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आपराधिक कानून

गिरफ्तारी का वारंट

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 05-Mar-2024

परिचय:

वारंट न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया एक लिखित दस्तावेज़ होता है जो किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी एवं हिरासत या किसी व्यक्ति की संपत्ति की तलाशी और ज़ब्ती को अधिकृत करता है।

वारंट के उद्देश्य:

  • पूर्वावधानी उपाय के तौर पर अभियुक्त को न्यायालय में पेश होने के लिये गिरफ्तारी वारंट जारी करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • यदि कोई व्यक्ति संज्ञेय अपराध करता है या आदतन अपराधी या पूर्व-दोषी है, तो यह लोक हित में नहीं है कि ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र घूम रहा हो।
  • हालाँकि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) कुछ मामलों में किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की अनुमति देती है, लेकिन ऐसा व्यक्ति गिरफ्तारी के समय से 24 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रह सकता है।
  • इसके अलावा, यदि व्यक्ति मुकदमे के दौरान न्यायालय में पेश होने के लिये सुरक्षा देने को तैयार है, तो कुछ मामलों में, उसे ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है।
  • गिरफ्तारी का वारंट तब तक लागू रहता है जब तक कि इसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा इसे निष्पादित या रद्द नहीं किया जाता है।
  • कोई वारंट केवल इसलिये शून्य नहीं हो जाएगा क्योंकि उसकी वापसी के लिये न्यायालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा बीत चुकी है।

वारंट की अनिवार्यताएँ:

  • CrPC की धारा 70 के अनुसार, गिरफ्तारी के वारंट की अनिवार्यताएँ निम्नलिखित हैं:
    • गिरफ्तारी का वारंट लिखित रूप में होना चाहिये।
    • उस पर मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर होने चाहिये।
    • उस पर न्यायालय की मुहर अवश्य लगी होनी चाहिये।
    • ऐसे वारंट के निष्पादक का नाम और पदनाम अंकित होना चाहिये।
    • अभियुक्त का स्पष्ट नाम व पता होना चाहिये।
    • वह अपराध वर्णित होना चाहिये जिसके लिये अभियुक्त पर आरोप लगाया गया है।
    • जारी करने की तिथि होनी चाहिये।
    • पेश होने की तिथि होनी चाहिये।
    • भारत में किसी भी स्थान पर फाँसी दी जा सकती है।

ज़मानतीय वारंट:

  • CrPC की धारा 71 सुरक्षा लेने का निर्देश देने की शक्ति से संबंधित है।
  • यह न्यायालय को ज़मानती वारंट जारी करने का अधिकार देती है।
  • गिरफ्तारी वारंट में यह निर्देश भी शामिल हो सकता है कि यदि वारंट के तहत गिरफ्तार किया गया व्यक्ति एक बॉण्ड निष्पादित करता है और न्यायालय में अपनी उपस्थिति के लिये प्रतिभूति देता है, तो उसे रिहा कर दिया जाएगा।
  • ऐसे निर्देश वाले वारंट को आमतौर पर गिरफ्तारी का ज़मानती वारंट कहा जाता है।

वारंट का निष्पादन:

  • CrPC की धारा 72 के अनुसार, वारंट पुलिस अधिकारी या किसी भी व्यक्ति को निर्दिष्ट किया जा सकता है।
  • CrPC की धारा 74 के अनुसार, किसी पुलिस अधिकारी को निदिष्ट वारण्ट का निष्पादन किसी अन्य ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा भी किया जा सकता है जिसका नाम वारण्ट पर उस अधिकारी द्वारा पृष्ठांकित किया जाता है जिसे वह निदिष्ट या पृष्ठांकित है।
  • CrPC की धारा 78 के अनुसार, जब वारंट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के बाहर किया जाना है तब वह न्यायालय, ऐसा वारंट अपनी अधिकारिता के अंदर किसी पुलिस अधिकारी को निदिष्ट करने के बजाय उसे डाक द्वारा या अन्यथा किसी ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट या ज़िला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त को भेज सकता है जिसकी अधिकारिता का स्थानीय सीमाओं के अंदर उसका निष्पादन किया जाना है, और वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट या ज़िला अधीक्षक या आयुक्त उस पर अपना नाम पृष्ठांकित करेगा और यदि साध्य है तो उसका निष्पादन इसमें इसके पूर्व उपबंधित रीति से कराएगा।
  • CrPC की धारा 80 के अनुसार, जब गिरफ्तारी के वारंट का निष्पादन उस ज़िले से बाहर किया जाता है जिसमें वह जारी किया गया था, तब गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को, उस दशा के सिवाय जिसमें वह न्यायालय जिसने वह वारंट जारी किया गिरफ्तारी के स्थान से तीस किलोमीटर के अंदर है या उस कार्यपालक मजिस्ट्रेट या ज़िला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त से, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अंदर गिरफ्तारी की गई थी, अधिक निकट है।
    • यदि न्यायालय तीस किलोमीटर से अधिक दूर स्थित है, लेकिन फिर भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट, ज़िला पुलिस अधीक्षक या क्षेत्र के पुलिस आयुक्त से नज़दीक है, तो अभियुक्त को उसी न्यायालय में ले जाया जाएगा।
      • लेकिन यदि कार्यकारी मजिस्ट्रेट, ज़िला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त न्यायालय से नज़दीक है, तो अभियुक्त को उस क्षेत्राधिकार के आधार पर उनमें से किसी एक के समक्ष पेश किया जाएगा, जहाँ अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया है।

वारंट के निष्पादन की प्रक्रिया:

  • वारंट की शर्तों को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे के बीच निष्पादित किया जाना होता है, और यदि उक्त वारंट को दिये गए समय के बाहर निष्पादित किया जाता है, तो समय अवधि एक न्यायाधीश द्वारा बढ़ा दी जाती है और पुलिस अधिकारी को उचित प्राधिकारी को सूचित करना होता है।
  • CrPC की धारा 75 के अनुसार, पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन कर रहा है, उस व्यक्ति को जिसे गिरफ्तार करना है, उसका सार सूचित करेगा और यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो वारण्ट उस व्यक्ति को दिखा देगा।
  • जब गिरफ्तारी का वारंट निष्पादित किया जाता है तो पुलिस अधिकारी को निम्नलिखित में से कोई एक कदम उठाना होता है:
    • गिरफ्तार व्यक्ति ("प्रतिवादी") से एक हस्ताक्षरित दोषपूर्ण अपील और वारंट में उल्लिखित निर्धारित ज़ुर्माने एवं लागत की पूर्ण राशि स्वीकार करना।
    • प्रतिवादी से एक हस्ताक्षरित गैर-दूषित अपील और वारंट में उल्लिखित होने पर संपार्श्विक की पूर्ण राशि स्वीकार करना।
    • यदि मामला ऐसा है कि प्रतिवादी को तुरंत जारीकर्त्ता प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, तो वारंट के निष्पादन के समय शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।
  • CrPC की धारा 76 के अनुसार, पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन करता है गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को प्रतिभूति संबंधी उपबंधों के अधीन रहते हुए अनावश्यक विलंब के बिना उस न्यायालय के समक्ष लाएगा जिसके समक्ष उस व्यक्ति को पेश करने के लिये वह विधि द्वारा अपेक्षित है, परंतु ऐसा विलंब किसी भी दशा में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर चौबीस घंटे से अधिक नहीं होगा।