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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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आपराधिक कानून

अपमानजनक महिला शील

 21-Feb-2024

प्रहलाद गुजर बनाम मध्य प्रदेश राज्य

"बच्ची की गरिमा को ठेस पहुँचाने के लिये उस पर आपराधिक बल का प्रयोग अभियुक्त के लैंगिक आशय का संकेत है।"

न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रहलाद गुजर बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में माना है कि बच्ची की गरिमा को ठेस पहुँचाने के लिये उस पर आपराधिक बल का प्रयोग, अभियुक्त के लैंगिक आशय का संकेत है, जिससे लैंगिक उत्पीड़न से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत अपराध बनता है।

प्रहलाद गुजर बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अभियोक्त्री की शिकायतकर्त्ता माँ ने अपने पति के साथ रिपोर्ट दर्ज कराई कि उसकी बेटी आंगन में खेल रही थी, वर्तमान अपीलकर्त्ता ने उसका (अभियोक्त्री) व्यपहरण किया और उसे अपने घर ले गया जहाँ अपीलकर्त्ता ने उसकी की गरिमा को ठेस पहुँचाने के लिये उसे अवैध रूप से छुआ।
  • आवश्यक जाँच के बाद, अपीलकर्त्ता के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 363 और POCSO की धारा 9 व 10 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया था।
  • ट्रायल कोर्ट ने उपर्युक्त अपराधों के लिये अपीलकर्त्ता को दोषी ठहराया।
  • ट्रायल कोर्ट के निर्णय से व्यथित होकर, अपीलकर्त्ता द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई है।
  • ट्रायल कोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए उच्च न्यायालय ने अपील खारिज़ कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह ने कहा कि एक बच्ची को बंद कमरे में ले जाना, उसे अपनी गोद में बिठाना और उसकी जांघ को रगड़ना अभियुक्त के लैंगिक आशय का संकेत है, जिससे यह POCSO अधिनियम के तहत अपराध बनता है।
  • इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि महिला शील का अपमान क्या है, इसे कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन एक महिला की शील का सार उसका लिंग है, और अपीलकर्त्ता का आपराधिक आशय इस मामले की जड़ है।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या हैं?

POCSO की धारा 9:

POCSO की धारा 9 गुरुतर लैंगिक हमला से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(a) जो कोई, पुलिस अधिकारी होते हुए, किसी बालक पर—

(i) पुलिस थाने या ऐसे परिसरों की सीमाओं के भीतर जहाँ उसको नियुक्ति की गई है; या

(ii) किसी थाने के परिसरों में चाहे उस पुलिस थाने में अवस्थित है या नहीं जिसमें उसकी नियुक्ति की गई है; या

(iii) अपने कर्त्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा; या

(iv) जहाँ वह, पुलिस अधिकारी के रूप में ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,

लैंगिक हमला करता है; या

(b) जो कोई, सशस्त्र बल या सुरक्षा बल का सदस्य होते हुए, बालक पर—

(i) ऐसे क्षेत्र की सीमाओं के भीतर जिसमें वह व्यक्ति तैनात है; या

(ii) सुरक्षा या सशस्त्र बलों की कमान के अधीन किन्हीं क्षेत्रों में, या

(iii) अपने कर्त्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा; या

(iv) जहाँ वह, सुरक्षा या सशस्त्र बलों के सदस्य के रूप में ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,

लैंगिक हमला करता है; या

(c) जो कोई लोक सेवक होते हुए, किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(d) जो कोई, किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह या संरक्षण गृह संप्रेक्षण गृह या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित अभिरक्षा या देखरेख और संरक्षण के किसी अन्य स्थान का प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए, ऐसे जेल या प्रतिप्रेषण गृह या संरक्षण गृह या संप्रेक्षण गृह या अभिरक्षा या देखरेख और संरक्षण के अन्य स्थान पर रह रहे किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(e) जो कोई, किसी अस्पताल, चाहे सरकारी या प्राइवेट हो, का प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए उस अस्पताल में किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(f) जो कोई, किसी शैक्षणिक संस्था या धार्मिक संस्था का प्रबंध तंत्र या कर्मचारिवृंद होते हुए उस संस्था में के किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(g) जो कोई, बालक पर सामूहिक लैंगिक हमला करता है।

स्पष्टीकरण: जहाँ किसी बालक पर, किसी समूह के एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा उनके सामान्य आशय को अग्रसर करने में लैंगिक हमला किया गया है। वहाँ ऐसे प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इस खंड के अर्थातर्गत सामूहिक लैंगिक हमला किया जाना समझा जाएगा और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति उस कृत्य के लिये वैसी ही रीति में दायी होगा मानो वह उसके द्वारा अकेले किया गया था; या

(h) जो कोई, बालक पर घातक आयुध, अग्न्यायुध, गर्म पदार्थ या संक्षारक पदार्थ का प्रयोग करते हुए लैंगिक हमला करता है; या

(i) जो कोई, किसी बालक को घोर उपहति कारित करते हुए या शारीरिक रूप से नुकसान और क्षति करते हुए या उसके /उसकी जननेंद्रियों को क्षति करते हुए लैंगिक हमला करता है; या

(j) जो कोई, किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है जिससे-

(i) बालक शारीरिक रूप से अशक्त हो जाता है या बालक मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) की धारा 2 के खंड (ठ) के अधीन यथापरिभाषित मानसिक रूप से रोगी हो जाता है या किसी प्रकार का ऐसा ह्रास कारित करता है जिससे बालक अस्थायी या स्थायी रूप से नियमित कार्य करने में अयोग्य हो जाता है; या

(ii) बालक को मानव प्रतिरक्षाह्रास विषाणु या किसी ऐसे अन्य प्राणघातक रोग या संक्रमण से ग्रस्त हो जाता है जो बालक को शारीरिक रूप से अयोग्य, या नियमित कार्य करने में मानसिक रूप से अयोग्य करके अस्थाई या स्थाई रूप से ह्रास कर सकेगा; या

(k) जो कोई, बालक की मानसिक और शारीरिक अशक्तता का लाभ उठाते हुए बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(l) जो कोई, बालक पर एक से अधिक बार या बार-बार लैंगिक हमला करता है; या

(m) जो कोई, बारह वर्ष से कम आयु के किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(n) जो कोई, बालक का रक्त या दत्तक या विवाह या संरक्षकता द्वारा या पोषण देखभाल करने वाला नातेदार या बालक के माता-पिता के साथ घरेलू संबंध रखते हुए या जो बालक के साथ साझी गृहस्थी में रहता है, ऐसे बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(o) जो कोई, बालक को सेवा प्रदान करने वाली किसी संस्था का स्वामी या प्रबंध कर्मचारिवृंद होते हुए बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(p) जो कोई, किसी बालक के न्यासी या प्राधिकारी के पद पर होते हुए, बालक की किसी संस्था या गृह में या कहीं और, बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(q) जो कोई, यह जानते हुए कि बालिका गर्भ से है, बालिका पर लैंगिक हमला करता है; या

(r) जो कोई, बालक पर लैंगिक हमला करता है और बालक की हत्या करने का प्रयत्न करता है; या

(s) जो कोई सामुदायिक या पंथिक हिंसा के दौरान या प्राकृतिक विपत्ति की स्थिति या उस प्रकार की किन्ही भी स्थितियों के दौरान बालक पर लैंगिक हमला करता है; या

(t) जो कोई, बालक पर लैंगिक हमला करता है और जो पूर्व में इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने के लिये या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दण्डनीय कोई लैंगिक अपराध किये जाने के लिये दोषसिद्ध किया है; या

(u) जो कोई, बालक पर लैंगिक हमला करता है और बालक को सार्वजनिक रूप से विवस्त्र करता है या नग्न करके प्रदर्शन करता है; या

(v) जो कोई इस आशय से कि कोई बालक प्रवेशन लैंगिक हमले के प्रयोजन के लिये शीघ्र लैंगिक परिपक्वता प्राप्त करे, किसी बालक को कोई मादक द्रव्य, हार्मोन या कोई रासायनिक पदार्थ लिये जाने के लिये प्रेरित करता है, उत्प्रेरित करता है, फुसलाता है या प्रपीड़ित करता है या देता है या देने के लिये किसी को निदेश देता है या लिये जाने में सहायता करता है, वह गुरुतर लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है।

POCSO की धारा 10:

  • यह धारा गुरुतर लैंगिक हमले के लिये दण्ड से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई, गुरुतर लैंगिक हमला करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, से दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

IPC की धारा 363:

  • यह धारा व्यपहरण के लिये दण्ड से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई भारत में से या विधिपूर्ण संरक्षकता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

आपराधिक कानून

CrPC की धारा 91

 21-Feb-2024

राजस्थान राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ बाबा

“आरोप तय करने के चरण में दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये बाध्य करने के लिये न्यायालय CrPC की धारा 91 के तहत प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते हैं।”

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ बाबा के मामले में माना है कि न्यायालय आरोप तय करने के चरण में अभियुक्त द्वारा किये गए आवेदन के आधार पर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने हेतु मजबूर करने के लिये CrPC की धारा 91 के तहत प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते हैं।

राजस्थान राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ बाबा मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, अभियुक्त को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS) के प्रावधानों के तहत अपराध के लिये ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है।
  • अभियुक्त ने ज़ब्ती की तारीख के लिये ज़ब्ती अधिकारी और कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों के कॉल विवरण को समन करने के लिये ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।
  • उक्त आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज़ कर दिया था।
  • इसके बाद अभियुक्त ने राजस्थान उच्च न्यायालय में अपील की।
  • उच्च न्यायालय ने उक्त याचिका को स्वीकार करते हुए राजस्थान राज्य के सभी न्यायालयों को निर्देश दिया है कि जब भी आपराधिक कार्यवाही के दौरान अभियुक्त द्वारा कॉल-डिटेल्स समन करने के लिये कोई आवेदन दायर किया जाएगा, तो उसे स्थगित नहीं किया जाएगा और उसपर तुरंत निर्णय लिया जाएगा।
  • यह इस आदेश के विरुद्ध; अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
  • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए अपील स्वीकार की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि न्यायालय आरोप तय करने के चरण में अभियुक्त द्वारा किये गए आवेदन के आधार पर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये मजबूर करने के लिये CrPC की धारा 91 के तहत प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते हैं।
  • आगे कहा गया कि यदि अभियुक्त की प्रतिरक्षा के लिये कोई दस्तावेज़ आवश्यक या वांछनीय है, तो आरोप तय करने के प्रारंभिक चरण में CrPC की धारा 91 को लागू करने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि उस स्तर पर अभियुक्त की प्रतिरक्षा बचाव प्रासंगिक नहीं है। जहाँ तक अभियुक्त का सवाल है, धारा 91 के तहत आदेश मांगने का उसका अधिकार आमतौर पर प्रतिरक्षा के चरण तक नहीं आएगा।

CrPC की धारा 91 क्या है?

परिचय:

यह धारा दस्तावेज़ों या अन्य चीज़ों को प्रस्तुत करने के लिये समन से संबंधित है जबकि यही प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 94 के तहत शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि-

(1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जाँच, विचारण, या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिये, जो इस संहिता के अधीन ऐसे न्यायालय या अधिकारी के द्वारा या समक्ष हो रही हैं, किसी दस्तावेज़ या अन्य चीज़ का पेश किया जाना आवश्यक या वांछनीय है तो जिस व्यक्ति के कब्ज़े या शक्ति में ऐसी दस्तावेज़ या चीज़ के होने का विश्वास है उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा अधिकारी एक लिखित आदेश उससे यह अपेक्षा करते हुए जारी कर सकता है कि उस समन या आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे अथवा हाज़िर हो तथा उसे पेश करे।

(2) यदि कोई व्यक्ति, जिससे इस धारा के अधीन दस्तावेज़ या अन्य चीज़ पेश करने की ही अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के लिये स्वयं हाज़िर होने के बजाय उस दस्तावेज़ या चीज़ को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है।
(3) इस धारा की कोई बात-(a) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123 और 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी; अथवा

(b) डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज़ या किसी पार्सल या चीज़ को लागू होने वाली नहीं समझी जाएगी।

निर्णयज विधि:

  • नित्य धर्मानंद बनाम गोपाल शीलम रेड्डी (2018) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त आरोप तय करने के चरण में CrPC की धारा 91 को लागू नहीं कर सकता है और उसे लागू करने का अधिकार नहीं होगा।