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आपराधिक कानून
भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण
02-Jul-2024
स्वप्रेरणा: विषय: “सार्वजनिक स्वास्थ्य – खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण से वर्तमान की रक्षा करें तथा भविष्य को सुरक्षित रखें” “लोगों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संकटपूर्ण एवं हानिकारक खाद्य पदार्थों से सुरक्षा प्रदान की गई है तथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के अंतर्गत कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह नागरिकों के ऐसे अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे”। न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्वास्थ्य- खाद्य अपमिश्रण से वर्तमान की रक्षा एवं भविष्य की सुरक्षा के मामले में स्वतः संज्ञान लिया, जहाँ राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न संबंधित प्राधिकरणों जैसे गृह मंत्रालय, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, FSSAI, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाएं एवं खाद्य अनुसंधान संस्थान और अन्य संबंधित कार्यालयों को दिशा-निर्देश जारी किये गए।
सार्वजनिक स्वास्थ्य– खाद्य अपमिश्रण से वर्तमान की रक्षा एवं भविष्य की सुरक्षा मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण तेज़ी से बढ़ रही है जो खतरनाक है तथा संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने बताया कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा किये गए सर्वेक्षण में टूथपेस्ट जैसी वस्तुओं में भी अपमिश्रण पाई गई है।
- इसी प्रकार की टिप्पणी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में भी की गई।
- इस मामले में विभिन्न खाद्य प्राधिकरणों एवं संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण की समस्या को रोकने के लिये इस मामले में निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये:
- खाद्य सुरक्षा की जाँच और उस पर काम करने के लिये एक राज्य स्तरीय समिति गठित की जाएगी, जिसकी अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे।
- जोखिम वाले क्षेत्रों में जहाँ खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण की अधिक संभावना है, वहाँ राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (SFSA) द्वारा खाद्य पदार्थों का नियमित नमूना लिया जाएगा।
- शिकायत तंत्र बनाने के लिये राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा एक वेबसाइट बनाई जाएगी। वेबसाइट पर खाद्य सुरक्षा अधिकारियों का टोल-फ्री नंबर एवं संपर्क नंबर दिया जाएगा।
- SFSA यह सुनिश्चित करेगा कि परीक्षण प्रयोगशालाएँ मानव एवं प्रौद्योगिकी से सुसज्जित हों।
- राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा खाद्य प्राधिकरणों और सुरक्षा अधिकारियों पर जाँच की जाएगी ताकि उनका अच्छा अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
- राज्य सरकार खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण की प्रथा को कम करने के लिये लोगों के मध्य कार्यशालाओं एवं स्कूल कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता फैलाएगी।
भारत में खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण पर दण्डात्मक विधियाँ क्या है?
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 274 के अधीन विक्रय के लिये खाद्य या पेय में अपमिश्रण करने पर दण्ड का प्रावधान है:
- जो कोई भी खाद्य या पेय पदार्थ में अपमिश्रण कारित करता है, जिससे वह पदार्थ खाद्य या पेय के रूप में हानिकारक हो जाता है, उस पदार्थ को खाद्य या पेय के रूप में विक्रय करने का आशय रखता है, या यह जानते हुए कि उसे खाद्य या पेय के रूप में विक्रय किया जाएगा, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या अर्थदण्ड जो पाँच हज़ार रुपए तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से।
- इसे पहले भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 272 के अधीन अधिनियमित किया गया था।
खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- पार्ले बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम ठाकोर कचाराजी (1987): इस मामले में यह माना गया कि यद्यपि भारतीय दण्ड संहिता एवं खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के अधीन अपमिश्रण के लिये दण्ड प्रावधानित किये गए हैं, लेकिन इन प्रावधानों के अधीन किसी एक व्यक्ति को दो बार दण्डित नहीं किया जाना चाहिये।
आपराधिक कानून
यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के अंतर्गत अभियोजन
02-Jul-2024
देव नारायण यादव उर्फ़ भुल्ला यादव बनाम बिहार राज्य “जब यह सिद्ध नहीं हो पाता कि पीड़िता बच्ची थी, तो आरोपी को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के अधीन उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता”। न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार एवं न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार |
स्रोत: पटना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार एवं न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की पीठ ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पाॅक्सो) की धारा 29 एवं धारा 30 के अधीन अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब आधारभूत तथ्य सिद्ध हो गए हों।
- पटना उच्च न्यायालय ने देव नारायण यादव उर्फ भुल्ला यादव बनाम बिहार राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
देव नारायण यादव उर्फ भुल्ला यादव बनाम बिहार राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- पीड़िता/सूचनाप्रदाता की लिखित सूचना पर तीन आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376 के साथ पठित धारा 34 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पाॅक्सो) की धारा 3, 4 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये FIR दर्ज की गई।
- अभियोजन का कथन यह है कि पीड़िता की उम्र 13-14 वर्ष है।
- अभियोजन पक्ष का कथन है कि जब पीड़िता कुजरी हटिया से घर वापस आ रही थी, तो आरोपियों ने उसके साथ दुष्कर्म किया।
- उसने अपनी माँ को इसकी सूचना दी, जिन्होंने उसे पिता की प्रतीक्षा करने की सलाह दी।
- इस दौरान वह गर्भवती हो गई।
- यह समाचार सुनकर उसके पिता आए तथा पंचायत का आयोजन किया, लेकिन किसी भी आरोपी ने पंचायत के आदेश का पालन नहीं किया।
- इसलिये, आरोपियों के विरुद्ध FIR दर्ज की गई।
- FIR दर्ज होने के बाद विवेचना प्रारंभ हुई तथा आरोपी देव नारायण उर्फ भुल्ला यादव के विरुद्ध IPC की धारा 376 के साथ पठित धारा 34 और पाॅक्सो एक्ट की धारा 3, एवं 4 के अधीन आरोप-पत्र दाखिल किया गया।
- ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषसिद्धि देते हुए निर्णय दिया।
- हालाँकि, ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की उम्र के विषय में कोई निष्कर्ष नहीं दिया।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने सबसे पहले पाॅक्सो अधिनियम की धारा 29 एवं धारा 30 पर चर्चा की तथा कहा कि इन प्रावधानों के अधीन प्रदान की गई धारणाएँ अनिवार्य प्रकृति की हैं, लेकिन खंड योग्य हैं।
- न्यायालय ने कहा कि धारा 29 एवं धारा 30 के अधीन अभियुक्त के विरुद्ध अनुमान करने से पहले अभियोजन पक्ष को प्रासंगिक एवं विधिक रूप से स्वीकार्य साक्ष्य द्वारा सभी उचित संदेहों से परे मूलभूत तथ्यों को सिद्ध करना आवश्यक है तथा उसके बाद ही सिद्ध करने का भार अभियुक्त पर होगा कि वह संभाव्यता के प्रबलता की कसौटी पर अनुमानों का खंडन करे।
- न्यायालय ने माना कि पाॅक्सो अधिनियम की धारा 29 और 30 के तहत अनुमान लगाने के लिये यहाँ साबित किया जाने वाला आधारभूत तथ्य यह है कि पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी।
- न्यायालय ने माना कि पाॅक्सो अधिनियम की धारा 29 एवं 30 के अधीन अनुमान करने के लिये यहाँ सिद्ध होने वाला मूल तथ्य यह है कि पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी।
- इस प्रकार, पहला एवं सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या अभियोजन पक्ष यह सिद्ध करने में सफल हो रहा है कि कथित पीड़िता, एक अल्पवय बच्ची है।
- यह पाया गया कि पीड़िता की आयु के संबंध में दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने से अभियोजन पक्ष के विरुद्ध पीड़िता की आयु के संबंध में प्रतिकूल निष्कर्ष निकलता है।
- यह ध्यान देने योग्य है कि इस मामले में पीड़िता की आयु के विषय में चिकित्सकीय साक्ष्य उपलब्ध थे, जिसके अनुसार पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम है।
- विधि की यह स्थापित स्थिति है कि किसी व्यक्ति की आयु के विषय में चिकित्सकीय राय निर्णायक साक्ष्य नहीं है, क्योंकि चिकित्सा परीक्षण के आधार पर आयु का सटीक आकलन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उच्च एवं निम्न दोनों पक्षों में त्रुटियों की संभावना सदैव बनी रहती है।
- इस प्रकार, चिकित्सकीय राय को सदैव परिस्थितियों के साथ विचार किया जाना चाहिये।
- वर्तमान तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने पाया कि पिता की गवाही अभियोजन पक्ष के इस दावे की पूरी तरह पुष्टि नहीं करती कि पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम है।
- इसलिये, न्यायालय ने आरोपी को पाॅक्सो अधिनियम के अधीन मामले से दोषमुक्ति दे दिया।
- न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष के साक्षियों के बयानों में केवल मामूली विसंगतियाँ थी जो अभियोजन पक्ष के मामले के मूल को नहीं छूती हैं।
- यह देखा गया कि हमारे समाज में किसी भी लड़की का कोई भी माता-पिता अपनी बेटी की पवित्रता के संबंध में उसकी प्रतिष्ठा को हानि नहीं पहुँचा सकता है।
- इस प्रकार, न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के इस दावे को स्वीकार नहीं किया कि मामला मिथ्या है तथा धन उगाही के लिये दायर किया गया है।
- अपीलकर्त्ता को IPC की धारा 376 (1) के अधीन दण्डनीय अपराध का दोषी पाया गया तथा इसलिये वह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 357 (3) के अधीन क्षतिपूर्ति देने के लिये उत्तरदायी है।
POCSO की धारा 29 एवं धारा 30 के अधीन अनुमान के संबंध में विधिक प्रवाधान क्या हैं?
- पाॅक्सो अधिनियम की धारा 29 में यह प्रावधान है कि जहाँ किसी व्यक्ति पर इस अधिनियम की धारा 3, 5, 7 एवं 9 के अधीन कोई अपराध करने, दुष्प्रेरित करने या प्रयास करने के लिये अभियोजित किया जाता है, तो विशेष न्यायालय यह मान लेगा कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है, दुष्प्रेरित किया है या प्रयास किया है, जैसा भी मामला हो, जब तक कि इसके विपरीत सिद्ध न हो जाए।
- पाॅक्सो अधिनियम की धारा 30 (1) में यह प्रावधान है कि इस अधिनियम के अधीन किसी भी अपराध के लिये अभियोजन में, जिसके लिये अभियुक्त की ओर से दोषपूर्ण मानसिक स्थिति की आवश्यकता होती है, विशेष न्यायालय ऐसी मानसिक स्थिति के अस्तित्त्व की उपधारणा करेगा, लेकिन अभियुक्त के लिये यह सिद्ध करना बचाव होगा कि उस अभियोजन में अपराध के रूप में आरोपित कृत्य के संबंध में उसकी ऐसी कोई मानसिक स्थिति नहीं थी।
- धारा 30(2) में यह प्रावधान है कि इस धारा के प्रयोजनों के लिये, कोई तथ्य तभी सिद्ध कहा जाएगा जब विशेष न्यायालय को विश्वास हो कि वह उचित संदेह से परे विद्यमान है, न कि केवल तब जब उसका अस्तित्त्व संभाव्यता की प्रबलता से स्थापित हो।
- स्पष्टीकरण- इस धारा में, "दोषपूर्ण मानसिक स्थिति" में आशय, उद्देश्य, तथ्य का ज्ञान तथा तथ्य में विश्वास या विश्वास करने का कारण सम्मिलित है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 63 के अधीन बलात्संग के संबंध में विधियाँ क्या है?
- BNS की धारा 63 में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को “बलात्संग” कारित करने वाला कहा जाएगा यदि वह-
- किसी भी सीमा तक अपने लिंग को किसी महिला की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिये विवश करता है, या
- किसी भी सीमा तक किसी भी वस्तु या शरीर के किसी भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिये विवश करता है, या
- किसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से को इस तरह से छेड़ता है कि योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या ऐसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में प्रवेश हो जाए या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिये विवश करता है, या
- किसी महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुँह लगाता है या उसे अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिये विवश करता है, निम्नलिखित सात विवरणों में से किसी भी परिस्थिति में: -
- उसकी अनुमति के विरुद्ध।
- उसकी सहमति के विरुद्ध।
- उसकी सहमति से, जब उसकी सहमति उसे या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या चोट के भय में डालकर प्राप्त की गई हो।
- उसकी सहमति से, जब पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है तथा उसकी सहमति इसलिये दी गई है क्योंकि वह मानती है कि वह कोई दूसरा पुरुष है जिसके साथ वह विधिपूर्वक विवाहित है या होने का विश्वास करती है।
- उसकी सहमति से, जब ऐसी सहमति देते समय, मानसिक बीमारी या नशे के कारण या उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य के माध्यम से किसी नशीले या अस्वास्थ्यकर पदार्थ के सेवन के कारण, वह उस पदार्थ की प्रकृति एवं परिणामों को समझने में असमर्थ हो, जिसके लिये वह सहमति दे रही है।
- जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की हो, तो उसकी सहमति से या बिना सहमति के।
- जब वह सहमति व्यक्त करने में असमर्थ हो।
स्पष्टीकरण 1—इस धारा के प्रयोजनों के लिये, “योनि” में लाबिया मेजोरा भी शामिल होगा।
स्पष्टीकरण 2—सहमति का अर्थ है एक सुस्पष्ट स्वैच्छिक करार जब महिला शब्दों, संकेत या मौखिक या गैर-मौखिक संचार के किसी भी रूप से, विशिष्ट यौन क्रिया में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करती है: - बशर्ते कि कोई महिला जो प्रवेश के कार्य का शारीरिक रूप से प्रतिरोध नहीं करती है, उसे केवल इस तथ्य के आधार पर यौन क्रियाकलाप के लिये सहमति देने वाली नहीं माना जाएगा।
- अपवाद 1–– कोई चिकित्सीय प्रक्रिया या हस्तक्षेप बलात्संग नहीं माना जाएगा। अपवाद 2–– किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन क्रिया, जिसकी पत्नी अठारह वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्संग नहीं है।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376 में बलात्संग के अपराध का प्रावधान है।
इस मामले में कौन-से महत्त्वपूर्ण मामले उद्धृत किये गए हैं?
- बाबू बनाम केरल राज्य, (2010):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि-
- हर आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसका अपराध सिद्ध न हो जाए।
- हालाँकि, यह वैधानिक अपवादों के अधीन है।
- अभियुक्त के विरुद्ध कोई अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब अभियोजन पक्ष द्वारा कुछ आधारभूत तथ्य स्थापित किये गए हों।
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि-
- कस्टम्स कलेक्टर बनाम डी. भूरमल (1972):
- न्यायालय ने यहाँ इस बात पर चर्चा की कि "उचित संदेह से परे प्रमाण" का क्या अर्थ है।
- न्यायालय ने कहा कि केवल इस सुसंगत तथ्य की आवश्यकता है कि जिससे संभाव्यता की ऐसी डिग्री स्थापित की जाए कि एक विवेकशील व्यक्ति, इसके आधार पर, मुद्दे में तथ्य के अस्तित्त्व पर विश्वास कर सके।
- इस प्रकार, विधिक प्रमाण आवश्यक रूप से पूर्ण प्रमाण नहीं है, अक्सर यह मामले की संभावनाओं के विषय में एक विवेकशील व्यक्ति के अनुमान से अधिक कुछ नहीं होता है।
- जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विधि से संघर्षरत किशोर की आयु निर्धारित करने के लिये प्रदान की गई प्रक्रिया को अपराध के पीड़ित की आयु निर्धारित करने के लिये भी अपनाया जाना चाहिये।
- पी. युवाप्रकाश बनाम राज्य (2023):
- उच्चतम न्यायालय ने दोहराया कि किसी अपराध के पीडिता की आयु निर्धारित करने की प्रक्रिया वही है जो प्रासंगिक समय में प्रचलित किशोर न्याय अधिनियम में विधि से संघर्षरत बालक की आयु निर्धारित करने के लिये प्रदान की गई है।
- मुकर्रब बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति की आयु के संबंध में चिकित्सा साक्ष्य बहुत उपयोगी मार्गदर्शक कारक होते हुए भी निर्णायक नहीं है तथा इस पर अन्य परिस्थितियों के साथ विचार किया जाना चाहिये।
आपराधिक कानून
धर्म संपरिवर्तन
02-Jul-2024
कैलाश बनाम यूपी राज्य “यदि धर्म संपरिवर्तन की प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रही तो देश की बहुसंख्यक जनसंख्या, अल्पसंख्यक बन सकती है”। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल |
स्रोत: इलाहबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने चिंता व्यक्त की कि यदि धर्म संपरिवर्तन की प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रही तो देश की बहुसंख्यक जनसंख्या, अल्पसंख्यक बन सकती है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कैलाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में यह टिप्पणी की।
कैलाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- आवेदक कैलाश ने IPC की धारा 365 और उत्तर प्रदेश विधिविरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) के अधीन आपराधिक मामले में ज़मानत मांगी थी।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के अनुसार, सूचनाप्रदाता रामकली प्रजापति के भाई रामफल को कैलाश, हमीरपुर से दिल्ली एक सामाजिक समारोह में शामिल होने के लिये ले गया था।
- आवेदक ने वादा किया कि मानसिक बीमारी से पीड़ित रामफल का उपचार कराया जाएगा और एक सप्ताह के भीतर उसे उसके गाँव वापस भेज दिया जाएगा।
- रामफल एक सप्ताह बाद भी वापस नहीं लौटा और सूचनाप्रदाता को आवेदक से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।
- प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि गाँव के कई लोगों को सामाजिक समारोह में ले जाया गया और उनका ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया गया।
- आवेदक के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि रामफल ने ईसाई धर्म स्वीकार नहीं किया था, बल्कि वह अन्य लोगों के साथ ईसाई धर्म के एक समारोह में शामिल हुआ था।
- राज्य ने तर्क दिया कि इस तरह के समारोहों का प्रयोग, धन के बदले बड़ी संख्या में लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिये किया जा रहा है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, परंतु एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्म संपरिवर्तन की अनुमति नहीं देता है।
- न्यायालय ने आवेदक के विरुद्ध गंभीर आरोप पाए, जिनमें लोगों को नई दिल्ली में धार्मिक सभाओं में शामिल होने के लिये ले जाना भी शामिल था, जहाँ उनका ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया जा रहा था।
- न्यायालय ने कहा कि इस तरह का धर्म संपरिवर्तन संविधान के अनुच्छेद 25 के विरुद्ध है।
- न्यायालय ने कहा कि पूरे उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा अन्य आर्थिक रूप से विपन्न व्यक्तियों का ईसाई धर्म में अवैध धर्म संपरिवर्तन तेज़ी से हो रहा है।
- इन विचारों के आधार पर, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदक ज़मानत का अधिकारी नहीं है।
भारत और विश्व स्तर पर धर्म संपरिवर्तन विधियों की स्थिति क्या है?
- परिचय:
- भारत में धर्मांतरण एक अत्यधिक चर्चा का विषय बन गया है तथा कई राज्यों ने कुछ प्रकार के धर्मांतरण को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने के लिये विधियाँ बनाई हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धर्म को मानने, प्रचार करने और आचरण करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित की गई है तथा सभी धार्मिक वर्गों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के अधीन, धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति दी गई है।
- हालाँकि किसी भी व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वासों को थोपने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा और परिणामस्वरूप, किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये बाध्य नहीं किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानक:
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि, जिसमें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) और नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICCPR) शामिल हैं, जो धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हैं। इसमें सम्मिलित हैं:
- अपना धर्म या विश्वास परिवर्तित करने का अधिकार।
- दूसरों को स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन के लिये राजी करने का अधिकार।
- बलात धर्म परिवर्तन के विरुद्ध संरक्षण।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने पुष्टि की है कि किसी की अपनी पसंद का धर्म अपनाने या अपनाने की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि, जिसमें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) और नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICCPR) शामिल हैं, जो धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हैं। इसमें सम्मिलित हैं:
- भारत में राज्य स्तरीय धर्मांतरण विरोधी विधियाँ:
- अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978
- बलपूर्वक, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा धर्म संपरिवर्तन पर प्रतिबंध लगाता है।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये प्राधिकारियों को अधिसूचना देना आवश्यक है।
- छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1968
- बलपूर्वक, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है।
- धर्म परिवर्तन के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट को अधिसूचना देना आवश्यक है।
- गुजरात: गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 (2021 में संशोधित)
- बलपूर्वक धर्मांतरण, प्रलोभन, धोखाधड़ी या विवाह द्वारा धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।
- इसमें भार-स्थानांतरण प्रावधान शामिल हैं।
- रूपांतरण के लिये पूर्व अनुमति आवश्यक है।
- हरियाणा: हरियाणा विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2022
- गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है।
- इसमें विवाह के लिये धर्म परिवर्तन के विरुद्ध प्रावधान शामिल हैं।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये 30 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2019
- गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाता है।
- इसमें भार-स्थानांतरण प्रावधान शामिल हैं।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये 30 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- झारखंड: झारखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2017
- बलपूर्वक, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये प्राधिकारियों को अधिसूचना देना आवश्यक है।
- कर्नाटक: कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2022
- गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से गैरकानूनी धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है।
- इसमें भार-स्थानांतरण प्रावधान शामिल हैं।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये 30 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021
- गलत बयानी, प्रलोभन, बल या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
- इसमें भार-स्थानांतरण प्रावधान शामिल हैं।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये 60 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- ओडिशा: ओडिशा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1967
- बलपूर्वक, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये प्राधिकारियों को अधिसूचना देना आवश्यक है।
- राजस्थान: राजस्थान धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2006 (नियमों के अभाव के कारण लागू नहीं)
- बलपूर्वक, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये प्राधिकारियों को अधिसूचना देना आवश्यक है।
- उत्तराखंड: उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018
- गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या विवाह द्वारा धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
- इसमें भार-स्थानांतरण प्रावधान शामिल हैं।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये एक महीने पूर्व घोषणा की आवश्यकता होती है।
- उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश विधिविरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021
- गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है।
- इसमें विवाह के लिये धर्म परिवर्तन के विरुद्ध प्रावधान शामिल हैं।
- धर्म संपरिवर्तन के लिये 60 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978
- धर्म संपरिवर्तन विधियों पर वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
- पकिस्तान: पाकिस्तान दण्ड संहिता नाबालिगों के बलात् धर्म संपरिवर्तन पर रोक लगाती है।
- नेपाल: संविधान धर्म संपरिवर्तन पर प्रतिबंध लगाता है।
- म्याँमार: धर्म संपरिवर्तन विधि के अधीन, धर्म संपरिवर्तन के लिये सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
- श्री लंका: धर्म संपरिवर्तन विरोधी विधान पर विचार किया गया है, परंतु उसे लागू नहीं किया गया है।
- रूस: मिशनरी गतिविधियों और धर्म संपरिवर्तन को प्रतिबंधित करने वाली विधियाँ उपलब्ध हैं।
- मध्य-पूर्व के देश: इस्लाम से धर्म संपरिवर्तन या मुस्लिम बनने पर रोक लगाने वाले विधान लागू हैं।