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सिविल कानून
शपथ-पत्र
« »29-May-2024
परिचय:
शपथ-पत्र से तात्पर्य लिखित रूप में प्रस्तुत शपथ अथवा किसी प्राधिकृत अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया शपथ या प्रतिज्ञान के आधार पर दिया गया कथन है। हालाँकि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) में शपथ-पत्र की परिभाषा नहीं दी गई है।
शपथ-पत्र:
- इसे तथ्यों की घोषणा माना जाता है, जिसे शपथ दिलाने के लिये प्राधिकार प्राप्त व्यक्ति के समक्ष लिखित रूप में शपथ लेकर किया जाता है।
- प्रत्येक शपथ-पत्र स्वयं को (मैं या हम) संबोधित करते हुए (प्रथम पुरुष) में प्रस्तुत किया जाना चाहिये तथा उसमें केवल तथ्य होने चाहिये, न कि निष्कर्ष।
- CPC का आदेश XIX शपथ-पत्रों से संबंधित प्रावधान उल्लिखित करता है।
शपथ-पत्र की अनिवार्यताएँ:
- शपथ-पत्र के आवश्यक तत्त्व हैं:
- यह किसी व्यक्ति द्वारा की गई घोषणा होनी चाहिये।
- यह तथ्यों से संबंधित होनी चाहिये।
- यह लिखित में होनी चाहिये।
- यह स्वयं को (मैं या हम) संबोधित करते हुए (प्रथम पुरुष) में प्रस्तुत होना चाहिये।
- मजिस्ट्रेट या किसी अन्य प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष शपथ ली जानी चाहिये या पुष्टि की जानी चाहिये।
शपथ-पत्र की विषय-वस्तु:
- शपथ-पत्र ऐसे तथ्यों तक सीमित होना चाहिये, जिन्हें अभिसाक्षी अपने व्यक्तिगत ज्ञान से सिद्ध करने में सक्षम हो।
- CPC के आदेश XIX के नियम 3(1) में कहा गया है कि शपथ-पत्र ऐसे तथ्यों तक सीमित होंगे, जिन्हें अभिसाक्षी अपने स्वयं के ज्ञान से सिद्ध करने में सक्षम हो, सिवाय अंतरिम आवेदनों के, जिन पर उसके विश्वास के कथनों को स्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते कि उनके आधार उल्लेखित हों।
- CPC के आदेश XIX के नियम 3(2) में कहा गया है कि प्रत्येक शपथ-पत्र की लागत, जिसमें अनावश्यक रूप से अनुश्रुति या तर्कपूर्ण तथ्य, या दस्तावेज़ों की प्रतियाँ या उद्धरण संलग्न हों, का भुगतान (जब तक कि न्यायालय अन्यथा निर्देश न दे) उसे दाखिल करने वाले पक्ष द्वारा किया जाएगा।
शपथ-पत्र का सत्यापन:
- शपथ-पत्र को सत्यापित किया जाना चाहिये।
- सत्यापन का महत्त्व, अभिसाक्षी द्वारा किये गए कथनों और आरोपों की वास्तविकता एवं प्रामाणिकता का परीक्षण करना है।
राज्य द्वारा शपथ-पत्र:
- राज्य की ओर से शपथ-पत्र उत्तरदायित्व की भावना के साथ दायर किये जाने चाहिये।
- एक ही अधिकारी द्वारा दायर विरोधाभासी शपथ-पत्र सरकार के प्रवक्ता के लिये अयोग्य हैं तथा सत्यता के प्रति घोर उपेक्षा दर्शाते हैं।
शपथ-पत्र द्वारा सिद्ध करने की शक्ति:
- CPC के आदेश XIX का नियम 1 किसी भी बिंदु को शपथ-पत्र द्वारा सिद्ध करने के आदेश देने की शक्ति से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि कोई भी न्यायालय किसी भी समय पर्याप्त कारण से आदेश दे सकता है कि किसी विशेष तथ्य या तथ्यों को शपथ-पत्र द्वारा सिद्ध किया जा सकता है, या किसी साक्षी का शपथ-पत्र विचारण के दौरान ऐसी शर्तों पर पढ़ा जा सकता है, जिन्हें न्यायालय युक्तियुक्त समझता है।
- परंतु जहाँ प्रस्तुत करना चाहता है वहाँ ऐसा साक्षी प्रस्तुत किया जा सकता है, तथा ऐसे साक्षी का साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत शपथ-पत्र दिये जाने को प्राधिकृत करने वाला आदेश नहीं दिया जाएगा।
- परंतु जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत हो कि कोई भी पक्षकार सद्भावपूर्वक प्रतिपरीक्षा के लिये साक्षी को प्रस्तुत करना चाहता है तथा ऐसा साक्षी प्रस्तुत किया जा सकता है, वहाँ ऐसे साक्षी का साक्ष्य शपथ-पत्र द्वारा दिये जाने को प्राधिकृत करने वाला आदेश नहीं दिया जाएगा।
शपथ-पत्र पर उल्लिखित साक्ष्य:
- न्यायालय आदेश दे सकता है कि किसी भी तथ्य को शपथ-पत्र द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।
- यदि शपथ-पत्र उचित रूप से सत्यापित नहीं हैं तथा नियमों के अनुरूप हैं, तो उन्हें न्यायालय द्वारा मना कर दिया जाएगा।
- CPC के आदेश XIX का नियम 2 प्रतिपरीक्षा के लिये अभिसाक्षी की उपस्थिति का आदेश देने की शक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) किसी भी आवेदन पर शपथ-पत्र द्वारा साक्ष्य दिया जा सकेगा, किंतु न्यायालय किसी भी पक्ष के अनुरोध पर अभिसाक्षी की प्रतिपरीक्षा के लिये उपस्थिति का आदेश दे सकेगा।
(2) ऐसी उपस्थिति न्यायालय में होगी, जब तक कि अभिसाक्षी को न्यायालय में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट न दी गई हो, या न्यायालय अन्यथा निर्देश न दे।
असत्य शपथ-पत्र:
- असत्य शपथ-पत्र देना भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के प्रावधानों के अधीन दण्डनीय अपराध है। यह एक गंभीर एवं संगीन मामला है तथा इसमें कठोर दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।