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आपराधिक कानून

आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण

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 28-Jun-2024

मुरली @ मुरलीधरन बनाम केरल राज्य

“मृतक को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करने के आरोपी का आशय सिद्ध करने वाले साक्ष्यों के अभाव में, याचिकाकर्त्ताओं पर वाद चलाना न्यायालय की विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है”।

न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस की पीठ ने कहा कि अभिलेखों में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे ज्ञात हो सके कि आरोपी का आशय मृतक को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करने का था।

  • केरल उच्च न्यायालय ने मुरली @ मुरलीधरन बनाम केरल राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

मुरली @ मुरलीधरन बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • मृतक ने 6 मार्च 2016 को दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी, जिसमें उसने अपनी मृत्यु के लिये याचिकाकर्त्ताओं को उत्तरदायी बताया था।
  • दोनों सुसाइड नोटों में आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्त्ताओं ने मृतक व्यक्ति के विरुद्ध पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और जब पुलिस ने उन्हें जाँच के लिये बुलाया तो उन्होंने आत्महत्या कर ली।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत आवेदन दायर किया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 306 आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का प्रावधान करती है और ‘दुष्प्रेरण’ शब्द को IPC की धारा 107 में परिभाषित किया गया है।
  • दुष्प्रेरण का अपराध तभी माना जाएगा जब अभियुक्त द्वारा आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित किया गया हो या उकसाया गया हो।
    • दुष्प्रेरण का यह कार्य आत्महत्या के समय के निकट ही होना चाहिये अर्थात् दोनों घटनाओं के समय में अधिक अंतर नही होना चाहिये।
  • वैध प्राधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज करना दुष्प्रेरण के रूप में नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आरोपी को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करना या उकसाना नहीं है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 106 के अधीन आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करना क्या है?

  • BNS की धारा 106 में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी ऐसी आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास, जो दस वर्ष तक बढ़ाई जा सकेगी, दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • यह प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 306 के रूप में था।

 आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के ऐतिहासिक मामले कौन-से हैं?

  • नेताई दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2005):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन अपराध तभी माना जाएगा जब अपराध के लिये दुष्प्रेरित किया गया हो।
    • दुष्प्रेरण के मापदंड भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107 (BNS की धारा 45) के अधीन परिभाषित किये गए हैं और उन्हें तद्नुसार ही समझा जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने कहा कि रिकार्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि अपीलकर्त्ता ने जानबूझकर कोई कार्य या चूक की हो या जानबूझकर मृतक को दुष्प्रेरित किया हो या उसे उकसाया हो।
  • विकास चंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2024)
    • न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का मामला तभी सामने आता है जब अभियुक्त ने संबंधित व्यक्ति को आत्महत्या के लिये बाध्य करने के आशय से काम किया हो।
  • महेंद्र सिंह एवं अन्य गायत्रीबाई बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1995)
    • उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107 के अंतर्गत 'दुष्प्रेरण' शब्द की परिभाषा पर विचार किया तथा माना कि मृतक को परेशान करने का मात्र आरोप आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के अपराध के लिये पर्याप्त नहीं होगा।