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आपराधिक कानून

जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1994)

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 29-Aug-2024

परिचय:

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें गिरफ्तारी के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए हैं।

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया, न्यायमूर्ति एस. मोहन और न्यायमूर्ति ए.एस. आनंद की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया।

तथ्य:

  • इस मामले में पुलिस अभिरक्षा में लिये गए 28 वर्षीय एक युवक ने याचिका दायर की थी।
  • याचिकाकर्त्ता के भाई ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) के इरादों से आशंकित होकर याचिकाकर्त्ता की स्थिति के विषय में पूछताछ की।
  • 7 जनवरी 1994 को पता चला कि याचिकाकर्त्ता को मसूरी में अवैध अभिरक्षा में रखा गया है।
  • न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य के साथ-साथ गाजियाबाद के पुलिस अधीक्षक को भी नोटिस जारी करने का आदेश दिया।
  • पुलिस अधीक्षक, याचिकाकर्त्ता के साथ न्यायालय में प्रस्तुत हुये।
    • जब इस विषय में पूछा गया तो उक्त पुलिस अधीक्षक ने बताया कि याचिकाकर्त्ता अभिरक्षा में नहीं था तथा कुछ मामलों का पता लगाने में उसकी सहायता ली गई थी।

शामिल मुद्दे:

  • क्या गिरफ्तारी पर दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है?

टिप्पणियाँ:

  • गिरफ्तारी का विधान एक ओर व्यक्तिगत अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं तथा दूसरी ओर व्यक्तिगत कर्त्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
  • एक ओर जहाँ सामाजिक आवश्यकता है कि अपराध को कम किया जाए, वहीं दूसरी ओर यह भी आवश्यकता है कि पद की शक्ति के कारण विधि का उल्लंघन न किया जाए।
  • न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति का अस्तित्व एक बात है और उस शक्ति के प्रयोग का औचित्य बिल्कुल दूसरी बात है।
    • पुलिस द्वारा की गयी गिरफ्तारी न्यायिक रूप से उचित होनी चाहिये।
    • गिरफ्तारी एवं पुलिस अभिरक्षा में रखे जाने से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को अपूरणीय क्षति हो सकती है।
    • किसी व्यक्ति के विरुद्ध अपराध के आरोप पर नियमित रूप से गिरफ्तारी नहीं की जा सकती।
    • जघन्य अपराधों को छोड़कर, यदि पुलिस अधिकारी व्यक्ति को थाने में उपस्थित होने का नोटिस जारी करता है तो गिरफ्तारी से बचा जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने गिरफ्तारी के संबंध में किसी को सूचित करने के अधिकार के संबंध में भी दिशा-निर्देश निर्धारित किये।
    • अभिरक्षा में लिये गए गिरफ्तार व्यक्ति को, यदि वह ऐसा अनुरोध करता है, तो अपने किसी मित्र, रिश्तेदार या अन्य व्यक्ति को, जो उसे जानता हो या उसके कल्याण में रुचि लेने की संभावना रखता हो, जहाँ तक ​​संभव हो यह बताने का अधिकार है कि उसे गिरफ्तार किया गया है और उसे कहाँ अभिरक्षा में रखा गया है।
    • पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस थाने लाते समय इस अधिकार के विषय में सूचित करेगा।
    • डायरी में यह दर्ज करना आवश्यक होगा कि गिरफ्तारी की सूचना किसे दी गई। शासन से ये प्रतिरक्षा अनुच्छेद 21 और 22(1) से प्राप्त होनी चाहिये और इन्हें सख्ती से लागू किया जाना चाहिये। मजिस्ट्रेट का यह कर्त्तव्य होगा कि वह, जिसके समक्ष गिरफ्तार व्यक्ति को पेश किया जाता है, स्वयं को संतुष्ट करे कि इन आवश्यकताओं का अनुपालन किया गया है।
  • न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में विधिक प्रावधान उपबंधित होने तक उपरोक्त दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये।
    • दिशा-निर्देश दो पहलुओं से संबंधित थे: पहला, गिरफ्तारी नियमित रूप से नहीं होनी चाहिये और दूसरा, किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के विषय में सूचित किया जाना चाहिये।
    • इन दिशा-निर्देशों को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में संशोधन के उपरांत शामिल किया गया है।