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उड़ीसा उच्च न्यायालय

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 03-Sep-2024

परिचय:

  • औपनिवेशिक काल के दौरान उड़ीसा मूल रूप से बंगाल का हिस्सा था।
  • 22 मार्च 1912 को बिहार एवं उड़ीसा का नया प्रांत बनाया गया।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय के पास नए प्रांत पर अधिकारिता थी।
  • बाद में यह 26 फरवरी 1916 को पटना उच्च न्यायालय की अधिकारिता में आ गई।
  • 1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा का अलग प्रांत बनाया गया।
  • न्यायमूर्ति बीरा किशोर रे उड़ीसा उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश थे।

उड़ीसा उच्च न्यायालय का इतिहास:

  • कटक स्थित उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने 26 जुलाई, 1938 को उड़ीसा के लिये एक अलग उच्च न्यायालय की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
  • प्रस्ताव की जाँच के लिये एक समिति गठित की गई तथा 31 दिसंबर 1943 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई।
  • 30 अप्रैल 1948 को भारत के गवर्नर जनरल ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 229(1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उड़ीसा उच्च न्यायालय आदेश, 1948 जारी किया, जिसमें 5 जुलाई 1948 से उड़ीसा प्रांत के लिये उच्च न्यायालय के गठन का प्रावधान किया गया।
  • बाद में, उड़ीसा उच्च न्यायालय (संशोधन) आदेश 1948 द्वारा, गठन की तिथि को बदलकर 26 जुलाई, 1948 कर दिया गया।
  • 18 मई 1916 से पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कटक में सर्किट में बैठने लगे। उड़ीसा के लिये एक महाधिवक्ता नियुक्त किया गया।
  • प्रासंगिक समय में उड़ीसा के चार ज़िले, अर्थात् कटक, बालासोर, पुरी एवं अंगुल एक ही ज़िला न्यायाधीश की अधिकारिता में था।

उड़ीसा उच्च न्यायालय के अधिकारिता के अंतर्गत स्वीकृत ज़िला न्यायालय

  • उड़ीसा उच्च न्यायालय के अधिकारिता में कुल 30 ज़िला न्यायालय हैं जिनके निम्नलिखित स्वीकृत पद हैं:
    • ज़िला न्यायाधीश
    • वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश
    • सिविल न्यायाधीश
    • ग्राम न्यायालयों के न्यायाधिकारी
    • विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट

न्यायाधीशों की नियुक्ति:

  • राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
  • मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना आवश्यक है।
  • राष्ट्रपति उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) की नियुक्ति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा औपचारिक प्रक्रिया के माध्यम से करते हैं।
  • इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना तथा उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अनुशंसा का पालन करना शामिल है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों से सलाह लेने की बाध्यता है, जबकि उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये अभ्यर्थी का सुझाव देते समय अपने दो सबसे वरिष्ठ सहयोगी न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिये।

अधिकारिता:

मूल अधिकारिता:

  • उच्च न्यायालय उड़ीसा उच्च न्यायालय आदेश, 1948 के अंतर्गत अपने मूल अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है।
  • उड़ीसा उच्च न्यायालय अपने मूल अधिकारिता के तहत मामलों की सुनवाई के लिये प्रथम दृष्टया न्यायालय हो सकता है।
  • भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों और किसी अन्य उद्देश्य के लिये रिट अधिकारिता उच्च न्यायालय की मूल अधिकारिता का एक भाग है।
  • एकल न्यायाधीश पीठ या खण्ड पीठ (डिवीज़न बेंच) भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत मामलों की सुनवाई कर सकती है।

अपीलीय अधिकारिता:

  • उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध दायर अपीलों पर पुनः सुनवाई कर सकता है।
  • इसके पास सिविल एवं आपराधिक दोनों प्रकार की अपीलीय अधिकारिता हैं।
  • यह अपनी अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा पारित निर्णय को रद्द या यथावत् रख सकता है।

पर्यवेक्षी अधिकारिता:

  • भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालय को अपनी अधिकारिता वाले सभी न्यायालयों एवं अधिकरणों पर अधीक्षण प्राप्त है।
    • यह एक अधिभावी अधिकारिता है जिसका प्रयोग अधीनस्थ न्यायालयों एवं अधिकरणों के अंतिम निर्णयों पर भी किया जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय सशस्त्र बलों से संबंधित अधिकरण पर इस अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकता।