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महत्त्वपूर्ण संस्थान

विधि एवं न्याय मंत्रालय

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 17-Sep-2024

परिचय:

जब ब्रिटिश संसद द्वारा चार्टर अधिनियम 1833 की स्थापना की गई, विधि एवं न्याय मंत्रालय (MLJ) अस्तित्व में आया ।

  • यह सरकार के सबसे पुराने अंगों में से एक है।

विधि एवं न्याय मंत्रालय का इतिहास क्या है?

  • चार्टर एक्ट, 1833 के माध्यम से, विधायी शक्तियाँ गवर्नर जनरल इन काउंसिल में निहित कर दी गईं।
  • भारतीय परिषद अधिनियम 1861 की धारा 22 के अंतर्गत निहित इस शक्ति के माध्यम से गवर्नर जनरल इन काउंसिल ने वर्ष 1834 से 1920 तक देश के लिये विधान बनाए।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अधिनियमन द्वारा ऐसी शक्तियाँ भारतीय विधानमंडल को प्रदान की गईं।
  • बाद में, भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अधिनियमन द्वारा, जिसे भारत (अनंतिम संविधान) आदेश 1947 द्वारा अधिनियमित किया गया।
    • भारत के संविधान, 1950 के अंतर्गत, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, विधायी शक्ति संसद में निहित है।

विधि एवं न्याय मंत्रालय की संरचना क्या है?

  • विभाग:
    • विधायी विभाग:
      • यह केंद्र सरकार के लिये प्रमुख विधान का प्रारूप तैयार करने से संबंधित है।
      • भारत संहिता में भारत में पिछली सदी से लागू विधानमंडल शामिल है तथा यह इंटरनेट पर उपलब्ध है।
    • विधिक मामलों का विभाग:
      • इसका कार्य केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को सलाह देना है।
    • न्याय विभाग:
      • न्याय विभाग के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं
      • भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, त्याग-पत्र एवं अपदस्थ होना।
      • भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, त्याग-पत्र और अपदस्थ होना,
      • उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति, त्याग-पत्र और अपदस्थ होना तथा उनकी सेवा से संबंधित मामले।
      • यह विभाग बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण योजनाओं को कार्यान्वित करता है।
    • न्यायपालिका
      • संवेदनशील प्रकृति के मामलों की त्वरित सुनवाई एवं निपटान के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना (बलात्संग एवं पोक्सो अधिनियम के मामलों के लिये फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय)।
      • देश भर में विभिन्न न्यायालयों के कंप्यूटरीकरण पर ई-कोर्ट परियोजना
      • गरीबों को विधिक सहायता एवं न्याय तक पहुँच देश के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी को वित्तीय सहायता।
  • कर्मचारी एवं अधिकारी:
    • माननीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
    • 3 सचिव

विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा क्या पहल की गई हैं?

  • सुगम व्यापार की दिशा में पहल:
    • वाणिज्यिक न्यायालय, वाणिज्यिक प्रभाग एवं उच्च न्यायालयों के वाणिज्यिक अपील प्रभाग अधिनियम 2015 का अधिनियमन
    • माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 में संशोधन
  • मुकदमेबाज़ी के बेहतर प्रबंधन की दिशा में पहल:
    • राष्ट्रीय मुकदमेबाज़ी की नीति का प्रारूप
    • एक वेब पोर्टल विधिक सूचना एवं प्रबंधन आधारित प्रणाली (LIMBS)
    • विधि अधिकारियों एवं पैनल परामर्शदाताओं की नियुक्ति
    • विधि अधिकारियों एवं विधिक परामर्शदाताओं के शुल्क में संशोधन
  • न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन की दिशा में पहल:
    • अप्रचलित एवं अनावश्यक विधियों को अपास्त करना
    • अधिकरणों की संख्या कम करने के लिये अधिकरणों के अभिसरण के लिये प्रमुख प्रयास
  • डिजिटल इंडिया एवं ई-गवर्नेंस की दिशा में पहल:
    • नोटरी की नियुक्ति के लिये आवेदन प्राप्त करने की ऑनलाइन प्रणाली
    • आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) में ई-गवर्नेंस एवं ई-कोर्ट का चलन प्रारंभ हुआ, जिससे वादियों को कम परेशानी के साथ मामलों का तेज़ी से निपटान हो रहा है।
    • ITAT में अपीलों का डिजिटलीकरण कार्य शुरू किया गया है।
    • विभिन्न न्यायालयों एवं अधिकरणों में लंबित भारत संघ के मामलों की केंद्रीय निगरानी के लिये LIMBS नामक वेब पोर्टल प्रारंभ किया गया है।
  • न्यायालयों के कंप्यूटरीकरण की दिशा में पहल:
    • ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों के सर्वव्यापक कंप्यूटरीकरण के लिये ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना प्रारंभ की गई है।
    • e-कोर्ट के द्वितीय चरण परियोजना का उद्देश्य कार्यप्रवाह प्रबंधन का स्वचालन करना है, जिससे न्यायालयों को मामलों के प्रबंधन में अधिक नियंत्रण रखने में सक्षम बनाया जा सके।
    • ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित 6.11 करोड़ से अधिक लंबित, निर्णीत मामलों तथा 2.4 करोड़ से अधिक आदेशों/निर्णयों के संबंध में केस स्टैटस की सूचना ऑनलाइन उपलब्ध है।
    • न्यायपालिका के कंप्यूटरीकरण पर 4000 से अधिक न्यायालय अधिकारियों तथा 14000 न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है।
    • 14,309 न्यायिक अधिकारियों को लैपटॉप प्रदान किये गए हैं।
  • न्याय प्रदान करने की दिशा में पहल:
    • उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति।
    • उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में वृद्धि की गई।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय के वित्तीय अधिकार क्षेत्र में वृद्धि की गई।
    • न्यायपालिका के लिये अवसंरचना सुविधाओं के विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना का कार्यान्वयन।
  • न्याय परियोजनाओं तक पहुँच की दिशा में पहल:
    • विभिन्न राज्यों के पैरालीगल स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया गया है।
    • राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण (NLMA) में विधिक साक्षरता को शामिल करना।
    • महाराष्ट्र में पर्यवेक्षण गृहों में किशोरों के लिये हेल्पडेस्क की स्थापना करना।
    • छत्तीसगढ़ एवं झारखंड राज्य में 50 वॉयस आधारित विधिक सूचना कियोस्क की स्थापना करना।
    • नगालैंड के दो सबसे पिछड़े ज़िलों- तुएनसांग एवं मोन में 46 विधिक सहायता क्लीनिक स्थापित किये गए।
    • SRC असम, शिलांग, जम्मू-कश्मीर एवं अरुणाचल प्रदेश द्वारा विधिक साक्षरता गतिविधियों को प्रारंभ करने के लिये न्याय एवं NLMA (राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण) के बीच करार ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
  • MLJ द्वारा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पहल भी की गईं।