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सांविधानिक विधि
बिहार जाति सर्वेक्षण को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई
04-Aug-2023
बिहार जाति सर्वेक्षण को मान्यता देने वाले पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिकाएँ दायर की गईं। (एक सोच एक प्रयास बनाम भारत संघ) |
चर्चा में क्यों ?
बिहार सरकार के जाति-आधारित सर्वेक्षण को बरकरार रखने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं।
याचिकाएँ निम्नलिखित मामलों में दायर की गई हैं:
- एक सोच एक प्रयास बनाम भारत संघ
- अखिलेश कुमार बनाम बिहार राज्य
- यूथ फॉर इक्वैलिटी बनाम बिहार राज्य
पृष्ठभूमि
- यह मामला इस तथ्य से संबंधित है कि बिहार राज्य ने जनवरी, 2023 में यह कवायद शुरू की थी, जब उसने राज्य के सभी घरों की भौतिक गणना की थी।
- असली मुद्दा तब उठा जब 3,20,000 गणनाकारों ने राज्य भर में विचरण किया और लोगों से उनकी जाति एवं 17 अन्य सामाजिक-आर्थिक संकेतक पूछने लगे, यह अभ्यास 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जो 15 मई को समाप्त होने वाला था।
- सरकार ने तर्क दिया कि यह सर्वेक्षण स्वैच्छिक था और केवल जानकारी संकलित करने के उद्देश्य से था।
- उच्च न्यायालय ने बिहार में चल रहे सर्वेक्षण को इस आधार पर अस्थायी रूप से रोक दिया कि वर्तमान में सर्वेक्षण की आड़ में एक जनगणना की जा रही है और जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना करना विशेष रूप से संसद का विषय है।
- राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की कि उच्च न्यायालय ने जाति-आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगा दी है, जबकि यह लगभग पूर्ण होने की कगार पर है। इससे राज्य को अपूरणीय क्षति हो रही है, जिससे पूरी प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- उच्चतम न्यायालय ने बिहार राज्य और अन्य बनाम यूथ फॉर इक्वैलिटी और अन्य मामले में बिहार जाति सर्वेक्षण पर उच्च न्यायालय की रोक में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
- उपरोक्त पृष्ठभूमि में, विशेष रूप से यह मानने के बाद कि राज्य सरकार इस तरह का सर्वेक्षण करने के लिये सक्षम है, न्यायालय ने कहा चूँकि कार्यकारी प्राधिकरण को राज्य के बेहतर प्रशासन के लिये नीति तैयार करने की अपनी क्षमता के अंतर्गत पाया गया है, बनाई गई नीतियाँ उचित है, मनमानी नहीं है।
- पटना उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि वह सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकता और नीति के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता।
जनगणना और सर्वेक्षण के बीच अंतर
- पटना उच्च न्यायालय ने दोनों के बीच निम्नलिखित तरीके से अंतर किया:
- जनगणना : यह एक सर्वेक्षण है जो तथ्य और सत्यापन योग्य विवरण एकत्र करता है।
- सर्वेक्षण : यह राय और धारणाओं को एकत्रित और विश्लेषण करता है।
- जाति आधारित सर्वेक्षण जनगणना की श्रेणी में आता है।
- जनगणना से संबंधित विधान जनगणना अधिनियम, 1948 है।
- इस अधिनियम के विधेयक का प्रारूप भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा तैयार किया गया था।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनसंख्या जनगणना एक संघ का विषय है।
- जनगणना भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची, संघ सूची के क्रम संख्या 69 पर सूचीबद्ध है।
सातवीं अनुसूची
- यह विशिष्ट विषय के मामलों पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन से संबंधित है। सातवीं अनुसूची में निम्नलिखित तीन प्रकार की सूची का उल्लेख किया गया है:
- संघ सूची: सूची I
- राज्य सूची: सूची II
- समवर्ती सूची: सूची III
भारत का संविधान - अनुच्छेद 246 - संसद द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषय-वस्तु
(1) खंड (2) और खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को सातवीं अनुसूची की सूची I में (जिसे इस संविधान में संघ सूची कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने का अनन्य अधिकार है।
(2) खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, *किसी राज्य के विधान-मंडल को भी, सातवीं अनुसूची की सूची 3 में (जिसे इस संविधान में समवर्ती सूची कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने का अधिकार है।
(3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, किसी राज्य के विधान-मंडल को, सातवीं अनुसूची की सूची 2 में (जिसे इस संविधान में राज्य सूची कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में उस राज्य या उसके किसी भाग के लिये विधि बनाने का अनन्य अधिकार है।
(4) संसद को भारत के राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के लिये जो किसी राज्य के अंतर्गत नहीं है, किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने का अधिकार है, चाहे वह विषय राज्य सूची में प्रगणित विषय ही क्यों न हो।
आज़ादी से पहले जनगणना कराने के प्रयास
- जनगणना का इतिहास वर्ष 1800 से मिलता है, जब इंग्लैंड ने जनगणना करना शुरू किया था।
- इसकी अगली कड़ी में जेम्स प्रिंसेप द्वारा इलाहाबाद (वर्ष 1824) और बनारस (वर्ष 1827-28) में जनगणना करायी गयी।
- वर्ष 1849 में, भारत सरकार ने स्थानीय सरकारों को जनसंख्या का पंचवार्षिक (पाँच-वार्षिक) रिटर्न आयोजित करने का आदेश दिया।
- पहली गैर-समकालिक जनगणना: यह भारत में वर्ष 1872 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल के दौरान आयोजित की गई थी।
- पहली समकालिक जनगणना: पहली समकालिक जनगणना ब्रिटिश शासन के तहत 17 फरवरी, 1881 को डब्ल्यूसी प्लॉडेन (भारत के जनगणना आयुक्त) द्वारा की गई थी।
- समकालिक जनगणना वह होती है, जो देश के सभी भागों में लगभग एक ही समय में आयोजित की जाती है।
- तब से, प्रत्येक दस वर्ष में एक बार निर्बाध रूप से जनगणना की जाती रही है।
सिविल कानून
ज्ञानवापी पर सर्वेक्षण के लिये मंजूरी मिली
04-Aug-2023
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के संबंध में ज़िला न्यायाधीश वाराणसी का आदेश बहाल हो गया है। (अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम राखी सिंह और 8 अन्य) (इलाहाबाद उच्च न्यायालय) |
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम राखी सिंह और 8 अन्य के मामले में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर, वाराणसी का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाने की स्वीकृति दी।
पृष्ठभूमि
- वर्तमान आदेश, अंजुमन मस्जिद कमेटी द्वारा वाराणसी न्यायालय के 21 जुलाई, 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) अनुच्छेद 227 के तहत, जिसमें ज़िला न्यायाधीश ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के निदेशक को पहले सील किये गए क्षेत्र (वुजुखाना) को छोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का "वैज्ञानिक सर्वेक्षण" करने का निर्देश दिया था।
- इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि मस्जिद का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सर्वेक्षण के लिये वाराणसी ज़िला न्यायालय द्वारा पारित आदेश को 26 जुलाई, 2023 तक लागू नहीं किया जाना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने उपर्युक्त आदेश पारित करते हुए याचिकाकर्त्ताओं को ज़िला न्यायाधीश, वाराणसी के आदेश को चुनौती देने के लिये भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने ज़िला न्यायाधीश वाराणसी के आदेश को बहाल कर दिया है और संबंधित पक्षों को उक्त आदेश का अनुपालन करने का निर्देश दिया है।
- न्यायालय ने प्रश्नगत सर्वेक्षण पर रोक लगाने वाले अपने अंतरिम आदेश को भी रद्द कर दिया है।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
- ऐसा माना जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब द्वारा प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर (टोडरमल द्वारा निर्मित हिंदू देवता भगवान शिव को समर्पित) को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वर्ष 1669 में किया गया था।
- यह मामला वर्ष 1991 से विवाद में है, जब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास सहित तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल न्यायाधीश के न्यायालय में मुकदमा दायर किया था और दावा किया था कि औरंगजेब ने इसे ध्वस्त कर दिया था।
- वर्ष 2021 में वाराणसी के इसी न्यायालय में शृंगार-गौरी के मंदिर में पूजा करने की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी।
- न्यायालय ने इस मामले में नियुक्त आयोग से शृंगार-गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर की वीडियो ग्राफी कर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था।
- इस बेसमेंट के सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी को लेकर विवाद हो गया है।
- पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत, किसी पूजा स्थल, यहाँ तक कि उसके खंड को एक अलग धार्मिक संप्रदाय या एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित करना निषिद्ध है।
- ज्ञानवापी मस्जिद के मामले से संबंधित कई याचिकाएँ लंबित थीं, सभी को विगत अवसर पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (वर्ष 1976 का 57वाँ उत्तर प्रदेश अधिनियम) के आदेश 4A के तहत संयुक्त सुनवाई का आदेश दिया गया है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले एएसआई को 'शिव लिंग' का वैज्ञानिक सर्वेक्षण (आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके) करने का निर्देश दिया था, जो कथित तौर पर वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर पाया गया था ताकि इसकी आयु का निर्धारण किया जा सके।
भारत का संविधान, 1950
- वर्तमान याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 द्वारा प्रदत्त अधिकार के तहत इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर की गई थी।
अनुच्छेद 227 - उच्च न्यायालय द्वारा सभी न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति -
(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा।
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय-
(क) ऐसे न्यायालयों से विवरण मंगा सकेगा।
(ख) ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिये साधारण नियम और प्रारूप का निर्माण कर सकेगा तथा विहित कर सकेगा, और
(ग) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्रारूप विहित कर सकेगा।
(3) उच्च न्यायालय उन शुल्कों की सारणियाँ भी बना सकेगा, जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को एवं उनमें विधि-व्यवसाय करने वाले अटोर्नी, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होंगी।
परंतु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई नियम, विहित किये गए कोई प्रारूप या स्थिर की गई कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिये राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियाँ देने वाली नहीं समझी जाएगी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)
- यह एक भारत सरकार की एजेंसी है, जो देश में पुरातात्विक अनुसंधान और सांस्कृतिक ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण के लिये ज़िम्मेदार है।
- इस एजेंसी की स्थापना वर्ष 1861 में हुई थी, इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- एजेंसी का मूल संगठन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार है।
- एजेंसी के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम थे, जबकि श्री वी. विद्यावती वर्तमान में इस पद पर आसीन हैं।
नियामक संस्था
अवैध खनन की जाँच करेगा एनजीटी पैनल
04-Aug-2023
ट्रिब्यूनल एक संयुक्त समिति का गठन करता है और उसे स्थल का दौरा करने के लिये एक सप्ताह के भीतर बैठक करने का निर्देश देता है। (राजा राम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का पैनल राजा राम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में उत्तर प्रदेश के ज़िला गोंडा में भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह द्वारा किये गए अवैध खनन की जाँच करेगा।
पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्त्ता की ओर से बृजभूषण सिंह के खिलाफ दायर याचिका में अवैध खनन का आरोप लगाया गया है।
- इसमें यह आरोप था कि माझाराठ, जैतपुर, नवाबगंज, तहसील तरबगंज और ज़िला गोंडा जैसे गाँवों में प्रतिदिन 700 से अधिक ओवरलोडेड ट्रकों से खनन किये गए उपखनिज का अवैध परिवहन किया जाता है।
- आगे यह भी तर्क दिया गया कि कथित तौर पर लघु खनिजों का भंडारण और अवैध बिक्री लगभग 20 लाख घन मीटर थी।
- अवैध रूप से खनन किये गए खनिज ले जाने वाले ओवरलोड ट्रकों से पटपड़गंज पुल और सड़क भी क्षतिग्रस्त हो गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- आरोपों पर गंभीरता से विचार करते हुए एनजीटी ने कहा कि, "प्रथम दृष्टया, आवेदन में दिये गए कथन राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 की अनुसूची-I में निर्दिष्ट अधिनियमों के कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले पर्यावरण से संबंधित प्रश्न उठाते हैं।"
- एनजीटी की पीठ ने एक संयुक्त समिति का गठन किया है, जिसमें पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण एवं ज़िलाधिकारी, गोंडा के प्रतिनिधि शामिल हैं।
- एनजीटी ने समिति को एक सप्ताह के भीतर बैठक करने और स्थल का दौरा करने और आवेदक की शिकायतों पर गौर करने का भी निर्देश दिया।
अवैध खनन
- अवैध खनन एक ऐसी खनन गतिविधि है, जो राज्य की अनुमति के बिना विशेष रूप से भूमि अधिकार, खनन लाइसेंस और अन्वेषण या खनिज परिवहन परमिट के अभाव में की जाती है।
- इसमें पर्यावरण, श्रम और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है।
- खनन घोटाले भारत के विभिन्न अयस्क-समृद्ध राज्यों में व्यापक घोटाले हैं।
- इस तरह के मुद्दे वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण, सरकारी रॉयल्टी का कम भुगतान और भूमि अधिकारों को लेकर आदिवासियों के साथ संघर्ष तक फैले हुए हैं।
- अवैध खनन में पारा और साइनाइड जैसे खतरनाक रसायनों का उपयोग शामिल हो सकता है, जो खनिकों और आस-पास के समुदायों के लिये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करता है।
भारत में खनन संबंधित कानून
- भारतीय संविधान की सूची-II (राज्य सूची) के क्रम संख्या-23 की प्रविष्टि राज्य सरकार को उनकी सीमाओं के भीतर स्थित खनिजों का स्वामित्व देने का आदेश देती है।
- प्रविष्टि 23 - संघ के नियंत्रण के तहत विनियमन और विकास के संबंध में सूची I के प्रावधानों के अधीन खानों और खनिज विकास का विनियमन।
- सूची I (संघ सूची) के क्रम संख्या 54 पर प्रविष्टि केंद्र सरकार को भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर खनिजों का स्वामित्व करने का आदेश देती है।
- प्रविष्टि 54 - खानों और खनिज विकास का उस सीमा तक विनियमन, जिस हद तक संघ के नियंत्रण में ऐसे विनियमन और विकास को संसदीय कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया जाता है।
- अनन्य आर्थिक क्षेत्र, समुद्र का ऐसा क्षेत्र होता है, जो आमतौर पर एक देश के क्षेत्रीय समुद्र से परे 200 समुद्री मील (230 मील) तक फैला होता है।
- प्रविष्टि 54 - खानों और खनिज विकास का उस सीमा तक विनियमन, जिस हद तक संघ के नियंत्रण में ऐसे विनियमन और विकास को संसदीय कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया जाता है।
- खान और खनिज (विनियमन और विकास) अधिनियम (MMRD अधिनियम), 1957 मुख्य रूप से पूर्वेक्षण लाइसेंस और खनन कार्यों पर सामान्य प्रतिबंधों और पूर्वेक्षण लाइसेंस और खनन पट्टों के अनुदान को विनियमित करने के नियमों और प्रक्रियाओं से संबंधित है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- एनजीटी अधिनियम, 2010 भारतीय संसद का एक अधिनियम है, जो पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान के लिये एक विशेष अधिकरण के गठन को सक्षम बनाता है।
- एनजीटी को 2010 में स्थापित किया गया था, यह देश में पर्यावरणीय मामलों पर निर्णय लेने के उद्देश्य हेतु विशेषज्ञता से सुसज्जित एक विशेष न्यायिक निकाय है।
- इस अधिकरण में एक अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं। वे तीन वर्ष की अवधि या पैंसठ वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे और पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होंगे।
- अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- पर्यावरण मामलों में ट्रिब्यूनल का समर्पित क्षेत्राधिकार त्वरित पर्यावरणीय न्याय प्रदान करना और उच्च न्यायालयों में मुकदमेबाजी के बोझ को कम करने में सहायता करना है।
- यह अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होगा, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
- एनजीटी के कुल पाँच स्थानों पर कार्यालय है :
- भोपाल
- पुणे
- नई दिल्ली (प्रमुख कार्यालय)
- कोलकाता
- चेन्नई