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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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आपराधिक कानून

पुलिस अभिर क्षा में संस्वीकृति

 01-Jul-2024

नवदीप उर्फ ​​छोटू व अन्य बनाम हरियाणा राज्य

“पुलिस अभिरक्षा में अभियुक्त द्वारा की गई संस्वीकृति के आधार पर अपीलकर्त्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता”।

न्यायमूर्ति पंकज जैन

स्रोत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति पंकज जैन की पीठ ने कहा कि पुलिस अभिरक्षा में आरोपी द्वारा दी गई संस्वीकृति पर विश्वास कर अपीलकर्त्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

  • पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने नवदीप उर्फ ​​छोटू एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

नवदीप उर्फ ​​छोटू एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • 1 सितंबर 2020 को गश्त के दौरान पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि एक व्यक्ति के पास बिना नंबर प्लेट की स्विफ्ट डिज़ायर कार है, जो लूटी हुई है।
  • आरोपी नंबर 2 को सफेद रंग की स्विफ्ट डिज़ायर कार के साथ गिरफ्तार किया गया।
  • आरोपी नंबर 2 ने बताया कि उक्त वाहन सह-आरोपी नवदीप उर्फ ​​छोटू उसके पास छोड़ गया था।
  • अभियोजन पक्ष का यह भी मामला है कि आरोपी नवदीप- अपीलकर्त्ता नंबर 1 को गिरफ्तार किया गया, जिसने प्रकट किया कि स्विफ्ट डिज़ायर कार, लूटी हुई थी।
  • ट्रायल कोर्ट ने गुरप्रीत सिंह के बयान पर भरोसा किया, जिसने दावा किया था कि वह गुरुग्राम से अपने घर की ओर कार से जा रहा था।
  • जींद के शुगर मिल के पास 4 लड़कों ने बंदूक के बल पर उनकी कार लूट ली थी। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 395 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये 25 अगस्त 2020 को FIR नंबर 306 दर्ज की गई थी।
  • इस प्रकार ट्रायल कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्त्ता संख्या 2 सुधीर से संबंधित कार की बरामदगी सिद्ध करने में सक्षम रहा है, जिसे अपीलकर्त्ता संख्या 2 नवदीप उर्फ ​​छोटू ने उसे सौंप दिया था।
  • उपरोक्त के मद्देनज़र ट्रायल कोर्ट ने दोनों अपीलकर्त्ताओं को धारा 412 IPC के अधीन दण्डनीय अपराध का दोषी माना।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उल्लेखनीय है कि गुरप्रीत सिंह ने आरोप लगाया था कि बंदूक के बल पर चार युवकों ने उससे लूटपाट की थी।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 412 के अधीन अपराध दर्ज करने के लिये यह आवश्यक है कि डकैती का अपराध किया गया हो।
    • परिणामस्वरूप, डकैती के अपराध के प्रयोजन के लिये अपराध में शामिल व्यक्तियों की संख्या पाँच से अधिक होनी चाहिये।
  • न्यायालय ने कहा कि गुरप्रीत सिंह के बयान से यह स्पष्ट है कि कोई डकैती नहीं हुई थी, इसलिये अपीलकर्त्ता संख्या 2 सुधीर का अपराध धारा 412 IPC से बदलकर धारा 411 IPC कर दिया गया।
  • अपीलकर्त्ता नंबर 1 नवदीप उर्फ ​​छोटू के संबंध में, पुलिस अभिरक्षा में सह-अभियुक्त द्वारा किये गए प्रकटन के अतिरिक्त, नवदीप के विरुद्ध कोई अन्य साक्ष्य नहीं था।
  • जहाँ तक ​​अपीलकर्त्ता नंबर 1 नवदीप उर्फ ​​छोटू का संबंध है, वर्तमान मामले में दोनों आरोपियों द्वारा पुलिस अभिरक्षा में किये गए प्रकटन के अतिरिक्त, उसके विरुद्ध कोई अन्य साक्ष्य नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि पुलिस अभिरक्षा में दी गई संस्वीकृति के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, इसलिये अपीलकर्त्ता नवदीप उर्फ ​​छोटू को रिहा करने का आदेश दिया गया।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 23 के अधीन पुलिस अभिरक्षा में संस्वीकृति के संबंध में विधि क्या है?

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 23 (1) में प्रावधान है कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई कोई भी संस्वीकृति सिद्ध नहीं की जाएगी।
    • BSA की धारा 23(2) में प्रावधान है कि पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में किसी व्यक्ति द्वारा की गई कोई भी संस्वीकृति, जब तक कि वह मजिस्ट्रेट की तत्काल उपस्थिति में न की गई हो, उसके विरुद्ध सिद्ध नहीं की जाएगी।
    • परंतु जब किसी तथ्य के विषय में यह अभिसाक्ष्य दिया जाता है कि वह किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से, जो पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में है, प्राप्त सूचना के परिणामस्वरूप खोजा गया है, तब ऐसी सूचना में से उतनी जानकारी, चाहे वह संस्वीकृति हो या न हो, जो खोजे गए तथ्य से सुस्पष्टतः संबंधित है, सिद्ध की जा सकेगी।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि BSA की धारा 23 के अधीन प्रदान की गई शक्ति भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) के अधीन तीन अलग-अलग धाराओं (धारा 25, 26 और 27) में विस्तारित थी।
  • IEA की धारा 25 में वही प्रावधान है जो अब BSA की धारा 23(1) में निहित है।

इस मामले में पुलिस अभिरक्षा में संस्वीकृति के कौन-सी ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ उद्धृत की गईं हैं?

  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम देवमन उपाध्याय (1961):
    • IEA की धारा 25 के अधीन प्रतिबंध के प्रभावी होने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि जब व्यक्ति ने अपराध स्वीकार किया हो तो उस पर किसी अपराध का आरोप हो।
    • न्यायालय ने कहा कि विशेषण खंड "किसी अपराध का आरोपी", उस व्यक्ति का वर्णन करता है जिसके विरुद्ध दी गई संस्वीकृति द्वारा उसे अपराधी सिद्ध नहीं किया गया है और यह प्रतिबंध की प्रयोज्यता के लिये बयान देने के समय, उस व्यक्ति की स्थिति का पूर्वानुमान नहीं करता है।
  • अघनू नागेसिया बनाम बिहार राज्य (1966):
    • न्यायालय ने कहा कि "किसी भी अपराध का आरोपी" शब्द में वाद के दौरान किसी अपराध का आरोपी व्यक्ति शामिल है, चाहे वह अपराध स्वीकार करते समय आरोपी हो या नहीं।

आपराधिक कानून

IPC की धारा 302 का यांत्रिक परिवर्द्धन

 01-Jul-2024

राममिलन बुनकर बनाम  उत्तर प्रदेश राज्य तथा संबंधित अपील

“यदि हत्या के आरोप का समर्थन करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं तो दहेज़ हत्या एवं दहेज़ संबंधी अमानवीय व्यवहार के प्रावधानों के साथ-साथ IPC की धारा 302 का प्रयोग युक्तियुक्त नहीं होगा”।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राममिलन बुनकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा संबंधित अपील के मामले में माना है कि भारतीय दण्ड संहिता 1860 (IPC) की धारा 302 के अधीन हत्या के आरोप का यांत्रिक परिवर्द्धन, दहेज़ मृत्यु एवं दहेज़ से संबंधी अमानवीय व्यवहार के आरोपों वाले मामलों में युक्तियुक्त नहीं है।

राममिलन बुनकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा संबंधित अपील, मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, अभियुक्तों द्वारा छह आपराधिक अपीलें दायर की गईं, जहाँ उन्हें दहेज़ हत्या एवं दहेज़ से संबंधित अमानवीय व्यवहार के 6 अलग-अलग मामलों के अधीन दोषी ठहराया गया था।
  • छह मामलों में से एक में यह देखा गया कि अभियुक्त पर IPC के अंतर्गत हत्या एवं दहेज़ हत्या से संबंधित दोनों धाराओं के अधीन आरोप लगाए गए थे।
  • पीठ ने एक पैटर्न देखा जिसमें IPC की धारा 498 A एवं 304 B तथा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 (DV) की धारा 3 एवं 4 से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी, जिसमें न्यायालय ने किसी भी साक्ष्य का उल्लेख किये बिना IPC की धारा 302 के आरोप को वैकल्पिक आरोप के रूप में जोड़ा था।
  • न्यायालय ने पाया कि सभी मामलों में आरोपियों को न्यायालय ने IPC की धारा 498 A एवं 304 B और DV अधिनियम की धारा 3 एवं 4 में उल्लिखित आरोपों से मुक्त कर दिया था।
  • हालाँकि, अपीलकर्त्ताओं पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) की धारा 106 को ध्यान में रखते हुए IPC की धारा 302 एवं धारा 34 के अधीन आरोप लगाए गए थे तथा उन्हें ऐसे अपराधों के अधीन दोषी ठहराया गया है।
  • न्यायालय द्वारा न्यायनिर्णय किया जाने वाला विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या ऐसे मामलों में IPC की धारा 302 का आवेदन स्वीकार्य है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि वैकल्पिक आरोप के रूप में हत्या के आरोप का परिवर्द्धन उचित नहीं है, इसे मुख्य आरोप के रूप में माना जाना चाहिये।
  • इसके अलावा यह भी कहा गया कि IPC की धारा 302 केअधीन आरोप निर्धारण करते समय न्यायालयों को जाँच का ध्यान रखना चाहिये तथा यह निर्धारित करना चाहिये कि आरोप का समर्थन करने के लिये कोई प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य उपलब्ध है या नहीं।
  • उच्च न्यायालय ने पाया कि अधीनस्थ न्यायालय राजबीर उर्फ ​​राजू एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2010) मामले का हवाला दे रही थी तथा हत्या के आरोप का परिवर्द्धन कर रही थी, जबकि उच्चतम न्यायालय ने जसविंदर सैनी बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) (2013) मामले में इस नियम का स्पष्ट अपवाद निर्गत किया था।
  • पीठ ने IPC की धारा 302 एवं धारा 304 B के मध्य स्पष्ट अंतर को भी इंगित किया तथा कहा कि धारा 304 B को धारा 302 के संबंध में मामूली अपराध नहीं माना जा सकता है और इसके विपरीत धारा 304 B को धारा 302 के संबंध में मामूली अपराध नहीं माना जा सकता है।
  • पीठ ने कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट के पास IPC की धारा 302 के संबंध में कोई प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं है तो ट्रायल कोर्ट को केवल धारा 304 B के साथ विचारण करना चाहिये।
  • आगे कहा गया कि अभियोजन पक्ष द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने में असमर्थता को मना करने के लिये IEA की धारा 106 का उपयोग नहीं किया जा सकता।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि विवेचना अधिकारी विवेचना करते समय सतर्क रहें तथा केवल FIR पर निर्भर न रहें, बल्कि हर संभव तरीके से मामले की विवेचना करें।
  • इसमें आगे कहा गया कि हत्या के आरोपों को सिद्ध करने के लिये विभिन्न साक्षियों एवं साक्ष्यों को प्रस्तुत किया जाना चाहिये, जो उचित संदेह से परे हों।
  • इसलिये उच्च न्यायालय ने निर्णयों को अलग रखते हुए तथा अपील की अनुमति देते हुए सभी मामलों को पुनः विचारण के लिये ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया।

इस मामले से संबंधित प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?

हत्या की सज़ा:

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 103 हत्या की सज़ा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि:
    • हत्या के लिये सज़ा:
      जो कोई हत्या कारित करेगा उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास की सज़ा दी जाएगी तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
      • जब पाँच या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर कार्य करते हुए मूलवंश, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समरूप आधार पर हत्या कारित करता है, तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा साथ ही अर्थदण्ड भी देना होगा।
    • यह प्रावधान पहले भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत आता था।

दहेज़ हत्या:

  • BNS की धारा 80 में यह प्रावधानित है कि:
    • दहेज़ हत्या:
      • जहाँ किसी महिला की मृत्यु किसी जलने या शारीरिक चोट के कारण होती है या उसके विवाह के सात वर्ष के अंदर सामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त अन्य किसी कारण से होती है तथा यह दर्शाया जाता है कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उसके पति या उसके पति के किसी रिश्तेदार द्वारा दहेज़ की मांग के लिये या उसके संबंध में उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया गया था, ऐसी मृत्यु को "दहेज़ मृत्यु" कहा जाएगा तथा ऐसे पति या रिश्तेदार को उसकी मृत्यु का कारण माना जाएगा।
      • स्पष्टीकरण- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये, "दहेज़" का वही अर्थ होगा जो दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 में उल्लिखित है।
      • जो कोई दहेज़ हत्या कारित करता है, उसे कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी।
    • यह प्रावधान पहले भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304B के अंतर्गत आता था।
  • BNS की धारा 85 में प्रावधान है:
    • किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता कारित करना।
      • किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता कारित करना। जो कोई, किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी महिला के साथ क्रूरता कारित करता है, उसे तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा और वह अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
    • यह प्रावधान पहले IPC की धारा 498A के अंतर्गत आता था।

दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के प्रावधान:

  • धारा 3: दहेज़ लेने या देने पर अर्थदण्ड
    • यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् दहेज़ देगा या लेगा या देने या लेने के लिये दुष्प्रेरित करेगा, तो वह कम-से-कम पाँच वर्ष की अवधि के कारावास से तथा कम-से-कम पंद्रह हज़ार रुपए या ऐसे दहेज़ के मूल्य की राशि, जो भी अधिक हो, से दण्डनीय होगा।
    • बशर्ते कि न्यायालय, निर्णय में अभिलिखित किये जाने वाले पर्याप्त एवं विशेष कारणों से, पाँच वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड दे सकेगा।
    • उपधारा (1) का कोई भी प्रावधान निम्नलिखित पर या इनके संबंध में लागू नहीं होगा:
      • विवाह के समय दुल्हन को दिये जाने वाले उपहार (उसकी ओर से कोई मांग किये बिना)।
    • बशर्ते कि ऐसे उपहारों को इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार रखी गई सूची में दर्ज किया जाएगा।
      • विवाह के समय वर पक्ष को दिये जाने वाले उपहार (बिना किसी मांग के)।
    • बशर्ते कि ऐसे उपहारों को इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार रखी गई सूची में दर्ज किया जाएगा।
    • परंतु यह और कि जहाँ ऐसे उपहार दुल्हन द्वारा या उसकी ओर से या दुल्हन से संबंधित किसी व्यक्ति द्वारा दिये जाते हैं, वहाँ ऐसे उपहार रूढ़िगत प्रकृति के होते हैं तथा उनका मूल्य उस व्यक्ति की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए अत्यधिक नहीं होता है, जिसके द्वारा या जिसकी ओर से ऐसे उपहार दिये जाते हैं।
  • धारा 4: दहेज़ की मांग करने पर दण्ड:
    • यदि कोई व्यक्ति, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, दुल्हन या दूल्हे के माता-पिता या अन्य रिश्तेदारों या अभिभावक से, जैसा भी मामला हो, कोई दहेज़ की मांग करता है, तो उसे कम-से-कम छह महीने के कारावास की सज़ा दी जाएगी, लेकिन जो दो वर्ष तक बढ़ सकती है तथा अर्थदण्ड जो दस हज़ार रुपए तक हो सकता है।
    • बशर्ते कि न्यायालय, निर्णय में उल्लिखित किये जाने वाले पर्याप्त एवं विशेष कारणों से, छः महीने से कम अवधि के कारावास की सज़ा दे सकती है।

भारतीय न्याय सुरक्षा अधिनियम, 2023 (BNSS) की धारा 109:

धारा 109 तथ्यों को सिद्ध करने के दायित्व से संबंधित है, विशेष रूप से ज्ञान की परिधि के अंदर। इसमें कहा गया है कि-

  • अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, बलात उगाही, भूमि अनाधिकृत रूप से कब्ज़ा करना, भाड़े पर हत्या, आर्थिक अपराध, गंभीर परिणाम वाले साइबर अपराध, लोगों, दवाओं, अवैध वस्तुओं या सेवाओं एवं हथियारों की तस्करी, वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिये मानव तस्करी रैकेट सहित कोई भी जारी अविधिक गतिविधि, संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से, हिंसा, हिंसा की धमकी, धमकी, बलवा, भ्रष्टाचार या संबंधित गतिविधियों या अन्य अविधिक तरीकों का उपयोग करके प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, वित्तीय लाभ सहित भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिये व्यक्तियों के समूहों के प्रयास से, संगठित अपराध माना जाएगा।
  • स्पष्टीकरण: इस उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिये
    • ‘लाभ’ में संपत्ति, लाभ, सेवा, मनोरंजन, संपत्ति या सुविधाओं का उपयोग या उन तक पहुँच तथा किसी व्यक्ति के लिये लाभकारी कुछ भी शामिल है, चाहे उसका कोई अंतर्निहित या मूर्त मूल्य, उद्देश्य या विशेषता हो या न हो।
    • “संगठित अपराध सिंडिकेट” का अर्थ है एक आपराधिक संगठन या तीन या अधिक व्यक्तियों का समूह, जो अकेले या सामूहिक रूप से एक सिंडिकेट, गिरोह, माफिया या (अपराध) गिरोह के रूप में कार्य करते हैं, जो एक या अधिक गंभीर अपराधों में लिप्त हैं या सामूहिक अपराध, रैकेट एवं सिंडिकेटेड संगठित अपराध में शामिल हैं।
    • "अनवरत विधिविरुद्ध गतिविधि" से तात्पर्य है विधि द्वारा निषिद्ध गतिविधि, जो एक संज्ञेय अपराध है, जिसे किसी संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से अकेले या संयुक्त रूप से किया जाता है, जिसके संबंध में दस वर्ष की पूर्ववर्ती अवधि के अंदर सक्षम न्यायालय के समक्ष एक से अधिक आरोप-पत्र दाखिल किये गए हैं तथा उस न्यायालय ने ऐसे अपराध का संज्ञान लिया है।
    • "आर्थिक अपराधों" में आपराधिक विश्वासभंग, छल, मुद्रा एवं मूल्यवान प्रतिभूतियों की कूटकरण, वित्तीय घोटाले, पोंजी योजनाएँ चलाना, मौद्रिक लाभ प्राप्त करने के लिये बड़े पैमाने पर लोगों को धोखा देने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर विपणन धोखाधड़ी या बहु-स्तरीय विपणन योजनाएँ चलाना या किसी भी रूप में बड़े पैमाने पर संगठित सट्टेबाज़ी, धन शोधन और हवाला लेन-देन के अपराध शामिल हैं।
  • जो कोई भी संगठित अपराध करने का प्रयास करता है या कारित करता है, उसे:
    • यदि ऐसे अपराध के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा जो दस लाख रुपए से कम नहीं होगा।
    • किसी अन्य मामले में, कम-से-कम पाँच वर्ष के कारावास से दण्डित किया जाएगा, किंतु जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा तथा कम-से-कम पाँच लाख रुपए के अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जाएगा।
    • जो कोई संगठित अपराध के लिये षडयंत्र रचता है या उसे संगठित करता है, या संगठित अपराध की तैयारी से संबंधित किसी कृत्य में सहायता करता है, सुविधा प्रदान करता है या अन्यथा संलग्न होता है, वह कम से कम पाँच वर्ष के कारावास से, किंतु आजीवन कारावास तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा तथा कम-से-कम पाँच लाख रुपए के अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
    • कोई भी व्यक्ति जो किसी संगठित अपराध गिरोह का सदस्य है, उसे कम-से-कम पाँच वर्ष के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा तथा उसे कम-से-कम पाँच लाख रुपए का अर्थदण्ड भी देना होगा।
    • जो कोई, जानबूझकर किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसने संगठित अपराध का अपराध किया है या किसी संगठित अपराध सिंडिकेट के किसी सदस्य को शरण देगा या छिपाएगा या शरण देने या छिपाने का प्रयास करेगा या यह विश्वास करेगा कि उसके कृत्य से ऐसे अपराध को करने में प्रोत्साहन मिलेगा या सहायता मिलेगी, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी, दण्डनीय होगा और अर्थदण्ड से भी, जो पाँच लाख रुपए से कम नहीं होगा, दण्डनीय होगा।
    • परंतु यह उपधारा ऐसे किसी मामले में लागू नहीं होगी जिसमें अपराधी के पति या पत्नी द्वारा अपराध को आश्रय दिया गया हो या छिपाया गया हो।
    • जो कोई भी संगठित अपराध से प्राप्त या संगठित अपराध की आय से प्राप्त या संगठित अपराध सिंडिकेट के धन से अर्जित कोई संपत्ति रखता है, उसे कम-से-कम तीन वर्ष के कारावास से, किंतु आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा, दण्डित किया जाएगा तथा कम-से-कम दो लाख रुपए के अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जाएगा।
    • यदि किसी संगठित अपराध गिरोह के सदस्य की ओर से किसी व्यक्ति के पास ऐसी चल या अचल संपत्ति है, जिसका वह संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकता, तो उसे कम-से-कम तीन वर्ष के कारावास से, किंतु जो दस वर्ष के कारावास तक हो सकेगा, दण्ड दिया जाएगा तथा वह कम-से-कम एक लाख रुपए के अर्थदण्ड से भी दण्डित किया जाएगा तथा ऐसी संपत्ति कुर्क एवं ज़ब्त भी की जा सकेगी।
    • स्पष्टीकरण: इस धारा के प्रयोजनों के लिये, "किसी संगठित अपराध की आय" से सभी प्रकार की संपत्तियाँ अभिप्रेत हैं, जो किसी संगठित अपराध के किये जाने से प्राप्त हुई हैं या किसी संगठित अपराध से प्राप्त निधियों के माध्यम से अर्जित की गई हैं तथा इसमें नकदी भी शामिल है, भले ही ऐसी आय किसी भी व्यक्ति के नाम पर हो या जिसके कब्ज़े में पाई गई हो।
    • यह अनुभाग पहले IEA की धारा 106 के अंतर्गत आता था।

महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या हैं?

  • राजबीर उर्फ ​​राजू व अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2010):
    • इस मामले में उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालयों को आदेश दिया था कि वे दहेज़ हत्या से संबंधित मामलों में सामान्यतः भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 का परिवर्द्धन करें, ताकि ऐसे जघन्य मामलों में मृत्युदण्ड की सज़ा दी जा सके।
  • जसविंदर सैनी बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) (2013):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि दहेज़ हत्या के मामलों में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन आरोप तभी लगाया जाएगा जब साक्ष्य इसकी अनुमति दे।
  • विजय पाल सिंह एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य (2014):
    • इस मामले में न्यायालय ने दास हत्याकांड से संबंधित अपराध के लिये अभियुक्त को उत्तरदायी ठहराया क्योंकि इसे सिद्ध करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत थे।
  • बलवीर सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य (2023):
    • इस मामले में यह माना गया कि पति एवं उसके रिश्तेदारों को दोषी ठहराने के लिये पूर्ण विचारण होनी चाहिये तथा न्यायालय इसके लिये धारा 106 IEA के प्रावधानों की सहायता नहीं ले सकती।