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आपराधिक कानून
24 घंटे के अंदर आरोपी को प्रस्तुत करना
07-Oct-2024
श्रीमती टी. रामादेवी पत्नी टी. श्रीनिवास गौड़ बनाम प्रमुख सचिव एवं अन्य के माध्यम से तेलंगाना राज्य "इससे किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने के समय से ही अभिरक्षा में लेना समान होगा।" न्यायमूर्ति पी. सैम कोशी एवं न्यायमूर्ति एन. तुकारामजी |
स्रोत: तेलंगाना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति पी. सैम कोशी एवं न्यायमूर्ति एन. तुकारामजी की पीठ ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 (2) एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के अधीन गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर आरोपी को निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
- तेलंगाना उच्च न्यायालय ने श्रीमती टी. रामादेवी पत्नी टी. श्रीनिवास गौड़ बनाम प्रमुख सचिव एवं अन्य के माध्यम से तेलंगाना राज्य अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।
श्रीमती टी. रामादेवी पत्नी टी. श्रीनिवास गौड़ बनाम प्रमुख सचिव एवं अन्य के माध्यम से तेलंगाना राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में चारों बंदियों पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 406, धारा 420 के साथ शमनीय धारा 120 B एवं तेलंगाना वित्तीय प्रतिष्ठानों के जमाकर्त्ताओं का संरक्षण अधिनियम, 1996 (TSPDFE) की धारा 5 के अंतर्गत आरोप लगाए गए थे।
- आरोपी संख्या 3 एवं 4 को 31 अगस्त 2024 को सुबह 10 बजे गिरफ्तार किया गया।
- उन्हें पकड़ने के बाद पुलिस टीम अन्य आरोपियों की तलाश में गई।
- 1 अगस्त 2024 को लगभग 00:30 बजे आरोपी संख्या 1, 2 एवं 6 अपने निवास पर पाए गए और पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिये पकड़ लिया तथा 1 अगस्त 2024 को लगभग 1:30 बजे उन्हें सेंट्रल क्राइम स्टेशन, हैदराबाद लाया गया।
- गिरफ्तारी 1 अगस्त 2024 को 15:40 बजे दिखाई गई।
- सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद बंदियों को 2 अगस्त 2024 को सुबह 12:30 बजे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उनके आवास पर प्रस्तुत किया गया।
- इस मामले में विधि के दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं:
- गिरफ्तारी 1 अगस्त 2024 को 15:40 बजे दिखाई गई। सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद बंदियों को 2 अगस्त 2024 को सुबह 12:30 बजे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उनके आवास पर प्रस्तुत किया गया। इस मामले में विधि के दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं:
- क्या तेलंगाना वित्तीय प्रतिष्ठानों के जमाकर्त्ताओं का संरक्षण अधिनियम, 1996 (संक्षेप में ‘TSPDFE अधिनियम’) के अंतर्गत किसी आरोपी को निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पहली रिमांड के लिये प्रस्तुत किया जा सकता है या उसे केवल संबंधित अधिसूचित विशेष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता है?
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- पहले मुद्दे के संबंध में:
- याचिकाकर्त्ता का कहना था कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत होने के लिये आवश्यक 24 घंटे की अवधि गिरफ्तारी के प्रारंभिक समय से प्रारंभ होगी।
- न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC ) की धारा 57 एवं धारा 167 को ध्यान में रखा।
- न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 57 की पहली पंक्ति अभिरक्षा शब्द का उल्लेख करती है।
- हालांकि इसमें "गिरफ्तारी के समय से" शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि अभिरक्षा की अवधि उस समय से प्रारंभ होती है जब किसी व्यक्ति को पकड़ा जाता है।
- इसलिये, न्यायालय ने निर्णायक रूप से माना कि 24 घंटे का समय आधिकारिक गिरफ्तारी के समय से नहीं बल्कि उस समय से गणना किया जाना चाहिये जब उसे पहली बार अभिरक्षा में लिया गया था।
- इस प्रकार, वर्तमान मामले में CrPC की धारा 57 का स्पष्ट उल्लंघन हुआ।
- मुद्दे (ii) के संबंध में:
- न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 167 (2) को स्पष्ट रूप से पढ़ने से यह संकेत मिलता है कि किसी व्यक्ति को रिमांड पर लेने की शक्ति न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास है।
- न्यायालय ने कहा कि TSDFE अधिनियम की धारा 13 (1) एवं (2) के साथ CrPC की धारा 167 (2) को पढ़ने पर यह स्पष्ट संकेत मिलेगा कि TSPDFE अधिनियम ने CrPC की प्रयोज्यता को खत्म नहीं किया है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 22 (2) में भी यह परिकल्पना की गई है कि गिरफ्तार एवं अभिरक्षा में लिये गए प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी गिरफ्तारी एवं अभिरक्षा के 24 घंटे के अंदर "निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा", कुछ अपवादों को छोड़कर, जो वर्तमान मामले में लागू नहीं होते हैं।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास अभियुक्त को रिमांड पर लेने की योग्यता एवं अधिकारिता है।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि आरोपी संख्या 3 एवं 4 के संबंध में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की तत्काल रिट स्वीकार की जाती है।
कौन से प्रावधानों में अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर प्रस्तुत करने का प्रावधान है?
- CrPC की धारा 57
- CrPC की धारा 57 में प्रावधान है कि बिना वारंट के गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को उचित अवधि से अधिक समय तक अभिरक्षा में नहीं रखा जाएगा।
- इसके अतिरिक्त, धारा 167 के अधीन मजिस्ट्रेट के विशेष आदेश के अभाव में अभिरक्षा की अवधि 24 घंटे से अधिक है।
- 24 घंटे की इस अवधि की गणना करते समय गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट की न्यायालय तक की यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़ दिया जाएगा।
- इस प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 58 के अधीन पुनरावृत्ति किया गया है।
- COI का अनुच्छेद 22 (2)
- इस प्रावधान में यह प्रावधान है कि अभिरक्षा में लिये गए व्यक्ति को यात्रा के समय को छोड़कर गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के अंदर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
- मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना किसी भी व्यक्ति को ऊपर उल्लिखित अवधि से अधिक अभिरक्षा में नहीं रखा जाएगा।
CrPC की धारा 167 के प्रावधान क्या हैं?
- CrPC की धारा 167 के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं:
- चौबीस घंटे के अंदर विवेचना पूरी न होने पर प्रक्रिया
- मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ
- मजिस्ट्रेट की शक्तियों पर सीमाएँ
- यह प्रावधान पुलिस अभिरक्षा एवं न्यायिक अभिरक्षा दोनों के लिये समयसीमा तय करता है।
- धारा 167 तब लागू होती है जब अभियुक्त को अभिरक्षा में लिये जाने के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत नहीं किया जाता है तथा भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 22(2) द्वारा प्रदत्त उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है।
- द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट को उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्त को पुलिस अभिरक्षा में रखने का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है।
BNSS में प्रासंगिक प्रावधान क्या है?
- धारा 187 (1) में प्रावधान है कि:
- जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तथा अभिरक्षा में रखा जाता है
- ऐसा प्रतीत होता है कि विवेचना धारा 58 द्वारा निर्धारित 24 घंटे के अंदर पूरी नहीं हो सकती है
- तथा यह मानने के आधार हैं कि सूचना या आरोप ठोस हैं
- पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी (सब-इंस्पेक्टर के पद से नीचे नहीं) तुरंत निकटतम मजिस्ट्रेट को डायरी में प्रविष्टियों की एक प्रति भेजेगा तथा साथ ही आरोपी को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
- धारा 187 (2) में प्रावधान है:
- वह मजिस्ट्रेट जिसके पास अभियुक्त को इस धारा के अंतर्गत भेजा जाता है
- चाहे उसके पास क्षेत्राधिकार हो या न हो
- यह विचार करने के बाद कि क्या ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया गया है या उसकी जमानत रद्द कर दी गई है
- समय-समय पर ऐसी अभिरक्षा में रखने को अधिकृत करता है जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे
- पूरे या आंशिक रूप से पंद्रह दिन से अधिक अवधि के लिये
- उपधारा (3) में यथास्थिति, 60 दिन या 90 दिन की निरुद्धि अवधि के आरंभिक 40 दिन या 60 दिन के दौरान किसी भी समय
- तथा यदि उसके पास मामले की सुनवाई करने या उसे सुनवाई के लिये सौंपने का अधिकार नहीं है, और वह आगे निरुद्धि को अनावश्यक समझता है, तो वह अभियुक्त को ऐसे अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट के पास भेजने का आदेश दे सकता है।
- धारा 187 (3) में प्रावधान है:
- मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति को पंद्रह दिन की अवधि से अधिक समय तक अभिरक्षा में रखने का अधिकार दे सकता है,
- यदि वह संतुष्ट हो कि ऐसा करने के लिये पर्याप्त आधार मौजूद हैं,
- लेकिन कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति को इस उपधारा के अधीन अभिरक्षा में रखने का अधिकार नहीं देगा, जो कि निम्नलिखित से अधिक हो:
- नब्बे दिन, जहाँ विवेचना मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध से संबंधित हो;
- साठ दिन, जहाँ विवेचना किसी अन्य अपराध से संबंधित हो
- और, यथास्थिति, 90 दिन या 60 दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर, अभियुक्त व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा यदि वह जमानत देने के लिये तैयार है और देता है, और इस उपधारा के अधीन जमानत पर रिहा किया गया प्रत्येक व्यक्ति उस अध्याय के प्रयोजनों के लिये अध्याय 35 के उपबंधों के अधीन रिहा किया गया समझा जाएगा।
सांविधानिक विधि
तिरुपति लड्डू मामला
07-Oct-2024
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य “जनता का विश्वास बढ़ाने के लिये न्यायालय ने घी में मिलावट के आरोपों की जाँच के लिये राज्य द्वारा निर्मित SIT के स्थान पर स्वतंत्र SIT निकाय का गठन किया”। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
तिरुपति मंदिर का घी विवाद तब प्रारंभ हुआ जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि पिछली YSRCP सरकार के कार्यकाल के दौरान पवित्र लड्डू (प्रसाद) तैयार करने में गाय की चर्बी एवं फिश ऑयल सहित पशु वसा का उपयोग किया गया था। जुलाई 2024 की राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की प्रयोगशाला रिपोर्ट पर आधारित आरोपों ने व्यापक आक्रोश उत्पन्न किया तथा उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएँ दायर की गईं।
- उच्चतम न्यायालय ने इन संवेदनशील आरोपों की जाँच के लिये राज्य द्वारा नियुक्त SIT के स्थान पर एक स्वतंत्र विशेष जाँच दल का गठन किया है, जिससे दुनिया भर में लाखों श्रद्धालुओं की भावनाएँ प्रभावित हुई हैं।
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- तिरुपति लड्डू का विवाद तिरुमाला तिरुपति मंदिर में लड्डू (प्रसादम) तैयार करने में मिलावटी घी के प्रयोग के आरोपों के आस पास केंद्रित है।
- आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर, 2024 को सार्वजनिक अभिकथन दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि पिछली YSRCP सरकार के कार्यकाल के दौरान लड्डू तैयार करने में गोमांस की चर्बी एवं फिश ऑयल सहित पशु वसा का प्रयोग किया गया था।
- ये आरोप घी के नमूनों के संबंध में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की प्रयोगशाला रिपोर्ट पर आधारित थे।
- तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) की आंतरिक गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएँ हैं:
- गाय का घी लेकर आने वाले ट्रकों से नमूने लिये जाते हैं।
- निर्धारित मानकों को पूरा न करने वाली सामग्री को आमतौर पर आपूर्तिकर्ताओं को वापस कर दिया जाता है।
- विवाद के बाद, आंध्र प्रदेश सरकार ने मामले की जाँच के लिये 26 सितंबर, 2024 को एक विशेष जाँच दल (SIT) का गठन किया।
विधिक याचिकाएँ दायर की गईं
- डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका
- न्यायालय की निगरानी वाली समिति से जाँच की मांग की गई
- घी के नमूनों की फोरेंसिक जाँच पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई
- नमूनाकरण पद्धति एवं राजनीतिक हस्तक्षेप के विषय में विशिष्ट प्रश्न किये गए
- सुरेश खांडेराव चव्हाणके की याचिका
- उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा जाँच की मांग
- संविधान के अनुच्छेद 25 एवं 26 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर आधारित तर्क
- CBI या स्वतंत्र केंद्रीय जाँच एजेंसी से जाँच की मांग
- मंदिर प्रबंधन की देखरेख के लिये सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति की मांग
- सुरजीत सिंह यादव की याचिका
- हिंदू सेना के अध्यक्ष के रूप में दायर किया गया
- विशेष जाँच दल (SIT) द्वारा जाँच की मांग की गई
- दावा किया गया कि पशु वसा के कथित उपयोग से हिंदू भक्तों की भावनाएँ आहत हुई हैं
- वाई.वी. सुब्बा रेड्डी की याचिका
- राज्यसभा सांसद एवं पूर्व TTD अध्यक्ष द्वारा दायर याचिका
- न्यायालय की निगरानी वाली समिति या सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा डोमेन विशेषज्ञों के साथ स्वतंत्र जाँच की मांग
- घी परीक्षण के लिये TTD की मानक संचालन प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया
- राज्य सरकार द्वारा प्रयोगशाला रिपोर्ट के प्रकटन के समय पर प्रश्न किया गया
- डॉ. विक्रम संपत एवं दुष्यन्त श्रीधर की याचिका
- एक इतिहासकार एवं आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता द्वारा संयुक्त रूप से दायर
- "मंदिरों पर सरकारी/नौकरशाही नियंत्रण को खत्म करने" की मांग
- सरकारी निकायों द्वारा प्रबंधित हिंदू मंदिरों में उत्तरदायित्व स्थापित करने का निवेदन
- मुख्य मुद्दा
- प्रसाद बनाने में मिलावटी घी का प्रयोग किया गया था या नहीं, इसका सत्यापन
- घी की खरीद एवं परीक्षण की समय-सीमा
- प्रयोगशाला रिपोर्ट की प्रामाणिकता एवं संदर्भ
- स्थापित गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाओं का अनुपालन
- भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 25 एवं अनुच्छेद 26 के अंतर्गत धार्मिक प्रथाओं एवं भक्तों के अधिकारों का संभावित उल्लंघन।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि इन आरोपों से विश्व भर में करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाएँ आहत होने की संभावना है, राज्य द्वारा नियुक्त मौजूदा SIT के स्थान पर एक स्वतंत्र विशेष जाँच दल (SIT) का गठन किया तथा इस बात पर बल दिया कि एक स्वतंत्र निकाय से अधिक विश्वास उत्पन्न होगा।
- न्यायालय ने स्पष्ट रूप से स्पष्ट किया कि उसके आदेश को मौजूदा SIT सदस्यों की विश्वसनीयता पर प्रतिबिंब के रूप में नहीं समझा जाना चाहिये, यह कहते हुए कि निर्देश केवल देवता में आस्था रखने वाले भक्तों की भावनाओं को शांत करने के लिये जारी किया गया था।
- न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं केवी विश्वनाथन की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह न्यायालय को "राजनीतिक युद्ध के मैदान" के रूप में प्रयोग करने की अनुमति नहीं देगी तथा आरोपों एवं प्रत्यारोपों के गुण-दोष पर टिप्पणी करने से परहेज किया।
- नई SIT के गठन में न्यायालय ने निर्देश दिया कि इसमें दो CBI अधिकारी (CBI निदेशक द्वारा नामित), दो राज्य पुलिस अधिकारी (राज्य सरकार द्वारा नामित) तथा भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के एक वरिष्ठ अधिकारी को शामिल किया जाए, तथा जाँच की निगरानी CBI निदेशक द्वारा की जाए।
- न्यायालय का यह निर्णय भारत के सॉलिसिटर जनरल सहित विभिन्न हितधारकों की दलीलों पर विचार करने के बाद आया, जिन्होंने प्रारंभ में राज्य द्वारा नियुक्त SIT की क्षमता की पुष्टि की थी तथा जाँच की केंद्रीय निगरानी का सुझाव दिया था।
- पीठ ने प्रसादम तैयार करने में कथित मिलावटी घी के प्रयोग की जाँच से संबंधित इस व्यापक आदेश के माध्यम से डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व TTD अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी, सुरेश चव्हाणके एवं डॉ. विक्रम संपत द्वारा दायर याचिकाओं सहित कई याचिकाओं का निपटान किया।
- आरोपों के गुण-दोष पर टिप्पणी न करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्वतंत्र SIT गठित करने का उसका निर्णय विश्व भर के करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाओं को शांत करने के उद्देश्य से लिया गया था तथा इसे मौजूदा राज्य SIT सदस्यों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये ।
भारतीय संविधान, 1950 का अनुच्छेद 25 क्या है?
- अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता एवं धर्म के स्वतंत्र आचरण, पालन एवं प्रचार से संबंधित है
- मौलिक अधिकार अंतःकरण की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं
- धर्म को मानने का अधिकार
- इससे तात्पर्य है कि अपनी आस्था एवं विश्वास को स्वतंत्र रूप से तथा खुले तौर पर घोषित करना।
- कृपाण पहनना एवं ले जाना सिख धर्म का हिस्सा माना जाता है।
- धर्म का पालन करने का अधिकार
- निर्धारित धार्मिक कर्त्तव्यों, संस्कारों एवं अनुष्ठानों का पालन करना
- निर्धारित कृत्यों के माध्यम से धार्मिक विश्वासों का पालन करना
- धर्म का प्रचार करने का अधिकार
- दूसरों के उत्थान के लिये धार्मिक विचारों का प्रसार करना
- अनुनय तक सीमित; इसमें दूसरों का धर्म परिवर्तन करने का अधिकार शामिल नहीं है
- धर्म को मानने का अधिकार
- अनुच्छेद 25 के प्रतिबंध एवं सीमाएँ निम्नलिखित के अधीन:
- लोक व्यवस्था
- नैतिकता
- स्वास्थ्य
- संविधान के भाग III के अंतर्गत अन्य प्रावधान
- राज्य निम्नलिखित के लिये विधि का निर्माण कर सकता है:
- धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित या प्रतिबंधित करना
- सामाजिक कल्याण एवं सुधार के लिये प्रावधान करना
- हिंदुओं के सभी समुदायों एवं वर्गों के लिये सार्वजनिक चरित्र के हिंदू धार्मिक संस्थानों को खोलना
- धार्मिक संस्थान खोलने के उद्देश्य से, "हिंदुओं" में सिख, जैन और बौद्ध शामिल हैं।
- हिंदू धार्मिक संस्थानों का संदर्भ सिख, जैन और बौद्ध संस्थानों पर भी लागू होता है।
- ये अधिकार सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
- इस क्षेत्र में विधि निर्माण करने की राज्य की शक्ति अनुच्छेद में उल्लिखित विशिष्ट उपबन्धों तक सीमित है।
भारतीय संविधान, 1950 का अनुच्छेद 26 क्या है?
- अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता से संबंधित है
- यह अधिकार निम्नलिखित पर लागू होता है:
- हर धार्मिक संप्रदाय
- किसी धार्मिक संप्रदाय का कोई भी भाग
- ये अधिकार निम्नलिखित के अधीन हैं:
- लोक व्यवस्था
- नैतिकता
- स्वास्थ्य
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत धार्मिक संप्रदायों को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं:
- निम्नलिखित के लिये संस्थाओं की स्थापना एवं रखरखाव करना:
- धार्मिक उद्देश्य
- धर्मार्थ उद्देश्य
- धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करना
- संपत्ति का स्वामित्व एवं अधिग्रहण करना:
- चल संपत्ति
- अचल संपत्ति
- ऐसी संपत्ति का प्रशासन उसके विधि के अनुसार करें
- निम्नलिखित के लिये संस्थाओं की स्थापना एवं रखरखाव करना:
- संपत्ति का प्रशासन मौजूदा संविधियों के दायरे में ही किया जाना चाहिये ।
- यह अनुच्छेद धार्मिक समूहों को उनके आंतरिक मामलों एवं परिसंपत्तियों के प्रबंधन में स्वायत्तता सुनिश्चित करता है।
- राज्य लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के लिये इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है।
- यह उपबंध धार्मिक स्वतंत्रता को कुछ क्षेत्रों में विनियमन की आवश्यकता के साथ संतुलित करता है।
- यह धार्मिक समूहों को सामान्य कानूनों के अधीन रहते हुए भी अपनी संस्थाओं और प्रथाओं पर नियंत्रण रखने की अनुमति देता है।
आपराधिक विधि में मिलावट की बिक्री का प्रावधान
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 274 के अनुसार, जो कोई भी किसी खाद्य या पेय पदार्थ में मिलावट करता है, जिससे वह पदार्थ खाद्य या पेय के रूप में हानिकारक हो जाए, उस पदार्थ को खाद्य या पेय के रूप में बेचने का आशय रखता है, या यह जानते हुए कि उसे खाद्य या पेय के रूप में बेचा जाएगा, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या पाँच हजार रुपये तक का अर्थदण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 275 के अनुसार, जो कोई भी किसी ऐसी वस्तु को खाद्य या पेय के रूप में बेचेगा, या बिक्री के लिये प्रस्तुत करेगा या प्रदर्शित करेगा, जो हानिकारक हो गई है या खाद्य या पेय के लिये अनुपयुक्त अवस्था में है, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में हानिकारक है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या पांच हजार रुपये तक का अर्थदण्ड , या दोनों से दंडित किया जाएगा।
सिविल कानून
कर संविधि का निर्वचन का सिद्धांत
07-Oct-2024
केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर के मुख्य आयुक्त एवं अन्य बनाम मेसर्स सफारी रिट्रीट्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य। "यदि किसी सांविधिक प्रावधान का दो निर्वचन संभव हैं, तो न्यायालय सामान्य तौर पर करदाता के पक्ष में तथा राजस्व के विरुद्ध प्रावधान की निर्वचन करेगा।" न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति संजय करोल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर के मुख्य आयुक्त एवं अन्य बनाम मेसर्स सफारी रिट्रीट्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मामले में केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) अधिनियम, 2017 के संदर्भ में निर्वचन शासकीय सिद्धांतों को रेखांकित किया है।
केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर के मुख्य आयुक्त एवं अन्य बनाम मेसर्स सफारी रिट्रीट्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वर्तमान मामले में, प्रथम प्रतिवादी एक बिल्डर है जो एक परिसर का निर्माण करता है तथा उसे किराए पर देता है।
- यही तथ्य प्रथम प्रतिवादी द्वारा प्राप्त किराए के आधार पर CGST पर भी लागू होती है क्योंकि यह CGST अधिनियम के अंतर्गत सेवा की आपूर्ति के तुल्य है।
- इसलिये प्रतिवादी ने इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC ) का लाभ उठाने की कोशिश की, जिसके लिये उन्होंने संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया, जहाँ उन्हें CGST की धारा 17 (5) (d) द्वारा किये गए अपवाद के कारण ITC में कटौती किये बिना किराए पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) जमा करने की सलाह दी गई।
- प्रतिवादी ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर कर यह घोषित करने की मांग की कि CGST अधिनियम की धारा 17 (5) (d) तथा उड़ीसा वस्तु एवं सेवा अधिनियम, 2017 (OGSA) के संबंधित प्रावधान किराए पर देने के लिये अचल संपत्ति के निर्माण पर लागू नहीं होते हैं।
- याचिका में यह भी कहा गया कि CGST अधिनियम की धारा 17(5)(d) भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 19(1)(g) का उल्लंघन है।
- उच्च न्यायालय ने माना कि CGST अधिनियम की धारा 17 का उद्देश्य करदाताओं को लाभ पहुँचाना है।
- उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यदि करदाता को मॉल से किराये की आय पर GST का भुगतान करना आवश्यक है, तो वह मॉल के निर्माण पर भुगतान किये गए GST पर ITC का अधिकारी है।
- उच्च न्यायालय के निर्णय से असंतुस्ट होकर वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई थी जिसमें CGST अधिनियम की विवादित धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कर विधान का निर्वचन के सिद्धांतों को लागू करते हुए निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- संविधि का निर्वचन करना विधायिका का उत्तरदायित्व है:
- उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कर संविधि के प्रावधान को बिना किसी संशोधन के उसी रूप में निर्वचित किया जाना चाहिये जैसा कि विधायिका की मंशा के आधार पर दिया गया है।
- यदि उस संविधि की प्रयोज्यता किसी औचित्यहीन परिणाम की ओर ले जाती है तो उसका निर्वचन करना विधायिका का उत्तरदायित्व होगा, न कि न्यायालय की।
- निर्वचन के लिये कठोर दृष्टिकोण:
- यदि किसी कर विधान की दो निर्वचन हैं, तो करदाता को लाभ पहुँचाने वाला निर्वचन ही लागू किया जाना चाहिये।
- कर विधान का निर्वचन साम्या के सिद्धांतों के आधार पर नहीं की जानी चाहिये तथा कर विधान की भाषा ही निर्वचन का एकमात्र आधार होनी चाहिये ।
- अनुमान का कोई उपयोग नहीं
- कर विधान का निर्वचन करते समय कोई भी पूर्वधारणा या धारणा लागू नहीं की जानी चाहिये , इसका एकमात्र आधार विधान में स्पष्ट रूप से दिये गए शब्द होने चाहिये ।
- जब विधान में कुछ विधियों के लिये स्पष्ट रूप से प्रावधान करने के लिये कोई दोष हो तो करदाता को उत्तरदायी नहीं ठहराया जाना चाहिये ।
- व्यापार एवं उपयोग के दौरान वाणिज्यिक आशय के रूप में समझे जाने वाले शब्द
- जहाँ शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, वहाँ उनका निर्वचन अन्य विधानों में दी गई परिभाषाओं के आधार पर नहीं की जानी चाहिये।
- “कर का प्रावधान” जहाँ शब्द स्पष्ट रूप से प्रावधानित किये गए हैं
- जहाँ शब्दों का शाब्दिक निर्वचन से अन्याय कारित होता है, वहाँ ऐसे विधान का निर्वचन अन्याय को रोकने के लिये किया जा सकता है।
- संविधि का निर्वचन करना विधायिका का उत्तरदायित्व है:
- उच्चतम न्यायालय ने भवन पर "प्लांट" शब्द की प्रयोज्यता की निर्वचन करने के लिये CGST की धारा 17(5)(d) पर निर्वचन के उपर्युक्त सिद्धांतों को लागू किया तथा माना कि इसके लिये केस-टू-केस आधार पर निर्वचन की आवश्यकता है और मामले को उच्च न्यायालय को भेज दिया ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या भवन किराए पर देने जैसी सेवाओं की आपूर्ति में एक आवश्यक भूमिका निभाता है।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय को वर्तमान याचिका का निर्धारण करने के लिये कार्यक्षमता एवं अनिवार्यता का परीक्षण लागू करने का आदेश दिया।
- हालाँकि, उच्चतम न्यायालय ने CGST अधिनियम की धारा 17(5) (d) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
CGST अधिनियम क्या है?
- केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) अधिनियम, 2017 भारत की वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था का एक प्रमुख घटक है, जिसे देश की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को उपयोगी बनाने के लिये लागू किया गया था।
- CGST अधिनियम केंद्र सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की अंतर-राज्य आपूर्ति पर GST लगाने और संग्रह को नियंत्रित करता है, जो केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर जैसे कई पिछले केंद्रीय अप्रत्यक्ष करों को प्रतिस्थापित करता है।
- यह करदाताओं के पंजीकरण, वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यांकन, इनपुट टैक्स क्रेडिट तंत्र और GST प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न अनुपालन आवश्यकताओं के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
- CGST अधिनियम राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) अधिनियम तथा एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) अधिनियम के साथ मिलकर कार्य करता है ताकि वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाया जा सके।
इनपुट टैक्सेबल क्रेडिट क्या है?
- परिभाषा:
- इनपुट टैक्स क्रेडिट वह क्रेडिट है जिसका दावा कोई व्यवसाय, व्यवसाय के दौरान उपयोग की गई वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर चुकाए गए GST के लिये कर सकता है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य व्यवसायों को उनकी कर देयता को कम करने की अनुमति देकर आपूर्ति श्रृंखला में करों (कर के ऊपर पुनः कर) के व्यापक प्रभाव को समाप्त करना है।
- प्रक्रिया:
- जब कोई व्यवसाय अपने इनपुट (खरीद) पर GST का भुगतान करता है, तो वह इस राशि का उपयोग अपने आउटपुट (बिक्री) पर देय GST की भरपाई के लिये कर सकता है।
- अर्हता:
- ITC का दावा करने के लिये, इनपुट वस्तुओं या सेवाओं का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये किया जाना चाहिये तथा व्यवसाय के पास पंजीकृत आपूर्तिकर्त्ताओं से वैध कर चालान होना चाहिये।
- लाभ:
- ITC व्यवसायों एवं अंतिम उपभोक्ताओं पर समग्र कर भार को कम करने में सहायता करता है, जिससे अधिक कुशल एवं प्रतिस्पर्धी बाजार को बढ़ावा मिलता है।
- प्रतिबंध:
- GST विधि के अनुसार, व्यक्तिगत उपभोग के लिये उपयोग की जाने वाली वस्तुओं या विशिष्ट वस्तुओं के लिये ITC का दावा करने पर कुछ प्रतिबंध हैं।
CGST की धारा 17 क्या है?
- आंशिक व्यावसायिक उपयोग:
- जब वस्तुओं या सेवाओं का उपयोग आंशिक रूप से व्यवसाय के लिये तथा आंशिक रूप से अन्य प्रयोजनों के लिये किया जाता है, तो इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) व्यवसायिक प्रयोजनों के लिये उपयोग किये गए हिस्से तक ही सीमित होता है।
- कर योग्य एवं छूट प्राप्त आपूर्तियाँ:
- आंशिक रूप से कर योग्य आपूर्तियों (शून्य-रेटेड सहित) एवं आंशिक रूप से छूट प्राप्त आपूर्तियों के लिये उपयोग की जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं के लिये , ITC को कर योग्य आपूर्तियों के हिस्से तक ही सीमित रखा गया है।
- छूट प्राप्त आपूर्ति परिभाषा:
- रिवर्स चार्ज के अंतर्गत कर योग्य आपूर्ति, प्रतिभूति लेनदेन, भूमि बिक्री एवं भवन बिक्री (अपवादों के अधीन) शामिल हैं।
- अनुसूची III में निर्दिष्ट गतिविधियों को छोड़कर (पैराग्राफ 5 को छोड़कर)।
- बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान:
- उपधारा (2) का अनुपालन करने या पात्र ITC का 50% मासिक लाभ उठाने का विकल्प है।
- 50% प्रतिबंध एक ही पैन वाले पंजीकृत व्यक्तियों के बीच आपूर्ति पर भुगतान किये गए कर पर लागू नहीं होता है।
- अवरुद्ध क्रेडिट (ITC उपलब्ध नहीं):
- मोटर वाहन (विशिष्ट व्यावसायिक उपयोगों के लिये अपवादों के साथ)।
- जहाज एवं विमान (विशिष्ट व्यावसायिक उपयोगों के लिये अपवादों के साथ)।
- मोटर वाहनों, जहाजों या विमानों का सामान्य बीमा, सर्विसिंग, मरम्मत एवं रखरखाव (अपवादों के साथ)।
- खाद्य एवं पेय पदार्थ, आउटडोर खानपान, सौंदर्य उपचार, स्वास्थ्य सेवाएँ, कॉस्मेटिक सर्जरी (अपवादों के साथ)।
- क्लब, स्वास्थ्य एवं फिटनेस केंद्रों की सदस्यता।
- कर्मचारियों को यात्रा लाभ (अपवादों के साथ)।
- अचल संपत्ति निर्माण के लिये कार्य संविदा सेवाएँ (ऐसी सेवाओं की आगे की आपूर्ति को छोड़कर)।
- स्वयं के खाते पर अचल संपत्ति के निर्माण के लिये माल/सेवाएँ।
- वे माल/सेवाएँ जिन पर संयोजन योजना (धारा 10) के अंतर्गत कर का भुगतान किया जाता है।
- किसी अनिवासी कर योग्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त माल/सेवाएँ (आयातित माल को छोड़कर)।
- व्यक्तिगत उपभोग के लिये उपयोग की जाने वाली वस्तुएँ/सेवाएँ।
- खोई हुई, चोरी हुई, नष्ट हुई, बट्टे खाते में डाली गई या उपहार के रूप में वस्तुएँ।
- धारा 74, 129 एवं 130 के अंतर्गत चुकाया गया कोई भी कर।
- शासकीय प्राधिकार:
- सरकार उपधारा (1) एवं (2) के अंतर्गत ऋण निर्धारण का तरीका निर्धारित कर सकती है।
- "संयंत्र एवं मशीनरी" की परिभाषा:
- इसमें नींव एवं संरचनात्मक रूप से भूमि पर स्थापित मशीन, उपकरण एवं भारी मशीनरी शामिल हैं।
- इसमें फैक्ट्री परिसर के बाहर की भूमि, भवन, नागरिक संरचनाएँ, दूरसंचार टावर एवं पाइपलाइन शामिल नहीं हैं।
CGST की धारा 17(5)(d) क्या है?
- CGST अधिनियम की धारा 17(5)(d) में कहा गया है कि निम्नलिखित के संबंध में इनपुट टैक्स क्रेडिट उपलब्ध नहीं होगा:
- "(d) किसी कर योग्य व्यक्ति द्वारा किसी अचल संपत्ति (संयंत्र या मशीनरी के अतिरिक्त) के निर्माण के लिये अपने स्वयं के खाते पर प्राप्त की गई वस्तुएँ या सेवाएँ या दोनों, जिसमें तब भी शामिल है जब ऐसी वस्तुएँ या सेवाएँ या दोनों का उपयोग व्यवसाय के दौरान या उसे आगे बढ़ाने में किया जाता है।"
- सामान्य नियम: यह प्रावधान अचल संपत्ति के निर्माण में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं के लिये इनपुट टैक्स क्रेडिट को रोकता है।
- अपवाद: अवरोध "प्लांट या मशीनरी" पर लागू नहीं होता है।
- दायरा: यह तब भी लागू होता है जब निर्माण का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये किया जाता है।
- "अपने स्वयं के खाते पर": यह वाक्यांश बताता है कि यह प्रावधान तब लागू होता है जब कर योग्य व्यक्ति स्वयं के लिये निर्माण कर रहा हो, न कि दूसरों को निर्माण सेवाएँ प्रदान करते समय।
- "निर्माण" की परिभाषा: इस खंड की व्याख्या निर्माण को पूंजीकरण की सीमा तक पुनर्निर्माण, नवीनीकरण, परिवर्धन या परिवर्तन या मरम्मत को शामिल करने के लिये परिभाषित करती है।
- "प्लांट एवं मशीनरी" परिभाषा: धारा 17 के स्पष्टीकरण के अनुसार, इस शब्द का अर्थ है नींव या संरचनात्मक रूप से भूमि पर स्थापित किये गए मशीन, उपकरण और भारी मशीनरी जिनका उपयोग माल या सेवाओं या दोनों की बाहरी आपूर्ति करने के लिये किया जाता है। इसमें ऐसी नींव एवं संरचनात्मक उपकरण शामिल हैं, लेकिन इसमें भूमि, भवन या कोई अन्य नागरिक संरचना, दूरसंचार टावर एवं फैक्ट्री परिसर के बाहर बिछाई गई पाइपलाइन शामिल नहीं हैं।