतंत्र उच्च न्यायालय स्थापित किया जिसका मुख्यालय "रेवेन्सवुड," शिमला में था। 
  • न्यायालय में शुरू में एक मुख्य न्यायाधीश और दो न्यायाधीश थे।  
  • हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति एम.एच. बेग थे, जिनके साथ माननीय न्यायमूर्ति डी.बी. लाल और माननीय न्यायमूर्ति सी.आर. ठाकुर न्यायालय के पहले न्यायाधीश थे।  

प्रतिष्ठित मुख्य न्यायाधीश  

  • पिछले कुछ वर्षों में, कई प्रतिष्ठित न्यायविदों ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद को सुशोभित किया है, जिनमें से प्रत्येक ने संस्था के कामकाज पर एक अलग छाप छोड़ी है। इन प्रतिष्ठित मुख्य न्यायाधीशों में सम्मिलित हैं: 
    • माननीय न्यायमूर्ति एम.एच. बेग 
    • माननीय न्यायमूर्ति आर.एस. पाठक 
    • माननीय न्यायमूर्ति टी.यू. मेहता 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति वी.डी. मिश्रा 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति पी.डी. देसाई 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति एन.एम. कासलीवाल 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति पी.सी.बी. मेनन 
    • माननीय सुश्री न्यायमूर्ति लीला सेठ 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति एस.के. सेठ 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति वी. रत्नम 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति जी.सी. गुप्ता 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति एस.एन. फुकन 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति एम. श्रीनिवासन 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति एम.एन. राव 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति डी. राजू 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति सी.के. ठक्कर 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति डब्ल्यू.ए. शिशक 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति वी.के. गुप्ता 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति जगदीश भल्ला 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ 
    • माननीय श्री न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर 
    • माननीय न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर 
    • माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत 
    • माननीय न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम 
    • माननीय न्यायमूर्ति एल. नारायण स्वामी 
    • माननीय न्यायमूर्ति मोहम्मद रफीक 
    • माननीय न्यायमूर्ति अमजद एहतेशाम सईद 
    • माननीय न्यायमूर्ति ममीदन्ना सत्य रत्न श्री रामचंद्र राव 

वर्तमान संरचना और नेतृत्व 

  • वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश के पद पर माननीय न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया आसीन हैं। 
  • उनके कुशल नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय और इसके अधीनस्थ न्यायालय दोनों ही उल्लेखनीय प्रगति कर रहे हैं। 
  • आकार में छोटा होने के बावजूद, यह उच्च न्यायालय भारत के न्यायिक परिदृश्य में गौरवपूर्ण स्थान रखता है। 
  • मई 2024 तक हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या मुख्य न्यायाधीश सहित सत्रह है। 
  • वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश सहित बारह न्यायाधीश न्यायालय की अध्यक्षता कर रहे हैं। 

प्रशासनिक समितियाँ 

  • हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय न्याय के कुशल प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न समितियों के माध्यम से कार्य करता है। 
  • 31 मई, 2024 तक, 23 समितियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक के विशिष्ट उत्तरदायित्त्व हैं: 
    • प्रशासनिक समिति: मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में, यह समिति सामान्य प्रशासनिक मामलों की देखरेख करती है। 
    • अधिवक्ताओं को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के संबंध में: यह समिति वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के लिये अधिवक्ताओं का मूल्यांकन और अनुशंसा करती है। 
    • शिकायत निवारण समिति: बार के सदस्यों की शिकायतों का समाधान करती है। 
    • वित्त समिति: उच्च न्यायालय से संबंधित वित्तीय मामलों का प्रबंधन करती है। 
    • केंद्र प्रायोजित योजना का कार्यान्वयन: न्यायपालिका में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के कार्यान्वयन की देखरेख करती है। 
    • अनुशासनात्मक, सतर्कता और पदोन्नति समिति: अनुशासनात्मक कार्रवाई, सतर्कता मामलों और न्यायालय कर्मचारियों की पदोन्नति को संभालती है। 
    • भवन और अवसंरचना समिति: न्यायालय के अवसंरचना के विकास और रखरखाव की देखरेख करती है। 
    • स्थायी कमज़ोर साक्षी बयान केंद्र (Permanent Vulnerable Witness Deposition Centre) समिति: कमज़ोर साक्षियों के लिये उचित सुविधाएँ सुनिश्चित करती है। 
    • राज्य न्यायालय प्रबंधन प्रणाली समिति: पूरे राज्य में न्यायालय प्रणाली का प्रबंधन करती है। 
    • किशोर न्याय समिति: किशोर न्याय से संबंधित मामलों को संभालती है। 
    • माननीय न्यायाधीश और जिला न्यायपालिका के लिये कल्याण समिति: सभी स्तरों पर न्यायाधीशों के कल्याण की देखभाल करती है। 
    • मुकदमेबाजी समिति: न्यायालय से जुड़े मुकदमेबाजी मामलों का प्रबंधन करती है। 
    • वाद प्रबंधन और बकाया समिति: लंबित वादों को कम करने और वाद प्रबंधन में सुधार करने के लिये कार्य करती है। 
    • कंप्यूटर, ई-कोर्ट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एआई (AI) असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइजरी कमेटी और ई-लॉ रिपोर्ट: न्यायालय प्रणाली में तकनीकी प्रगति की देखरेख करती है। 
    • नियम समिति और जिला न्यायालयों के कर्मचारियों की शिकायतें: नियम बनाती है और जिला न्यायालय के कर्मचारियों की शिकायतों का समाधान करती है। 
    • आपदा प्रबंधन समिति: आपदाओं के लिये तैयारियाँ करती है और उनका प्रबंधन करती है। 
    • पुस्तकालय समिति: न्यायालय के पुस्तकालय संसाधनों का प्रबंधन करती है। 
    • माध्यस्थम्, मध्यस्थता और सुलह समिति: वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देती है। 
    • वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति: उच्च न्यायालय की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करती है। 
    • पारिवारिक न्यायालय समिति: पारिवारिक न्यायालयों के कामकाज की देखरेख करती है। 
    • प्रोटोकॉल और आतिथ्य समिति: प्रोटोकॉल और आतिथ्य मामलों का प्रबंधन करती है। 
    • उच्च न्यायालय स्तर पर सुगम्यता समिति: यह सुनिश्चित करती है कि न्यायालय विकलांग व्यक्तियों सहित सभी के लिये सुलभ हो। 
    • आवासीय आवास के आवंटन के लिये समिति: आवासीय आवास के आवंटन का प्रबंधन करती है। 
  • मुख्य न्यायाधीश सभी समितियों के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में नहीं आने वाली समितियों द्वारा की गई सिफारिशें कार्यान्वयन से पहले अनुमोदन के लिये मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखी जाती हैं। 

निष्कर्ष 

हालाँकि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय भारत के सबसे युवा उच्च न्यायालयों में से एक है, किंतु इसने देश के न्यायिक ढाँचे में एक महत्त्वपूर्ण संस्थान के रूप में स्वयं को स्थापित किया है। न्यायिक आयुक्त के न्यायालय के रूप में अपनी विनम्र शुरुआत से लेकर एक पूर्ण उच्च न्यायालय के रूप में अपनी स्थिति तक, यह दशकों में काफी विकसित हुआ है। न्यायालय को अनेक प्रतिष्ठित न्यायविदों ने सम्मानित किया है, जिनमें से अनेक ने भारत के उच्चतम न्यायालय में सेवा की है। उत्कृष्टता की यह विरासत माननीय न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया के वर्तमान नेतृत्व में जारी है।