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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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सांविधानिक विधि

लंबी कारावास अवधि अधिकारों का उल्लंघन है

 17-Aug-2023

चर्चा में क्यों?

  • रबी प्रकाश बनाम ओडिशा राज्य, विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल ) संख्या.4169/202 में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि स्वापक औषधि मन: प्रभावी पदार्थ अवैध व्यापार निवारण अधिनियम, 1985 (Narcotics Drugs and Psychotropic Substances (NDPS) Act, 1985) ड्रग्स के तहत किसी आरोपी को अनिश्चित काल तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है। और सिर्फ इसलिये कि कानून के लिये अदालत की संतुष्टि की आवश्यकता होती है कि व्यक्ति दोषी नहीं है।

पृष्ठभूमि

  •  वर्तमान मामले में, शीर्ष अदालत नशीले पदार्थों की व्यावसायिक मात्रा रखने के आरोप में ओडिशा में जेल में बंद एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर विचार कर रही थी।
  •  उन्हें कम से कम 10 साल की जेल का सामना करना पड़ रहा था।
  •  आरोपी पहले ही साढ़े तीन साल सलाखों के पीछे बिता चुका है और ट्रायल कोर्ट ने इस अवधि में 19 में से सिर्फ एक गवाह का बयान दर्ज किया है।
  •  उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत कड़े प्रावधानों का हवाला देते हुये उन्हें जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने माना है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को एनडीपीएस अधिनियम के तहत वैधानिक प्रतिबंध से अधिक प्राथमिकता दी जायेगी।
  • पीठ ने आगे कहा कि लंबे समय तक कारावास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सबसे कीमती मौलिक अधिकार में बाधा डालता है। ऐसी स्थिति में, सशर्त स्वतंत्रता को एनडीपीएस अधिनियम द्वारा बनाये गये वैधानिक प्रतिबंध को खत्म करना चाहिये।
  • न्यायालय ने विचाराधीन कैदी को जमानत पर रिहा कर दिया।

कानूनी प्रावधान (Legal Provisions)

  • विचाराधीन कैदी (Undertrial Prisoners)- ऐसा आरोपी व्यक्ति जिसे अदालत में उसके मामले की सुनवाई के दौरान न्यायिक हिरासत में रखा जाता है।

संवैधानिक और आपराधिक कानून पहलू-

  •  किसी भी देश में आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य न केवल पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करना है, बल्कि दोषियों, कैदियों और विचाराधीन कैदियों के अधिकारों की भी रक्षा करना है।
  •  जेल में निरुद्ध सभी व्यक्तियों को उचित समय के भीतर मुकदमा चलाने का अधिकार है।
  •  लंबे समय तक हिरासत में रखना और सुनवाई के मामलों में देरी न केवल लोगों को दिये गये स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों से इनकार करना भी है।
  •  एक विचाराधीन कैदी को निम्नलिखित आधारों पर जेल में रखा जा सकता है:
    •  बहुत गंभीर अपराध के मामले में;
    •  यदि गिरफ्तार व्यक्ति गवाहों के साथ हस्तक्षेप करने या न्याय की प्रक्रिया में बाधा डालने की संभावना रखता है;
    •  यदि गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के समान या कोई अन्य अपराध करने की संभावना है;
    •  यदि वह मुकदमे के लिए उपस्थित होने में असफल हो सकता है।
  •  भारत का संविधान अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।

अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा - किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जायेगा।


निर्णय विधि

शरीफबाई बनाम अब्दुल रजाक (1961)

● मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि आरोपी व्यक्ति को निर्धारित समय के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया जाता है, तो ऐसी हिरासत गलत होगी।

हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979)

  •  इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 को व्यापक अर्थ दिया और कहा कि हर किसी को त्वरित सुनवाई का अधिकार है।
  •  न्यायालय ने माना कि एक ऐसी प्रक्रिया जो किसी ऐसे आरोपी व्यक्ति को कानूनी सेवाएं उपलब्ध नहीं करवाती हैं जो वकील का खर्च उठाने में बहुत गरीब है और जिसे कानूनी सहायता के बिना मुकदमे से गुजरना होगा, उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित, निष्पक्ष और साम्य नहीं माना जा सकता है।

स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985)-

  • स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के तहत निर्दिष्ट ऐसे हानिकारक पदार्थों के उत्पादन, उपभोग और परिवहन को विनियमित करने वाला एक केंद्रीय कानून है।
  • यह अधिनियम मार्च, 1986 से लागू हुआ और इस अधिनियम के तहत नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी स्वापक नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना की गई थी।
  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) गृह मंत्रालय के तहत एक भारतीय केंद्रीय कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसी है।
  • आपराधिक कानून एक्टस नॉन फैसिट रेम निसी मेन्स सिट रीए की कहावत का पालन करता है जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को दोषी इरादे के बिना दोषी नहीं ठहराया जायेगा।
  • एनडीपीएस अधिनियम के लिए सिद्ध इरादे या ज्ञान की भी आवश्यकता होती है। प्रत्येक मुकदमे में यह देखा जाना चाहिये कि क्या कथित अपराधी को अपराध करने की जानकारी थी या इरादा था।

निर्णय विधि

ए. एन. पटेल बनाम गुजरात राज्य (2003) के मामले में अदालत ने इस तथ्य पर जोर दिया कि एनडीपीएस अधिनियम के मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द की जानी चाहिये क्योंकि ऐसे मामलों में आम तौर पर आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया जाता है।


सांविधानिक विधि

अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मंदिर निर्माण का अधिकार

 17-Aug-2023

आचार्य प्रमोद कृष्णन जी महाराज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

"निजी संपत्ति पर मंदिर बनाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 द्वारा संरक्षित है।"

न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय, न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह-I

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह-I की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्त्ता का अपनी निजी संपत्ति पर मंदिर बनाने का अधिकार भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 25 और 26 द्वारा संरक्षित है।

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आचार्य प्रमोद कृष्णन जी महाराज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में यह टिप्पणी दी।

पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्त्ता, जो हिंदू संत है, ने कल्कि धाम मंदिर के निर्माण के लिये उत्तर प्रदेश के संबल ज़िले के एक गाँव में कुछ भूमि खरीदीं।
  • मुस्लिम किसान यूनियन की ओर से यह अभ्यावेदन दायर किया गया कि मंदिर के शिलान्यास समारोह का मुस्लिम समुदाय द्वारा विरोध किया जायेगा।
  • दो समुदायों में झड़प के कारण शांति भंग होने की आशंका के आधार पर उप-ज़िला मजिस्ट्रेट ने नवंबर 2016 में अपने आदेश के तहत याचिकाकर्त्ता को नींव रखने से रोक दिया।
    • बाद में, ज़िला मजिस्ट्रेट ने अक्तूबर 2017 में उनकी याचिका खारिज़ कर दी।
  • याचिकाकर्त्ता ने वर्ष 2017 के आदेश को रद्द करने के लिये वर्तमान रिट याचिका दायर की।
  • याचिकाकर्त्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्त्ता को अपने भूखंडों पर मंदिर बनाने का अधिकार है और याचिकाकर्त्ता का उक्त अधिकार भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 25 और 26 द्वारा संरक्षित है।

न्यायालय की टिप्पणी

  • न्यायालय ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि मुस्लिम समुदाय के किसी बड़े वर्ग ने मंदिर निर्माण का विरोध किया है।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति द्वारा अपनी निजी संपत्ति पर मंदिर का निर्माण मात्र करने से किसी अन्य समुदाय की धार्मिक संवेदनाओं को ठेस नहीं पहुँचनी चाहिये।

भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 25

  • अनुच्छेद 25 (सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन) पुष्टि करता है कि:
    • सभी व्यक्ति अंतरात्मा की स्वतंत्रता के समान रूप से हकदार हैं।
    • धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है।
  • यह अनुच्छेद कहता है कि इस अनुच्छेद में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा या राज्य को निम्नलिखित से संबंधित कोई भी कानून बनाने से नहीं रोकेगा:
    • धार्मिक अभ्यास से जुड़ी किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या किसी भी धर्मनिरपेक्ष गतिविधि का विनियमन या प्रतिबंध।
    • सामाजिक कल्याण एवं सुधार प्रदान करना।
    • हिंदुओं के सभी वर्गों एवं पंथों के लिये सार्वजनिक चरित्र की हिंदू धार्मिक संस्थाओं को खोलना।

भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 26

  • अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता के अधिकार की पुष्टि करता है।
  • अनुच्छेद में यह प्रावधान भी है कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पास निम्नलिखित अधिकार होंगे:
    • धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थानों की स्थापना और रखरखाव करना;
    • धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करना;
    • चल और अचल संपत्ति का स्वामित्व और अधिग्रहण करना; और
    • ऐसी संपत्ति का प्रशासन कानून के अनुसार करना

धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 25 : यह अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की पुष्टि करता है।
  • अनुच्छेद 26 : यह धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
  • अनुच्छेद 27 : यह किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिये करों के भुगतान की स्वतंत्रता देता है।
  • अनुच्छेद 28 : यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

नियामक संस्था

उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायाधीशों हेतु जेंडर-जस्ट हैंडबुक विज्ञप्ति

 17-Aug-2023

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री डी. वाई. चंद्रचूड़ ने न्यायाधीशों के लिये एक हैंडबुक जारी की है। इसमें न्यायिक निर्णयन और लेखन में हानिकारक लिंग रूढ़िवादिता, विशेष रूप से महिलाओं के बारे में, का उपयोग करने से बचने के तरीके बताए गए हैं, यह हैंडबुक देशभर के न्यायाधीशों के लिये लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने की एक निर्देशिका के रूप में काम करेगी।

उच्चतम न्यायालय

स्रोतः टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री डी. वाई. चंद्रचूड़ ने न्यायाधीशों के लिये एक हैंडबुक जारी की है। इसमें न्यायिक निर्णयन और लेखन में हानिकारक लिंग रूढ़िवादिता, विशेष रूप से महिलाओं के बारे में, का उपयोग करने से बचने के तरीके बताए गए हैं, यह हैंडबुक देशभर के न्यायाधीशों के लिये लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने की एक निर्देशिका के रूप में काम करेगी। इस हैंडबुक में, उच्चतम न्यायालय (SC) ने पूर्वाग्रहपूर्ण शब्दों की एक सूची की पहचान की है जो विशेष रूप से महिलाओं के बारे में हानिकारक लिंग रूढ़िवादिता को बढ़ावा देते हैं।

पृष्ठभूमि

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने वर्ष 2023 के महिला दिवस (8 मार्च) समारोह में बताया था कि उच्चतम न्यायालय कानूनी विमर्श में उपयोग किये जाने वाले जेंडर संबंधी अनुचित शब्दों की एक कानूनी शब्दावली जारी करने की योजना बना रहा है, जिस पर कई वर्षों से काम किया जा रहा है (कोविड समय के दौरान संकल्पित)।
  • न्यायालय ने पुरानी धारणाओं के कारण स्टीरियोटाइप या रूढ़वादिता पर आधारित शब्दावली के उपयोग के खिलाफ सलाह दी, जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • न्यायालय ने ऐसे वैकल्पिक शब्दों या वाक्यांशों का सुझाव दिया जिनका उपयोग वकीलों द्वारा दलीलों का मसौदा तैयार करते समय एवं न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों द्वारा किया जा सकता है।
  • जिन शब्दों या वाक्यांशों की न्यायालय ने आलोचना की है, उन पर आरोप है कि वह किसी व्यक्ति के चरित्र के एक या अधिक पहलुओं को दर्शाते हैं।

हैंडबुक का उद्देश्य

  • यह महिलाओं के विषय में आम रूढ़िवादिता की पहचान करती है, जिनमें से कई का उपयोग अतीत में न्यायालयों द्वारा किया गया है।
  • लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने के संबंध में जारी की गई हैंडबुक का उद्देश्य महिलाओं के विषय में रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने में न्यायाधीशों एवं कानूनी समुदाय की सहायता करना है।

स्टीरियोटाइप भाषा और उसका प्रतिस्थापन:

टिप्पणी: नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC)) पहले वित्तीय साधनों के आभाव वाले किसी व्यक्ति को एक गरीब के रूप में संदर्भित करती थी, यह मानते हुए कि भाषा अपने विषय के बारे में बताती है और यह ऐसे व्यक्तियों की गरिमा को पहचान सकती है या कम कर सकती है, कानून में संशोधन किया गया था और शब्द गरीब को शब्द निर्धन से बदल दिया गया।

लैंगिक समानता और सतत् विकास लक्ष्य (Gender Equality and Sustainable Development Goals) (SDGs)

  • 25 सितंबर 2015 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 193 देशों ने ‘ट्रांस्फोर्मिंग आवर वर्ल्ड: द एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ नामक 2030 विकास एजेंडा को अपनाया।
  • SDG 5 लैंगिक समानता के सिद्धांत से संबंधित है।
    • SDG या वैश्विक लक्ष्य सत्रह परस्पर संबंधित उद्देश्यों का एक संग्रह है जो "अभी और भविष्य में लोगों और ग्रह के लिये शांति तथा समृद्धि के लिये साझा ब्लूप्रिंट" के रूप में तैयार किया गया है।
  • लक्ष्य 5 का उद्देश्य है:
    • 1 हर जगह सभी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करना।
    • 2 सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में सभी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना, जिसमें तस्करी एवं यौन और अन्य प्रकार के शोषण शामिल हैं।
    • 3 सभी हानिकारक प्रथाओं, जैसे बाल विवाह और कम उम्र में ज़बरन विवाह एवं महिला जननांग विकृति को समाप्त करना।
    • 4 सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सुरक्षा नीतियों के प्रावधान के माध्यम से अवैतनिक देखभाल एवं घरेलू काम को पहचानना तथा महत्त्व देना और राष्ट्रीय स्तर पर उपयुक्त के रूप में घर-परिवार के भीतर साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना।
    • 5 राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में निर्णयन के सभी स्तरों पर महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी एवं नेतृत्व के समान अवसर सुनिश्चित करना।
    • 6 जनसंख्या और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन एवं बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन के कार्यक्रम और उनके समीक्षा सम्मेलनों के परिणामी दस्तावेज़ों के अनुसार सहमति से ही यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा प्रजनन अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • A कानूनों के अनुसार महिलाओं को आर्थिक संसाधनों के समान अधिकार, साथ ही भूमि और संपत्ति के अन्य रूपों, वित्तीय सेवाओं, विरासत एवं प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व तथा नियंत्रण तक पहुँच प्रदान करने के लिये सुधार करना।
    • B महिलाओं के सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये सक्षम प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना।
    • C लैंगिक समानता को बढ़ावा देने एवं सभी स्तरों पर सभी महिलाओं और लड़कियों के सशक्तीकरण के लिये ठोस नीतियों और लागू करने योग्य कानून को अपनाना तथा मज़बूत करना।

रूढ़िवादिता और वास्तविकता

एक स्टीरियोटाइप को "एक ऐसे निर्धारित/पुराने विचार के रूप में परिभाषित किया गया है जो लोगों के लिये तय करता है कि कोई व्यक्ति या कोई चीज कैसी है, विशेष रूप से ऐसा विचार जो गलत है।"

ये ऐसी धारणाएँ या विश्वास हैं कि विशिष्ट सामाजिक समूहों से संबंधित व्यक्तियों में कुछ विशेषताएँ या लक्षण होते हैं।

इनके बीच के अंतर को निम्नलिखित चित्रात्मक निरूपण से समझा जा सकता है।


विविध

डेटा संरक्षण विधेयक, 2023

 17-Aug-2023

चर्चा में क्यों ?

  • डाटा संरक्षण विधेयक, 2022 (Data Protection Bill, 2022) केंद्र सरकार को माता-पिता की निगरानी के बिना इंटरनेट सेवाओं तक पहुंचने के लिये सहमति की उम्र 18 वर्ष से कम करने का अधिकार दे सकता है।
  • यह परिवर्तन यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में डेटा सुरक्षा नियमों के अनुरूप है।

पृष्ठभूमि

  •  सरकार ने 2019 में लोकसभा में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पेश किया।
  •  हालाँकि, डेटा गोपनीयता के संबंध में वैश्विक मानकों को पूरा करने में प्रावधानों की अपर्याप्तता का हवाला देते हुए, अगस्त 2022 में इस विधेयक को वापस ले लिया गया था।
  •  व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 (Personal Data Protection Bill, 2019) को वापस लेने के 3 महीने बाद (नवंबर में) डेटा संरक्षण विधेयक पेश किया गया है ।
  •  प्रस्तावित विधेयक कानून की पूर्वानुमेयता (predictability of law) प्रदान करेगा और कंपनियों को प्रस्तावित कानून के अनुरूप अपनी नीतियों को तैयार करने में सक्षम करेगा।
  •  केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 5 जुलाई, 2023 को डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी।
  •  इस मंजूरी से संसद के मानसून सत्र में इसे पेश करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
  •  यदि पारित हो जाता है, तो यह कानून उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2018) के मामले में निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने के छह साल बाद भारत का मुख्य डेटा प्रशासन ढांचा बन जाएगा।

बच्चे की परिभाषा में बदलाव (Changing Definition of a Child)

  •  जस्टिस बी. एन. श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट, 2017- इस रिपोर्ट ने भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) के तहत बहुमत की परिभाषा पर भरोसा किया और सिफारिश की कि 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के लिए, संस्थाओं को   नाबालिगों के माता-पिता से सहमति लेनी होगी।
  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019- इस विधेयक में बच्चे को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • संसद की संयुक्त समिति, 2019- इसमें प्रस्तावित किया गया कि बच्चों की परिभाषा13/14/16 वर्ष की आयु तक सीमित होनी चाहिये।
  •  डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022- इसके तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को परिभाषित किया गया।
  • अंतिम परिवर्तन (डेटा संरक्षण विधेयक 2022)- इस महीने की शुरुआत में कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त विधेयक के तहत, बच्चे की परिभाषा है- "ऐसे व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की कम आयु" पूरी नहीं की है।

कानूनी प्रावधान

डेटा संरक्षण विधेयक, 2022

  • यह विधेयक केंद्र सरकार द्वारा बनाये जा रहे प्रौद्योगिकी नियमों के व्यापक ढांचे का एक प्रमुख स्तंभ है जिसमें डिजिटल इंडिया विधेयक - सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का प्रस्तावित उत्तराधिकारी; भारतीय दूरसंचार विधेयक, 2022; और गैर-व्यक्तिगत डेटा प्रशासन के लिये एक नीति शामिल हैं।
  • डेटा संरक्षण बोर्ड: नया विधेयक डेटा संरक्षण के मामले पर निर्णय लेने के उद्देश्य से एक डेटा संरक्षण बोर्ड (डीपीबी) स्थापित करने का प्रयास करता है।
  • डेटा सुरक्षा अधिकारी: इसका उद्देश्य संबंधित संस्थानों द्वारा कानून के अनुपालन को सत्यापित करने के उद्देश्य से बड़े आकार की कंपनियों द्वारा डेटा सुरक्षा अधिकारी या स्वतंत्र डेटा ऑडिटर स्थापित करना भी है।
  •  डेटा प्रिंसिपल:
  •  डेटा प्रिंसिपलों को उनके व्यक्तिगत डेटा के संबंध में अतिरिक्त अधिकार दिये गये।
  •  डेटा प्रिंसिपल संबंधित कंपनियों से अपना डेटा मिटाने या हटाने के लिये कह सकते हैं।
  •  डेटा प्रिंसिपल का मतलब वह व्यक्ति है जिससे व्यक्तिगत डेटा संबंधित है और जहां ऐसा व्यक्ति एक बच्चा है, इसमें ऐसे बच्चे के माता-पिता या वैध अभिभावक शामिल हैं।
  •  कंपनियों पर दायित्व: इस विधेयक में डेटा के संबंध में कंपनियों पर दायित्व या शुल्क की एक अतिरिक्त परत रखी गई है और कंपनियां उस उपयोगकर्ता डेटा को रखने के लिए बाध्य नहीं होंगी जो अब किसी व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है।
  •  सुरक्षा:
  •  नया डेटा संरक्षण कानून नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा के लिए सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत प्रदान करने के इरादे से पेश किया गया है।
  •  कंपनियों को ऐसा व्यक्तिगत डेटा प्रोसेस नहीं करना चाहिए जो नाबालिगों (18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों) को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • सीमा पार डेटा प्रवाह: नया विधेयक सीमा पार डेटा प्रवाह से संबंधित मानदंडों में भी ढील देता है क्योंकि यह बड़ी तकनीकी कंपनियों (Big Tech companies) के लिए चिंता का विषय था।
  • उल्लंघन के लिए प्रावधान (Provisions for Breach:):
    •  इस विधेयक में उन शर्तों का भी उल्लेख किया गया है जिनके तहत निम्नलिखित अत्यावश्यक परिस्थितियों में सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रस्तावित कानून का उल्लंघन किया जा सकता है:
    •  भारत की संप्रभुता और अखंडता
    •  राज्य की सुरक्षा
    •  विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    •  सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना या किसी संज्ञेय अपराध को उकसाने से रोकना।
  •  अंतिम उपयोगकर्ताओं के लाभ के लिये, उल्लंघन की स्थिति में उच्च दंड लगाकर डेटा लीक के लिये एक प्रकार की निवारक व्यवस्था प्रदान की गई है।
  •  इसमें डेटा पोर्टेबिलिटी का अधिकार शामिल नहीं है:
    •  डेटा पोर्टेबिलिटी का अधिकार पिछले संस्करण में जो प्रावधान किया गया था उसे हटा दिया गया है।
    •  डेटा पोर्टेबिलिटी का अधिकार व्यक्तियों को विभिन्न सेवाओं में अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिये अपने व्यक्तिगत डेटा को प्राप्त करने और पुन: उपयोग करने की अनुमति देता है।
  • अनुमति:
    •  डेटा प्रोसेसिंग के लिए गैर-सहमति-आधारित आधारों को कवर करने के लिये 'मानद सहमति' की शुरुआत की गई है।
    •  डेटा शेयरिंग के लिए सहमति का भी प्रावधान है और अंतिम उपयोगकर्ता द्वारा अनुमति दिये जाने पर ही डेटा लिखा जा सकता है।
  •  वैकल्पिक विवाद समाधान की पहचान: इसमें मध्यस्थता जैसी वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रियाओं की मान्यता है ।
  •  नए प्रस्ताव में हार्डवेयर प्रमाणन और एल्गोरिथम जवाबदेही को भी समाप्त कर दिया गया है, और यह स्टार्ट-अप के लिए अनुपालन आवश्यकताओं को भी आसान बनाता है।

जस्टिस के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2018)

इस मामले में, उच्चतम न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों वाली पीठ ने सर्वसम्मति से माना कि भारतीयों के पास निजता का संवैधानिक रूप से संरक्षित मौलिक अधिकार है जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का आंतरिक हिस्सा है