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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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सांविधानिक विधि

पैन-स्टेट PILबहस: मद्रास उच्च न्यायालय

 08-Apr-2024

मद्रास उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (MMBA) की मदुरै पीठ बनाम ए. राधाकृष्णन एवं अन्य

“मदुरै में पीठ के गठन की अधिसूचना के मद्देनज़र अखिल राज्य मामलों को केवल मुख्य पीठ तक सीमित रखना उचित नहीं होगा। यदि मुख्य न्यायमूर्ति को लगता है कि मामले की सुनवाई मदुरै में होने के बजाय, चेन्नई में होनी है, तो उसे किसी भी समय मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है।”

मुख्य न्यायमूर्ति एसवी गंगापुरवाला एवं न्यायमूर्ति आर हेमलता की खंडपीठ

स्रोत:मद्रास उच्च न्यायालय (HC)

चर्चा में क्यों?  

मद्रास उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (MMBA) की मदुरै बेंच सभी प्रकार की जनहित याचिका (PIL) याचिकाओं पर सुनवाई करने के बेंच के अधिकार को बहाल करने में सफल रही है,  इसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के तहत जिसमें केवल 13 जिलों के अलावा पूरे राज्य से संबंधित मुद्दे भी शामिल हैं। मुख्य न्यायाधीश संजय वी. गंगापुरवाला एवं न्यायमूर्ति आर. हेमलता की प्रथम खंडपीठ ने MMBA द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया तथा 4 मार्च  2021 को पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी के कार्यकाल के दौरान पिछली पहली पीठ द्वारा पारित न्यायिक आदेश से एक विशेष पैराग्राफ को वापस ले लिया।

मद्रास उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (MMBA) बनाम ए. राधाकृष्णन एवं अन्य मामले की मदुरै पीठ की भूमिका की पृष्ठभूमि क्या है?

  • प्राथमिक मुद्दा मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के अधिकार क्षेत्र से संबंधित था, विशेष रूप से अखिल-राज्य मामलों से निपटने के संबंध में।
  • MMBAने तर्क दिया कि अखिल राज्य मामलों को केवल चेन्नई में मुख्य सीट तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिये, बल्कि मदुरै बेंच में भी सुना जाना चाहिये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • डिवीज़न बेंच ने यह कहते हुए सहमति व्यक्त की कि मदुरै बेंच के गठन के लिये वर्ष 2004 में जारी राष्ट्रपति अधिसूचना में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था।
  • पिछले निर्णय (बी. स्टालिन बनाम रजिस्ट्रार, 2012) का संदर्भ दिया गया था जहाँ एक पूर्ण पीठ ने मदुरै पीठ के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट किया था।
  • डिवीज़न बेंच ने लचीलेपन के महत्त्व पर ज़ोर दिया तथा पैन-स्टेट मामलों को स्पष्ट रूप से चेन्नई तक ले जाने की धारणा को खारिज कर दिया।
  • समीक्षा याचिका की अनुमति देते हुए बेंच ने कहा, "मदुरै में बेंच के गठन की अधिसूचना के मद्देनज़र अखिल राज्य मामलों को केवल मुख्य सीट तक सीमित रखना उचित नहीं होगा।"

जनहित याचिका (PIL) क्या है?

  • जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा 1960 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न और विकसित हुई। इसे भारत में सबसे पहले न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती द्वारा प्रस्तुत किया गया था। 1980 के दशक में तब से यह सार्वजनिक चिंता के मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण विधिक तंत्र बन गया है।
  • उच्चतम न्यायालय ने जनहित याचिका को सार्वजनिक हित या सामान्य हित को लागू करने के लिये न्यायालय में शुरू की गई विधिक कार्रवाई के रूप में परिभाषित किया है जिसमें जनता या समुदाय के एक वर्ग का आर्थिक हित या कुछ हित होता है जिसके द्वारा उनके विधिक अधिकार या दायित्व प्रभावित होते हैं।
  • इस प्रकार, एक जनहित याचिका में, पर्याप्त हित रखने वाला जनता का कोई भी सदस्य अन्य व्यक्तियों के अधिकारों को लागू करने और एक सामान्य शिकायत के निवारण के लिये न्यायालय में अपील कर सकता है।
  • भारत के संविधान, 1950 (COI) (क्रमशः) के अनुच्छेद 32 और 226 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय एक याचिका पर विचार कर सकते हैं।
  • विधि का शासन बनाए रखने, न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाने एवं संवैधानिक उद्देश्यों की प्राप्ति की गति को तेज़ करने के लिये जनहित याचिका नितांत आवश्यक है।

सिविल कानून

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004

 08-Apr-2024

अंजुम कादरी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य

“उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को रद्द करते हुए, उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया अधिनियम के प्रावधानों को गलत समझा। अधिनियम किसी भी धार्मिक निर्देश का प्रावधान नहीं करता है। विधि का उद्देश्य, चरित्र में नियामक है।”

भारत के मुख्य न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं मनोज मिश्रा

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

अंजुम कादरी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने यह पाया कि “उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को रद्द करते समय, उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया अधिनियम के प्रावधानों को गलत समझा। अधिनियम किसी भी धार्मिक निर्देश का प्रावधान नहीं करता है। विधि का उद्देश्य चरित्र में नियामक है।

  • इससे पहले, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार दिया था

अंजुम कादरी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाएँ अंजुम कादरी, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया (UP), ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया (नई दिल्ली), मैनेजर एसोसिएशन अरबी मदरसा नई बाजार एवं टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया कानपुर द्वारा दायर की गई थीं।
  • मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघी ने कहा कि मदरसा शासन एक यथास्थिति थी, जो 120 वर्षों से अस्तित्त्व में थी जो अब अचानक बाधित हो गई है, जिससे 17 लाख छात्र एवं 10,000 शिक्षक प्रभावित हुए हैं।
    • इन छात्रों एवं शिक्षकों को अचानक राज्य शिक्षा प्रणाली में समायोजित करना मुश्किल है। सिंघवी ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्त्ता के अधिकार क्षेत्र की जाँच नहीं की। उन्होंने उच्च न्यायालय के तर्कों को 'आश्चर्यजनक' बताया।
  • उन्होंने उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष का खंडन किया कि मदरसों में आधुनिक विषय नहीं पढ़ाए जाते तथा कहा कि गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेज़ी आदि पढ़ाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि मदरसों के लिए वर्ष 1908 में एक संहिता थी, जिसके बाद 1987 के नियम एवं 2004 का अधिनियम आया।
    • यह अधिनियम केवल नियामक था, जिसे राज्य संविधान की सूची 3 की प्रविष्टि 25 के अनुसार लागू करने में सक्षम था।
  • वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अनुच्छेद 28 का प्रतिबंध केवल तभी लागू होगा जब संस्था का प्रबंधन “पूरी तरह से राज्य निधि से किया जाता है"। उन्होंने कहा कि पूर्णतः सहायता प्राप्त, आंशिक रूप से सहायता प्राप्त और निजी मदरसे हैं तथा ये सभी 2004 के अधिनियम द्वारा विनियमित हैं।
    • इसके बाद उन्होंने अनुच्छेद 28(2) का उद्धरण दिया, जिसमें कहा गया है, "खंड (1) में कुछ भी इस प्रकार का शैक्षणिक संस्थान पर लागू नहीं होगा जो राज्य द्वारा प्रशासित है लेकिन जो किसी बंदोबस्ती या न्यास के अधीन स्थापित किया गए हैं, जिसके लिए आवश्यक है कि ऐसे संस्थान में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाएगी”।
  • उच्च न्यायालय में अपील करने वाले पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णकुमार ने याचिकाकर्त्ताओं के इस दावे का खंडन किया कि मदरसों को पूरी तरह से राज्य से वित्तपोषित नहीं किया जाता है तथा वहाँ आधुनिक विषय पढ़ाए जाते हैं।
    • वरिष्ठ अधिवक्ता वी. चितांबरेश ने कहा कि “मदरसों में गणित, विज्ञान आदि विषय वैकल्पिक हैं और इसलिये, छात्र "वर्तमान दुनिया में पिछड़ जाएंगे"। उन्होंने कहा कि संस्थान चलाने वाले लोग "अपनी आस्था के अलावा किसी विशेष क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं हैं।"
  • जब पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी के विचार मांगे, तो उन्होंने कहा, "किसी भी सीमा तक धर्म की उलझन एक संदिग्ध विषय है तथा यह सहन करने योग्य की सीमा से परे है, विशेषकर जब इसमें राज्य द्वारा दी जाने वाली सहायता निहित है”।
    • यह विचार-विमर्श की आवश्यकता वाला मामला है। उन्होंने यह कहकर उच्च न्यायालय के निर्णय का समर्थन किया कि यह किसी भी पहलू पर दोषयुक्त नहीं था। AG ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय के निर्णय का मदरसों को पंगु बनाने का कोई आशय नहीं है तथा इसका एकमात्र परिणाम यह हुआ कि वहाँ जीत हुई।
  • विधि को अधिकारातीत घोषित करते हुए, न्यायमूर्ति विवेक चौधरी एवं न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की उच्च न्यायालय खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक योजना बनाने का भी निर्देश दिया, जिससे वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध दायर पाँच विशेष अनुमति याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने कहा, "हमारा विचार है कि याचिकाओं में उठाए गए विषयों पर सूक्ष्मता से विचार किया जाना चाहिये। हम नोटिस जारी करने के इच्छुक हैं”।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया अधिनियम के प्रावधानों को समझने में गलती की है, जो कि प्रकृति में नियामक हैं।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 क्या है?

  • अधिनियम का अवलोकन:
    • इस अधिनियम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों (इस्लामिक शैक्षणिक संस्थानों) के कामकाज को विनियमित और नियंत्रित करना है।
      • इसने पूरे उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन के लिये एक फ्रेमवर्क प्रदान की।
      • इस अधिनियम के तहत, राज्य में मदरसों की गतिविधियों की देखरेख और पर्यवेक्षण के लिये उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई थी।
  • अधिनियम के संबंध में चिंताएँ:
    • संवैधानिक उल्लंघन:
      • इस अधिनियम को इलाहाबाद HC द्वारा असंवैधानिक माना गया है, क्योंकि यह धार्मिक आधार पर पृथक् शिक्षा को बढ़ावा देता है, जो भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और मौलिक अधिकारों का खंडन करता है।
      • संविधान के अनुच्छेद 21A द्वारा अनिवार्य 14 वर्ष की आयु तक गुणवत्तापूर्ण अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिये अधिनियम के प्रावधानों की आलोचना की गई।
      • शिक्षा का अधिकार (Right to Education- RTE) अधिनियम, 2009 से मदरसों को बाहर करने के संबंध में चिंताएँ व्यक्त की गईं, जिससे संभावित रूप से छात्र सार्वभौमिक और गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा से वंचित हो जाएंगे।
    • सीमित पाठ्यक्रम:
      • मदरसा पाठ्यक्रम की जाँच करने पर, न्यायालय ने आधुनिक विषयों पर सीमित ज़ोर के साथ इस्लामी अध्ययन पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने वाले पाठ्यक्रम पर ध्यान दिया।
      • छात्रों को आधुनिक विषयों के साथ प्रगति के लिये इस्लाम और उसके सिद्धांतों का अध्ययन करना आवश्यक था, जिन्हें अक्सर वैकल्पिक के रूप में शामिल किया जाता था या न्यूनतम रूप से प्रस्तुत किया जाता था।
    • उच्च शिक्षा मानकों के साथ संघर्ष:
      • इस अधिनियम को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 की धारा 22 के साथ विरोधाभासी माना गया, जिससे उच्च शिक्षा मानकों के साथ इसकी अनुकूलता पर सवाल खड़े हो गए।
  • उच्च न्यायालय का निर्णय:
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के कारण उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
      • इसने राज्य सरकार को मदरसा के छात्रों को मान्यता प्राप्त नियमित स्कूलों में समायोजित करने का निर्देश दिया और इस्लामी अध्ययन पर केंद्रित सीमित पाठ्यक्रम के संबंध में चिंता व्यक्त की।
    • निर्णय ने छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों पर प्रकाश डाला और संवैधानिक उल्लंघनों के संबंध में कानूनी तर्क दिये।

भारत में शिक्षा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

प्रावधान

अनुच्छेद

राज्य छह वर्ष की आयु पूरी करने तक सभी बच्चों को प्रारंभिक देखभाल एवं शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा

अनुच्छेद 45

वर्ष 2002 के 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के भाग III में शिक्षा के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया और साथ ही छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बना दिया।

अनुच्छेद 21A

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य कमज़ोर वर्गों की शिक्षा तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।

अनुच्छेद 46

किसी बंदोबस्ती अथवा ट्रस्ट के तहत स्थापित एवं राज्य द्वारा प्रशासित कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा में भाग लेने की स्वतंत्रता।

अनुच्छेद 28

अल्पसंख्यकों की शिक्षा, अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा

अनुच्छेद 29

अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने एवं संचालित करने का अधिकार

अनुच्छेद 30

माता-पिता तथा अभिभावकों को 6 से 14 वर्ष की आयु के अपने बच्चों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने होंगे।

अनुच्छेद 51A(k)