केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो बनाम विकास मिश्र
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आपराधिक कानून

केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो बनाम विकास मिश्र

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 22-Jul-2024

परिचय:

इस मामले में इस सामान्य अवधारणा पर पुनर्विचार किया गया कि पुलिस रिमांड 15 दिनों से अधिक की अवधि के लिये नहीं दी जा सकती।

तथ्य:

  • केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो ने ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड, CISF और रेलवे के अधिकारियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 120 B एवं धारा 409 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन मामले दर्ज किये।
  • प्रतिवादी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उसे 7 दिनों की पुलिस अभिरक्षा में भेज दिया गया।
  • प्रतिवादी को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिससे सीबीआई विवेचना नहीं कर पाई तथा विशेष न्यायालय ने उसे अंतरिम ज़मानत दे दी।
  • बाद में विशेष न्यायालय ने ज़मानत आदेश रद्द कर दिया तथा प्रतिवादी को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया।
  • न्यायिक अभिरक्षा के दौरान प्रतिवादी अधिकांश समय अस्पताल में भर्ती रहा।
  • इसके बाद प्रतिवादी ने गिरफ्तारी की तिथि से 90 दिनों की अवधि के अंदर आरोप-पत्र/रिपोर्ट दाखिल न करने के आधार पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के अधीन विशेष न्यायालय के समक्ष आवेदन दायर किया।
  • विशेष न्यायालय ने आवेदन अस्वीकार कर दिया।
  • प्रतिवादी ने विशेष न्यायालय के आदेश को कलकत्ता उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने आवेदन स्वीकार कर लिया तथा उसे ज़मानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।
  • सीबीआई ने उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील संस्थित की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या गिरफ्तारी की तिथि से 15 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद भी पुलिस अभिरक्षा दी जा सकती है?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी ने उसे दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया तथा असहयोगी रहा, जिसके कारण सीबीआई को अपनी विवेचना करने से रोका गया।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो बनाम अनुपम जे. कुलकर्णी (1992) में स्थापित सिद्धांत पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये तथा उसे पुनः निर्धारित किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

उच्चतम न्यायालय ने वर्तमान अपील को स्वीकार कर लिया तथा प्रतिवादी को सीबीआई द्वारा पूछताछ के लिये चार दिन की पुलिस रिमांड पर भेजने का आदेश दिया।