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आपराधिक कानून
केवल मृत्युकालिक कथन के आधार पर दोषसिद्धि
07-Mar-2024
नईम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य "मृत्युकालिक कथन को दोषसिद्धि का एकमात्र आधार बनाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं होगी, भले ही इसकी कोई पुष्टि न हो।" न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने एक अभियुक्त को केवल मृत्युकालिक कथन के आधार पर दोषी ठहराया।
- उच्चतम न्यायालय ने नईम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में यह टिप्पणी दी।
नईम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- घटना 1 दिसंबर, 2016 की है, जहाँ शाहीन परवीन को गंभीर रूप से जली हालत में मुरादाबाद के ज़िला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
- उसने आरोप लगाया कि उसे अभियुक्तों/अपीलकर्त्ताओं ने जला दिया था जो उस पर अनैतिक गतिविधियाँ करने के लिये दबाव डाल रहे थे, इसे उसका मृत्युकालिक कथन माना गया।
- अभियुक्तों/अपीलकर्त्ताओं में पप्पी उर्फ मशकूर, नईमा और नईम शामिल हैं, जो क्रमशः उसके जीजा, भाभी तथा उसके जीजा के भाई थे।
- अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने उसके पति की मृत्यु के बाद उस पर अनैतिक गतिविधियाँ करने के लिये दबाव डाला और मना करने पर उसके साथ मारपीट की।
- शाहीन परवीन के मृत्युकालिक कथन में पप्पी उर्फ मशकूर पर संपत्ति विवाद में उसे जलाने का आरोप लगाया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने मृत्युकालिक कथन के आधार पर अभियुक्तों को दोषी पाया और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
- उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा, जिसके बाद अपीलकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने अतबीर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2010) के ऐतिहासिक निर्णय में अपनी राय का उल्लेख किया, जहाँ उसने कहा था कि सज़ा पूरी तरह से मृत्युकालिक कथन पर आधारित हो सकती है।
- उच्चतम न्यायालय ने मृत्युकालिक कथन की जाँच की और इसे विश्वसनीय पाया, जिसके परिणामस्वरूप पप्पी उर्फ मशकूर को दोषी ठहराया गया।
- हालाँकि, न्यायालय ने नईमा और नईम को अपराध से प्रत्यक्ष तौर पर जोड़ने वाले अपर्याप्त साक्ष्यों के कारण बरी कर दिया।
- न्यायालय ने मृत्युकालिक कथन के दौरान पीड़िता की मानसिक स्थिति के ठीक होने और प्रपीड़न या सिखाये जाने की अनुपस्थिति के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
अतबीर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2010) मामले में उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश क्या थे?
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मृत्युकालिक कथन पर नया और पुराना आपराधिक विधि क्या है?
विधान |
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) |
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) |
धारा |
IEA की धारा 32(1) |
BSA की धारा 26(a) |
प्रावधान में कोई परिवर्तन नहीं |
IEA की धारा 32 (1) में कहा गया है कि जबकि वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हुई, तब उन मामलों, में, जिनमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत हो। |
धारा 26 (a) में कहा गया है कि जबकि वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हुई, तब उन मामलों में, जिनमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत हो। ऐसे कथन सुसंगत हैं चाहे उस व्यक्ति को, जिसने उन्हें किया है, उस समय जब वे किये गए थे मृत्यु की प्रत्याशंका थी या नहीं और चाहे उस कार्यवाही की, जिसमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है, प्रकृति कैसी ही क्यों न हो। |
आपराधिक कानून
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO)
07-Mar-2024
बब्लू यादव बनाम बिहार राज्य "खंडपीठ ने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के एक मामले में एक दिवसीय विचारण को खारिज़ कर दिया।" न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयाँ |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयाँ की खंडपीठ ने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के एक मामले में एक दिवसीय विचारण को खारिज़ कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने बब्लू यादव बनाम बिहार राज्य मामले में एक दिवसीय विचारण की अनुमति दी।
बब्लू यादव बनाम बिहार राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मामले के तथ्य:
- अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376AB और POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत दण्डनीय अपराधों के लिये दोषी ठहराया गया था।
- इस घटना में अपीलकर्त्ता ने आठ वर्ष की पीड़ित बच्ची को फुसलाया, उसे एक दुकान में ले गया और फिर 'बगान' में ले गया जहाँ उसने प्रवेशन लैंगिक उत्पीड़न किया।
- पीड़िता ने घटना के बारे में अपनी माँ को बताया, जिसके बाद घटना के उसी दिन पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की गई।
- मुकदमा एक ही दिन में तेज़ी से चलाया गया, आरोप तय करने, साक्ष्य दर्ज करने और निर्णय सहित पूरी प्रक्रिया एक ही दिन में 15 दिसंबर, 2021 को समाप्त हो गई।
- पटना उच्च न्यायालय की राय:
- एक दिन में किये गए विचारण के विरुद्ध पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई।
- उच्च न्यायालय ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने एक दिन के भीतर विचारण पूरा करने में जल्दबाज़ी दिखाई, जो नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन था।
- उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि त्वरित कार्यवाही के कारण अभियुक्त पर निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाई।
- इसलिये, उच्च न्यायालय ने आक्षेपित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया, आरोप तय करने के चरण से मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिये ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया।
- पटना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसके निर्णय में मामले के गुण-दोष पर कोई राय नहीं थी, बल्कि इसका ध्यान केवल अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित रखने पर केंद्रित था।
- उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामला:
- नए विचारण चलाने के उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक दाण्डिक अपील दायर की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को मंजूरी दी और राज्य सरकार को POCSO के तहत एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने का निर्देश दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विचारण में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 309 के प्रावधानों का पालन करना चाहिये।
- विशेष न्यायालय और अभियोजक को नया विचारण चलाने का निर्देश दिया गया।
POCSO अधिनियम क्या है?
- परिचय:
- वर्ष 2012 में अधिनियमित POCSO अधिनियम, बालकों को लैंगिक उत्पीड़न और शोषण से बचाने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक कानून है।
- यह बालकों की अतिसंवेदनशीलता को संबोधित करता है और उनकी सुरक्षा एवं कल्याण को सुनिश्चित करता है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अपनाए गए बाल अधिकारों पर अभिसमय के अनुरूप अधिनियमित किया गया था, जिसे 11 दिसंबर, 1992 को भारत सरकार द्वारा स्वीकार किया गया था।
- प्रस्तावना:
- यह बालकों को लैंगिक उत्पीड़न, यौन शोषण और अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने के लिये एक अधिनियम है।
- और ऐसे अपराधों की सुनवाई एवं उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों के विचारण के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- यह बालकों को लैंगिक उत्पीड़न, यौन शोषण और अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने के लिये एक अधिनियम है।
- प्रमुख तिथियाँ:
- इसके अधिनियमन की तिथि 19 जून, 2012 है जबकि POSCO 14 नवंबर, 2012 को लागू किया गया था।
- POCSO संशोधन अधिनियम, 2019:
- POCSO को बाद में POCSO संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया, जो 16 अगस्त, 2019 को लागू हुआ।
- POCSO संशोधन अधिनियम, 2019 ने बाल अश्लील साहित्य को परिभाषित करते हुए कड़े दण्ड, POCSO की धारा 2 की उप-धारा (1) में खंड (da) सम्मिलित किये।
- इसमें POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत सोलह वर्ष से कम उम्र के बालक के साथ प्रवेशक लैंगिक उत्पीड़न को भी शामिल किया गया है।
POCSO में ज़मानत:
POCSO अधिनियम में महत्त्वपूर्ण प्राधिकारी क्या हैं?
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POCSO अधिनियम के तहत अपराध क्या हैं?
अपराध |
परिभाषा |
सज़ा |
प्रवेशन लैंगिक हमला (POCSO की धारा 3 और 4 के तहत) |
इसमें किसी के लिंग, वस्तु या शरीर के भाग को बालक की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग, या गुदा में घुसाना, या प्रवेश के लिये बालक के शरीर के भाग के साथ छेड़छाड़ करना शामिल है। |
कठोर कारावास जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, जिसे आजीवन या मृत्युदण्ड तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला (POCSO की धारा 5 और 6 के तहत) |
इसमें पुलिस, सशस्त्र बलों, लोक सेवकों, कुछ संस्थानों के प्रबंधन/कर्मचारियों द्वारा लैगिक उत्पीड़न, सामूहिक हमला, घातक आयुधों का उपयोग आदि शामिल है। |
कठोर कारावास जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, जिसे आजीवन या मृत्युदण्ड तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
लैंगिक हमला (POCSO की धारा 7 और 8 के तहत) |
जो कोई, लैंगिक आशय से बालक की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को स्पर्श करता है या बालक से ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन का स्पर्श कराता है या लैंगिक आशय से कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेशन किये बिना शारीरिक संपर्क अंतर्ग्रस्त होता है, लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है। |
जो कोई, लैंगिक हमला करेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
गुरुतर लैंगिक हमला (POCSO की धारा 9 और 10 के तहत) |
प्रवेशन लैंगिक हमले के समान लेकिन इसमें हथियारों का उपयोग, गंभीर चोट पहुँचाना, मानसिक बीमारी, गर्भावस्था या पिछली सज़ा जैसे गंभीर कारक शामिल हैं। |
जो कोई, गुरुतर लैंगिक हमला करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
लैंगिक उत्पीड़न (POCSO की धारा 11 और 12 के तहत) |
लैंगिक संतुष्टि के आशय से किये जाने वाले विभिन्न कार्य जिनमें इशारे, शरीर के अंगों का प्रदर्शन, अश्लील उद्देश्यों के लिये प्रलोभन आदि शामिल हैं। |
जो कोई, किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न करेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
अश्लील प्रयोजनों के लिये बालक का उपयोग (POCSO की धारा 13, 14 और 15 के तहत) |
इसमें किसी बालक को अश्लील सामग्री या कृत्यों में कार्य कराना शामिल है। धारा 15 अश्लील सामग्री के भंडारकरण के लिये दण्डित करती है। |
कम-से-कम पाँच वर्ष का कारावास, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
किसी अपराध का दुष्प्रेरण और उसे करने का प्रयत्न (POCSO की धारा 16, 17 व 18 के तहत) |
किसी अपराध के किये जाने का दुष्प्रेरण, साज़िश करना या सहायता करना शामिल है। |
दुष्प्रेरण या प्रयत्न की गंभीरता के आधार पर, संबंधित अपराध के लिये सज़ा के अनुसार भिन्नता होती है। |
किसी मामले की रिपोर्ट करने या अभिलिखित करने में विफलता (POCSO की धारा 21) |
अधिनियम के तहत किसी अपराध की रिपोर्ट करने या उसे अभिलिखित करने में विफलता। |
छह महीने तक का कारावास, ज़ुर्माना या दोनों से दण्डनीय होगा। |
मिथ्या परिवाद या मिथ्या सूचना (POCSO की धारा 22) |
विद्वेषपूर्ण आशय से मिथ्या परिवाद करना या मिथ्या सूचना प्रदान करना। |
परिस्थितियों के आधार पर छह महीने तक का कारावास, ज़ुर्माना या दोनों से दण्डनीय। |