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आपराधिक कानून
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत प्रकाशित उद्घोषणा
07-Sep-2023
खालिद अनवर उर्फ अनवर खालिद बनाम शाखा सुनवाई के माध्यम से केंद्रीय जाँच ब्यूरो, नई दिल्ली "जब कानून के अनुसार उद्घोषणा प्रकाशित ही नहीं की गई है, तो किसी अपराधी को उद्घोषित अपराधी घोषित नहीं किया जा सकता है।" न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड |
स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा है कि किसी आरोपी को उद्घोषित अपराधी का दर्जा देने के लिये दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 82 के तहत एक प्रकाशित उद्घोषणा जारी करने की आवश्यकता होती है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खालिद अनवर उर्फ अनवर खालिद बनाम शाखा सुनवाई के माध्यम से केंद्रीय जाँच ब्यूरो, नई दिल्ली मामले में यह टिप्पणी की।
पृष्ठभूमि
- आवेदक ने सोना, सिगरेट और केसर जैसे विदेशी मूल के प्रतिबंधित सामानों की तस्करी के संबंध में अपने खिलाफ दर्ज हुई एक शिकायत के संबंध में उच्च न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी।
- प्रतिवादियों ने यह कहते हुए प्रारंभिक आपत्ति दर्ज की कि आवेदक के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 82 के तहत उद्घोषणा जारी की गई है और इसलिये, कानून के मद्देनजर उसे अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है।
- इस मामले में, पहले एक उद्घोषणा जारी की गई थी जिसमें आवेदक को 2 सितंबर 2023 को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया गया था।
- हालाँकि, उच्च न्यायलय ने कहा कि यह बताने के लिये रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि उद्घोषणा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 की उप-धारा (1) के तहत 'प्रकाशित' की गई है।
न्यायालय की टिप्पणी
- उच्च न्यायालय ने मुख्य रूप से यह कहा है कि कानून के अनुसार उद्घोषणा तक भी प्रकाशित नहीं की गई है, तो आवेदक को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 की उप-धारा (4) के तहत उद्घोषित अपराधी घोषित करने का अवसर अभी तक उत्पन्न नहीं हुआ है।
- इसलिये, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत दायर अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार की गई।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 का अधिदेश
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के हाथों में एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अपराधों के आरोपी व्यक्ति न्याय से बच न सकें।
- कोई भी न्यायालय एक लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ उसने वारंट जारी किया है वह भाग गया है या खुद को कानून की नज़रों से छिपा रहा है ताकि ऐसे वारंट का निष्पादन न किया जा सके।
- ऐसी उद्घोषणा के माध्यम से न्यायालय किसी व्यक्ति को एक निर्दिष्ट स्थान और एक निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने के लिये आदेश देता है।
- न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का निर्दिष्ट समय ऐसी उद्घोषणा प्रकाशित होने की तारीख से 30 दिन से कम नहीं होगा।
- इस दौरान आरोपी के पास अधिकारियों या न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने का अवसर होता है।
उद्घोषणा प्रकाशित करने का तरीका
- धारा 82 की उपधारा 2 के तहत उद्घोषणा निम्नलिखित तरीके से प्रकाशित की जाएगी:
- इसे उस नगर या गाँव के किसी ऐसे विशिष्ट स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाएगा, जहाँ ऐसा व्यक्ति सामान्य रूप से रहता है;
- इसे व्यक्ति के घर या उसके निवास, के किसी सहजदृश्य स्थान पर, जिसमें ऐसा व्यक्ति सामान्यतः निवास करता है, या ऐसे शहर या गाँव के किसी सहजदृश्य स्थान पर चिपकाया जाएगा;
- ऐसी उद्घोषणा की एक प्रति न्यायालय भवन के किसी सहजदृश्य स्थान पर भी चिपकायी जायेगी;
- यदि न्यायालय उचित समझे तो वह उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान पर प्रसारित/प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित करने का भी निर्देश दे सकता है जहाँ ऐसा व्यक्ति सामान्य रूप से रहता है।
- उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा लिखित रूप में एक बयान इस बात का निर्णायक साक्ष्य होगा कि धारा 82 की आवश्यकताओं का अनुपालन किया गया है और उद्घोषणा ऐसे दिन प्रकाशित की गई थी।
- धारा 82 की उपधारा (4) उस स्थिति का वर्णन करती है जब उपधारा (1) के तहत उद्घोषणा भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302, 304, 364, 367, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 या 460 के तहत दंडनीय अपराध के आरोपी व्यक्ति के संबंध में प्रकाशित की जाती है।
- यदि ऐसा कोई व्यक्ति उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित निर्दिष्ट स्थान और समय पर उपस्थित होने में विफल रहता है, तो न्यायालय ऐसी जाँच करने के बाद, जो उचित समझे, उसे उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकता है और इस आशय की घोषणा कर सकता है।
आपराधिक कानून
उत्तर प्रदेश विधि-विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021
07-Sep-2023
जोस पापाचेन और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य “उत्तर प्रदेश विधि-विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 4 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने के लिये सक्षम व्यक्ति कौन है?” न्यायमूर्ति शमीम अहमद |
स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
जोस पापाचेन और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 4 के दायरे की व्याख्या की है।
पृष्ठभूमि
- इस मामले में, अपीलकर्ता जोस पापाचेन और शीजा धर्म से ईसाई हैं, जिन पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के समुदायों के बीच विभिन्न प्रलोभनों द्वारा धर्म परिवर्तन (हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में) में सहायक होने का आरोप लगाया गया था।
- 24 जनवरी, 2023 को शिकायतकर्ता द्वारा यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करवाई गई थी।
- शिकायतकर्ता एक राजनीतिक दल का ज़िला मंत्री है।
- मार्च 2023 में विशेष न्यायाधीश ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी जिसके बाद, उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई थी।
- फिर इस मामले में, अपील दायर करने की अनुमति दी गई और अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति शमीम अहमद की पीठ ने कहा कि उक्त प्रावधान के आदेश के अनुसार, केवल वह व्यक्ति जिसका धर्म परिवर्तन किया गया है, उसके माता-पिता, भाई, बहन या कोई अन्य व्यक्ति, जो उससे रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण के कारण से संबंधित है, ही इस तरह के धर्मांतरण के आरोप से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करवा सकता है और कोई अन्य व्यक्ति नहीं।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, एक पीड़ित व्यक्ति या उसके करीबी रिश्तेदार इस अधिनियम की धारा 3 के तहत केवल अपराध करने का आरोप लगाते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कर सकते हैं। यह धारा धर्म परिवर्तन के साथ-साथ गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव और/या प्रलोभन के माध्यम से इसके प्रयास के साथ-साथ इसके उन्मूलन और साजिश पर भी प्रतिबंध लगाती है।
- न्यायालय ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता इस अधिनियम की धारा 4 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने के लिये सक्षम व्यक्ति नहीं था।
कानूनी प्रावधान
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021
- वर्ष 2021 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा ने इस अधिनियम को पारित किया, जिसने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 का स्थान लिया, जिसे नवंबर 2020 में प्रख्यापित किया गया था।
- उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा ने 24 नवंबर, 2020 को अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी जिसके बाद 28 नवंबर, 2020 को राज्य की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने इसे मंज़ूरी दे दी और हस्ताक्षर किये।
- यह कानून उत्तर प्रदेश राज्य में लागू है, यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिनियमित एक धर्मांतरण विरोधी कानून है।
- यह अधिनियम गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक लगाने का प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम की धारा 4 प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराने में सक्षम व्यक्तियों से संबंधित है, इसमें कहा गया है कि -
- कोई भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या कोई अन्य व्यक्ति जो उससे रक्त, विवाह या गोद लेने के कारण से संबंधित है, ऐसे रूपांतरण की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कर सकता है जो धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
सिविल कानून
'सेवा शुल्क' के बजाय 'कर्मचारी अंशदान
07-Sep-2023
नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य " फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्य सेवा शुल्क के स्थान पर कर्मचारी अंशदान शब्द का उपयोग करेंगे और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करेंगे।" न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह |
स्रोतः इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य मामले में एक अंतरिम आदेश पारित कर फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्यों को 'सेवा शुल्क' के स्थान पर कर्मचारी अंशदान शब्द का उपयोग करने और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करने का निर्देश दिया।
पृष्ठभूमि
- दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष, नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) ने 4 जुलाई, 2022 को केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा जारी दिशानिर्देश चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गईं।
- 4 जुलाई, 2022 के दिशानिर्देशों के अनुसार, उपभोक्ताओं से किसी अन्य नाम से सेवा शुल्क नहीं लिया जाएगा और यह वैकल्पिक और स्वैच्छिक है। सेवा शुल्क को खाने के बिल के साथ जोड़कर कुल राशि पर जीएसटी लगाकर नहीं वसूला जायेगा। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को सूचित किये बिना इसे स्वचालित रूप से बिल में नहीं जोड़ा जा सकता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18(2)(1) के तहत दिशानिर्देश जारी किये गए थे।
- उच्च न्यायालय के समक्ष, फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) ने कहा कि उसके सदस्य शब्दावली को बदलने के लिये तैयार थे।
- हालाँकि, नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) ने इनकार कर दिया क्योंकि नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के 80% सदस्य अनिवार्य शर्त के रूप में अपने ग्राहकों पर सेवा शुल्क लगाते हैं और इसके सदस्य बदली हुई शब्दावली से सहमत नहीं थे।
- इस मामले पर आगे भी सुनवाई होगी लेकिन इस बीच न्यायालय ने फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्यों को कर्मचारी अंशदान शब्द का उपयोग करने और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करने का निर्देश दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायालय ने निर्देश दिया कि फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्य सेवा शुल्क की राशि के लिये कर्मचारी अंशदान शब्दावली का उपयोग करेंगे जिसे वे वर्तमान में वसूल कर रहे हैं। यह जीएसटी को छोड़कर, कुल बिल राशि का 10% से अधिक नहीं होगा।
- न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह ने कहा कि लगभग फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) से जुड़े लगभग 3,300 होटल और रेस्तरां अब अपने मेनू पर मोटे अक्षरों में निर्दिष्ट करेंगे कि कर्मचारियों के अंशदान का भुगतान करने के बाद टिप्स देने की आवश्यकता नहीं है।
कानूनी प्रावधान
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18
इस अधिनियम की धारा 18 सीसीपीए की शक्तियों और कार्यों से संबंधित है। यह कहती है कि-
(1) केंद्रीय प्राधिकरण
(क) एक वर्ग के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण, संवर्धन और प्रवर्तन करेगा तथा इस अधिनियम के अधीन उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन का निवारण करेगा;
(ख) अनुचित व्यापार व्यवहारों का निवारण करेगा और यह सुनिश्चित करेगा, कि कोई व्यक्ति अनुचित व्यापार व्यवहारों में न लगे;
(ग) यह सुनिश्चित करेगा कि किन्हीं मालों या सेवाओं का कोई ऐसा मिथ्या या भ्रामक विज्ञापन न किया जाए, जो इस अधिनियम या तदधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के उपबंधों का उल्लंघन करता है।
(घ) यह सुनिश्चित करेगा कि कोई व्यक्ति ऐसे किसी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग न ले, जो मिथ्या या भ्रामक है।
(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना केंद्रीय प्राधिकरण पूर्वोक्त किसी भी प्रयोजन के लिये,
(क) या तो स्व प्रेरणा से या प्राप्त शिकायत पर या केंद्रीय सरकार के निदेश पर उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के लिये कोई जाँच या अन्वेषण करेगा या करना कारित कर सकेगा;
(ख) ज़िला आयोग के समक्ष शिकायतों को यथास्थिति, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के समक्ष इस अधिनियम के अधीन शिकायतों को फाइल कर सकेगा;
(ग) यथास्थिति, ज़िला आयोग या राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के समक्ष उपभोक्ता अधिकारों या अनुचित व्यापार व्यवहार के संबंध में अधिकथित उल्लंघन के संबंध में कार्यवाहियों में मध्यक्षेप कर सकेगा;
(घ) उपभोक्ता अधिकारों का उपयोग करने से संबंधित मामलों और उनका उपभोग करने से रोकने वाले कारकों, जिसके अंतर्गत तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिये उपबंधित सुरक्षोपाय का पुनर्विलोकन और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये समुचित उपचारात्मक उपायों की सिफारिश कर सकेगा;
(ङ) उपभोक्ता अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं और सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों को अंगीकार करने की सिफारिश कर सकेगा ताकि उपभोक्ता अधिकारों के प्रभावी प्रवर्तन का सुनिश्चय किया जा सके;
(च) उपभोक्ता अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान और उसका संवर्धन कर सकेगा;
(छ) उपभोक्ता अधिकारों पर जागरुकता का प्रसार और संवर्धन कर सकेगा;
(ज) उपभोक्ता अधिकारों के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं को उपभोक्ता संरक्षण अभिकरणों के साथ सहयोग और कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करना;
(झ) ऐसे मालों में विशिष्ट और सार्वभौमिक माल पहचानकर्ताओं के उपयोग का आदेश करना, जो अनुचित व्यापार व्यवहारों को निवारित करने और उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करने के लिये आवश्यक हो;
(ञ) खतरनाक या परिसंकटमय या असुरक्षित माल या सेवाओं के विरुद्ध उपभोक्ताओं को सावधान करने के लिये सुरक्षा सूचनाएं जारी करना:
(ट) केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के मंत्रालयों और विभागों को उपभोक्ता कल्याण उपायों पर सलाह देना;
(ठ) अनुचित व्यापार व्यवहारों को निवारित करने के लिये और उपभोक्ताओं के हित के संरक्षण के लिये आवश्यक मार्गदर्शक सिद्धांत जारी करना।
सेवा शुल्क
- सेवा शुल्क, आमतौर पर कुल बिल का 5% से 20% तक, एक अतिरिक्त शुल्क होता है जो कि भारत में होटल और रेस्तरां द्वारा लगाया जाता है।
- इसका उद्देश्य प्रतिष्ठान में भोजन परोसने, सफाई और रखरखाव सहित प्रदान की गई सेवाओं की लागत को कवर करना है।
- ऐतिहासिक रूप से, सेवा शुल्क पूरी तरह से विवेकाधीन था, और रेस्तरां आदि में आने वाले ग्राहक प्राप्त सेवा से अपनी संतुष्टि के अनुसार टिप देने के लिये स्वतंत्र होते थे।
- हालाँकि, पिछले दशक में कई प्रतिष्ठानों ने अपनी मर्जी से बिलों में सेवा शुल्क जोड़ना शुरू कर दिया, जिससे ग्राहकों के पास इसका भुगतान करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता था।
- 21 अप्रैल, 2017 को ,केंद्र सरकार ने होटल और रेस्तरां द्वारा उपभोक्ताओं पर सेवा शुल्क लगाने पर रोक लगाने के लिये दिशानिर्देश जारी किये और "व्यक्त सहमति के बिना लागू करों के साथ मेनू कार्ड पर प्रदर्शित कीमतों" के अलावा किसी भी अन्य चीज़ के लिये शुल्क लेने के कृत्य को "ग्राहक के साथ अनुचित व्यापार व्यवहार" बताया।
- जून 2023 में, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने कहा कि सेवा शुल्क एक विवेकाधीन शुल्क है और इसे अनिवार्य आधार पर नहीं लगाया जाना चाहिये।