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आपराधिक कानून
अम्ल की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं
28-Jul-2023
चर्चा में क्यों है?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शाहीन मलिक बनाम जीएनसीटीडी, राज्य के प्रमुख सचिव और अन्य के मामले में राष्ट्रीय राजधानी में खुदरा दुकानों में अम्ल की ओवर-द-काउंटर बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है।
पृष्ठभूमि
- बेंच शाहीन मलिक नाम की अम्ल हमले की पीड़िता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अम्ल की ओवर-द-काउंटर बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।
- शाहीन मलिक ने दिल्ली में विष रखने और बिक्री करने संबंधी नियमावली, 2015 में संशोधन को रद्द करने का भी अनुरोध किया था, जिसमें लाइसेंस प्राप्त दुकानों में अम्ल की बिक्री की अनुमति दी गई है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने यह कहते हुए अम्ल की बिक्री की अनुमति दी है कि लोगों की सुरक्षा और औद्योगिक एवं अन्य विनियमित उद्देश्यों के लिये अम्ल के वैध उपयोग के बीच संतुलन रखना बहुत आवश्यक है।
- बेंच ने आगे यह टिप्पणी की कि अम्ल का विभिन्न उद्योगों में विविध प्रकार का वैध उपयोग और अनुप्रयोग होता है, इस पर पूर्ण प्रतिबंध अनजाने में उन व्यवसायों और व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है जिन्हें वैध उद्देश्यों के लिये इसकी आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने अपने आदेश में दिल्ली सरकार को अम्ल की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध का विभिन्न क्षेत्रों, व्यक्तियों और व्यवसायों पर पड़ने वाले संभावित परिणामों का आकलन करने के लिये व्यापक अनुभवजन्य अध्ययन करने का भी निर्देश दिया।
अम्ल से हमला करना
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (गृह मंत्रालय) के आँकड़ों के अनुसार पिछले वर्षों में दर्ज किये गए अम्ल फेंकने संबंधी मामले इस प्रकार हैं:
- अम्ल से हमले संबंधी मामले - 2019 में 249 मामले, 2020 में 182 मामले, 2021 में 176 मामले।
- अम्ल से हमले के प्रयास - 2019 में 67 मामले, 2020 में 60 मामले, 2021 में 73 मामले।
- गृह मंत्रालय ने अम्ल से हमले के मामलों में अभियोजन में तेजी लाकर शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने के लिये सभी राज्यों को 2015 में एक परामर्श जारी किया था।
कानूनी प्रावधान
- अम्ल से हमले से संबंधित प्रावधानों को भारतीय दंड संहिता, 1860 में वर्ष 2013 में इस अधिनियम में संशोधन के माध्यम से धारा 326A, 326B के तहत जोड़ा गया था।
- धारा 326A- अम्ल आदि का उपयोग कर स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाना – जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्हीं भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या उसे अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का प्रयोग करके, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि संभाव्य है उनसे ऐसी क्षति या उपहति कारित हो, स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करेगा या अंगविकार करेगा या जलाएगा या विकलांग बनाएगा या विद्रूपित करेगा या निःशक्त बनाएगा या घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
- परंतु ऐसे जुर्माना पीड़ित के उपचार के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने के लिये न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा।
- परंतु इस धारा के तहत अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़ित को संदत्त किया जाएगा।
- धारा 326 B- स्वेच्छा से अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयास करना – जो कोई, किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करने या उसका अंगविकार करने या जलाने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या निःशक्त बनाने या घोर उपहति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति पर अम्ल फेंकेगा या फेंकने का प्रयत्न करेगा या किसी व्यक्ति को अम्ल देगा या अम्ल देने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
- स्पष्टीकरण 1 - धारा 326A और इस धारा के प्रयोजनों के लिये, "अम्ल" में कोई ऐसा पदार्थ सम्मिलित है जो ऐसे अम्लीय या संक्षारक स्वरूप या ज्वलन प्रकृति का है, जो ऐसी शारीरिक क्षति करने योग्य है जिससे क्षतचिह्न बन जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी निःशक्तता हो जाती है।
- स्पष्टीकरण 2 - धारा 326B और इस धारा के प्रयोजनों के लिये, स्थायी या आंशिक नुकसान या अंगविकार का अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं होगा।
- पीड़ितों को मुआवज़े देने का प्रावधान आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 357A में किया गया है, जहाँ ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण या राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, जैसा भी मामला हो, योजना के अन्तर्गत दिये जाने वाले मुआवज़े की मात्रा तय करेगा।
- जबकि सीआरपीसी की धारा 357B में यह प्रावधान है कि मुआवज़ा भारतीय दंड संहिता की धारा 326 A या धारा 376 D के तहत जुर्माने के अतिरिक्त होगा अर्थात धारा 357 A के तहत राज्य सरकार द्वारा देय मुआवज़ा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 326 A, धारा 376 AB, धारा 376 D, धारा 376 DA और धारा 376 DB के तहत पीड़ित को दिये गए जुर्माने के भुगतान के अतिरिक्त होगा।
- दिल्ली में विष रखने और बिक्री करने संबंधी नियमावली, 2015 में प्रावधान है जो लाइसेंसिंग प्राधिकारी के विवेक पर लाइसेंस प्राप्त विक्रेताओं को अम्ल की बिक्री की अनुमति देता है। लाइसेंस केवल उन्हीं आवेदकों को जारी किया जाता है जो निर्धारित प्रावधानों का अनुपालन करते हैं।
- धारा 326A- अम्ल आदि का उपयोग कर स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाना – जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्हीं भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या उसे अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का प्रयोग करके, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि संभाव्य है उनसे ऐसी क्षति या उपहति कारित हो, स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करेगा या अंगविकार करेगा या जलाएगा या विकलांग बनाएगा या विद्रूपित करेगा या निःशक्त बनाएगा या घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
वाद
लक्ष्मी बनाम भारत संघ (2013) में, उच्चतम न्यायालय ने रेखांकित किया कि अम्ल बेचने वाले प्रतिष्ठानों को ऐसा करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होगी और उन्हें विष अधिनियम, 1919 के तहत पंजीकृत होना होगा। इस मामले के फैसले में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया गया है:
- धारा 326A और 326B, जो विशेष रूप से अम्ल से हमले के अपराध से संबंधित थी, को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 326 में जोड़ा गया था।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 में धारा 357B को शामिल करने के लिये संशोधन किया गया था, जो यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ित को आईपीसी की धारा 326A और 376D के तहत आवश्यक दंड के अतिरिक्त प्रतिपूर्ति मिले। जबकि पीड़ित मुआवज़ा प्रोग्रामर को समझाने के लिये धारा 357A जोड़ी गई।
- मुआवज़ा - सरकार की पीड़ित मुआवज़ा योजना के अनुसार, अम्ल हमले के पीड़ित कम से कम तीन लाख रुपये के मुआवज़े के हकदार हैं। इस योजना में मुआवज़े के भुगतान के लिये सुसंगत विधि भी दी गई है।
- इस बात पर जोर दिया गया है कि कोई भी सुविधा प्रदाता, यहाँ तक कि निजी अस्पताल भी, पीड़ित को चिकित्सा देखभाल से इनकार नहीं कर सकता है।
- जब अस्पतालों में उपस्करों का अभाव हो, तो पीड़ित को उचित अस्पताल में स्थानांतरित करने से पहले प्राथमिक देखभाल मिलनी चाहिये।
- अम्ल की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाया गया।
अम्ल की बिक्री के लिये उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देश:
- उच्चतम न्यायालय ने अम्ल की बिक्री के संबंध में दिशानिर्देश दिये, जिनका पालन उन राज्यों में किया जाना था जहाँ अम्ल की बिक्री के संबंध में राज्य नियम नहीं थे।
- इन दिशानिर्देशों के तहत, दुकानदारों को निम्नलिखित नियमों का पालन करना होगा:
- वे अम्ल की ओवर-द-काउंटर बिक्री तभी कर सकते हैं, जब वे खरीदार के विवरण, उनके पते और बेची गई मात्रा का उल्लेख करते हुए पंजीयन रखें।
- वे खरीददार को अम्ल तभी बेचे जब खरीदार व्यक्ति अपने पते के साथ सरकार द्वारा जारी फोटो आईडी दिखाए और अम्ल खरीदने का कारण बताए।
- उन्हें हर 15 दिनों में जिले के सब डिविजन मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के समक्ष अपने अम्ल के स्टॉक के संबंध में घोषणा प्रस्तुत करनी होगी।
- वे नाबालिगों को अम्ल नहीं बेचें ।
विविध
सिनेमैटोग्राफ विधेयक राज्यसभा में पारित
28-Jul-2023
चर्चा में क्यों हैं?
- हाल ही में, राज्यसभा ने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 में संशोधन के उद्देश्य से सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित किया है।
- इसे राज्यसभा में 20 जुलाई, 2023 को पेश किया गया था और अब इसे लोकसभा में भेजा जाएगा।
पृष्ठभूमि
- सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2019 को 12 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया था, जिसमें केवल फिल्म पाइरेसी से संबंधित बदलावों का प्रस्ताव किया गया था।
- इस विधेयक को सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया, जिसने मार्च, 2020 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- संशोधित सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021 को 18 जून 2021 को जारी किया गया था ।
- वर्ष 2022 में संबंधित उद्योग के हितधारकों के साथ परामर्श के बाद, इस विधेयक को वर्ष 2023 में पेश किया गया था।
कानूनी प्रावधान
विधेयक की विशेषताएँ:
- U/A श्रेणी को आयु के आधार पर निम्नलिखित तीन श्रेणियों से प्रतिस्थापित किया गया है:
- U/A 7+
- U/A 13+
- U/A 16+
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को टेलीविजन और अन्य मीडिया पर फिल्म के प्रदर्शन के लिये एक अलग प्रमाणपत्र के माध्यम से मंज़ूरी देने का अधिकार दिया गया है।
- विधेयक यह भी स्पष्ट करता है कि केंद्र सरकार के पास सीबीएफसी प्रमाणपत्रों के संबंध में कोई पुनरीक्षण शक्ति नहीं होगी।
- "अनधिकृत रिकॉर्डिंग पर प्रतिबंध" और "फिल्मों के अनधिकृत प्रदर्शन पर प्रतिबंध" के संबंध में दो नई धाराएं 6AAऔर 6AB जोड़ी गई हैं ।
- इसमें अनधिकृत रिकॉर्डिंग का "प्रयास करने" और "इस हेतु उकसाने" को भी दंडनीय बनाया गया है।
- उपरोक्त अपराध 3 महीने से लेकर 3 साल तक की कैद और 3 लाख रुपये से लेकर लेखा परीक्षित सकल उत्पादन लागत का 5 प्रतिशत तक जुर्माने से दंडनीय होंगे।
- इसमें फिल्म प्रमाणन की मौजूदा 10 साल की वैधता अवधि को स्थायी वैधता से प्रतिस्थापित किये जाने का प्रस्ताव है ।
- इस विधेयक में भारत संघ बनाम के.एम. शंकरप्पा (2001) मामले में उच्चतम न्यायलय के फैसले के आलोक में केंद्र सरकार की पुनरीक्षण शक्ति को समाप्त कर दिया गया है।
के.एम शंकरप्पा बनाम भारत संघ (1990) मामले में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा अनुमोदन के बाद किसी भी फिल्म की समीक्षा किये जाने की शक्ति को रद्द कर दिया था और भारत संघ बनाम के.एम. शंकरप्पा (2001) के मामले में भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले को बरकरार रखा था।
विविध
लोकसभा में पारित जन विश्वास (संशोधन) विधेयक, 2023
28-Jul-2023
चर्चा में क्यों हैं?
- जन विश्वास (संशोधन) विधेयक, 2023 भारत की संसद के निचले सदन में 27 जून, 2023 को पारित हो गया।
- इस विधेयक का उद्देश्य जीवनयापन और व्यवसाय करने में आसानी के लिये विश्वास-आधारित शासन को और अधिक बढ़ावा देने हेतु छोटे अपराधों को अपराधमुक्त करने एवं उन्हें तर्कसंगत बनाने के लिये कुछ अधिनियमों में संशोधन करना है।
- विधेयक में कहा गया है कि, जन विश्वास (संशोधन) अधिनियम, 2023 केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से निर्धारित तिथि से लागू होगा।
- केंद्र सरकार उपरोक्त अधिनियम की अनुसूची में उल्लिखित विभिन्न अधिनियमों से संबंधित संशोधनों के लिये अलग-अलग तिथियाँ निर्धारित कर सकती है।
पृष्ठभूमि
- इस विधेयक को पहली बार 22 दिसंबर, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया था।
- बाद में इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया।
- समिति की रिपोर्ट क्रमशः 17 मार्च, 2023 और 20 मार्च, 2023 को राज्यसभा और लोकसभा में रखी गई।
- समिति ने विधेयक में कुछ और संशोधनों की सिफारिश की।
- समिति ने 7 सामान्य सिफारिशें भी कीं, जिनमें से 6 सिफारिशों पर सभी संबंधित मंत्रालयों/विभागों ने सहमति प्रदान की है।
- 19 मंत्रालयों या विभागों द्वारा प्रशासित 42 केंद्रीय अधिनियमों के कुल 183 प्रावधानों को अपराधमुक्त करने का प्रस्ताव है।
प्रमुख प्रस्ताव
इस विधेयक में नीचे दिये गए उपायों का प्रस्ताव किया गया है:
- मौजूदा कानूनों में कतिपय अपराधों के लिये जुर्माना या अर्थदंड अधिनियम के प्रारंभ होने के हर तीन साल पर 10 प्रतिशत बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है।
- न्यायनिर्णयन अधिकारियों की स्थापना;
- अपीलीय प्राधिकारियों की स्थापना; और
- भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 के तहत सभी अपराधों को हटा दिया गया और उच्च मूल्य वाले बैंक नोट (नोटबंदी) अधिनियम, 1978 के तहत अपराधों को अपराध से मुक्त कर दिया गया है।
प्रमुख अधिनियम जिनमें संशोधन का प्रस्ताव किया गया है।
42 अधिनियमों में संशोधन का प्रस्ताव है, उनमें से कुछ प्रमुख बदलाव नीचे उल्लिखित हैं:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: मौजूदा अर्थदंडों को समय की मांग के अनुरूप काफी हद तक प्रतिस्थापित किया गया है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: इसमें प्रावधानों के विभिन्न उल्लंघनों के लिये अर्थदंड जोड़े गए हैं। साथ ही, अधिनियम की धारा 16 के तहत 'पर्यावरण संरक्षण कोष' स्थापित करने के लिये अधिनियम में 'कोष' की परिभाषा अन्तर्विष्ट की गई है।
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940: अधिनियम की धारा 30 के तहत दो साल की कैद और 10,000 रुपये के जुर्माने को 5 लाख रुपये के जुर्माने से प्रतिस्थापित किया गया है।
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952: इसमें जुर्माना बढ़ाया गया है। प्रस्ताव में फिल्म के प्रमाणन के पश्चात किसी भी फिल्म में बदलाव एवं छेड़छाड़ करने और बच्चों सहित ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष फिल्म का प्रदर्शन करने जिन्हें प्रमाणपत्र के तहत फिल्म देखने की अनुमति नहीं हों, के लिये सजा का प्रावधान किया गया है।
- मोटर वाहन अधिनियम, 1988: 'अपराधों के संबंध में समझौता' को इस अधिनियम की मौजूदा धारा 200 के साथ प्रतिस्थापित किये जाने का प्रस्ताव है।
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002: भाग ए में दी गई अनुसूची में संशोधन किये जाने का प्रस्ताव है।