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आपराधिक कानून
भरण-पोषण के लिये अयोग्यता
01-Mar-2024
अमित कुमार कच्छप बनाम संगीता टोप्पो "जब कोई पत्नी बिना किसी वैध कारण के अपने पति से अलग रहना चुनती है, तो वह CrPC की धारा 125 (4) के तहत भरण-पोषण के लिये पात्र नहीं होती है।" न्यायमूर्ति सुभाष चंद |
स्रोत: झारखंड उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, झारखंड उच्च न्यायालय ने अमित कुमार कच्छप बनाम संगीता टोप्पो के मामले में कहा है कि जब कोई पत्नी बिना किसी वैध कारण के अपने पति से अलग रहना चुनती है, तो वह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 (4) के तहत भरण-पोषण के लिये पात्र नहीं होती है।
अमित कुमार कच्छप बनाम संगीता टोप्पो मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, पत्नी की ओर से अपने पति के विरुद्ध CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का आवेदन इन आरोपों के साथ दायर किया गया था कि दोनों पक्षकार सरना समुदाय से संबंधित हैं, और उसका विवाह अमित कुमार कच्छप के साथ सभी रीति-रिवाज़ों, संस्कारों और अनुष्ठानों के अनुसार, वर्ष 2014 में हुआ था।
- विवाह के बाद, पत्नी को उसके पति के परिवार के घर ले जाया गया, जहाँ कथित तौर पर कार, फ्रिज और LED टी.वी. सहित दहेज की मांग शुरू हो गई। उसने कहा कि उसका पति छोटी-छोटी बातों पर उसकी उपेक्षा करता था और अक्सर शराब के नशे में उसके साथ दुर्व्यवहार करता था।
- संबंधित विचारण न्यायालय (ट्रायल कोर्ट) ने दोनों पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद, भरण-पोषण आवेदन को स्वीकार कर लिया और याचिकाकर्त्ता (पति) को विपरीत पक्ष यानी पत्नी को प्रति माह 15,000/- रुपए की भरण-पोषण राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।
- इसके बाद, ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित निर्णय के विरुद्ध झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक पुनरीक्षण प्रस्तुत किया गया है।
- उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए आपराधिक पुनरीक्षण की अनुमति दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति सुभाष चंद ने कहा कि दोनों पक्षकारों की ओर से पेश किये गए समग्र साक्ष्यों के मद्देनज़र यह पाया गया है कि पत्नी बिना किसी उचित कारण के पति से अलग रह रही है। तद्नुसार, निर्धारण का यह बिंदु याचिकाकर्त्ता-पति के पक्ष में और विपरीत पक्ष(पत्नी) के विरुद्ध तय किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, CrPC की धारा 125 (4) के मद्देनज़र वह किसी भी राशि के भरण-पोषण की हकदार नहीं है।
CrPC की धारा 125 क्या है?
परिचय:
यह धारा पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के आदेश से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इनकार करता है -
(a) अपनी पत्नी का, जो अपने भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(b) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(c) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(d) अपने पिता या माता का जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हैं,
भरणपोषण करने में उपेक्षा करता है, या भरणपोषण करने से इनकार करता है, तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरणपोषण के लिये ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निदेश दे।
स्पष्टीकरण- यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखैल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इनकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा।
(4) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन यथास्थिति भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिये भत्ता और कार्यवाही के व्यय प्राप्त करने की हकदार न होगी, यदि वह जारता की दशा में रह रही है अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा यदि वे पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं।
(5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं।
निर्णयज विधि:
- के. विमल बनाम के. वीरास्वामी (1991) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 125 एक सामाजिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पेश की गई थी। इस धारा का उद्देश्य पति से अलग होने के बाद पत्नी के लिये आवश्यक आश्रय और भोजन प्रदान करके उसका कल्याण करना है।
आपराधिक कानून
IPC की धारा 489B
01-Mar-2024
डिंबेश्वर बोबो बनाम असम राज्य "आपराधिक मनःस्थिति साबित किये बिना, केवल उक्त कूटरचित नोटों का कब्ज़ा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।" न्यायमूर्ति मृदुल कुमार कलिता |
स्रोत: गुवाहाटी उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने डिंबेश्वर बोबो बनाम असम राज्य के मामले में माना है कि आपराधिक मनःस्थिति साबित किये बिना, केवल उक्त कूटरचित नोटों का कब्ज़ा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
डिंबेश्वर बोबो बनाम असम राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, अपीलकर्त्ता को पकड़ लिया गया और बालिजन बाज़ार समिति के कार्यालय कक्ष में बंद कर दिया गया, जब वह 100 रुपए के कुछ कूटरचित नोट देकर बाज़ार में सामान खरीद रहा था।
- अपीलकर्त्ता के विरुद्ध IPC की धारा 489B के तहत मामला दर्ज किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को उक्त प्रावधान के तहत दोषी ठहराया तथा उसे पाँच वर्ष के कठोर कारावास और 2,000/- रुपए का ज़ुर्माना भरने की सज़ा सुनाई।
- इसके बाद, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक अपील दायर की गई।
- अपीलकर्त्ता की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 489B के तहत वर्तमान अपीलकर्त्ता के अपराध के निष्कर्ष पर पहुँचने में गलती की है क्योंकि यह दर्शाने के लिये कोई साक्ष्य नहीं दिया गया था कि अपीलकर्त्ता को पता था या उसके पास इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण था कि ज़ब्त किये गई नोट कूटरचित या नकली थे।
- ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित निर्णय को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति मृदुल कुमार कलिता ने कहा कि अभियोजन पक्ष IPC की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये आवश्यक वर्तमान अपीलकर्त्ता के आपराधिक मनःस्थिति के संबंध में आवश्यक संघटक को साबित करने में विफल रहा है।
- आगे यह माना गया कि आपराधिक मनःस्थिति साबित किये बिना, केवल उक्त कूटरचित नोटों का कब्ज़ा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
IPC की धारा 489B क्या है?
परिचय:
- यह धारा कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को असली के रूप में उपयोग में लाने से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई किसी कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोट या बैंक नोट को, यह जानते हुए, या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटरचित या कूटकृत है, किसी अन्य व्यक्ति को बेचेगा या उससे खरीदेगा या प्राप्त करेगा या अन्यथा उसका दुर्व्यापार करेगा या असली के रुप में उसे उपयोग में लाएगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
निर्णयज विधि:
- उमा शंकर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2001) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि इस प्रावधान को लागू करने में विधायिका का उद्देश्य न केवल देश की अर्थव्यवस्था की रक्षा करना है, बल्कि मुद्रा नोटों और बैंकनोटों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना भी है।
- क्रेडिट कार्ड प्रणाली की बढ़ती आदत के बावजूद, मुद्रा नोट अभी भी हमारे देश में बड़ी संख्या में वाणिज्यिक लेनदेन की रीढ़ हैं। लेकिन यह प्रावधान असावधान मालिकों या उपयोगकर्त्ताओं को दण्डित करने के लिये नहीं है।
आपराधिक कानून
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा, 65B
01-Mar-2024
विलियम स्टीफन बनाम तमिलनाडु राज्य "राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पुलिस अधिकारियों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65B के तहत उचित प्रशिक्षण दिया जाए।" न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयाँ |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयाँ की पीठ ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 65B के तहत पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण पर एक मामले की सुनवाई की।
- उपर्युक्त टिप्पणी विलियम स्टीफन बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में की गई थी।
विलियम स्टीफन बनाम तमिलनाडु राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- पीड़ित अभियोजन पक्ष के गवाह-2, तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला आठ वर्षीय बालक का 20 अक्तूबर, 2010 को ट्यूशन से लौटते समय व्यपहरण कर लिया गया था।
- कथित तौर पर, मारुति कार में सवार अभियुक्त ने दावा किया कि बालक के पिता एक कार खरीदने का आशय रखते थे और उन्होंने उसे अपने वाहन के पास बुलाने के लिये फुसलाया था।
- अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि उन्होंने अभियोजन गवाह PW-3 को फोन करके 5 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी।
- पुलिस ने वेल्लोर ज़िले के पल्लीकोंडा टोल गेट से बालक को छुड़ाकर अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया था।
- अभियोजन पक्ष ने PW-1 से लेकर PW-3 और PW-19, जाँच अधिकारी के कॉल रिकॉर्ड और गवाही पर भरोसा किया था।
- अभियुक्त नंबर 1 व 2 ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित 27 जुलाई, 2016 के निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की थी, जिसने IPC की धारा 364A के तहत उनकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सज़ा को बरकरार रखा था।
- अभियोजन साक्ष्य में कॉल रिकॉर्ड और साक्षियों की गवाही शामिल हैं। उच्च न्यायालय ने IEA की धारा 65B प्रमाण-पत्र की कमी के कारण साक्ष्य को खारिज़ कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय की टिप्पणी ने जाँच अधिकारी (PW-19) और IEA की धारा 65B के तहत प्रमाण-पत्र के संबंध में एक प्रक्रियात्मक मुद्दे पर प्रकाश डाला।
- न्यायालय ने कहा कि जाँच अधिकारी को धारा 65B के तहत प्रमाण-पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं थी, और न्यायालय ने स्वीकार किया कि ज्ञान की इस कमी के लिये अधिकारी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसे उचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया था।
- इसके अलावा, न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया कि पुलिस अधिकारियों को IEA की धारा 65B के तहत उचित प्रशिक्षण मिले।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65B क्या है?
- दस्तावेज़ के रूप में इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख:
- किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख में अंतर्विष्ट किसी सूचना को भी, जो कंप्यूटर द्वारा उत्पादित और किसी कागज़ पर मुद्रित, प्रकाशीय या चुंबकीय मीडिया में भंडारित, अभिलिखित या नकल की गई हो (जिसे इसमें इसके पश्चात् कंप्यूटर निर्गम कहा गया है), कुछ शर्तों के तहत एक दस्तावेज़ माना जाता है।
- ऐसे इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख कानूनी कार्यवाही में बिना किसी अतिरिक्त साक्ष्य या मूल दस्तावेज़ की आवश्यकता के साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होगें।
- कंप्यूटर निर्गम के लिये शर्तें:
- सुसगंत गतिविधियों के लिये नियमित कंप्यूटर उपयोग के दौरान अभिलेख तैयार किया जाना चाहिये।
- इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के समान जानकारी नियमित रूप से कंप्यूटर में इनपुट की जानी चाहिये।
- संबंधित अवधि के दौरान कंप्यूटर ठीक से कार्य करने चाहिये।
- इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख की जानकारी नियमित गतिविधियों के दौरान कंप्यूटर में फीड किये गए डेटा के साथ संरेखित की जाती है।
- एकाधिक कंप्यूटरों के साथ व्यवहार :
- ऐसे मामलों में जहाँ एक अवधि में कई कंप्यूटरों का उपयोग किया गया था, उन्हें कानूनी उद्देश्यों के लिये एक इकाई के रूप में माना जाता है।
- साक्ष्य के लिये प्रमाणीकरण:
- इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के उत्पादन, प्रासंगिक उपकरणों का विवरण और उपधारा (2) में निर्दिष्ट शर्तों को संबोधित करने वाले अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण-पत्र कानूनी कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में कार्य करता है।
- परिभाषाएँ और व्याख्याएँ:
- किसी कंप्यूटर को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई जानकारी को इनपुट माना जाता है।
- कंप्यूटर द्वारा भंडारण या प्रसंस्करण के लिये प्रदान की गई जानकारी, भले ही इसकी सामान्य गतिविधियों का भाग न हो, फिर भी इन्हें उन गतिविधियों का भाग माना जाता है।
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष माध्यमों की परवाह किये बिना कंप्यूटर आउटपुट को कंप्यूटर द्वारा उत्पादित माना जाता है।