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आपराधिक कानून
आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण
« »17-Mar-2025
पटेल बाबूभाई मनोहरदास एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य “मात्र उत्पीड़न के आरोप के आधार पर, यदि अभियुक्त द्वारा घटना के समय के निकट कोई प्रत्यक्ष कार्रवाई नहीं की गई हो, जिससे मृतक आत्महत्या के लिये प्रेरित या बाध्य हुआ हो, तो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन दोषसिद्धि न्यायसंगत नहीं होगी।” न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान ने निर्णय दिया कि मात्र उत्पीड़न या ब्लैकमेल, बिना प्रत्यक्ष उकसावे या आत्महत्या के लिये बाध्य करने वाले निकटवर्ती कृत्यों के, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन दोषसिद्धि बनाए रखने के लिये अपर्याप्त है।
- उच्चतम न्यायालय ने पटेल बाबूभाई मनोहरदास एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
पटेल बाबूभाई मनोहरदास एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ताओं (आरोपी संख्या 1-4) को शुरू में विचारण न्यायालय और उच्च न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या का दुष्प्रेरण) और 114 (अपराध किये जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति) के अधीन दोषसिद्ध ठहराया गया था।
- मृतक दशरथभाई करसनभाई परमार ने 25 अप्रैल, 2009 को कथित तौर पर डाइक्लोरवोस ऑर्गनोफॉस्फोरस जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी।
- मृतक की पत्नी जयबालाबेन ने मृत्यु के 20 दिन बाद 14 मई, 2009 को प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई थी।
- अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्त्ताओं ने मृतक को अपीलकर्त्ता संख्या 3 (गीताबेन) के साथ उसकी आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो दिखाकर ब्लैकमेल किया था, और उसे पैसे और गहने देने के लिये विवश किया था।
- अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि इस ब्लैकमेल के कारण मृतक ने अपने कार्यालय (डाक विभाग) से पैसे की हेराफेरी की, जिसके परिणामस्वरूप अनुशासनात्मक कार्यवाही हुई और उसे निलंबित कर दिया गया।
- मृतक द्वारा कथित रूप से लिखा गया एक सुसाइड नोट उसकी मृत्यु के 20 दिन पश्चात् पेश किया गया, जिसमें अपीलकर्त्ताओं द्वारा ब्लैकमेल को उसकी आत्महत्या का कारण बताया गया।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में असफल रहा कि अपीलकर्त्ताओं ने मृतक को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित किया था।
- न्यायालय ने मृतक की परिस्थितियों और कथित सुसाइड नोट के बारे में साक्षियों के परिसाक्ष्य में महत्त्वपूर्ण असंगतताएँ पाईं ।
- न्यायालय ने FIR दर्ज करने में 20 दिन के विलंब को महत्त्वपूर्ण और अस्पष्ट पाया, जिससे अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह उत्पन्न हुआ।
- न्यायालय ने पाया कि कोई भी आपत्तिजनक साक्ष्य बरामद नहीं हुआ, जैसे कि कथित जहर की बोतल, आपत्तिजनक तस्वीरें/वीडियो, पैसा या आभूषण जो कथित तौर पर अपीलकर्त्ताओं को दिये गए थे।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि सुसाइड नोट की प्रामाणिकता, इसके खोज में विलंब और विवादास्पद परिस्थितियों के कारण संदिग्ध थी, और इसे प्रमाणित करने वाले हस्तलेख विशेषज्ञ के साक्ष्य के रूप में जांच नहीं की गई थी।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि भले ही सुसाइड नोट को वास्तविक माना जाए, लेकिन अपीलकर्त्ताओं द्वारा आत्महत्या की तिथि के निकट कोई ऐसा उकसाने वाला कार्य करने का साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जिसने मृतक को आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प न छोड़ने के लिये बाध्य किया हो।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन दोषसिद्धि के लिये, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने वाले कृत्यों का सबूत होना चाहिये, जिससे आत्महत्या के लिये उकसाने की स्पष्ट आशय का पता चले और यह आत्महत्या के कृत्य के काफी करीब होना चाहिये।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि कि मात्र उत्पीड़न या ब्लैकमेल, बिना प्रत्यक्ष उकसावे या आत्महत्या के लिये बाध्य करने वाले निकटवर्ती कृत्यों के, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन दोषसिद्धि बनाए रखने के लिये अपर्याप्त है।
- इन निष्कर्षों के आधार पर, उच्चतम न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया, उच्च न्यायालय और विचारण न्यायालय के निर्णयों को अपास्त कर दिया, और अपीलकर्त्ताओं को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया।
आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण क्या है?
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 107 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 45 में दुष्प्रेरण को जानबूझकर किया गया कृत्य माना गया है, जिसमें आत्महत्या के लिये उकसाने वाले विनिर्दिष्ट कार्य सम्मिलित हैं।
- दुष्प्रेरण को स्थापित करने वाले तीन आवश्यक घटक हैं:
- किसी व्यक्ति को कार्य करने के लिये प्रत्यक्षत: उकसाना।
- कार्य को सुविधाजनक बनाने के लिये दूसरों के साथ षड्यंत्र में सम्मिलित होना।
- कार्रवाई या अवैध लोप के माध्यम से साशय सहायता करना।
- अभियोजन पक्ष को यह साबित करने का भार उठाना पड़ता है कि अभियुक्त ने मृतक को आत्महत्या करने के लिये प्रत्यक्षत: उकसाया या भौतिक रूप से सहायता की।
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 (धारा 108 BNS) के अधीन विधिक परिणामों में 10 वर्ष तक का कारावास और वित्तीय दण्ड सम्मिलित हैं।
- NCRB के सांख्यिकीय साक्ष्य से पता चलता है कि 2022 में दुष्प्रेरण के मामलों में दण्ड की दर 17.5% है।
- सबूत के भार के लिये अभियुक्त के कार्यों और पीड़ित के निर्णय के बीच स्पष्ट कारण-कार्य संबंध स्थापित करना आवश्यक है।
- कार्यस्थल से संबंधित मामलों में, न्यायालय पेशेवर संबंधों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उच्च साक्ष्य मानक को आवश्यक ठहराते हैं।
- आत्महत्या के लिये विशिष्ट आशय के बिना मात्र उत्पीड़न या पेशेवर दबाव को दुष्प्रेरण नहीं माना जाता है।
- न्यायालयों को परिस्थितिजन्य संबंधों के बजाय "प्रत्यक्ष और भयावह प्रोत्साहन" के ठोस सबूत की आवश्यकता होती है।
- विधि सामान्य कदाचार और किसी को आत्महत्या के लिये उकसाने के उद्देश्य से की गई विशिष्ट कार्रवाइयों के बीच अंतर करती है।
- अन्वेषण में आत्महत्या में अभियुक्त की प्रत्यक्ष भूमिका को दर्शाने वाली घटनाओं की एक स्पष्ट श्रृंखला स्थापित होनी चाहिये।