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सांविधानिक विधि
संविधान के अंतर्गत आत्मदोषसिद्धि का उपबंध
17-Jan-2025
LSE सिक्योरिटीज लिमिटेड बनाम जसविंदर सिंह कपूर “कोई कंपनी अपने आवश्यक मानदंडों को पूरा किये बिना अनुच्छेद 20(3) संरक्षण का दावा नहीं कर सकती: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय।” न्यायमूर्ति एन.एस. शेखावत |
स्रोत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति एन.एस. शेखावत ने कहा कि कोई कंपनी संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उदाहरण देकर समन किये गए दस्तावेज प्रस्तुत करने से मना नहीं कर सकती, जब तक कि वह प्रावधान की शर्तों को पूर्ण न करे। अनुच्छेद 20(3) किसी व्यक्ति को विवशता में कारित अपराध करने के आरोप में आत्मदोषसिद्धि दिये जाने से रक्षण करता है।
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने LSE सिक्योरिटीज लिमिटेड बनाम जसविंदर सिंह कपूर (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि यह संरक्षण केवल तभी लागू होता है जब आरोप, विवशता एवं आत्मदोषसिद्धि का साक्ष्य उपलब्ध हों।
LSE सिक्योरिटीज लिमिटेड बनाम जसविंदर सिंह कपूर मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- LSE सिक्योरिटीज लिमिटेड, 07 जनवरी 2000 को निगमित और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के साथ पंजीकृत, लुधियाना स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड की एक सहायक कंपनी है जो स्टॉक ब्रोकिंग व्यवसाय में लगी हुई है।
- 15 जनवरी 2012 को आयोजित कंपनी की AGM के दौरान, के.के. पुरी एवं नरेश सरीन को बहुमत के आधार पर निदेशक नियुक्त किया गया।
- इसके बाद 25 जनवरी 2013 को जसविंदर सिंह कपूर ने LSE सिक्योरिटीज, के.के. पुरी, नरेश सरीन तथा कंपनी के अन्य अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई।
- शिकायत में आरोप लगाया गया कि जसपाल सिंह एवं संजय आनंद ने सह-आरोपियों के साथ मिलकर प्रॉक्सी प्राप्त करने और के.के. पुरी एवं नरेश सरीन के पक्ष में वोट देने के लिये विभिन्न सदस्यों के प्ररूप हस्ताक्षर किये।
- शिकायतकर्त्ता ने LSE सिक्योरिटीज लिमिटेड के संबंधित क्लर्क को चुनाव से संबंधित प्रॉक्सी, संकल्प, मतदाता सूची और मतदान रिकॉर्ड सहित रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के लिये सम्मन जारी करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया।
- 27 फरवरी 2013 को, ट्रायल कोर्ट ने आपेक्षित रिकॉर्ड के साथ क्लर्क को बुलाने के लिये आवेदन को स्वीकार कर लिया।
- याचिकाकर्त्ता/आरोपी ने अभिलेखों पर विशेषाधिकार का दावा करते हुए एक आवेदन किया, जिसमें तर्क दिया गया कि वे गोपनीय प्रकृति के हैं।
- 13 सितंबर 2013 को ट्रायल कोर्ट द्वारा उनके विशेषाधिकार के दावे को खारिज करने के बाद, याचिकाकर्त्ता ने लुधियाना के सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक पुनरीक्षण याचिका दायर की।
- सत्र न्यायालय ने पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करने से मना कर दिया, यह निर्णय देते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट का आदेश प्रकृति में अंतरवर्ती था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के इस दावे में कोई दम नहीं पाया कि समन किये गए रिकॉर्ड संवेदनशील प्रकृति के थे, जिनमें पर्याप्त बैंक जमा रखने वाले कंपनी सदस्यों के हस्ताक्षर थे।
- न्यायालय ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट ने केवल संबंधित क्लर्क को, जो आरोपी नहीं था, प्रासंगिक चुनाव रिकॉर्ड के साथ साक्षी के रूप में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया था।
- न्यायालय ने देखा कि अनुच्छेद 20(3) आत्मदोषसिद्धि के विरुद्ध संरक्षण केवल तभी लागू होता है जब तीन शर्तें पूरी होती हैं:
- किसी अपराध का आरोप
- साक्ष्य प्रस्तुत करने की बाध्यता
- आरोपों से संबंधित आत्मदोषसिद्धिपूर्ण सामग्री
- न्यायालय ने पाया कि किसी भी अभियुक्त को दस्तावेज प्रस्तुत करने या आपत्तिजनक अभिकथन देने के लिये बाध्य नहीं किया गया था - केवल रिकॉर्ड कीपर को दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी।
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि विशेषाधिकार का दावा केवल तभी किया जा सकता है जब राज्य का हित शामिल हो या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा हो, जो इस मामले में लागू नहीं था।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आपेक्षित दस्तावेज विवाद पर प्रकाश डालने और शिकायत में शामिल मुद्दों पर निर्णय लेने में ट्रायल कोर्ट की सहायता करने के लिये आवश्यक थे।
- न्यायालय ने पाया कि ट्रायल कोर्ट और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश तथ्यों एवं विधि की तर्कपूर्ण समझ पर आधारित थे।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(3) क्या है?
- अनुच्छेद 20(3) में यह मौलिक सिद्धांत समाहित है कि किसी आरोपी व्यक्ति को गवाही देने या ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता जो उसे संभावित रूप से दोषी ठहरा सकता हो, यह आपराधिक कार्यवाही के दौरान बलात आत्मदोषसिद्धि ठहराए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 20(3) सुरक्षा लागू होने के लिये, तीन आवश्यक शर्तें एक साथ पूरी होनी चाहिये:
(i) व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप होना चाहिये।
(ii) साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये बाध्यता का तत्व होना चाहिये।
(iii) ऐसे साक्ष्य उनके विरुद्ध आरोपों से संबंधित आत्म-अपराधी प्रकृति के होने चाहिये। - जैसा कि बॉम्बे राज्य बनाम काठी कालू (1961) में उच्चतम न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया था, विवाद पर प्रकाश डालने वाले दस्तावेजों का मात्र यांत्रिक उत्पादन आत्मदोषसिद्धि नहीं माना जाएगा, जब तक कि उनमें अभियुक्त का व्यक्तिगत ज्ञान या अभिकथन शामिल न हो - इस प्रकार अनुच्छेद 20(3) के संरक्षण के शंसापत्र द्वारा साक्ष्य और गैर शंसापत्र द्वारा साक्ष्य के बीच अंतर किया जाता है।
- यह विधिक सूत्र पर कार्य करता है - निमो टेनेटूर प्रोड्रे एक्यूसेरे सीप्सम - इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को कोई आत्मदोषसिद्धि का अभिकथन देने के लिये विवश नहीं किया जा सकता है।
क्या कंपनियाँ संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत सुरक्षा का दावा कर सकती हैं?
- अधिकारिता एवं मूलभूत सुरक्षा का उपबंध:
- अनुच्छेद 20(3) अपराध के आरोपी व्यक्तियों एवं कंपनियों दोनों को आत्मदोषसिद्धि दिये जाने के विरुद्ध मौलिक सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह सुरक्षा व्यक्तियों एवं संस्थाओं को आपराधिक कार्यवाही में स्वयं के विरुद्ध साक्षी बनने के लिये बाध्य किये जाने से भी रोकती है।
- आवश्यक आवश्यकताएँ:
- कंपनियों पर अनुच्छेद 20(3) लागू होने के लिये तीन शर्तें पूरी होनी चाहिये:
- कंपनी पर औपचारिक रूप से अपराध का आरोप लगाया जाना चाहिये।
- साक्ष्य प्रस्तुत करने की बाध्यता होनी चाहिये।
- साक्ष्य स्व-अपराधी प्रकृति का होना चाहिये।
- दस्तावेज़ी प्रमाण:
- किसी कंपनी द्वारा व्यावसायिक दस्तावेजों या अभिलेखों का मात्र यांत्रिक उत्पादन आत्मदोषसिद्धि नहीं माना जाता है।
- केवल ऐसे दस्तावेज जिनमें कंपनी के अधिकारियों की व्यक्तिगत सूचना या प्रशंसापत्र शामिल हों, जो कंपनी को दोषी ठहरा सकते हैं, अनुच्छेद 20(3) के संरक्षण के अंतर्गत आते हैं।
- कर्मचारी हितों का संरक्षण:
- कंपनी के कर्मचारी जो आरोपी नहीं हैं, उनसे कंपनी के दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिये कहे जाने पर अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते।
- कंपनी के रिकॉर्ड कीपर या क्लर्क को दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिये विवश किया जा सकता है, क्योंकि वे व्यक्तिगत रूप से आरोपी नहीं हैं।
- सीमाएँ:
- कंपनियाँ नियमित व्यावसायिक रिकॉर्ड या ऐसे दस्तावेज़ों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकतीं जिनमें व्यक्तिगत सूचना शामिल न हो।
- यह संरक्षण उन दस्तावेज़ों तक विस्तारित नहीं होता जो केवल विवाद के बिंदुओं पर प्रकाश डालते हैं लेकिन जिनमें आत्म-अपराधी कथन नहीं होते।
- विवशता का पहलू:
- यह सुरक्षा केवल विवशता पूर्ण गवाही या साक्ष्य के विरुद्ध लागू होती है।
- कंपनी के अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों या अभिकथनों का स्वैच्छिक पहल अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत संरक्षित नहीं है।
सिविल कानून
बैगेज संबंधी नियमों की समीक्षा की आवश्यकता
17-Jan-2025
कमर जहाँ बनाम भारत संघ, सचिव, वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि द्वारा एवं अन्य "यथार्थ में पर्यटक/यात्री, जिनमें भारतीय मूल के लोग जैसे OCI कार्डधारक, PIO आदि शामिल हैं, भारत में सामाजिक कार्यक्रमों के लिये सोना लेकर यात्रा कर सकते हैं, जिसका मूल्य स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक हो सकता है।" न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह एवं धर्मेश शर्मा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा है कि हवाई यात्रा कर भारत आने वाले व्यक्ति द्वारा ले जाए जा सकने वाले सोने या सोने के आभूषणों की मात्रा के आधार पर बैगेज नियम, 2016 को संशोधित किया जाना चाहिये, ताकि यथार्थ में हवाई यात्रियों को होने वाली असुविधा को रोका जा सके।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कमर जहाँ बनाम भारत संघ (वित्त मंत्रालय के सचिव द्वारा प्रतिनिधित्व) एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
कमर जहाँ बनाम भारत संघ (वित्त मंत्रालय के सचिव द्वारा प्रतिनिधित्व) एवं अन्य द्वारा प्रतिनिधित्व मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला कमर जहाँ बनाम भारत संघ से संबंधित है तथा इसे दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट याचिका के रूप में संस्थित किया गया था।
- याचिकाकर्त्ता ने दो आदेशों को चुनौती दी:
- सीमा शुल्क संयुक्त आयुक्त द्वारा जारी मूल आदेश।
- सीमा शुल्क (अपील) आयुक्त द्वारा जारी अपीलीय आदेश।
- सीमा शुल्क संयुक्त आयुक्त ने मूल आदेश में कहा:
- याचिकाकर्त्ता के दो सोने के कड़े और एक सोने की चेन जब्त करने का आदेश दिया।
- 75,000 रुपये का मोचन अर्थदण्ड लगाया।
- सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (CA) के अंतर्गत 1,10,000 रुपये का व्यक्तिगत अर्थदण्ड लगाया।
- याचिकाकर्त्ता ने मूल आदेश के विरुद्ध सीमा शुल्क आयुक्त (अपील) के समक्ष अपील की।
- 24 सितंबर 2024 को सीमा शुल्क आयुक्त (अपील) ने याचिकाकर्त्ता की अपील खारिज कर दी।
- यह मामला बैगेज नियम, 2016 के निर्वचन एवं अनुप्रयोग से संबंधित है, जो:
- 1 अप्रैल 2016 को लागू हुआ।
- CA की धारा 79 के अंतर्गत पारित किया गया।
- भारत में आभूषण लाने के लिये अनुमेय सीमाएँ निर्धारित की गईं।
- पुरुष एवं महिला यात्रियों के लिये अलग-अलग वजन और मूल्य सीमाएँ निर्धारित की गईं।
- यह मामला भारत में प्रवेश करने वाले यात्रियों द्वारा व्यक्तिगत आभूषणों की घोषणा और उन्हें साथ ले जाने से संबंधित है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- घोषणा की आवश्यकताओं के संबंध में:
- न्यायालय ने कहा कि जब यात्री निर्धारित सीमा से अधिक आभूषण ले जाते हैं, तो उन्हें इसकी पूर्व घोषणा करनी चाहिये।
- घोषणा करने पर, कोई शुल्क भुगतान की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन यात्रियों को यह दर्शाते हुए एक वचन देना होगा कि वे घोषित आभूषण वापस ले जाने का आशय रखते हैं।
- हालाँकि, न्यायालय ने पाया कि इस घोषणा की आवश्यकता को सामान नियमों या घोषणा फॉर्म में स्पष्ट रूप से नहीं समझाया गया है।
- वर्तमान नियमों से संबंधित मुद्दे:
- न्यायालय ने पाया कि ग्रीन चैनल (गैर-शुल्क योग्य वस्तुओं के लिये) का उपयोग करने वाले यात्रियों से कभी-कभी आभूषणों की छोटी मात्रा भी जब्त कर ली जाती है।
- बैगेज नियमों में मूल्य सीमा को वर्तमान सोने की कीमतों को देखते हुए पुराना पाया गया।
- न्यायालय ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि 1,00,000/- रुपये की सीमा के साथ, केवल 15 ग्राम सोना ही खरीदा जा सकता है, जो 40 ग्राम वजन सीमा से बहुत कम है।
- कार्यान्वयन से संबंधित चिंताएं:
- न्यायालय ने सीमा शुल्क अधिकारियों के पास बहुत अधिक मनमानी शक्ति और विवेकाधिकार होने के विषय में चिंता व्यक्त की।
- इस विवेकाधिकार के कारण वास्तविक यात्रियों को परेशान किया जा सकता है।
- न्यायालय ने सीमा शुल्क विभाग की इस चिंता को स्वीकार किया कि अक्सर यात्रा करने वाले यात्री सोने की तस्करी कर सकते हैं।
- संतुलन की आवश्यकता:
- अवैध सोने की तस्करी पर अंकुश लगाने की आवश्यकता को पहचानते हुए, न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि वास्तविक पर्यटकों/यात्रियों को उत्पीड़न का सामना नहीं करना चाहिये।
- भारतीय मूल के यात्रियों (OCI कार्डधारकों, PIO) का विशेष उल्लेख किया गया, जो विवाह जैसे सामाजिक संस्कारों के लिये यात्रा कर सकते हैं।
- न्यायालय ने पाया कि विस्तृत घोषणाओं की आवश्यकता हवाई अड्डे पर प्रवेश/निकास प्रक्रिया को असुविधाजनक एवं बोझिल बना सकती है।
- नियम संशोधन की आवश्यकता:
- न्यायालय ने कहा कि CBIC को बैगेज नियमों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
- वर्तमान सोने की मूल्य सीमा बाजार की कीमतों से मेल नहीं खाती।
- नियमों को अद्यतन करने की आवश्यकता है ताकि तस्करी को रोका जा सके और वास्तविक यात्रियों को परेशान न किया जा सके।
- न्यायालय की टिप्पणियों के परिणामस्वरूप CBIC के अध्यक्ष को अन्य संबंधित विभागों एवं मंत्रालयों के साथ समन्वय करके बैगेज नियम 2016 पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया।
CA की धारा 79 के अंतर्गत बैगेज ड्यूटी छूट एवं नियामक ढाँचा क्या हैं?
शुल्क मुक्त भत्ते
- व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएँ:
- यात्रियों एवं चालक दल के सदस्यों के लिये:
- निर्दिष्ट न्यूनतम अवधि के लिये पूर्व उपयोग को प्रदर्शित करने वाली वस्तुएँ।
- उपयोग की अवधि के संबंध में सीमा शुल्क अधिकारी की संतुष्टि के अधीन।
- यात्रियों एवं चालक दल के सदस्यों के लिये:
- व्यक्तिगत एवं उपहार की वस्तुएँ:
- अनुमत श्रेणियाँ:
- यात्री के निजी उपयोग के लिये सामान।
- यात्री के पारिवारिक उपयोग के लिये सामान।
- प्रामाणिक उपहार।
- स्मृति चिन्ह।
- अनुमत श्रेणियाँ:
- मूल्य पर प्रतिबंध:
- व्यक्तिगत वस्तु का मूल्य निर्धारित सीमा से अधिक नहीं होना चाहिये।
- सकल मूल्य निर्दिष्ट कुल सीमा के अनुरूप होना चाहिये।
नियम निर्धारित करने वाला प्राधिकारी
- केन्द्र सरकार की शक्तियाँ:
- निम्नलिखित के लिये नियम निर्धारण हेतु प्राधिकरण:
- धारा प्रावधानों का कार्यान्वयन।
- विस्तृत आवश्यकताओं का विवरण।
- प्रक्रियात्मक ढाँचे की स्थापना।
- निम्नलिखित के लिये नियम निर्धारण हेतु प्राधिकरण:
- नियम-निर्माण के विशिष्ट क्षेत्र:
- उपयोग की न्यूनतम अवधि निर्दिष्ट करने का अधिकार।
- यात्री एवं चालक दल के सामान पर लागू।
- प्रति वस्तु अधिकतम मूल्य निर्धारित करने की शक्ति।
- कुल मूल्य सीमाएँ स्थापित करने का अधिकार।
- शुल्क-मुक्त भत्तों पर लागू।
- पूर्व-स्वीकृति की आवश्यकताएँ।
- स्वीकृति के पश्चात दायित्व।
- प्रक्रियात्मक अनुपालन हेतु उपाय।
विभेदक उपचार
- वर्गीकरण हेतु प्राधिकरण:
- निम्नलिखित के लिये अलग-अलग नियम स्थापित करने की शक्ति:
- व्यक्तियों की विभिन्न श्रेणियाँ।
- यात्रियों की विभिन्न श्रेणियाँ।
- निम्नलिखित के लिये अलग-अलग नियम स्थापित करने की शक्ति:
- कार्यान्वयन में लचीलापन:
- प्राधिकार:
- अलग-अलग विनियामक ढाँचे बनाना।
- अलग-अलग मानक लागू करना।
- वर्ग-विशिष्ट आवश्यकताएँ स्थापित करना।
- प्राधिकार:
विवेकाधीन शक्तियाँ
- सीमा शुल्क अधिकार प्राधिकरण:
- निहित शक्तियों में शामिल हैं:
- उपयोग अवधि का मूल्यांकन।
- इच्छित उपयोग का मूल्यांकन।
- उपहार/स्मारिका की स्थिति का सत्यापन।
- मूल्य अनुपालन का निर्धारण।
- निहित शक्तियों में शामिल हैं:
- संतुष्टि की आवश्यकता:
- अधिकारी को निम्नलिखित उपबंधों से संतुष्ट होना चाहिये:
- दावों की प्रामाणिकता।
- निर्धारित शर्तों का अनुपालन।
- मूल्य सीमाओं का पालन।
- अधिकारी को निम्नलिखित उपबंधों से संतुष्ट होना चाहिये:
बैगेज नियम 2016 के अनुसार व्यक्तिगत आयात के लिये सीमा शुल्क विनियम क्या हैं?
- ये विनियम अनुलग्नक 1 में दिये गए सामान नियमों के नियम 3, 4 एवं 6 के अंतर्गत दी गई सीमाओं एवं प्रतिबंधों को शामिल करते हैं:
- नियम 3: नेपाल, भूटान या म्यांमार के अतिरिक्त अन्य देशों से आने वाले यात्री
- नियम 4: नेपाल, भूटान या म्यांमार से आने वाले यात्री
- नियम 6: निवास का स्थानांतरण
अतिरिक्त बैगेज के लिये सामान्य शुल्क संरचना
- मानक शुल्क दर:
- मूल सीमा शुल्क 35% लगाया जाएगा।
- अतिरिक्त शिक्षा उपकर 3% लगाया जाएगा।
- प्रभावी संचयी शुल्क दर 36.05% होगी।
- गणना पद्धति:
- शुल्क-मुक्त भत्ते से अधिक वस्तुओं के लिये:
- शुल्क की गणना केवल अतिरिक्त मूल्य पर की जाएगी।
- आधार मूल्य, निःशुल्क भत्ते से अधिक राशि होगी।
- शुल्क-मुक्त भत्ते से अधिक वस्तुओं के लिये:
- विशेष श्रेणियाँ:
- मादक पेय
- मूल सीमा शुल्क: 150%।
- अतिरिक्त सीमा शुल्क: 4%।
- सीमा शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 के अंतर्गत वाणिज्यिक आयात नियमों के अनुसार शुल्क गणना।
- मादक पेय
- तम्बाकू उत्पाद:
- मूल सीमा शुल्क: 100%।
- अतिरिक्त उपकर: 3%।
- सीमा शुल्क टैरिफ शीर्षक 98.03 के अंतर्गत टैरिफ गणना।
सोने एवं चांदी के लिये आयात नियम
- पात्रता के लिये मापदंड:
- निम्नलिखित व्यक्ति आयात कर सकते हैं:
- भारतीय मूल के यात्री।
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967 के अंतर्गत जारी वैध पासपोर्ट धारक।
- निवास हेतु आवश्यकताएँ
- अनिवार्य विदेश प्रवास:
- विदेश में न्यूनतम छह महीने की अवधि।
- लघु यात्रा भत्ता:
- कुल अवधि 30 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- ऐसी यात्राओं से पात्रता प्रभावित नहीं होगी।
- निम्नलिखित व्यक्ति आयात कर सकते हैं:
- आयात के लिये शर्तें:
- शुल्क का भुगतान:
- परिवर्तनीय विदेशी मुद्रा में भुगतान किया जाना चाहिये।
- वर्तमान दर: 10% प्लस 3% अतिरिक्त शुल्क।
- मात्रा के लिये प्रतिबंध:
- सोना (आभूषण सहित): अधिकतम सीमा प्रति यात्री एक किलोग्राम है।
- चांदी: अधिकतम सीमा प्रति यात्री दस किलोग्राम है।
- शुल्क का भुगतान:
- आयात के लिये प्रक्रियाएँ:
- समय की सीमाएँ:
- आगमन के समय, या
- आगमन के पंद्रह दिनों के अंदर।
- वैकल्पिक आयात विधि:
- अधिकृत कस्टम्स बांडेड गोदामों से डिलीवरी ली जा सकती है:
- भारतीय स्टेट बैंक।
- खनिज एवं धातु व्यापार निगम लिमिटेड।
- अधिकृत कस्टम्स बांडेड गोदामों से डिलीवरी ली जा सकती है:
- समय की सीमाएँ:
- घोषणा करने के लिये आवश्यकताएँ:
- निर्धारित घोषणा पत्र भरना अनिवार्य है।
- उचित सीमा शुल्क अधिकारी के समक्ष घोषणा की जानी चाहिये।
- बंधित गोदाम से डिलीवरी लेने का आशय घोषित किया जाना चाहिये।
- सीमा शुल्क निकासी से पहले शुल्क भुगतान आवश्यक है।
- मूल्यांकन की पद्धति:
- अमेरिकी डॉलर मूल्यांकन के आधार पर।
- M.F. (D.R.) अधिसूचनाओं के अनुसार रूपांतरण दरें।
- टैरिफ मूल्यों एवं रूपांतरण दरों का द्वि-मासिक संशोधन।
नियम 5: आभूषण
- इस नियम में कहा गया है कि एक वर्ष से अधिक समय तक विदेश में रहने वाले यात्री को भारत लौटने पर अपने वास्तविक सामान में बीस ग्राम तक के आभूषण, जिनकी कीमत पचास हजार रुपये तक है, यदि वह सज्जन यात्री द्वारा लाया गया हो, या चालीस ग्राम तक के आभूषण, जिनकी कीमत एक लाख रुपये तक है, यदि वह महिला यात्री द्वारा लाया गया हो, निःशुल्क निकासी की अनुमति दी जाएगी।
वाणिज्यिक विधि
आयकर आयुक्त (अपील) द्वारा ITAT पर दिया जाने वाला निर्णय
17-Jan-2025
डिवाइन इंफ्राकॉन प्राइवेट लिमिटेड बनाम PR आयकर आयुक्त तृतीय "यह प्रश्न कि क्या AO द्वारा उक्त परिवर्धन युक्तियुक्त तरीके से किया गया था, संबंधित ITAT के विचारार्थ नहीं होगा।" कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति विभू बाखरू एवं न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू एवं न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने आयकर अपीलीय अधिकरण द्वारा पारित आदेश को अपास्त कर दिया, जिसमें ऐसे आधार प्रावधानित किये गए थे जो आयकर आयुक्त (अपील) द्वारा पारित आदेश से संबंधित नहीं थे।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने डिवाइन इन्फ्राकॉन प्राइवेट लिमिटेड बनाम PR आयकर आयुक्त तृतीय (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
डिवाइन इंफ्राकॉन प्राइवेट लिमिटेड बनाम PR आयकर आयुक्त तृतीय मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में करदाता रियल एस्टेट व्यवसाय एवं होटल संचालन में लगा हुआ था।
- जगत समूह के मामलों के संबंध में आयकर अधिनियम, 1961 (IT अधिनियम) की धारा 132 एवं 133A के अंतर्गत तलाशी एवं अभिग्रहण की कार्यवाहियाँ की, जिसमें करदाता के द्वारका, नई दिल्ली में व्यावसायिक परिसर भी शामिल थे।
- अधिनियम की धारा 127 के अंतर्गत करदाता का मामला कर निर्धारण अधिकारी (AO), सेंट्रल सर्किल-09, नई दिल्ली के पास संस्थित किया गया।
- AO ने अधिनियम की धारा 153A के अंतर्गत एक नोटिस जारी किया, जिसमें करदाता को कर निर्धारण वर्ष (AY) 2009-10 सहित रिटर्न दाखिल करने की आवश्यकता थी।
- करदाता ने प्रत्युत्तर में कहा कि 28 अक्टूबर 2009 को धारा 139(1) के अंतर्गत दाखिल उसके मूल रिटर्न को कर निर्धारण वर्ष 2009-10 के लिये माना जाना चाहिये। करदाता ने धारा 153A की कार्यवाही पर भी आपत्ति जताई, जिसमें दावा किया गया कि तलाशी के दौरान कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली।
- AO ने करदाता की आपत्तियों को खारिज कर दिया तथा तीन संस्थाओं से असुरक्षित ऋण के कारण मूल्यांकन वर्ष 2009-10 के लिये ₹4,30,00,000 की आय निर्धारित की:
- इंडेक्स सिक्योरिटीज एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड: ₹1,00,00,000
- अट्रैक्टिव फिनलीज लिमिटेड: ₹30,00,000
- ट्रांस नेशनल ग्रोथ फ्लूइड लिमिटेड: ₹3,00,00,000
- AO ने अधिनियम की धारा 68 के अंतर्गत अस्पष्टीकृत नकद क्रेडिट के रूप में ₹4,30,00,000 जोड़े, और निष्कर्ष निकाला कि ये जैन ब्रदर्स द्वारा प्रबंधित आवास प्रविष्टियाँ थीं।
- करदाता ने आयकर आयुक्त (अपील) (CIT (ए)) के समक्ष अपील की, जिसमें कई आधारों पर कर निर्धारण को चुनौती दी गई। अपील का निर्णय एक आधार पर किया गया, जिसमें कहा गया कि धारा 153A लागू नहीं थी क्योंकि तलाशी के दौरान कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली थी।
- राजस्व विभाग ने आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT) में CIT (A) के आदेश के विरुद्ध अपील की।
- ITAT ने राजस्व विभाग की अपील को स्वीकार करते हुए AO के मूल्यांकन आदेश को बहाल कर दिया। करदाता ने अब वर्तमान अपील में ITAT के दिनांक 07.02.2024 के आदेश को चुनौती दी है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने पाया कि CIT (A) ने करदाता की अपील पर केवल आयकर अधिनियम की धारा 153A की अनुपयुक्तता के आधार पर निर्णय दिया, क्योंकि तलाशी के दौरान कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली थी तथा धारा 68 के अंतर्गत 4,30,00,000 रुपये की अतिरिक्त राशि के गुण-दोष पर विचार नहीं किया गया था।
- न्यायालय ने माना कि ITAT ने धारा 68 के अंतर्गत जोड़ने का निर्णय लिया, जो CIT(A) के आदेश से उत्पन्न नहीं हुआ था तथा उसके समक्ष इस पर चर्चा नहीं की गई थी।
- न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- न्यायालय ने माना कि आयकर अपीलीय अधिकरण ने धारा 68 के अंतर्गत CIT (A) के निर्णय के बिना संबोधित करने में चूक की।
- यह भी माना गया कि CIT(A) ने यह निर्णय नहीं लिया कि अस्पष्टीकृत क्रेडिट के रूप में ₹4,30,00,000 का वैध था या नहीं।
- अंततः दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित निर्णय दिया:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने ₹4,30,00,000 जोड़ने से संबंधित ITAT के आदेश को अपास्त कर दिया।
- न्यायालय ने पहले तय नहीं किये गए आधारों पर निर्णय के लिये CIT(A) के समक्ष करदाता की अपील को बहाल कर दिया।
भारत में करों के प्रकार क्या हैं?
- कर दो प्रकार के होते हैं: प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर।
- प्रत्यक्ष कर: प्रत्यक्ष कर किसी व्यक्ति या संगठन की आय या संपत्ति पर सीधे लगाए जाते हैं। इन्हें करदाता द्वारा सीधे सरकार को भुगतान किया जाता है। ये इस प्रकार हैं:
- आयकर: व्यक्तियों, संयुक्त हिंदू परिवारों (HUF) एवं व्यवसायों पर उनकी आय के आधार पर लगाया जाता है।
- कॉर्पोरेट कर: कंपनियों की शुद्ध आय या लाभ पर लगाया जाता है।
- पूँजीगत लाभ कर: संपत्ति, स्टॉक या बॉन्ड जैसी पूँजीगत संपत्तियों की बिक्री से अर्जित लाभ पर लगाया जाता है। यह हो सकता है:
- अल्पकालिक पूँजीगत लाभ कर (STCG)
- दीर्घकालिक पूँजीगत लाभ कर (LTCG)
- प्रतिभूति लेनदेन कर (STT): शेयर बाजार में लेनदेन पर कर, जैसे इक्विटी शेयरों की बिक्री या खरीद।
- लाभांश वितरण कर (DDT): लाभांश वितरित करने वाली कंपनियों द्वारा भुगतान किया जाता है (2020 में समाप्त कर दिया गया और शेयरधारकों को अंतरित कर दिया गया)।
- संपत्ति कर: (2015 में समाप्त कर दिया गया) पहले किसी व्यक्ति की शुद्ध संपत्ति एक निश्चित सीमा से अधिक होने पर लगाया जाता था।
- अप्रत्यक्ष कर: अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाए जाते हैं तथा इन्हें वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत में शामिल किया जाता है, जिसका भुगतान उपभोक्ता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। अप्रत्यक्ष करों के प्रकार निम्नलिखित हैं:
- वस्तु एवं सेवा कर (GST): वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर एक व्यापक कर, जिसमें कई अन्य अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं। इसमें शामिल हैं:
- CGST: केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर
- SGST: राज्य वस्तु एवं सेवा कर
- IGST: एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर
- UTGST: केंद्र शासित प्रदेश वस्तु एवं सेवा कर
- सीमा शुल्क: भारत में आयातित या भारत से निर्यात किये जाने वाले वस्तुओं पर लगाया जाता है।
- स्टाम्प ड्यूटी: संपत्ति बिक्री विलेख जैसे विधिक दस्तावेजों पर लगाया जाता है।
- मनोरंजन कर: (ज्यादातर मामलों में GST के अंतर्गत आता है) पहले मूवी टिकट, इवेंट आदि पर लगाया जाता था।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST): वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर एक व्यापक कर, जिसमें कई अन्य अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं। इसमें शामिल हैं:
आयकर अधिनियम, 1961 क्या है?
- भारत में कराधान दो सिद्धांतों पर आधारित है:
- सबसे पहले, यह COI के इस आदेश पर आधारित है कि विधिक अधिकार के बिना कोई भी कर न तो लगाया जाएगा और न ही वसूला जाएगा।
- दूसरा, यह सुनिश्चितता के सिद्धांत पर आधारित है, कि लगाया जाने वाला कोई भी कर अस्पष्ट नहीं होना चाहिये, सुसंगत एवं पूर्वानुमान योग्य होना चाहिये।
- आयकर अधिनियम 1961 भारत में एक व्यापक संविधि है जो व्यक्तियों एवं व्यवसायों के लिये आय के कराधान को नियंत्रित करता है।
- यह 1 अप्रैल, 1962 को लागू हुआ तथा देश में आयकर और सुपर-टैक्स की गणना, लगाने एवं संग्रह करने के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
- यह अधिनियम पिछले वर्ष (जब आय अर्जित की जाती है) तथा मूल्यांकन वर्ष (जब आय पर कर लगाया जाता है) जैसी महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं को परिभाषित करता है और कर अधिकारियों, मूल्यांकन एवं उच्च न्यायालयों में अपील के लिये संरचना स्थापित करता है।
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 68 क्या है?
- पिछले वर्ष के लिये करदाता की पुस्तकों में जमा की गई कोई भी राशि, उसकी प्रकृति एवं स्रोत के विषय में संतोषजनक स्पष्टीकरण के बिना, उस वर्ष के लिये करदाता की आय के रूप में कर योग्य हो सकती है।
- कंपनियों के लिये (सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली कंपनियों को छोड़कर), शेयर आवेदन राशि, शेयर पूंजी, शेयर प्रीमियम, या इसी तरह की राशि को तब तक अस्पष्ट माना जाएगा जब तक कि:
- जिस निवासी के नाम पर क्रेडिट दर्ज किया गया है, उसे जमा की गई राशि की प्रकृति एवं स्रोत के विषय में स्पष्टीकरण भी देना होगा।
- दिये गए स्पष्टीकरण को मूल्यांकन अधिकारी द्वारा संतोषजनक पाया गया है।
- यदि ऋण प्राप्त व्यक्ति अधिनियम की धारा 10(23FB) के अंतर्गत परिभाषित उद्यम पूंजी निधि या उद्यम पूंजी कंपनी है तो उपरोक्त नियम लागू नहीं होगा।