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आपराधिक कानून
मानहानि का मुकदमा
13-Dec-2023
प्रसाद एम. के. @प्रसाद अमोरे बनाम शेरिन वी. जॉर्ज “केरल न्यायालय ने हाल ही में एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक को 10 लाख रु. का मुआवज़ा दिया, जिसके विरुद्ध कुछ अपमानजनक बयान दिये गए थे।” अतिरिक्त उप न्यायाधीश- I, त्रिशूर, राजीवन वाचल |
स्रोत: केरल न्यायालय
चर्चा में क्यों?
त्रिशूर के अतिरिक्त उप न्यायाधीश-1 राजीवन वाचल ने एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक को 10 लाख रु. का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया, जिसके विरुद्ध कुछ अपमानजनक बयान दिये गए थे।
- केरल न्यायालय ने यह निर्णय प्रसाद एम.के. @प्रसाद अमोरे बनाम शेरिन वी. जॉर्ज के मामले में दिया।
प्रसाद एम.के. @प्रसाद अमोरे बनाम शेरिन वी. जॉर्ज मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- वादी एक लाइसेंस प्राप्त पुनर्वास मनोवैज्ञानिक के रूप में कार्य करता है और प्रतिवादी, जो मनोविज्ञान के क्षेत्र में काम करता है, ने आरोप लगाया कि वादी एक धोखेबाज़ और नकली मनोवैज्ञानिक था, तथा उसके योग्यता प्रमाणपत्र भी नकली थे, और इस संबंध में उसने एक फेसबुक पोस्ट प्रकाशित किया।
- वादी ने दावा किया कि उपर्युक्त मानहानिकारक बयानों के प्रकाशन के कारण, जनता के बीच उसकी प्रतिष्ठा कम हो गई, और उसकी वित्तीय स्थिति प्रभावित हुई और उसने 10 लाख रुपए के मुआवज़े का दावा किया, जिसमें 1000/रुपए के डिमांड नोटिस की लागत के अलावा 12% प्रति वर्ष की दर से भविष्य में मिलने वाला ब्याज़ भी शामिल था।
- न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि वादी द्वारा दावा की गई राशि को अस्वीकार करने के लिये उसके सामने कोई सामग्री नहीं थी और उसे 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज़ के साथ 10 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया।
न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?
- केरल न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला है कि वादी प्रतिवादी से वाद की तिथि से 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज़ के साथ 10,00,000 रुपए/(केवल दस लाख रुपए) के मुआवज़े का हकदार है और यह माना गया कि वादी प्रतिवादी से मुकदमे की लागत का भी हकदार होगा।
'मानहानि' क्या है?
- अर्थ:
- मानहानि, जैसा कि शब्द के अर्थ से पता चलता है, किसी झूठे बयान के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को पहुँचने वाली चोट है।
- किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को उसकी संपत्ति माना जाता है और यदि कोई व्यक्ति संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है, तो वह कानून के तहत उत्तरदायी होता है; इसी प्रकार, किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाला व्यक्ति भी कानून के तहत उत्तरदायी होता है।
- अनिवार्यताएँ:
- बयान मानहानिकारक होना चाहिये:
- बयान मानहानिकारक होना चाहिये यानी जिससे वादी की प्रतिष्ठा कम हो।
- यह जाँचने का परीक्षण कि कोई विशेष कथन मानहानिकारक है या नहीं, इस बात पर निर्भर करेगा कि समाज के सही सोच वाले सदस्य इसे किस प्रकार लेते हैं।
- इसके अलावा, कोई व्यक्ति यह बचाव नहीं कर सकता कि बयान का उद्देश्य मानहानिकारक नहीं था, हालाँकि इससे घृणा, अवमानना या नापसंदगी की भावना उत्पन्न हुई।
- कथन में वादी का उल्लेख होना चाहिये:
- मानहानि संबंधी कार्रवाई में वादी को यह साबित करना होगा कि जिस बयान की उसने शिकायत की है उसमें वादी का संदर्भ दिया गया है, यह महत्त्वहीन होगा कि प्रतिवादी का इरादा वादी को बदनाम करने का नहीं था।
- यदि जिस व्यक्ति के प्रति बयान प्रकाशित किया गया था वह उचित रूप से अनुमान लगा सकता है कि बयान उसे संदर्भित करता है, तो प्रतिवादी उत्तरदायी होगा।
- बयान अवश्य प्रकाशित होना चाहिये:
- मानहानि वाले व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के लिये मानहानिकारक बयान का प्रकाशन किसी भी व्यक्ति को उत्तरदायी बनाने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है, और जब तक ऐसा नहीं किया जाता है, मानहानि की कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
- हालाँकि यदि कोई तीसरा व्यक्ति वादी के लिये लिखे गए पत्र को गलत तरीके से पढ़ता है, तो प्रतिवादी के उत्तरदायी होने की संभावना है। लेकिन यदि वादी को भेजा गया मानहानिकारक पत्र किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पढ़े जाने की संभावना है, तो प्रकाशन वैध होगा।
- मानहानि के प्रकार:
- अपमानजनक-वचन: यह अस्थायी रूप में मानहानिकारक कथन का प्रकाशन है। उदाहरण के लिये- किसी व्यक्ति को शब्दों या इशारों के माध्यम से बदनाम करना।
- अपमानजनक लेख: यह किसी स्थायी रूप में किया गया प्रतिनिधित्व है।
- बयान मानहानिकारक होना चाहिये:
- नागरिक अपराध में मानहानि:
- इसमें "जानबूझकर दिया गया कोई भी गलत बयान जो या तो बोला या लिखा गया है, जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है; किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा, सम्मान या विश्वास को कम करता है; या किसी व्यक्ति के विरुद्ध अपमानजनक, शत्रुतापूर्ण, या अप्रिय राय या भावनाओं को प्रेरित करता है", के रूप में परिभाषित किया गया है।
- आपराधिक कानून में मानहानि:
- जो कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने के लिये आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृष्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि जिससे उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचे या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए ऐसे लांछन लगाता या प्रकाशित करता है जिससे उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँचे, तो तद्पश्चात अपवादित दशाओं के सिवाय उसके द्वारा उस व्यक्ति की मानहानि करना कहलाया जायेगा।
- IPC की धारा 500: यह अपमानजनक व्यवहार करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिये परिणाम बताती है। इसमें कहा गया है, 'मानहानि के लिये सज़ा'। 'जो कोई भी दूसरे की मानहानि करेगा, उसे साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या ज़ुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।'
सिविल कानून
मोटर यान अधिनियम, 1988
13-Dec-2023
गौहर मोहम्मद बनाम उत्तरप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम एवं अन्य। "राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को संशोधित मोटर यान अधिनियम, 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के कार्यान्वयन के लिये एक योजना तैयार करने के निर्देश दिये गए हैं।" न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और के.वी. विश्वनाथन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने गोहर मोहम्मद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम और अन्य के मामले में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) को संशोधित मोटर यान अधिनियम, 1988 (एम.वी. अधिनियम) और केंद्रीय मोटर वाहन नियम के कार्यान्वयन के लिये सुझावों के साथ एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया है।
गौहर मोहम्मद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- केंद्रीय कानून द्वारा एमवी अधिनियम में संशोधन किया गया है और नए नियम भी बनाये गये हैं।
- इसके बाद संशोधित प्रावधान लागू नहीं होने के कारण इस मामले में 15 दिसंबर, 2022 के आदेश से निर्देश जारी किये गये हैं।
- जब मामला सुनवाई के लिये आया, तो न्यायालय ने एमिकस क्यूरी से सुझाव लिया और NALSA के तत्त्वावधान में एक योजना तैयार करने के निर्देश जारी किये।
- इस मामले को 5 जनवरी, 2024 को आगे की सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया गया है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने NALSA को संशोधित एम.वी. अधिनियम और केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के कार्यान्वयन के लिये सुझावों के साथ एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया।
- न्यायालय ने बाद में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस संबंध में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था तथा राज्यों की उनकी शिथिलता के लिये आलोचना की थी।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
- मोटर यान अधिनियम, 1988:
- मोटर यान अधिनियम, 1939 के स्थान पर यह अधिनियम 1 जुलाई, 1989 को लागू हुआ।
- यह अधिनियम ड्राइवरों/कंडक्टरों के लाइसेंस, मोटर वाहनों के पंजीकरण, परमिट के माध्यम से मोटर यानों के नियंत्रण, राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधानों, यातायात विनियमन, बीमा, दायित्व, अपराध और दंड आदि के बारे में विस्तार से विधायी प्रावधान प्रदान करता है।
- मोटर यान (संशोधन) अधिनियम, 2019
- यह अधिनियम 1 सितंबर, 2019 को लागू हुआ।
- यह अधिनियम अभिघात के पश्चात एक घंटे तक की समयावधि के रूप में गोल्डन ऑवर को परिभाषित करता है, जिसके दौरान त्वरित चिकित्सा देखभाल के माध्यम से मृत्यु को निवारित करने की संभावना सबसे अधिक होती है।
- यह अधिनियम हिट एंड रन मामलों के लिये न्यूनतम मुआवज़े को इस प्रकार बढ़ाता है:
- मृत्यु की स्थिति में 25,000 रुपए से दो लाख रुपए तक।
- गंभीर चोट की स्थिति में 12,500 रुपए से 50,000 रुपए तक।
- भारत में सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार को एक मोटर वाहन दुर्घटना कोष का गठन करने की आवश्यकता है।
- यह केंद्र सरकार को मोटर वाहनों को वापस लेने का आदेश देने की अनुमति देता है यदि वाहन में खराबी से पर्यावरण, चालक या अन्य सड़क उपयोगकर्त्ताओं को नुकसान हो सकता है।
- यह एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड (National Road Safety Board) का प्रावधान करता है, जिसे केंद्र सरकार एक अधिसूचना के माध्यम से बनाएगी।
- यह अधिनियम एग्रीगेटर्स को डिजिटल मध्यस्थों या बाज़ार स्थानों के रूप में परिभाषित करता है जिनका उपयोग यात्रियों द्वारा परिवहन उद्देश्यों (टैक्सी सेवाओं) के लिये ड्राइवर से जुड़ने के लिये किया जा सकता है। इन एग्रीगेटर्स को राज्य द्वारा लाइसेंस जारी किये जाएंगे।
- यह इस अधिनियम के तहत कई अपराधों के लिये दंड बढ़ाता है। उदाहरण के लिये, शराब या मादक दवाओं के प्रभाव में गाड़ी चलाने पर अधिकतम ज़ुर्माना 2,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दिया गया है।
- केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 2022:
- ये नियम 1 अप्रैल, 2022 से लागू हो गए हैं।
- नए नियम दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 8 जनवरी, 2021 के राजेश त्यागी बनाम जयबीर सिंह शीर्षक फैसले में बनाई गई योजना पर आधारित हैं।
- उपरोक्त नियम मोटर दुर्घटना दावों की शीघ्र जाँच और निर्णय के लिये एक नई प्रक्रिया निर्धारित करते हैं।
- ये नियम छह महीने से एक वर्ष की अवधि के भीतर सभी मोटर दुर्घटना दावों की जाँच और निर्णय के लिये समय-सीमा निर्धारित करते हैं।
- इन नियमों ने मोटर दुर्घटना मुआवज़ा न्यायशास्त्र में क्रांति ला दी है क्योंकि इनसे दावेदारों को दुर्घटना के एक वर्ष के भीतर मुआवज़ा मिल सकेगा।
पारिवारिक कानून
विवाह के पंजीकरण से इनकार
13-Dec-2023
श्रीमती अश्वनी शरद पेंडसे और अन्य बनाम हिंदू विवाह रजिस्ट्रार और अन्य "केवल इस आधार पर कि एक पक्ष विदेशी नागरिक है, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह के पंजीकरण से इनकार करना उचित नहीं है।" न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीमती अश्वनी शरद पेंडसे और अन्य बनाम हिंदू विवाह रजिस्ट्रार और अन्य के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल इस आधार पर कि एक पक्ष विदेशी नागरिक है, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के तहत विवाह के पंजीकरण से इनकार करना उचित नहीं है।
श्रीमती अश्वनी शरद पेंडसे और अन्य बनाम हिंदू विवाह रजिस्ट्रार और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्ता (पति-पत्नी) स्वयं को हिंदू विवाहित जोड़ा बता रहे हैं और पत्नी भारत की निवासी है, जबकि पति बेल्जियम का निवासी है।
- उन्होंने 18 जनवरी, 2010 को हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार विवाह किया है।
- रजिस्ट्रार ने यह कहते हुए उनके विवाह को पंजीकृत करने से इनकार कर दिया कि उनका विवाह पंजीकृत नहीं की जा सकता क्योंकि पति एक विदेशी नागरिक है और वह भारत का निवासी नहीं है।
- इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने विवाह रजिस्ट्रार को उनके विवाह को पंजीकृत करने और उन्हें विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश देने के लिये राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की है।
- याचिका स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने विवाह रजिस्ट्रार को जोड़े को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि इस आधार पर विवाह के पंजीकरण से इनकार करना कि एक पक्ष विदेशी नागरिक है, उचित नहीं है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि प्रतिवादी याचिकाकर्ताओं के विवाह को केवल इसलिये पंजीकृत करने से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि पति विदेशी है और भारत का नागरिक नहीं है। यदि याचिकाकर्ता HMA के तहत निहित प्रावधानों के संदर्भ में अपने विवाह के में वैध सबूत प्रस्तुत करते हैं, तो प्रतिवादी को बिना किसी देरी के तत्काल प्रभाव से उनके विवाह को पंजीकृत करना होगा।
- इसमें आगे कहा गया कि HMA की धारा 8 हिंदू विवाहों के पंजीकरण की प्रक्रिया से संबंधित है। लेकिन इसमें कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि एक विदेशी हिंदू नागरिक भारत में अपना विवाह पंजीकृत नहीं करा सकता है, यदि उसने HMA की आवश्यकता के अनुसार विवाह किया है।
- न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों और प्रतिवादी को HMA के तहत ई-पोर्टल पर आवश्यकता को संपादित करने के लिये कदम उठाने का भी निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यदि संबंधित पक्ष कानून के अनुसार सख्ती से अपने विवाह का वैध प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, तो पार्टियों के भारत के नागरिक होने की आवश्यकता पर ज़ोर न दिया जाए।
HMA की धारा 8 क्या है?
परिचय:
यह धारा हिंदू विवाहों के पंजीकरण से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) राज्य सरकार हिन्दू-विवाहों की सिद्धि को सुकर करने के प्रयोजन के लिये यह उपबन्धित करने वाले नियम बना सकती है कि ऐसे किसी विवाह के पक्षकार अपने विवाह से सम्बद्ध विशिष्टयाँ इस प्रयोजन के लिये रखे जाने वाले हिन्दू-विवाह रजिस्टर में ऐसी रीति में और ऐसी शर्तों के अधीन रहकर जैसी कि विहित की जायें, प्रविष्ट कर सकती है।
(2) यदि राज्य सरकार की यह राय है कि ऐसा करना आवश्यक या इष्टकर है तो यह उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी यह उपबन्ध कर सकती है कि उपधारा (1) में निर्दिष्ट विशिष्टयों को प्रविष्ट करना उस राज्य में या उसके किसी भाग में या तो सब अवस्थाओं में या ऐसी अवस्थाओं में जैसी कि उल्लिखित की जायें, अनिवार्य होगा और जहाँ कि ऐसा कोई निर्देश निकाला गया है, वहाँ इस निमित्त बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति ज़ुर्माने से जो कि 25 रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
(3) इस धारा के अधीन बनाए गए सब नियम अपने बनाए जाने के यथाशक्य शीघ्र पश्चात् राज्य विधान मण्डल के समक्ष रखे जाएंगे।
(4) हिन्दू-विवाह रजिस्टर सब युक्तियुक्त समयों पर निरीक्षण के लिये खुला रहेगा और उसमें अन्तर्विष्ट कथन साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होंगे और रजिस्ट्रार आवेदन किये जाने पर और अपने की विहित फीस की देनगियाँ किये जाने पर उसमें से प्रमाणित उद्धरण देगा।
(5) इस धारा में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी किसी हिन्दू-विवाह की मान्यता ऐसी प्रविष्टि करने में कार्यलोप के कारण किसी अनुरीति में प्रभावित न होगी।
निर्णयज विधि:
- भूमिका मोहन जयसिंघानी और अन्य बनाम विवाह रजिस्ट्रार और अन्य (2019) के मामले में, एक पक्ष कनाडा का नागरिक था और दूसरा पक्ष ब्रिटेन का निवासी था। दोनों ने अपने विवाह के पंजीकरण के लिये ऑनलाइन आवेदन किया लेकिन सॉफ्टवेयर ने उनके आवेदन को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे भारत के नागरिक नहीं थे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने न केवल विवाह रजिस्ट्रार को दो विदेशियों (भारत के नागरिक नहीं) के विवाह को पंजीकृत करने का निर्देश दिया, बल्कि अधिकारियों को सॉफ्टवेयर में संशोधन के लिये आवश्यक कदम उठाने का भी निर्देश दिया, जिसका उपयोग विवाह के पंजीकरण और प्रमाणपत्रों के जारी करने के लिये किया जा रहा था।