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आपराधिक कानून
एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52a (2) का लागू होना
16-Oct-2023
यूसुफ @ आसिफ बनाम राज्य "केवल यह तथ्य कि नमूने एक राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में लिये गए थे, स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1881 (NDPS Act),अधिनियम की धारा 52a की उपधारा (2) के आदेश का पर्याप्त अनुपालन नहीं है।" न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति पंकज मित्तल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1881 (NDPS Act) के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी यूसुफ @ आसिफ बनाम राज्य के मामले में दी।
यूसुफ @ आसिफ बनाम राज्य मामले की पृष्ठभूमि
- अपीलकर्त्ता को तीन अन्य व्यक्तियों के साथ 20 किलोग्राम हेरोइन के साथ पाए जाने के बाद 10 वर्ष के कारावास की सजा मिली।
- ट्रायल कोर्ट (विचरण हेतु न्यायालय) ने उन्हें दोषी ठहराया और उच्च न्यायालय ने बाद में ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की।
- अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि कथित प्रतिबंधित सामग्री की जब्ती और नमूनाकरण स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1881 (NDPS Act) की धारा 52a की अनिवार्य शर्तों का उल्लंघन है।
- एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52a जब्त करने, जब्त की गई सामग्री की एक सूची तैयार करने, जब्त की गई सामग्री को अग्रेषित करने और संबंधित मजिस्ट्रेट से प्रमाणीकरण प्राप्त करने की प्रक्रिया की रूपरेखा बताती है।
- इसके अतिरिक्त, एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52a मानती है कि जब्त किये गए पदार्थ की प्रमाणित सूची या तस्वीरें, साथ ही जब्त किये गए नमूनों की किसी भी सूची को ट्रायल में प्राथमिक साक्ष्य माना जाता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि रिकॉर्ड पर कोई साक्ष्य नहीं लाया गया है कि नमूने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में लिये गए थे और निकाले गए नमूनों की सूची मजिस्ट्रेट द्वारा प्रमाणित की गई थी।
- केवल यह तथ्य कि नमूने राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में लिये गए थे, एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52aकी उपधारा (2) के आदेश का पर्याप्त अनुपालन नहीं है।
एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52a (2)
जहाँ कोई स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों को अभिगृहीत कर लिया गया है और निकटतम पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या धारा 53 के अधीन सशक्त किसी अधिकारी को भेज दिया गया है, वहाँ उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी ऐसी स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों की एक सूची तैयार करेगा जिसमें उनके वर्णन, गुण, परिमाण, पैक करने के ढंग, चिह्नांकन, संख्यांक या ऐसे स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों या पैकिंग की, जिनमें वे पैक किये गए हैं, पहचान कराने वाली अन्य विशिष्टियाँ, उद्भव का देश और अन्य विशिष्टियों से संबंधित ऐसे अन्य ब्यौरे दिये गए हों, जिन्हें उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी, इस अधिनियम के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों में ऐसी स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों या नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों की पहचान के लिये सुसंगत समझे और किसी मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित प्रयोजन के लिये आवेदन करेगा अर्थात् :-
(क) ऐसे तैयार की गई सूची का सही होना प्रमाणित करने के लिये; या
(ख) ऐसे मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ऐसी औषधियों या पदार्थों या हस्तांतरणों के फोटोचित्र लेने औरे ऐसे फोटोचित्रों का सही होना, प्रमाणित करने के लिये; या
(ग) ऐसे मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ऐसी औषधियों या पदार्थों के प्रतिनिधि नमूने लिये जाने की अनुज्ञा देने के लिये और ऐसे लिये गए नमूनों की किसी सूची का सही होना प्रमाणित करने के लिये।
मामले में शामिल ऐतिहासिक निर्णय
भारत संघ बनाम मोहनलाल और अन्य (2016):
- माननीय उच्चतम न्यायालय ने माना कि "उक्त प्रावधान से यह स्पष्ट है कि प्रतिबंधित सामग्री को जब्त करने पर, इसे या तो निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या धारा 53 के तहत अधिकार प्राप्त अधिकारी को भेजा जाना चाहिये, जिसे जब्त किये गए प्रतिबंधित पदार्थ की एक सूची तैयार करनी होगी।"
- और फिर उसकी सत्यता प्रमाणित कराने के लिये मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होगा।
आपराधिक कानून
पॉक्सो एक्ट अ.जा/अ.ज.जा अधिनियम पर हावी है
16-Oct-2023
ग्रामीण पुलिस स्टेशन राज्य और सोमशेखर का मामला पॉक्सो अधिनियम, हालिया कानून होने के कारण, अत्याचार अधिनियम पर पूर्वता रखता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय (बेंगलुरु खंडपीठ, आपराधिक याचिका संख्या 7421/2023)
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक उच्च न्यायालय (HC) ने फैसला सुनाया है कि ऐसे मामलों में जहाँ दो विशिष्ट कानूनों अर्थात् अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (अत्याचार अधिनियम) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 ( POCSO) दोनों लागू हैं, पॉक्सो अधिनियम इन दोनों कानूनों में नवीनतम है, जो ग्रामीण पुलिस स्टेशन द्वारा सोमशेखर और राज्य के मामले में अत्याचार अधिनियम पर पूर्वता हासिल करता है।
ग्रामीण पुलिस स्टेशन राज्य और सोमशेखर के मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्त्ता पर शिकायतकर्त्ता (जो अनुसूचित जाति समुदाय से था) की कम उम्र की बेटी को निरंतर उसके साथ अवैध संबंध में शामिल होने के लिये राजी करने का आरोप लगाया गया था।
- शिकायतकर्त्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्त्ता कथित तौर पर उसके घर आया और उसकी अवयस्क बेटी का नाम पुकारा।
- जब उसने याचिकाकर्त्ता के ठिकाने के बारे में पूछताछ की, तो उसने उसे बताया कि वह उसकी बेटी का प्रेमी था।
- याचिकाकर्त्ता, शिकायतकर्त्ता के घर के अंदर गया और अवयस्क बेटी से झगड़ा किया और उसे उससे प्यार करने की बातें करने लगा।
- चूँकि शिकायतकर्त्ता की बेटी सहमत नहीं थी, याचिकाकर्त्ता ने कथित तौर पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी और चला गया।
- अवयस्क को शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने कथित तौर पर साड़ी से फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
- शिकायतकर्त्ता ने पुलिस से संपर्क किया और टाइप की गई शिकायत प्रस्तुत की थी जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306, 504, 34, पॉक्सो की धारा 12 एवं अत्याचार अधिनियम की धारा 3(2)(va) के तहत दंडनीय अपराधों के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
- जाँच के दौरान, याचिकाकर्त्ता को गिरफ्तार किया गया, और आरोप पत्र दायर किया गया।
- उसने ट्रायल कोर्ट में जमानत के लिये आवेदन किया, लेकिन इसे खारिज़ कर दिया गया।
- इसलिये, उसके द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के तहत उच्च न्यायालय में जमानत के लिये आवेदन दायर किया गया था।
- राज्य की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला है और याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध अत्याचार अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराध भी शामिल है, इसलिये उसे अत्याचार अधिनियम की धारा 14 A (1) के तहत अपील दायर करने की आवश्यकता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायाधीश एस. विश्वजीत शेट्टी ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के समक्ष सीआरपीसी की धारा 439 के तहत एक याचिका तब सुनवाई योग्य थी, जब अत्याचार अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम दोनों लागू किये गए थे, न कि अत्याचार अधिनियम द्वारा अनिवार्य अपील दायर की गई। इस प्रकार याचिका स्वीकार कर ली गई और न्यायालय ने आरोपी को जमानत दे दी।
- उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अत्याचार अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम कानून के अद्वितीय अंश हैं। अत्याचार अधिनियम की धारा 20 इस अधिनियम के प्रचलित प्राधिकार को निर्धारित करती है, जबकि पॉक्सो अधिनियम की धारा 42A पॉक्सो अधिनियम की सर्वोच्चता का वर्णन करती है। पॉक्सो अधिनियम, नवीनतम कानून होने के नाते, अत्याचार अधिनियम पर हावी होगा।
शामिल कानूनी प्रावधान
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973
जमानत के बारे में उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय के विशेष अधिकार -
(1) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह निदेश दे सकता है कि-
(क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिस पर किसी अपराध का अभियोग है और जो अभिरक्षा में है, जमानत पर छोड़ दिया जाए और यदि अपराध धारा 437 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट प्रकार का है, तो वह ऐसी कोई शर्त, जिसे वह उस उपधारा में वर्णित प्रयोजनों के लिये आवश्यक समझे, अधिरोपित कर सकता है;
(ख) किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के समय मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित कोई शर्त अपास्त या उपांतरित कर दी जाए:
परंतु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति की, जो ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो अन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, या जो यद्यपि इस प्रकार विचारणीय नहीं है, आजीवन कारावास से दंडनीय है, जमानत लेने के पूर्व जमानत के लिये आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को उस दशा के सिवाय देगा जब उसकी, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जाएँगे यह राय है कि ऐसी सूचना देना साध्य नहीं है :
परंतु यह और कि उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को जमानत स्वीकार करने से पूर्व जो भारतीय दंड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376कख या धारा 376घक या धारा 376घख के अधीन विचारणीय किसी अपराध का अभियुक्त है, ऐसे आवेदन की सूचना की प्राप्ति की तारीख से पंद्रह दिन की कालावधि के भीतर लोक अभियोजक को जमानत के आवेदन की सूचना देगा।
(1क) भारतीय दंड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376क या धारा 376घक या धारा 376घख के अधीन व्यक्ति की जमानत के लिये आवेदन की सुनवाई के समय सूचनादाता या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति बाध्यकर होगी ।
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोड़ा जा चुका है, गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिये सुपुर्द कर सकता है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम
- अत्याचार अधिनियम को अक्सर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के रूप में जाना जाता है, यह भारत में एक विधायी ढाँचा है, जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों से संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा को रोकना और संबोधित करना है। ये ऐतिहासिक रूप से वंचित समूह हैं। इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल हैं:
- अपराध और दंड: यह अधिनियम विभिन्न अपराधों को अत्याचार के रूप में सूचीबद्ध करता है, जिसमें शारीरिक हिंसा, सामाजिक बहिष्कार और शोषण शामिल है, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है। ऐसे अपराध करने वालों को कारावास सहित कठोर दंड का सामना करना पड़ सकता है।
- विशेष न्यायालय: यह अधिनियम अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों से संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ अत्याचार से संबंधित मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है, जिससे त्वरित न्याय सुनिश्चित होती है।
- गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा: इस अधिनियम में धमकी और उत्पीड़न को रोकने के लिये इसके तहत दर्ज मामलों में गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा के प्रावधान भी शामिल है।