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सिविल कानून

संपत्ति अंतर ण अधिनियम के अंतर्गत अनंतरणीय संपत्ति

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 07-Jun-2024

परिचय:

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) पक्षकारों के कृत्य द्वारा संपत्ति के अंतरण से संबंधित विधि का प्रावधान करता है।

  • TPA की धारा 6 में ऐसी संपत्ति का उल्लेख किया गया है जिन्हें अंतरित नहीं किया जा सकता।
  • अंतरण पर प्रतिबंध लगाने के कारण हैं:
    • लोक नीति
    • अधिकार प्रयोगकर्त्ता के लिये व्यक्तिगत होता है;
    • अधिकार आंतरिक रूप से बड़ी संपत्ति या अधिकार से संबद्ध होता है जिसे अंतरित नहीं किया जा रहा है।

कौन-सी संपत्ति अंतरित नहीं की जा सकती?

TPA की धारा 6 में ऐसी संपत्ति का उल्लेख किया गया है जिसे अंतरित नहीं किया जा सकता है– निम्नलिखित संपत्ति अंतरित नहीं की जा सकती:

  • संभाव्य उत्तराधिकार: इससे तात्पर्य यह होगा कि भविष्य में किसी व्यक्ति को अधिकार प्राप्त होने की संभावना, धारा 6 के खंड (a) में निम्नलिखित संभावनाओं का उल्लेख है:
    • किसी उत्तराधिकारी के संपत्ति पर उत्तराधिकार प्राप्त करने की संभावना,
    • किसी संबंधी के किसी स्वजन की मृत्यु पर संपत्ति प्राप्त करने की संभावना,
    • समान प्रकृति की कोई अन्य संभावना।
    • इससे तात्पर्य यह है कि कोई व्यक्ति केवल वही अंतरित कर सकता है जो उसका अपना है।
    • इसलिये, जब तक उत्तराधिकारी अपने पूर्ववर्ती की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन जाता, तब तक उसके द्वारा कोई भी अंतरण एक संभावना मात्र है।
  • पुनर्स्थापन का अधिकार:
    • आगामी अधिकार जिसे अंतरित नहीं किया जा सकता है, वह धारा 6 के खंड (b) के अंतर्गत पुनर्स्थापन का अधिकार है।
    • यदि किसी शर्त के उल्लंघन पर पुनर्स्थापन का अधिकार है, तो पुनर्स्थापन का यह अधिकार किसी को अंतरित नहीं किया जा सकता है।
    • इसका प्रयोग केवल अचल संपत्ति के स्वामी द्वारा किया जा सकता है।
  • सुखाधिकार:
    • TPA की धारा 6 के खंड (c) में यह प्रावधान है कि किसी सुखाधिकार को अधिष्ठायी संपत्ति से अलग अंतरित नहीं किया जा सकता है।
    • सुखाधिकार वह अधिकार है जो भूमि के स्वामी (अधिष्ठायी संपत्ति) के पास समीपवर्ती संपत्ति (अनुसेवी संपत्ति) पर अधिकार के समुचित आनंद के लिये होता है, जैसे कि मार्ग से आवागमन का अधिकार।
    • यह अधिकार अधिष्ठायी संपत्ति से अलग नहीं हो सकता है तथा इसलिये इसे अंतरित नहीं किया जा सकता है।
  • संपत्ति का उपयोग स्वामी तक ही सीमित है:
    • खंड (d) में यह प्रावधान है कि यदि हित का उपयोग केवल स्वामी तक ही सीमित है, तो यह अंतरण योग्य नहीं रह जाता।
    • ऐसे अधिकारों के उदाहरण हैं- विवाह विच्छेद के समय पत्नी को दिया जाने वाला भरण-पोषण, न्यायिक पृथक्करण के समय भुगतान किया जाने वाला गुज़ारा भत्ता।
  • भविष्य में रखरखाव का अधिकार:
    • वर्ष 1929 के संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ा गया खंड (dd) यह प्रावधान करता है कि भविष्य में भरण-पोषण के अधिकार को अंतरित नहीं किया जा सकता है।
    • इस खंड को जोड़ने की आवश्यकता इसलिये थी क्योंकि यद्यपि खंड (d) के आधार पर भरण-पोषण के अधिकार का अंतरण निषिद्ध था, फिर भी कुछ न्यायालयों ने माना कि यदि भरण-पोषण की राशि डिक्री या करार द्वारा तय की गई हो तो इसे अंतरित किया जा सकता है।
    • अतः यह खंड, योग्य स्वामी के व्यक्तिगत लाभ के लिये बनाए गए इस अधिकार की रक्षा के लिये प्रस्तुत किया गया था।
  • वाद लाने का अधिकार:
    • धारा 6 के खंड (e) में यह प्रावधान है कि मात्र वाद लाने के अधिकार को अंतरित नहीं किया जा सकता।
    • हालाँकि, यदि क्षतिपूर्ति के लिये डिक्री पारित हो चुकी है तो इसे अंतरित किया जा सकता है, क्योंकि यह मात्र वाद लाने का अधिकार नहीं रह गया है।
    • अंतःकालीन लाभ की वसूली का अधिकार केवल वाद लाने का अधिकार है और अंतरणीय नहीं है।
    • मन्मथ नाथ मलिक बनाम हिदायत अली (1931) के मामले में प्रिवी काउंसिल ने कार्यवाही योग्य दावे एवं केवल वाद लाने का अधिकार के मध्य अंतर निर्धारित किया।
  • लोक कार्यालय एवं लोक कार्यालय से संबंधित वेतन:
    • धारा 6 के खंड (f) में प्रावधान है कि लोक कार्यालय एवं लोक कार्यालय से संबंधित वेतन अंतरित नहीं किया जा सकता।
    • किसी व्यक्ति को दिया गया पद उस पदधारक के लिये व्यक्तिगत होता है, इसलिये उसे अंतरित नहीं किया जा सकता।
  • सेना, नौसेना, वायु सेना एवं सिविल पेंशनभोगियों को दी जाने वाली वृत्तिका (स्टाइपेंड) की अनुमति:
    • TPA की धारा 6 के खंड (g) में यह प्रावधान है कि सेना, नौसेना, वायुसेना और सरकारी तथा राजनीतिक पेंशन के सिविल पेंशनभोगियों को दिये जाने वाले वृत्तिका को अंतरित नहीं किया जा सकता।
    • इस खंड का एक उदाहरण भारतीय पेंशन अधिनियम, 1871 की धारा 11 एवं धारा 12 में पाया जा सकता है, जिसे संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 6 के साथ पढ़ा जाता है, जो पेंशन के स्वैच्छिक या अनैच्छिक अंतरण को प्रतिबंधित करता है।
  • अंतरण के लिये अयोग्य तीन श्रेणियाँ:
    • धारा 6 के खंड (h) में अंतरण के लिये अयोग्य तीन श्रेणियों का प्रावधान है।
    • वह अंतरण जो प्रभावित हित की प्रकृति के विपरीत है- रेस नुलियस, रेस कम्यून्स और रेस एक्स्ट्रा कॉमर्सियम इसके अंतर्गत आते हैं। इस अभिप्राय यह होगा कि ऐसी संपत्ति जिनका स्वामित्व किसी के पास नहीं है- जैसे हवा, पानी, ज़मीन आदि।
    • भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत विधि विरुद्ध उद्देश्य या प्रतिफल के लिये अंतरण
    • विधिक रूप से अंतरित होने के लिये अयोग्य व्यक्ति को अंतरण
    • इसका एक उदाहरण TPA की धारा 136 में मिलता है जो न्यायालयों से जुड़े अधिकारियों की अक्षमता के लिये प्रावधान करता है।
  • TPA की धारा 6(i) के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के अंतरण अधिकृत नहीं हैं:
    • किरायेदार जिसके पास कब्ज़े का अंतरणीय अधिकार नहीं है।
    • ऐसी संपत्ति, जिसके राजस्व भुगतान करने में स्वामी किसान द्वारा चूक हुई है।
    • कोर्ट ऑफ वार्ड्स के प्रबंधन के अधीन संपत्ति का पट्टेदार।

निष्कर्ष:

TPA के अधीन, धारा 6 द्वारा प्रावधानित सामान्य नियम के अनुसार संपत्ति अंतरित की जा सकती है। हालाँकि, लोक नीति के सिद्धांतों के आधार पर कुछ अपवाद हैं। ये अपवाद TPA की धारा 6 के खंड (a) से खंड (i) तक दिये गए हैं।