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आपराधिक कानून

मारियानो आंटो ब्रूनो बनाम इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस

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 19-Jul-2024

परिचय:

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या के दुष्प्रेरण के मामलों में आत्महत्या से पूर्व प्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रेरण का साक्ष्य होना चाहिये।

तथ्य:

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता पेशे से एक डॉक्टर थे, जिनका विवाह डॉ. एम. अमली विक्टोरिया (मृत) से हुई थी, जो अपने घर के शौचालय में मृत पाई गई थी।
  • मृत्यु का कारण गले पर बाहरी दबाव के कारण दम घुटना था।
  • पुलिस (प्रतिवादी) ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 174 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की।
  • तीन सप्ताह के बाद, मृतिका की माँ ने अपीलकर्त्ता, उसके पिता एवं उसकी माँ के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 498 A एवं 306 के अधीन FIR दर्ज कराई। इसके बाद, FIR को धारा 174 CrPC से धारा 498 A एवं 306 IPC में बदल दिया गया।
  • यह तर्क दिया गया कि मृतिका मानसिक क्रूरता द्वारा पीड़ित थी क्योंकि अपीलकर्त्ता उसे दूसरा बच्चा पैदा करने के लिये प्रताड़ित करता था, इस तथ्य के बावजूद कि मृतिका की दूसरी गर्भावस्था के दौरान गर्भपात हो गया था।
  • उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उनके पहले बच्चे के जन्म से पहले, अपीलकर्त्ता मृतिका को परेशान करता था तथा गर्भवती न हो पाने के कारण उसे प्रताड़ित करता था।
  • ट्रायल कोर्ट ने मृतिका के ससुर को दोषमुक्त करते हुए अपीलकर्त्ता एवं मृतिका की सास को दोषी करार दिया।
  • अपीलकर्त्ता ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की, जहाँ अपील को खारिज कर दिया गया तथा ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की।
  • उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 एवं 498A के अधीन अपराध के लिये अपीलकर्त्ताओं की दोषसिद्धि यथावत् रखने योग्य है या नहीं?

 टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मृतिका की मृत्यु से ठीक पूर्व ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था जिससे पता चले कि उसे आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित किया जा रहा था या उसके साथ कोई अपमान हुआ था जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में न्यायालय को भावनाओं एवं संवेदनाओं के बजाय तथ्यों एवं मामले की परिस्थितियों के आधार पर अपना निर्णय लेना चाहिये।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A के अधीन आरोप को सिद्ध करने के लिये मृतिका की माँ की गवाही के अतिरिक्त कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं था, जो इस तरह के कृत्यों की पुष्टि कर सके।

निष्कर्ष:

  • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को पलट दिया तथा अपील स्वीकार कर ली और अपीलकर्त्ता को दोषमुक्त कर दिया।

नोट:

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 108 है।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A अब भारतीय दण्ड संहिता, 2023 की धारा 85 एवं धारा 86 है।