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आपराधिक कानून
दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी
30-May-2024
अंकित सिंह एवं तीन अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य "दहेज़ की अवैध प्रथा के विषय पर सरकार का ध्यान दिया जाना आवश्यक है”। न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान |
स्रोत: इलाहबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की पीठ ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (DP अधिनियम) के वर्ष 1961 में अधिनियमित होने और 62 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, दहेज़ प्रथा के उन्मूलन के संबंध में प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अंकित सिंह एवं तीन अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में निर्देश दिया कि दहेज़ जैसी अवैध प्रथा के विषय में सरकार द्वारा ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
अंकित सिंह एवं तीन अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला उत्तर प्रदेश राज्य में DP अधिनियम एवं उत्तर प्रदेश दहेज़ प्रतिषेध नियम, 1999 के कार्यान्वयन से संबंधित है।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने पाया कि कई दहेज़ के मामलों में नियमों के प्रावधानों, विशेषकर नियम 10 के अनुसार उपहारों/उपहारों की सूची बनाए रखने तथा नियम 7 में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जा रहा है।
- न्यायालय ने जागरूकता कार्यक्रमों की कमी, जाँच में दहेज़ प्रतिषेध अधिकारियों की भागीदारी की कमी, जाँच के दौरान कथित दहेज़ के राशि की वसूली में कमी तथा शिकायतकर्त्ताओं के बयानों पर अत्यधिक निर्भरता, जो स्वयं भी दहेज़ देने के लिये अपराधी हो सकते हैं, के बारे में चिंता व्यक्त की।
- न्यायालय ने ऐसे उदाहरणों पर प्रकाश डाला जहाँ कथित तौर पर स्वीकार्य सीमा से अधिक बड़ी नकदी दहेज़ के रूप में दी गई है, लेकिन इन राशियों के स्रोत एवं उपयोग की जाँच नहीं की जा रही है।
उत्तर प्रदेश में दहेज़ प्रथा अधिनियम एवं उत्तर प्रदेश दहेज़ प्रतिषेध नियम, 1999 के कार्यान्वयन पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश क्या थे?
- राज्य सरकार को यह सूचित करना होगा कि उपहारों की सूची बनाए रखने के संबंध में नियम 10 एवं 1985 के नियम का कार्यान्वयन क्यों नहीं किया जा रहा है तथा ऐसी सूचियों को प्रस्तुत करने को प्रोत्साहित करने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं।
- मुख्य दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी को पिछले दो वर्षों में विभिन्न मीडिया एवं सार्वजनिक होर्डिंग्स के माध्यम से आयोजित जागरूकता कार्यक्रमों के आँकड़े उपलब्ध कराने होंगे।
- राज्य सरकार को यह जाँच करनी होगी कि निवारक एवं उपचारात्मक उपाय करने के संबंध में नियम 6(4) के सिद्धांतों का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है।
- राज्य सरकार को दहेज़ निषेध अधिकारियों को कुछ पुलिस शक्तियाँ प्रदान करने के लिये धारा 8B(3) के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता की जाँच करनी है।
- मुख्य दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी को पिछले दो वर्षों में प्राप्त शिकायतों एवं दहेज़ प्रतिषेध अधिकारियों द्वारा प्रारंभ किये गए अभियोजन का विवरण प्रदान करना है।
- DGP को शपथ-पत्र प्रस्तुत कर यह स्पष्ट करना होगा कि कथित दहेज़ की राशी, विशेषकर बड़ी राशी के स्रोत एवं उपयोग की जाँच क्यों नहीं की जा रही है तथा जाँच के दौरान ऐसी राशि (अपराध द्वारा आय होने के कारण) क्यों नहीं बरामद की जा रही है।
- राज्य सरकार को दहेज़ विरोधी अभियान के बारे में विवाह स्थलों पर नोटिस लगाने एवं उपहारों की सूची बनाए रखने के बारे में विचार करना होगा।
दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी कौन हैं?
धारा 8B. दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी
- नियुक्ति एवं क्षेत्राधिकार (उपधारा 1):
- राज्य सरकार उतनी संख्या में दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त कर सकेगी, जितने वह ठीक समझे तथा उन क्षेत्रों को विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जिनके संबंध में वे इस अधिनियम के अधीन अपने क्षेत्राधिकार एवं शक्तियों का प्रयोग करेंगे।
- शक्तियाँ एवं कार्य (उपधारा 2):
- प्रत्येक दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी निम्नलिखित शक्तियों एवं कार्यों का प्रयोग और पालन करेगा, अर्थात्:
- यह सुनिश्चित करना कि इस अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन किया जाए,
- जहाँ तक संभव हो, दहेज़ लेने या लेने के लिये प्रेरित करने अथवा दहेज़ की मांग करने को रोकना,
- अधिनियम के अधीन अपराध करने वाले व्यक्तियों के अभियोजन के लिये आवश्यक साक्ष्य एकत्र करना,
- तथा ऐसे अतिरिक्त कार्य करना, जो राज्य सरकार द्वारा उसे सौंपे जाएँ या जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में निर्दिष्ट किये जाएँ।
- प्रत्येक दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी निम्नलिखित शक्तियों एवं कार्यों का प्रयोग और पालन करेगा, अर्थात्:
- पुलिस अधिकारी की शक्तियाँ (उपधारा 3):
- राज्य सरकार आधिकारिक अधिसूचना के माध्यम से दहेज़ प्रतिषेध अधिकारियों को पुलिस अधिकारी की कुछ शक्तियाँ प्रदान कर सकती है। ये शक्तियाँ दहेज़ निषेध अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों में निर्दिष्ट सीमाओं एवं शर्तों के अधीन होंगी।
- सलाहकार बोर्ड (उपधारा 4):
- राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन दहेज़ प्रतिषेध अधिकारियों को उनके कार्यों के कुशल निष्पादन में सलाह देने एवं सहायता देने के प्रयोजन के लिये, एक सलाहकार बोर्ड नियुक्त कर सकेगी, जिसमें उस क्षेत्र के पाँच से अनधिक सामाजिक कल्याण कार्यकर्त्ता (जिनमें से कम-से-कम दो महिलाएँ होंगी) होंगे, जिसके संबंध में ऐसा दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी उपधारा (1) के अधीन अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है।
आपराधिक कानून
विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन
30-May-2024
मिस ऑलिव रोहित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य “न्यायालय ने धर्म संपरिवर्तन के प्रयास एवं छात्रा के यौन शोषण के आरोपी शिक्षक की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है”। न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता एवं न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मिस ऑलिव रोहित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्म संपरिवर्तन और यौन शोषण में कथित बलप्रयोग के विवादास्पद मामले को उजागर किया।
- न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी तथा उन्हें शीघ्र FIR के कारण गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
मिस ऑलिव रोहित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मिस ऑलिव रोहित (याचिकाकर्त्ता), जो एक प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षिका हैं, पर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 156 (3) के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने सूचना प्रदाता के बेटे, जो दसवीं कक्षा का छात्र है, पर यौन संबंध बनाने एवं ईसाई धर्म अपनाने के लिये दबाव डाला।
- 30 सितंबर 2023 को, सूचना प्रदाता ने अपने बेटे के फोन पर आपत्तिजनक चैट संदेश पाए, जो कथित तौर पर याचिकाकर्त्ता द्वारा उकसाए गए थे, जिन्हें बाद में बच्चे की सहमति के बिना सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया था।
- बाल कल्याण समिति एवं वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से शिकायत के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की गई।
- स्कूल के प्रिंसिपल एवं तीन स्वतंत्र व्यक्तियों, जिनमें एक सेवानिवृत्त P.C.S. अधिकारी, एक अन्य स्कूल प्रिंसिपल और एक सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल हैं, द्वारा किये गए एक पूरक शपथ-पत्र तथा जाँच रिपोर्ट से पता चलता है कि बेटे ने नृत्य प्रतियोगिता के दौरान शिक्षक का फोन नंबर प्राप्त करने के बाद फर्जी आईडी का उपयोग करके संवाद प्रारंभ किया।
- जाँच में बेटे द्वारा शिक्षक के साथ यौन संबंध के आरोपों का समर्थन करने वाला कोई साक्ष्य नहीं मिला तथा निष्कर्ष निकाला गया कि बेटा, हालाँकि अप्राप्तवय है, लेकिन वह मानसिक रूप से बहुत सक्षम है।
- याचिकाकर्त्ता ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 354-A, 504, 507 एवं सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 66 C के अधीन प्रतिवादी के विरुद्ध FIR दर्ज की है।
- प्रतिवादियों को उत्तर देने के लिये प्रस्तुत शपथ-पत्र दाखिल करने के लिये चार सप्ताह का समय दिया गया है, साथ ही प्रत्युत्तर के लिये प्रस्तुत शपथ-पत्र के लिये अतिरिक्त दो सप्ताह का समय दिया गया है।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने स्वतंत्र जाँच के आधार पर अपना आदेश जारी किया, जिसमें संकेत दिया गया कि शिक्षक के विरुद्ध आरोप छात्र की गतिविधियों को छिपाने के लिये गढ़े गए थे।
- जाँच समिति ने पाया कि एक नृत्य प्रतियोगिता के दौरान, छात्र ने शिक्षक का मोबाइल नंबर प्राप्त किया तथा बाद में उनके फोन का उपयोग करके फर्जी आईडी बनाई, अनुचित संवाद किया एवं दबाव बनाना प्रारंभ किया।
- कानपुर के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया गया कि वे मामले की जाँच साइबर सेल को सौंप दें ताकि पता लगाया जा सके कि क्या छात्र ने शिक्षक के फोन या आईडी का उपयोग करके फर्जी अकाउंट बनाया था।
- न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी तथा उन्हें तत्काल FIR के कारण गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
- न्यायालय ने छात्र एवं उसके पिता, जो कि सूचना प्रदाता हैं, की भूमिका की जाँच करने की आवश्यकता पर बल दिया, क्योंकि अगर जाँच के निष्कर्ष मान्य होते हैं तो उन्हें आपराधिक अभियोजन का सामना करना पड़ सकता है।
विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन अधिनियम का विधिक प्रावधान क्या है?
- भारत में राष्ट्रीय स्तर पर कोई विशिष्ट "विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन अधिनियम" नहीं है।
- कुछ राज्यों ने धर्म परिवर्तन से संबंधित विधि निर्माण किये हैं, जिन्हें सामान्य तौर पर धर्म संपरिवर्तन विरोधी विधियाँ कहा जाता है।
- इन विधियों का उद्देश्य आम तौर पर धर्म संपरिवर्तन को विनियमित या प्रतिबंधित करना होता है, विशेष रूप से ऐसे धर्म परिवर्तन जो बलप्रयोग या छल से किये गए हों।
- उत्तर प्रदेश ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश पारित किया है, जिसका उद्देश्य बल, छल या प्रलोभन के माध्यम से या विवाह के लिये धर्म परिवर्तन को रोकना है।
- इस अध्यादेश के अनुसार धर्म परिवर्तन के इच्छुक व्यक्तियों को कम-से-कम दो महीने पहले ज़िला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।
- इस अध्यादेश का उल्लंघन करने पर आपराधिक दोषसिद्धि मिल सकती है।
यूपी विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 क्या है?
- उत्तर प्रदेश विधानसभा ने वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम पारित किया, जो नवंबर 2020 में प्रख्यापित उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 के रूप में लागू होगा।
- अध्यादेश को 24 नवंबर 2020 को यूपी-राज्य विधानसभा द्वारा स्वीकृति दी गई थी, बाद में 28 नवंबर 2020 को राज्य की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा अनुमोदित एवं हस्ताक्षरित किया गया था।
- उत्तर प्रदेश राज्य में लागू, यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिनियमित धर्मांतरण विरोधी विधि के रूप में कार्य करता है।
- यह अधिनियम मिथ्याव्यपदेशन, बल, अनुचित प्रभाव, बलपूर्वक, प्रलोभन, छल के माध्यम से या विवाह के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में अवैध रूप से धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करता है।
- अधिनियम की धारा 4 में FIR दर्ज करने के लिये अधिकृत व्यक्तियों की रूपरेखा दी गई है।
- यह किसी भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई-बहन या रक्तसंबंधी, विवाह या दत्तक ग्रहण से संबंधित किसी भी अन्य व्यक्ति को धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले धर्मांतरण के अपराध लिये FIR दर्ज करने की अनुमति देता है।
यूपी विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के अधीन दण्ड का क्या प्रावधान हैं?
- धर्मांतरण विरोधी विधि की धारा 3 के अधीन, दोषी पाए गए व्यक्तियों को धारा 5 में उल्लिखित दण्ड का सामना करना पड़ सकता है।
- मानक दण्ड में 1 से 5 वर्ष तक का कारावास एवं कम-से-कम 15,000 रुपए का अर्थदण्ड निहित है।
- हालाँकि, अगर पीड़ित महिला, अप्राप्तवय या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, तो सज़ा 2 से 10 वर्ष तक का कारावास एवं कम-से-कम 25,000 रुपए के अर्थदण्ड तक बढ़ जाता है।
- सामूहिक धर्म संपरिवर्तन के मामलों में सज़ा अधिक गंभीर है, जिसमें 3 से 10 वर्ष तक का कारावास एवं कम-से-कम 50,000 रुपए का अर्थदण्ड है।
- इस विधि के अधीन बार-बार अपराध करने पर संबंधित सज़ा से दोगुनी सज़ा का प्रावधान किया जा सकता है।
- अधिनियम की धारा 6 "केवल विधि विरुद्ध धर्मं संपरिवर्तन के लिये किये गए किसी भी विवाह" पर रोक लगाती है तथा यह निर्धारित करती है कि ऐसे विवाह "अमान्य" माने जाएंगे।
विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन से जुड़ा प्रमुख मामला क्या है?
- जोस पापाचेन एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2023 मामले में न्यायालय ने कहा कि केवल वह व्यक्ति, जिसका धर्म संपरिवर्तन किया गया है, उसके माता-पिता, भाई, बहन या कोई अन्य व्यक्ति जो उससे रक्तसंबंध से जुदा हो, विवाह या दत्तक ग्रहण करने के माध्यम से संबंधित है, ऐसा व्यक्ति धर्म संपरिवर्तन के आरोप से संबंधित प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, अन्य कोई नहीं।