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आपराधिक कानून

कॉर्पोरेट निकायों/फर्मों पर समन के तामील की प्रक्रिया

 24-Jul-2024

मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

“कॉर्पोरेट निकायों और फर्मों पर समन के तामील के संबंध में CrPC की धारा 63 तथा BNSS की धारा 65 के बीच अंतर ”

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 65 द्वारा किये गए परिवर्तन पर प्रकाश डाला, जो कंपनियों को समन तामील करने के तरीकों का विस्तार करता है।

मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स और कंपनी के एक भागीदार ने परक्राम्य लिखत अधिनियम तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 के अधीन उनके विरुद्ध आरंभ की गई कार्यवाही को चुनौती देते हुए याचिका दायर की।
  • यह मामला मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स की ओर से जारी किये गए चेक से संबंधित है, जो बाउंस हो गया।
  • फर्म के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई, परंतु फर्म के बजाय व्यक्तिगत रूप से भागीदार को समन जारी किया गया।
  • मुख्य मुद्दा यह है कि जब कोई चेक किसी पंजीकृत फर्म द्वारा जारी किया जाता है और वह बाउंस हो जाता है, तो क्या उस फर्म को या परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत दर्ज शिकायत में उसके साझेदार को समन जारी किया जाना चाहिये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि शिकायत के अनुसार, केवल मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स फर्म को उसके भागीदार के माध्यम से आरोपी बनाया गया था तथा चेक बाउंस होने के बाद डिमांड नोटिस भी फर्म को भेजा गया था।
  • न्यायालय ने कहा कि पंजीकृत फर्म की ओर से जारी चेक के बाउंस होने पर प्राथमिक दायित्व फर्म का होता है तथा उसका भागीदार भी प्रतिरूपी रूप से उत्तरदायी हो सकता है, परंतु वर्तमान मामले में फर्म के साथ भागीदार को भी आरोपी नहीं बनाया गया।
  • न्यायालय ने माना कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 142 या दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 190(1)(A) के अधीन न्यायालय किसी अपराध के विरुद्ध संज्ञान लेता है, अपराधी के विरुद्ध नहीं। हालाँकि अपराधी को उन आरोपों के विषय में सूचित करने के लिये समन जारी किया जाता है जिनका उसे उत्तर देना होता है।
  • न्यायालय ने परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 63 तथा धारा 305 को संयुक्त रूप से पढ़ने के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला कि जब भी किसी कंपनी पर परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत आरोप लगाया जाता है, तो कंपनी के नाम से समन जारी किया जाना चाहिये तथा कंपनी के प्रधान अधिकारी या स्थानीय प्रबंधक को इसकी तामील कर, समन की तामील की जा सकती है।
  • न्यायालय ने इरीडियम इंडिया टेलीकॉम बनाम मोटोरोला इनकॉरपोरेटेड एवं अन्य (2011) में उच्चतम न्यायालय के निर्णय सहित कई उदाहरणों का विवरण दिया, जिसमें स्थापित किया गया था कि किसी निगम को आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 63 किसी कंपनी को उसके प्रधान अधिकारी के माध्यम से समन जारी करने की अनुमति देती है और समन प्राप्त होने के बाद, कंपनी को अपनी ओर से उपस्थित होने के लिये किसी प्रतिनिधि को नियुक्त करना होता है।
  • न्यायालय ने कहा कि नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 63 के अनुरूप प्रावधान धारा 65 है, जो यह भी निर्धारित करती है कि किसी कंपनी या निगम के समन की तामील कंपनी के प्रबंधक, सचिव और अन्य अधिकारियों के अतिरिक्त निदेशक के माध्यम से भी की जा सकती है।
  • न्यायालय ने कहा कि यदि किसी कंपनी को शिकायत में आरोपी बनाया जाता है, तो कंपनी को समन उसके प्रधान अधिकारी या स्थानीय प्रबंधक के माध्यम से जारी किया जाना चाहिये, जैसा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 63 में उल्लेख किया गया है।
  • न्यायालय ने कहा कि कंपनी को समन की तामील, परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 144 के अंतर्गत प्रदत्त विधि के अनुसार की जा सकती है, जो न्यायालय द्वारा अनुमोदित स्पीड पोस्ट या कूरियर सेवा द्वारा तामील की अनुमति देती है।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामले में, हालाँकि फर्म (मेसर्स पार्थ टेक्सटाइल्स) को आरोपी के रूप में नामित किया गया था, परंतु उसके भागीदार को व्यक्तिगत रूप से अनुचित तरीके से समन जारी किया गया था, जो फर्म के लिये उचित सेवा प्रकार नहीं है।
  • न्यायालय ने पाया कि इस मामले में, यद्यपि फर्म को आरोपी बनाया गया था, फिर भी भागीदार को व्यक्तिगत रूप से अनुचित तरीके से समन जारी किया गया था।
  • न्यायालय ने साझेदार (आवेदक संख्या 2) के विरुद्ध जारी समन आदेश और गैर-ज़मानती वारंट को रद्द कर दिया।
  • न्यायालय ने निचले न्यायालय को एक महीने के भीतर उचित प्रक्रिया के अनुसार नया समन आदेश जारी करने का निर्देश दिया।
  • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि नए विधान (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) लागू हो गए हैं, फिर भी इस लंबित मामले को पुरानी दण्ड प्रक्रिया संहिता प्रावधानों के अधीन आगे बढ़ाया जाना चाहिये।

CrPC के अधीन समन की तामील:

  • परिचय:
    • CrPC की धारा 63 कॉर्पोरेट निकायों और सोसायटियों पर समन की तामील से संबंधित है।
    • किसी निगम पर समन की तामील निगम के सचिव, स्थानीय प्रबंधक या अन्य प्रमुख अधिकारी को तामील करके की जा सकती है।
    • वैकल्पिक रूप से, यह सेवा भारत में निगम के मुख्य अधिकारी को संबोधित पंजीकृत डाक द्वारा भेजे गए पत्र द्वारा भी प्रदान की जा सकती है।
    • पंजीकृत डाक द्वारा भेजे जाने पर, समन की तामील उस समय प्रभावी मानी जाएगी जब पत्र सामान्य डाक द्वारा पहुँचता है।
    • इस धारा में "निगम" शब्द का अर्थ निगमित कंपनी या अन्य निगमित निकाय है।

BNSS के अधीन समन की तामील:

  • परिचय:
    • समन एक विधिक दस्तावेज़ है जिसे न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है और किसी व्यक्ति को उसके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया जाता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन, सामान्यतः अभियुक्तों या साक्षियों को न्यायालय की कार्यवाही में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये समन जारी किया जाता है।
      • BNSS की धारा 63 से 71 में समन के संबंध में प्रावधान निर्धारित किये गए हैं।
      • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में धारा 61 से 69 के अंतर्गत समन के संबंध में प्रावधान निर्धारित किया गया था।
      • समन जारी करने का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों को विधिक कार्यवाही के विषय में सूचित करना और उन्हें अपना मामला या साक्षी प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करना है।
  • धारा 65:
    • धारा 65 कॉर्पोरेट निकायों, फर्मों और सोसाइटियों पर समन की तामील से संबंधित है।
    • किसी कंपनी या निगम पर समन की तामील, कंपनी या निगम के निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को तामील करके की जा सकती है।
    • वैकल्पिक रूप से, यह सेवा भारत में कंपनी या निगम के निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को संबोधित पंजीकृत डाक द्वारा भेजे गए पत्र द्वारा की जा सकती है।
    • पंजीकृत डाक द्वारा भेजे जाने पर, तामील उस समय प्रभावी मानी जाएगी जब पत्र सामान्य डाक द्वारा पहुँचता है।
    • इस धारा के प्रयोजनों के लिये "कंपनी" का तात्पर्य एक निगमित निकाय से है।
    • किसी फर्म या व्यक्तियों के संघ पर समन की तामील, उस फर्म या संघ के किसी भागीदार पर तामील करके की जा सकती है।
    • फर्म या संघ के लिये, ऐसे भागीदार को संबोधित पंजीकृत डाक द्वारा भेजे गए पत्र द्वारा भी समन तामील हो सकता है।
    • जब भागीदार को पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाता है, तो उस समय सेवा प्रभावी मानी जाएगी जब पत्र सामान्य डाक द्वारा पहुँचता है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 65 और दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 63 के बीच अंतर:

  • समाविष्ट की गई संस्थाओं का विस्तार :
    • BNSS: इसमें स्पष्ट रूप से कंपनियाँ, निगम, फर्म और व्यक्तियों के अन्य संघ शामिल हैं।
    • CrPC: इसमें निगम शामिल हैं, जिसमें निगमित कंपनियाँ और पंजीकृत सोसाइटी शामिल हैं।
  • सेवा के लिये अधिकारी:
    • BNSS: निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को निर्दिष्ट करता है।
    • CrPC: सचिव, स्थानीय प्रबंधक या अन्य प्रमुख अधिकारी का उल्लेख करता है।
  • पंजीकृत डाक के लिये पता:
    • BNSS: निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को संबोधित किया जा सकता है।
    • CrPC: भारत में निगम के मुख्य अधिकारी को संबोधित।
  • फर्मों और संघों के लिये प्रावधान:
    • BNSS: भागीदारों के माध्यम से फर्मों और संघों पर समन भेजने के लिये विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं।
    • CrPC: इसमें स्पष्ट रूप से फर्मों या संघों का उल्लेख नहीं किया गया है।

सांविधानिक विधि

त्वरित विचारण का अधिकार

 24-Jul-2024

कैलाश चंद बनाम राजस्थान राज्य

"यदि विचारण को पूर्ण होने में अनुचित अतिरिक्त समय लग रहा है तो अभियुक्त को अनिश्चित काल तक अभिरक्षा में रखने की आशा नहीं की जा सकती”।

न्यायमूर्ति फरजंद अली

स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति फरजंद अली की पीठ ने कहा कि त्वरित विचारण का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त है।

  • राजस्थान उच्च न्यायालय ने कैलाश चंद बनाम राजस्थान राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

कैलाश चंद बनाम राजस्थान राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के अधीन एक आवेदन दायर किया गया था।
  • आरोपी का कहना था कि कथित अपराधों के लिये कोई मामला नहीं बनता है तथा इसलिये उसे ज़मानत दी जानी चाहिये।
  • याचिकाकर्त्ता तीन वर्ष की अवधि से अभिरक्षा में है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्च न्यायालय ने इस मामले में पाया कि तीन वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है तथा अभियोजन पक्ष द्वारा 30 में से केवल 12 साक्षियों की ही जाँच की गई है।
  • यह देखा गया कि अभियोजन बहुत धीमी गति से चल रहा है तथा अभियोजन को पूर्ण करने में और समय लगेगा।
  • यह माना गया कि अभियुक्त को उसके विरुद्ध साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण लंबित विचारण के कारण अभिरक्षा में नहीं रखा जा सकता।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि संविधान द्वारा त्वरित विचारण के अधिकार की गारंटी दी गई है तथा इसे अपराध की गंभीरता या जघन्यता के आधार पर नहीं छीना जा सकता।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने CrPC की धारा 439 के अधीन ज़मानत दे दी।

त्वरित विचारण के अधिकार का मूल स्रोत क्या है?

  • त्वरित विचारण का अधिकार मैग्ना कार्टा के एक प्रावधान से व्युत्पन्न है।
  • निष्पक्ष सुनवाई का तात्पर्य त्वरित विचारण से है। कोई भी प्रक्रिया तब तक उचित, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत नहीं हो सकती जब तक कि प्रक्रिया ऐसे व्यक्ति के अपराध के निर्धारण के लिये त्वरित विचारण सुनिश्चित न करे।
  • त्वरित न्याय भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत अनिवार्य है।

त्वरित विचारण का अधिकार क्या है?

  • हुसैनारा खातून एवं अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य, पटना (1979)
    • इस मामले में, बिहार राज्य की जेलों में बंद पुरुषों एवं महिलाओं की ओर से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी, जो अभियोजन के विचारण की प्रतीक्षा कर रहे थे।
    • उनमें से कई लोग जेल में थे तथा उन्होंने उस अपराध के लिये अधिकतम सज़ा काट ली थी, जिसका उन पर आरोप लगाया गया था।
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निर्वचन की परिधि का विस्तार किया तथा माना कि त्वरित विचारण का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से उत्पन्न होता है।
    • न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के नेतृत्व में उच्चतम न्यायालय ने भारत की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या पर अपनी पीड़ा व्यक्त की।
  • संतोष डे बनाम अर्चना गुहा (1994)
    • न्यायालय ने इस मामले में पाया कि अभियोजन पक्ष के कारण मामले के विचारण में 8 वर्षों तक विलंब हुआ।
    • साथ ही, पिछले 14 वर्षों से मामले के विचारण में कोई प्रगति नहीं हुई।
    • माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विलंब पूर्ण रूपेण अभियोजन पक्ष के कारण हुई, जो आरोपी के त्वरित विचारण के अधिकार को छीनती है।
    • माननीय उच्चतम न्यायालय ने कार्यवाही को रद्द करने के आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया क्योंकि विलंब आरोपी के त्वरित विचारण के अधिकार को छीनती है।
  • करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य (1994)
    • न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत त्वरित विचारण का अधिकार गिरफ्तारी एवं उसके परिणामस्वरूप कारावास द्वारा लगाए गए वास्तविक प्रतिबंध से प्रारंभ होता है तथा सभी चरणों में जारी रहता है अर्थात् जाँच, विचारण, विवेचना, अपील एवं पुनरीक्षण का चरण।
    • त्वरित विचारण की संवैधानिक गारंटी CrPC की धारा 309 में उचित रूप से परिलक्षित होती है।

क्या त्वरित विचारण का अधिकार ज़मानत का आधार है?

  • अशिम उर्फ असीम कुमार हरनाथ भट्टाचार्य बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (2021)
    • इस मामले में आरोपी व्यक्तियों ने गिरफ्तारी के बाद ज़मानत की अपील की।
    • न्यायालय ने इस पहलू पर विचार करते हुए कि विचाराधीन कैदी को समय पर विचारण का मौलिक अधिकार है, अपीलकर्त्ता के पक्ष में गिरफ्तारी के बाद ज़मानत का लाभ इस आधार पर प्रदान किया कि वह लंबे समय से जेल में बंद है।
  • भारत संघ बनाम के.ए. नजीब (2021)
    • न्यायालय ने यहाँ कहा कि अभियोजन पक्ष के अपनी पसंद के साक्ष्य प्रस्तुत करने एवं आरोपों को संदेह से परे सिद्ध करने के अधिकार एवं संविधान के भाग III के अंतर्गत अभियुक्त के अधिकार के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा।
    • न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त द्वारा जेल में बिताए गए समय की लंबाई एवं अभियोजन प्रक्रिया के समाप्त होने में अभी और समय लगने की संभावना को देखते हुए अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिये।
  • सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो (2022)
    • न्यायालय ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि जेलों में बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदी बंद हैं। इसके अतिरिक्त, गिरफ्तारी एक कठोर उपाय है जिसका संयम से प्रयोग किया जाना चाहिये।
    • यह देखा गया कि अभियुक्त को अनुचित विलंब के आधार पर ज़मानत पर रिहा के लिये विचार किया जा सकता है।
  • लिछमन राम उर्फ लक्ष्मण राम बनाम राज्य (2023)
    • राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि त्वरित विचारण के अधिकार की पृष्ठभूमि में ज़मानत के आवेदन पर निर्णय करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाना चाहिये:
      • विलंब बचाव की रणनीति नहीं होनी चाहिये थी। विलंब किसके द्वारा कारित हुई, यह भी देखा जाना चाहिये। प्रत्येक विलंब से आरोपी को क्षति नहीं होती।
      • इसका उद्देश्य त्वरित विचारण के अधिकार की इस प्रकार निर्वचन करना नहीं है कि अपराध की प्रकृति, सज़ा की गंभीरता, आरोपियों एवं साक्षियों की संख्या, वर्तमान स्थानीय परिस्थितियों एवं अन्य प्रक्रिया के कारण होने वाले विलंब की अनदेखी न हो।
      • यदि यह मानने का कोई ठोस कारण है कि ज़मानत पर रिहा होने पर आरोपी निश्चित रूप से न्याय की पकड़ से दूर चला जाएगा तथा जाँच एजेंसी के लिये उसे पुनः पकड़ना कठिन कार्य होगा, तो उसके पक्ष में ज़मानत का लाभ नहीं दिया जाना चाहिये।
      • यदि अभिलेख पर सम्मोहक सामग्री प्रस्तुत करके यह दर्शाया जाता है कि अभियुक्त की रिहाई से समाज में हंगामा मच सकता है या वह ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देगा जिससे अभियोजन पक्ष के साक्षी उसके विरुद्ध गवाही देने के लिये न्यायालय के समक्ष नहीं आएंगे या वह किसी अन्य तरीके से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य को बाधित कर सकता है, तो ऐसे मामलों में अभियुक्त को ज़मानत देने से पहले अत्यधिक सावधानी से कार्य करना चाहिये।

अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में त्वरित विचारण का अधिकार क्या है?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के छठे संशोधन में कहा गया है कि सभी आपराधिक अभियोजन में अभियुक्त को त्वरित एवं लोक विचारण का अधिकार होगा।
    • इसके अतिरिक्त, 1974 का एक संघीय अधिनियम है जिसे “स्पीडी ट्रायल एक्ट” कहा जाता है, जो सूचना, अभियोग आदि जैसी प्रमुख घटनाओं को अंजाम देने के लिये समय-सीमा निर्धारित करता है।
    • स्ट्रंक बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका के मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियुक्त के त्वरित विचारण के अधिकार से मना करने के परिणामस्वरूप अभियोग को खारिज करने या दोषसिद्धि को पलटने का निर्णय होता है।
  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 8 में कहा गया है कि 'प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा उसे दिये गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कृत्यों के लिये सक्षम राष्ट्रीय अधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचार पाने का अधिकार है।'

पर्यावरणीय विधि

आनुवंशिक रूप से संवर्धित सरसों के उत्पादन पर विभाजित निर्णय

 24-Jul-2024

जीन कैम्पेन एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य

“GM सरसों के उत्पादन की स्वीकृति पर विभाजित निर्णय आया, जिसके अंतर्गत शोध की अनुमति तो रहेगी लेकिन व्यावसायिक रिलीज़ पर रोक जारी रहेगी।”

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति संजय करोल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जीन कैम्पेन एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने आनुवंशिक रूप से संवर्धित सरसों के लिये केंद्र सरकार की स्वीकृति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विभाजित निर्णय दिया।

  • न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने जनहित की चिंताओं एवं प्रक्रियागत खामियों का हवाला देते हुए स्वीकृति को अमान्य करार दिया, जबकि न्यायमूर्ति संजय करोल ने वैज्ञानिक विकास पर ज़ोर देते हुए इसे यथावत् रखा।
  • अलग-अलग राय के साथ, पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश को एक बड़ी पीठ गठित करने के लिये भेज दिया, जिससे आगे की समीक्षा लंबित रहने तक कार्यान्वयन में विलंब हुआ, जबकि सरकार ने निर्णय के साथ आगे न बढ़ने पर सहमति जताई थी।

जीन कैम्पेन एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • भारत में व्यावसायिक खेती के लिये आनुवंशिक रूप से संवर्धित (GM) सरसों को जारी करने की केंद्र सरकार की स्वीकृति को चुनौती देने वाली याचिकाएँ।
  • 'HT मस्टर्ड DMH-11' नामक यह GM सरसों की किस्म को अगर स्वीकृति मिल जाती है तो भारत में उगाई जाने वाली पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल होगी।
  • याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने इस निर्णय को लागू न करने पर सहमति जताई थी।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत GEAC को 18 अक्टूबर 2022 को स्वीकृति दी गई थी।
  • ट्रांसजेनिक सरसों के पर्यावरणीय विमोचन के लिये अगला निर्णय 25 अक्टूबर 2022 को लिया गया।
  • गैर-सरकारी संगठनों एवं कार्यकर्त्ताओं ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए जनहित याचिकाएँ (PIL) दायर कीं।
  • वर्ष 2012 में, उच्चतम न्यायालय ने GMO विनियमनों की जाँच के लिये एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति (TEC) का गठन किया था।
  • TEC ने कहा था कि भारत में GMO विनियामक प्रणाली 'पूरी तरह से अव्यवस्थित' है तथा इसमें सुधार की आवश्यकता है।
  • न्यायालय ने इस बात पर नाराज़गी जताई कि GEAC ने अक्टूबर 2022 में अपना निर्णय लेने से पहले TEC की रिपोर्ट पर विचार नहीं किया।
  • न्यायालय द्वारा केंद्र को नवंबर 2022 में यथास्थिति बनाए रखने के लिये कहने के बाद GM सरसों के उत्पादन पर रोक लगा दी गई थी।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के खतरों के विषय में तर्क दिया, विशेष रूप से खुले मैदान में परीक्षण करने के मामलों में।
  • केंद्र ने तर्क दिया कि न्यायालय की जाँच का दायरा संकीर्ण होना चाहिये तथा मौजूदा जैव-सुरक्षा की व्यवस्था सभी चिंताओं को संबोधित करती है।
  • केंद्र ने यह भी तर्क दिया कि GM सरसों की उपज गैर-GM किस्मों की तुलना में अधिक है तथा अन्य प्रमुख कृषि देशों में GM फसलों को बड़े पैमाने पर अपनाया गया है।
  • उच्चतम न्यायालय ने इन याचिकाओं पर 23 जुलाई, 2024 को अपना निर्णय दिया।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) के निर्णय की न्यायिक समीक्षा स्वीकार्य है।
  • पीठ ने कहा कि भारत संघ को आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के संबंध में एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने की आवश्यकता है, जिसे राज्यों एवं किसान समूहों सहित सभी हितधारकों के परामर्श से तैयार किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को नीति-निर्माण के लिये चार महीने के अंदर राष्ट्रीय परामर्श आयोजित करने का निर्देश दिया।
  • पीठ ने कहा कि केंद्र को विशेषज्ञों की साख का ईमानदारी से सत्यापन सुनिश्चित करना चाहिये और हितों के टकराव को कम करना चाहिये तथा तद्नुसार नियम बनाए जाने चाहिये।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि GM खाद्य पदार्थों के आयात के मामलों में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया जाना चाहिये।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि ट्रांसजेनिक सरसों के पर्यावरणीय विमोचन के संबंध में 18 अक्टूबर, 2022 की GEAC स्वीकृति एवं उसके बाद 25 अक्टूबर, 2022 का निर्णय "विकृत" है तथा जनहित के सिद्धांत के विपरीत है।
    • न्यायालय ने कहा कि यह निर्णय स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव सहित कई पहलुओं पर विचार किये बिना जल्दबाज़ी में लिया गया था।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पर्याप्त आकलन करने में विफलता अंतर-पीढ़ीगत समता का उल्लंघन करती है।
    • पीठ ने अक्टूबर 2022 में अपना निर्णय देने से पहले तकनीकी विशेषज्ञ समिति (TEC) की रिपोर्ट पर GEAC द्वारा विचार न करने पर नाराज़गी व्यक्त की।
    • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि TEC रिपोर्ट की अनदेखी करने से न्यायालय के दिये गए पूर्व के आदेशों की अवहेलना होगी।
  • न्यायालय ने पाया कि विवादित अनुमोदन सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
  • न्यायमूर्ति करोल ने अपनी असहमतिपूर्ण राय में कहा कि GEAC द्वारा दी गई स्वीकृति दोषपूर्ण नहीं थी तथा उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा सख्त निगरानी के निर्देश जारी किये।
    • न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि न्यायालय को अक्सर संबंधित संगठनों के प्रतिस्पर्द्धी हितों एवं वैज्ञानिक विकास के लिये सरकार के प्रयासों के मध्य संतुलन बनाना पड़ता है।
    • न्यायालय ने कहा कि प्रक्रियागत कमियों के कारण आवश्यक नहीं कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो।
    • न्यायमूर्ति करोल ने निष्कर्ष निकाला कि फील्ड परीक्षण के लिये सशर्त मंज़ूरी देना वैज्ञानिक सोच के लिये सरकारी दृष्टिकोण के अनुरूप है।
    • पीठ ने निर्देश दिया कि GEAC फील्ड परीक्षण के दौरान किसी भी प्रकार का संदूषण न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये सभी सावधानियों का ध्यान न रखने के लिये उत्तरदायी होगा।
  • विभाजित निर्णय को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह मामले पुनः सुनवाई के लिये एक बड़ी पीठ के गठन हेतु मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे।

आनुवंशिक रूप से संवर्द्धित (GM) फसलें क्या हैं?

  • GM फसलें उन पौधों से प्राप्त होती हैं जिनके जीन को कृत्रिम रूप से संशोधित किया जाता है, आमतौर पर किसी अन्य जीव से आनुवंशिक सामग्री डालकर, ताकि उन्हें नए गुण प्रदान किये जा सकें, जैसे कि अधिक उपज, शाकनाशी के प्रति सहनशीलता, रोग या सूखे के प्रति प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्य।
  • इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास के व्यावसायिक उत्पादन को स्वीकृति दी थी, लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की अनुशंसा की है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) विनियम आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों की स्वीकृति, उत्पादन एवं व्यवसायीकरण को नियंत्रित करते हैं, सुरक्षा आकलन, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन व राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करते हैं।

GM सरसों क्या है?

  • धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (DMH-11) स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण है।
  • DMH-11 भारतीय सरसों किस्म 'वरुणा' एवं पूर्वी यूरोपीय 'अर्ली हीरा-2' सरसों के मध्य क्रॉस का परिणाम है।
  • इसमें दो विदेशी जीन ('बारनेज' एवं 'बारस्टार') शामिल हैं, जिन्हें बैसिलस एमाइलोलिकेफेसिएन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से अलग किया गया है, जो उच्च उपज देने वाली वाणिज्यिक सरसों संकर के प्रजनन को सक्षम बनाता है।
  • DMH-11 ने राष्ट्रीय जाँच की तुलना में लगभग 28% अधिक उपज एवं क्षेत्रीय जाँच की तुलना में 37% अधिक उपज दिखाई है तथा इसके उपयोग का दावा एवं अनुमोदन GEAC द्वारा किया गया है।
  • "बार जीन" संकर बीज की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखता है।

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के लिये नियामक तंत्र क्या हैं?

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC):
    • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत प्रमुख नियामक निकाय।
    • GM फसलों के बड़े पैमाने पर क्षेत्र परीक्षणों एवं वाणिज्यिक रिलीज़ को मंज़ूरी देने के लिये उत्तरदायी।
    • जैव सुरक्षा डेटा एवं पर्यावरण प्रभाव आकलन की समीक्षा करता है।
    • GEAC सुरक्षा मूल्यांकन में आणविक लक्षण वर्णन, खाद्य सुरक्षा अध्ययन एवं पर्यावरण सुरक्षा अध्ययन शामिल हैं, जिसमें क्षेत्र परीक्षण, मिट्टी पर प्रभाव, पराग प्रवाह अध्ययन शामिल हैं।
  • आनुवंशिक परिवर्तन पर समीक्षा समिति (RCGM):
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन कार्य करता है।
    • अनुसंधान गतिविधियों एवं छोटे पैमाने पर क्षेत्र परीक्षणों की देखरेख करता है।
    • चल रहे अनुसंधान परियोजनाओं के सुरक्षा-संबंधी पहलुओं की निगरानी करता है।

भारत में GM फसलों की स्थिति क्या है?

  • BT कपास:
    • अतीत में कपास की फसलों को बर्बाद करने वाले बॉलवर्म के हमले से निपटने के लिये BT कपास को प्रारंभ किया गया था, जिसे महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (माहिको) एवं अमेरिकी बीज कंपनी मोनसेंटो ने संयुक्त रूप से विकसित किया था।
    • वर्ष 2002 में, GEAC ने 6 राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में BT कॉटन के व्यावसायिक उत्पादन को स्वीकृति दी थी। यह ध्यान देने वाली बात है कि BT कॉटन GEAC द्वारा स्वीकृत पहली एवं एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है।
  • BT बैंगन:
    • माहिको ने धारवाड़ कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय एवं तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के साथ मिलकर BT बैंगन को विकसित किया गया।
    • हालाँकि GEAC 2007 ने BT बैंगन के व्यावसायिक विमोचन की अनुशंसा की थी, लेकिन वर्ष 2010 में इस पहल को रोक दिया गया।
  • GM-सरसों:
    • धारा सरसों हाइब्रिड-11 या DMH-11 सरसों की एक आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म है जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के फसल पादप आनुवंशिक परिवर्तन केंद्र द्वारा विकसित किया गया है।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने आनुवंशिक संशोधन के लिये "बार्नेज/बार्नस्टार" तकनीक का उपयोग करके संकरित सरसों DMH-11 बनाई है।
    • यह एक शाकनाशी सहनशील (HT) फसल है।
    • भारत में उच्च उपज देने वाली GM सरसों की व्यावसायिक खेती अभी तक शुरू नहीं हुई है।