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आपराधिक कानून
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940
29-Dec-2023
गौरव चावला बनाम यू. टी. राज्य चंडीगढ़ "पुलिस के पास औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के उल्लंघन में कथित अवैध उत्पाद की खोज करने या ज़ब्त करने का कोई अधिकार नहीं है, ज़ब्त करने की शक्ति इस अधिनियम के तहत नियुक्त निरीक्षक के पास होगी।" न्यायमूर्ति मंजरी नेहरू कौल |
स्रोत: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति मंजरी नेहरू कौल ने कहा है कि पुलिस के पास औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के उल्लंघन में कथित अवैध उत्पाद की खोज करने या ज़ब्त करने का कोई अधिकार नहीं है, ज़ब्त करने की शक्ति इस अधिनियम के तहत नियुक्त निरीक्षक के पास होगी।
- पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह फैसला गौरव चावला बनाम यू.टी. राज्य चंडीगढ़ के मामले में दिया।
गौरव चावला बनाम यू.टी. चंडीगढ़ राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- याचिकाकर्त्ता पर कथित तौर पर बिना किसी अपेक्षित लाइसेंस के रेमडेसिविर इंजेक्शन को विनियमित दर से अधिक कीमत पर बेचने की पेशकश करने के लिये औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
- पुलिस ने कथित इंजेक्शन ज़ब्त कर लिये और याचिकाकर्त्ता, इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी के निदेशक और अन्य सह-अभियुक्तों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) दर्ज की गई।
- न्यायालय ने कहा कि कोई भी तलाशी और ज़ब्ती कानून के अनुसार नहीं की गई, जैसा कि इस मामले में देखा गया है, ऐसे साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिये मुकदमे के दौरान कोई महत्त्व नहीं होगा।
- इसलिये त्रुटिपूर्ण वसूली प्रक्रिया (Defective Recovery Process) के कारण, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 7 के तहत ज़ुर्माना लगाने की कोई संभावना नहीं होगी।
- इसने इस प्रश्न पर भी विचार किया कि क्या पुलिस के पास आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के साथ पठित औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अध्याय IV के तहत अपराधों के संबंध में इंजेक्शन ज़ब्त करने और जाँच करने की शक्ति है।
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 एक विशेष अधिनियम है जिसने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure- CrPC) और आवश्यक वस्तु अधिनियम को स्थानांतरित किया है, जो पुलिस को ड्रग्स इंस्पेक्टर के अधिकार को सीमित करने के लिये CrPC या आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत शरण लेने से रोक सकता है।
न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?
- यह स्पष्ट है कि पुलिस के पास औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 27 के तहत अपराधों की जाँच करने की कोई शक्ति नहीं थी और यहाँ तक कि उक्त प्रावधानों के तहत FIR भी दर्ज नहीं की जा सकती थी।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 क्या है?
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 भारत की संसद का एक अधिनियम है जो भारत में औषधियों के आयात, निर्माण और वितरण को नियंत्रित करता है।
- इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत में बेची जाने वाली औषधि और सौंदर्य प्रसाधन सुरक्षित, प्रभावी एवं राज्य गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हैं।
इसमें क्या विधिक प्रावधान शामिल हैं?
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 22:
धारा 22 'इंस्पेक्टर की शक्ति' से संबंधित है, जो कहती है कि किसी भी तलाशी और ज़ब्ती करने की शक्ति पूरी तरह से ड्रग इंस्पेक्टर के पास निहित है।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 27:
इस अध्याय के उल्लंघन में ओषधियों के विनिर्माण, विक्रय आदि के लिये शास्ति-जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,
(a) किसी औषधि का, जो धारा 17A के अधीन अपमिश्रित या [धारा 17B के अधीन नकली समझी गई है और जिससे] तब जब उसका किसी व्यक्ति द्वारा किसी रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या निवारण के लिये उपयोग किया जाता है, उसकी मृत्यु हो जाने की सम्भाव्यता है या उसके शरीर को ऐसी हानि हो जाने की सम्भाव्यता है जो भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 320 के अर्थ में घोर उपहति की कोटि में केवल इस कारण आएगी कि ऐसी औषधि, यथास्थिति, अपमिश्रित या नकली है या मानक गुणवत्ता की नहीं है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय या वितरण के लिये प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरित करेगा, वह [कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम न होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी दंडनीय होगा और ज़ुर्माने का भी, जो दस लाख रुपए या अधिहृत औषधि के मूल्य का तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम न होगा, दंडित होगा] :
परंतु इस खंड के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति पर अधिरोपित और उससे वसूल किया गया ज़ुर्माना प्रतिकर के रूप में उस व्यक्ति को संदत्त किया जाएगा जिसने इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली औषधियों का उपयोग किया था:
परंतु यह और कि जहाँ इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों के उपयोग से ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, जिसने ऐसी ओषधियों का उपयोग किया था, वहाँ इस खंड के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति पर अधिरोपित और उससे वसूल किया गया ज़ुर्माना ऐसे व्यक्ति के नातेदार को संदत्त किया जाएगा जिसकी इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों के उपयोग के कारण मृत्यु हुई थी।
स्पष्टीकरण: दूसरे परंतुक के प्रयोजनों के लिये, अभिव्यक्ति 'सापेक्ष' का अर्थ है-
(i) मृतक व्यक्ति का पति या पत्नी; या
(ii) अवयस्क धर्मज पुत्र और अविवाहित धर्मज पुत्री तथा विधवा माता; या
(iii) अवयस्क पीड़ित व्यक्ति के माता-पिता; या
(iv) मृतक व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जन पर पूर्ण रूप से आश्रित ऐसा पुत्र या पुत्री, जिसने अट्ठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है; या
(v) निम्नलिखित में से कोई व्यक्ति यदि वह मृतक व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जन पर, पूर्णतः या भागतः आश्रित है-
(a) माता-पिता ; या
(b) अवयस्क भाई या अविवाहित बहन; या
(c) विधवा पुत्रवधू; या
(d) विधवा बहन; या
(e) पूर्व मृत पुत्र की अवयस्क संतान; या
(f) ऐसी पूर्व मृत पुत्री की अवयस्क संतान जहाँ संतान के माता-पिता में से कोई जीवित नहीं है; या
(g) दादा-दादी, यदि ऐसे सदस्य के माता या पिता में से कोई जीवित नहीं है;]
(b) किसी औषधि का,
(i) जो धारा 17A के अधीन अपमिश्रित समझी गई है किंतु जो खंड (a) में निर्दिष्ट औषधि नहीं है; या
(ii) धारा 18 के खंड (c) के अधीन यथा अपेक्षित विधिमान्य अनुज्ञप्ति के बिना,
विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टॉक रखेगा या विक्रय के लिये प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा, या वितरण करेगा, वह कारावास से [जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम न होगी किंतु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी और ज़ुर्माने से, जो एक लाख रुपए या अधिहृत औषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगा] से दंडनीय होगा: एक अवधि के लिये कारावास से दंडनीय होगा जो [तीन वर्ष से कम नहीं होगा लेकिन जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और ज़ुर्माना जो एक लाख रुपये से कम नहीं होगा या जब्त की गई औषधियों के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो, होगा]:
परंतु न्यायालय, निर्णय में अभिलिखित किये जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से [तीन वर्ष से कम के कारावास का और एक लाख रुपए से कम के ज़ुर्माने का] दंड अधिरोपित कर सकेगा; [बशर्ते कि अदालत, फैसले में दर्ज किये जाने वाले किसी भी पर्याप्त और विशेष कारणों से, तीन वर्ष से कम की अवधि के लिये कारावास तथा एक लाख रुपए से कम के ज़ुर्माने की सज़ा दे सकती है];
(c) धारा 17B के तहत नकली समझी जाने वाली कोई भी औषधि, लेकिन खंड (a) में निर्दिष्ट औषधि नहीं होने पर कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। ज़ुर्माना जो तीन लाख रुपए या जब्त की गई औषधियों के मूल्य का तीन गुना नहीं होगा, जो भी अधिक हो, देय होगा]:
परंतु न्यायालय, फैसले में दर्ज किये जाने वाले किसी भी पर्याप्त और विशेष कारणों से, सात वर्ष से कम लेकिन न्यूनतम तीन वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सज़ा और एक लाख रुपये से कम का ज़ुर्माने से दंडित कर सकती है;
किसी औषधि का, जो खंड (a) या खंड (b) या खंड (c) में विनिर्दिष्ट औषधिसे भिन्न है, इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के किसी अन्य उपबंध के उल्लंघन में विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिये प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरण करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष से कम न होगी किंतु जो दो वर्ष की हो सकेगी, [और ज़ुर्माने से जो बीस हज़ार रुपए से कम का न होगा] दंडनीय होगा:
सिविल कानून
गर्भ का समापन
29-Dec-2023
अश्वथी सुरेंद्रन बनाम भारत संघ "गर्भ के चिकित्सीय समापन की मांग केवल उन मामलों में की जा सकती है, जहाँ भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताएँ हों, जिसका निदान सक्षम मेडिकल बोर्ड द्वारा किया गया हो।" न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अश्वथी सुरेंद्रन बनाम भारत संघ के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि गर्भ के चिकित्सीय समापन की मांग केवल उन मामलों में की जा सकती है, जहाँ भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताएँ हों, जिसका निदान सक्षम मेडिकल बोर्ड द्वारा किया गया हो।
अश्वथी सुरेंद्रन बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, याचिकाकर्त्ता पत्नी व पति हैं, और उन्हें आशंका है कि उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण कुछ गंभीर असामान्यताओं से पीड़ित हो सकता है।
- गर्भ के समापन करने के लिये याचिकाकर्त्ताओं द्वारा केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई।
- उन्होंने दावा किया कि भ्रूण में द्विपक्षीय रूप से बढ़े हुए इकोजेनिक गुर्दे हैं, दोनों में सूक्ष्म सिस्ट की उपस्थिति है और यह गंभीर असामान्यताओं के साथ पैदा होगा।
- इस प्रकार न्यायालय ने सरकारी मेडिकल कॉलेज, एर्नाकुलम द्वारा गठित ज़िला मेडिकल बोर्ड से रिपोर्ट मांगी।
- रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि गर्भावस्था को जारी रखा जा सकता है क्योंकि कोई घातक भ्रूण विषमता नहीं थी और अन्य स्वास्थ्य स्थितियों का आकलन बच्चे के जन्म के बाद ही किया जा सकता है।
- उच्च न्यायालय ने बिना किसी अगले आदेश के रिट याचिका बंद कर दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि वैधानिक रूप से, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 (MTP अधिनियम) की धारा 3(2)(b) के आदेश के तहत, केवल ऐसे मामलों में जहाँ भ्रूण में सक्षम मेडिकल बोर्ड द्वारा निदान की गई पर्याप्त असामान्यताएँ हैं, गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की जा सकती है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि, निस्संदेह की राय निर्णायक है कि भ्रूण अच्छी अवस्था में है। हालाँकि गुर्दे की असामान्यता के साथ पैदा हो सकता है। हालाँकि, हल्के से गंभीर तक के पैमाने के बारे में कोई निश्चितता नहीं है। इसलिये आपत्तिजनक रूप से यह ऐसा मामला नहीं है, जहाँ यह न्यायालय याचिकाकर्ताओं के अनुरोध को स्वीकार कर सकता है। खासकर जब भ्रूण 30 सप्ताह का गर्भ प्राप्त कर चुका हो।
इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
MTP अधिनियम, 1971:
परिचय:
- MTP अधिनियम 1 अप्रैल, 1972 को लागू हुआ।
- MTP अधिनियम, 1971 और वर्ष 2003 के इसके नियम अविवाहित महिलाओं को, जो 20 सप्ताह से 24 सप्ताह के बीच की गर्भवती हैं, पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों की सहायता से गर्भपात कराने से रोकते हैं।
- इस अधिनियम को वर्ष 2020 में अधिक व्यापक रूप से अद्यतित किया गया और संशोधित कानून निम्नलिखित संशोधनों के साथ सितंबर 2021 में प्रभावी हो गया।
- MTP अधिनियम, 1971 के तहत अधिकतम गर्भकालीन आयु जिस पर एक महिला चिकित्सीय गर्भपात करा सकती है, को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है।
- गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक MTP तक पहुँचने के लिये एक योग्य चिकित्सा पेशेवर की राय महत्त्वपूर्ण हो सकती है और 20 सप्ताह से 24 सप्ताह तक दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय की आवश्यकता होगी।
- दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय लेने के बाद, नीचे दी गई शर्तों के तहत गर्भावस्था को 24 सप्ताह की गर्भकालीन आयु तक समाप्त किया जा सकता है:
- यदि महिला या तो यौन उत्पीड़न या बलात्कार की उत्तरजीवी है;
- यदि वह अवयस्क है;
- यदि चल रही गर्भावस्था के दौरान उसकी वैवाहिक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है (विधवा या तलाक के कारण);
- यदि वह बड़ी शारीरिक अक्षमताओं से पीड़ित है या वह मानसिक रूप से बीमार है;
- बच्चे के जीवन के साथ असंगत भ्रूण विकृति या गंभीर रूप से विकलांग बच्चे के जन्म की संभावना के आधार पर गर्भ का समापन;
- यदि महिला किसी मानवीय परिवेश या आपदा में स्थित है या सरकार द्वारा घोषित आपातकाल में फँसी हुई है।
- उन मामलों में भ्रूण की असामान्यताओं के आधार पर गर्भपात किया जाता है जहाँ गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो गई हो।
- MTP अधिनियम के तहत प्रत्येक राज्य में स्थापित चार सदस्यीय मेडिकल बोर्ड को इस प्रकार के गर्भपात की अनुमति देनी होगी।
MTP अधिनियम की धारा 3(2)(b):
इस धारा में कहा गया है कि जहाँ गर्भ बारह सप्ताह से अधिक का हो किंतु बीस सप्ताह से अधिक का न हो, वहाँ यदि दो से अन्यून रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायियों ने सद्भावपूर्वक यह राय कायम की हो कि-
(i) गर्भ के बने रहने से गर्भवती स्त्री का जीवन जोखिम में पड़ेगा अथवा उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति की जोखिम होगी; या
(ii) इस बात की पर्याप्त जोखिम है कि यदि बच्चा पैदा हुआ तो वह ऐसी शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित होगा कि वह गंभीर रूप से विकलांग हो, तो वह गर्भ रजिस्ट्रीकृत चिक्तिसा-व्यवसायी द्वारा समाप्त किया जा सकेगा।
निर्णयज विधि:
- एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2022) में उच्चतम न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया कि सहमति से बनाए गए संबंध से उत्पन्न 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भावस्था के गर्भपात की मांग करने में विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं होना चाहिये। इसमें कहा गया है कि सभी महिलाएँ सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं।
वाणिज्यिक विधि
आयकर अधिनियम की धारा 115BBE
29-Dec-2023
त्रिवेणी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड बनाम आयकर अधिकारी और अन्य। “आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115BBE की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया है।” कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में त्रिवेणी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड बनाम आयकर अधिकारी और अन्य के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने आयकर अधिनियम, 1961 (IT अधिनियम) की धारा 115BBE की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
त्रिवेणी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड बनाम आयकर अधिकारी और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष, आकलन वर्ष 2015-16, 2016-17, 2017-18 के लिये IT अधिनियम की धारा 148A(d) के तहत पारित 25 जुलाई, 2022 के आदेशों को चुनौती देते हुए वर्तमान रिट याचिकाएँ दायर की गई हैं और इसमें IT अधिनियम की धारा 148 के तहत जारी 25 जुलाई, 2022 के नोटिस को भी चुनौती दी गई है।
- याचिकाकर्त्ता ने IT अधिनियम की धारा 115 BBE की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा है कि धारा 115BBE की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर अपीलीय प्राधिकरण द्वारा निर्णय नहीं लिया जा सकता है।
- याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता का कहना है कि IT अधिनियम की धारा 148 के तहत जारी किये गए नोटिस प्रासंगिक मूल्यांकन वर्षों के अंत से तीन वर्ष बाद जारी किये गए हैं और वह भी प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त से मंज़ूरी प्राप्त करने के बाद जारी किया जा सकता था, न कि प्रधान आयकर आयुक्त से जैसा कि वर्तमान मामलों में किया गया है।
- उच्च न्यायालय ने वर्तमान रिट याचिकाओं और लंबित आवेदनों को खारिज कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन तथा न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा है कि वैधानिक अधिनियमों और उनके प्रावधानों को इस काल्पनिक सिद्धांत पर असंवैधानिक घोषित नहीं किया जाना चाहिये कि सत्ता का प्रयोग अवास्तविक तरीके से या शून्य में या इस आधार पर किया जाएगा कि वैधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग की आशंका है या सत्ता के दुरुपयोग की संभावना है।
- इसके लिये यह माना जाना चाहिये, जब तक कि इसके विरुद्ध यह साबित न हो जाए, कि किसी विशेष कानून का प्रशासन एवं कार्यान्वयन गलत भाव और संबंधित प्राधिकरण द्वारा नही किया गया है।
- न्यायालय ने कहा कि IT अधिनियम की धारा 115BBE को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है और यह अधिनियम कर के आकलन या पुनर्मूल्यांकन के लिये पूर्ण मशीनरी प्रदान करता है।
IT अधिनियम, 1961 के प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या शामिल हैं?
- यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1962 को लागू हुआ और आयकर लगाने, प्रशासन, संग्रह एवं वसूली का प्रावधान करता है।
- यह अधिनियम आयकर और सुपर-टैक्स से संबंधित कानून को समेकित एवं संशोधित करता है।
IT अधिनियम की धारा 148 और 148A:
- इस अधिनियम की धारा 148 नोटिस जारी करने से संबंधित है जहाँ आय का मूल्यांकन नहीं हुआ है।
- वर्ष 2021 के बजट में पेश की गई इस अधिनियम की धारा 148A ने भारत में कराधान के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत की है।
- यह धारा आयकर अधिकारियों को पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही शुरू करने का अधिकार देती है जब उन्हें संदेह होता है कि किसी करदाता ने किसी मूल्यांकन वर्ष के दौरान आय छुपाई है।
- इस अधिनियम की धारा 148A(d) ऐसी जानकारी के अस्तित्व या अन्यथा तक सीमित है जो बताती है कि कर के दायरे में आने वाली आय मूल्यांकन से बच गई है।
IT अधिनियम की धारा 115BBE:
इस अधिनियम की धारा 115BBE, धारा 68 या धारा 69 या धारा 69A या धारा 69B या धारा 69C या धारा 69D में निर्दिष्ट आय पर कर से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) एक निर्धारिती की कुल आय कहाँ है, -
(a) धारा 68, धारा 69, धारा 69 A, धारा 69 B, धारा 69 C या धारा 69 D में संदर्भित किसी भी आय को शामिल करता है और धारा 139 के तहत प्रस्तुत आय की वापसी में परिलक्षित होता है; या
(b) निर्धारण अधिकारी द्वारा निर्धारित किसी भी आय में धारा 68, धारा 69, धारा 69 A, धारा 69 B, धारा 69 C या धारा 69 D में निर्दिष्ट आय शामिल है, यदि ऐसी आय खंड (a) के तहत कवर नहीं की जाती है, देय आयकर - का कुल योग होगा -
(i) साठ प्रतिशत की दर से खंड (a) और खंड (b) में निर्दिष्ट आय पर गणना की गई आयकर की राशि; तथा
(ii) निर्धारिती जिस आय-कर के साथ प्रभार्य होता, उसकी कुल आय खंड (i) में निर्दिष्ट आय की मात्रा से कम हो जाती थी।
(2) इस अधिनियम में निहित किसी भी बात के बावजूद, उपधारा (1) के खंड (a) और खंड (b) में निर्दिष्ट उसकी आय की गणना में इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के तहत निर्धारिती को किसी भी व्यय या भत्ते या किसी नुकसान की भरपाई के संबंध में कोई कटौती की अनुमति नहीं दी जाएगी।