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कर्नाटक उच्च न्यायालय

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 01-Aug-2024

परिचय:

कर्नाटक उच्च न्यायालय को पहले मैसूर उच्च न्यायालय के नाम से जाना जाता था।

  • यह अधिकारिता की दृष्टि से सर्वोच्च न्यायालय है।
  • न्यायालय की मुख्य पीठ कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु में है, जबकि हुबली-धारवाड़ा एवं कलबुर्गी में अतिरिक्त पीठ हैं।

कर्नाटक उच्च न्यायालय का इतिहास क्या है?

  • 21 अक्टूबर 1831 को भारत के गवर्नर-जनरल बेंटिक ने एक घोषणा जारी की तथा राजा की राज्य के मामलों का प्रबंधन करने में अक्षमता का हवाला देते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये मैसूर का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
  • एक वरिष्ठ आयुक्त एवं एक कनिष्ठ आयुक्त सहित आयुक्तों के एक बोर्ड को मैसूर के प्रशासन की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी गई।
  • जून 1832 में, इस बोर्ड को भंग कर दिया गया तथा एक आयुक्त को राज्य का प्रशासन करने का एकमात्र अधिकार दिया गया।
  • वर्ष 1834 में मैसूर राज्य को चार खंडों में विभाजित किया गया: बंगलुरु, नगर, चीतलदुर्ग एवं अष्टग्राम।
  • सुपरिटेंडेंट के नाम से जाना जाने वाला एक यूरोपीय अधिकारी प्रत्येक डिवीज़न का प्रतिनिधित्व करता था।
  • वर्ष 1831 से 1855 तक न्याय प्रशासन के लिये राज्य में पाँच न्यायालय थे।
  • वर्ष 1831 से वर्ष 1855 तक न्याय प्रशासन के लिये राज्य में पाँच न्यायालय थे।
  • वर्ष 1862-वर्ष 1863 में खंड पीठ के अधीक्षकों को सत्र न्यायाधीशों का अधिकार दिया गया।
  • वर्ष 1872 में मैसूर में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1872 लागू की गई।
  • वर्ष 1880 में मुंसिफों को तालुका मजिस्ट्रेट का अधिकार दिया गया। हालाँकि अमिलदारों के पास मजिस्ट्रेटी अधिकार बने रहे।
  • मुख्य न्यायाधीश ने वर्ष 1881 में आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन की देखरेख की। सिविल एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता ने उनके न्यायालय को उच्च न्यायालय के अधिकारिता का प्रयोग करने का अधिकार दिया।
  • वर्ष 1911 और वर्ष 1913 के बीच बंगलुरु, मैसूर एवं शिमोगा में तीन स्थायी सत्र न्यायालय बनाए गए।
  • संबंधित सत्र न्यायाधीशों द्वारा उन्हें हस्तांतरित किये गए सत्र मामलों की सुनवाई के लिये, बंगलुरु, मैसूर एवं शिमोगा में तीन सहायक सत्र न्यायाधीश थे।
  • कर्नाटक न्यायिक सेवा (भर्ती) नियम, 1983 अब कर्नाटक न्यायिक सेवा के अंदर भर्ती एवं प्रोन्नति को विनियमित करते हैं।

कर्नाटक उच्च न्यायालय के पीठों की संख्या:

कर्नाटक उच्च न्यायालय: बंगलुरु पीठ

  • यह पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय की प्रधान पीठ है।
  • यह कर्नाटक की राजधानी में स्थित है।
  • इस पीठ की स्थापना वर्ष 1884 में कर्नाटक में की गई थी।

कर्नाटक उच्च न्यायालय: हुबली-धारवाड़ा खंडपीठ

  • यह कर्नाटक उच्च न्यायालय की स्थायी पीठ है।
  • इस पीठ की स्थापना 24 अगस्त 2023 को की गई थी।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय की हुबली-धारवाड़ा पीठ का उद्घाटन भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन ने 4 जुलाई 2008 को किया था तथा इसने 7 जुलाई 2008 से कार्य प्रारंभ कर दिया।

कर्नाटक उच्च न्यायालय: कलबुर्गी पीठ

  • यह कर्नाटक उच्च न्यायालय की स्थायी पीठ भी है।
  • इस पीठ की स्थापना 31 अगस्त 2013 को हुई थी।
  • वर्ष 2008 से स्थायी पीठ बनने से पहले यह पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच थी।

कर्नाटक उच्च न्यायालय का संगठनात्मक ढाँचा:

कर्नाटक उच्च न्यायालय की संरचना:

  • न्यायमूर्ति निलय विपिनचंद्र अंजारिया 25 फरवरी 2024 से मुख्य न्यायाधीश हैं।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय में 45 न्यायाधीश हैं, जिनमें से अधिकतम स्वीकृत पद 60 हैं।

कर्नाटक उच्च न्यायालय के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया:

  • राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
  • CJI को उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना आवश्यक है।
  • राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर एवं मुहर के प्रयोग से वारंट द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) की नियुक्ति करते हैं।
  • इस प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना एवं कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अनुशंसा का पालन करना शामिल है।
  • इसके अतिरिक्त, मुख्य न्यायाधीश पर उच्चतम न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों से इनपुट लेने का दायित्व है, जबकि कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये उम्मीदवार का सुझाव देते समय अपने दो सबसे वरिष्ठ सहयोगी न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिये।

कर्नाटक उच्च न्यायालय की अधिकारिता:

  • मूल एवं रिट क्षेत्राधिकार:
    • अपने मूल अधिकार क्षेत्र में, यह महत्त्वपूर्ण लोक हित, संवैधानिक मुद्दों एवं महत्त्व के मामलों से संबंधित मामलों से निपटता है।
    • उच्च न्यायालय के पास भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट जारी करने का अधिकार भी है, जो इसे मौलिक अधिकारों की रक्षा करने एवं अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण को आदेश या निर्देश जारी करने का अधिकार देता है।
  • अपीलीय अधिकारिता:
    • उच्च न्यायालय एक अपीलीय न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है, जो अपने क्षेत्रीय अधिकारिता के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों की अपीलों पर विचार करता है।
    • इसमें अधीनस्थ सिविल एवं आपराधिक न्यायालयों की अपीलें शामिल हैं।
  • सिविल अधिकारिता:
    • कर्नाटक उच्च न्यायालय संपत्ति विवाद, संविदा-विवाद, पारिवारिक मामले, रिट याचिकाएँ एवं जनहित याचिकाओं (PIL) सहित सिविल मामलों का विचारण करता है।
  • आपराधिक अधिकारिता:
    • उच्च न्यायालय के पास आपराधिक मामलों पर अधिकार क्षेत्र है, जिसमें अधीनस्थ आपराधिक न्यायालयों से दोषसिद्धि एवं सज़ा के विरुद्ध अपील शामिल है।
    • यह ज़मानत, अग्रिम ज़मानत एवं अन्य आपराधिक कार्यवाही से संबंधित मामलों का भी विचारण कर सकता है।
  • पर्यवेक्षी अधिकारिता:
    • उच्च न्यायालय अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों पर पर्यवेक्षी अधिकारिता का प्रयोग करता है।
    • यह यह सुनिश्चित करने के लिये आदेश एवं निर्देश जारी कर सकता है कि अधीनस्थ न्यायालय विधि की परिधि में कार्य करें।
  • कराधान संबंधी अधिकारिता:
    • कर्नाटक उच्च न्यायालय को कराधान संबंधी मामलों में भी अधिकारिता प्राप्त है, जिसमें आयकर, बिक्री कर एवं अन्य कर विवाद से संबंधित मामले शामिल हैं।
  • प्रादेशिक अधिकारिता:
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 8 के अंतर्गत घोषित बंगलुरु शहर सहित महानगरीय क्षेत्र।
  • आर्थिक अधिकारिता:
    • उच्च न्यायालय एवं लघु वाद न्यायालय द्वारा संज्ञेय वादों या अन्य कार्यवाहियों को छोड़कर सिविल प्रकृति के वादों एवं अन्य कार्यवाहियों के संबंध में असीमित।

कर्नाटक उच्च न्यायालय के अधिकारी:

  • रजिस्ट्रार जनरल
  • रजिस्ट्रार/प्रोथोनोटरी एवं सीनियर मास्टर
  • रजिस्ट्रार (OS)
  • अतिरिक्त रजिस्ट्रार/अतिरिक्त प्रोथोनोटरी एवं सीनियर मास्टर
  • अतिरिक्त रजिस्ट्रार/अतिरिक्त प्रोथोनोटरी एवं सीनियर मास्टर
  • लेखा लेने के लिये आयुक्त
  • कोर्ट रिसीवर