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आपराधिक कानून
विधिक साक्ष्य का अभाव
« »17-Apr-2024
निंगन्ना एवं अन्य बनाम नंजनगुड ग्रामीण पुलिस के माध्यम से राज्य “विचारण न्यायालय, विधिक साक्ष्य के अभाव में नैतिक रूप से आरोपी को दोषी नहीं ठहरा सकता।” न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार एवं एस राचैया |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘निंगन्ना एवं अन्य बनाम नंजनगुड ग्रामीण पुलिस के माध्यम से राज्य’ ने माना है कि विचारण न्यायालय विधिक साक्ष्य के अभाव में आरोपी को नैतिक रूप से दोषी नहीं ठहरा सकता है।
निंगन्ना एवं अन्य बनाम नंजनगुड ग्रामीण पुलिस के माध्यम से राज्य मामले की पृष्टभूमि क्या थी ?
- इस मामले में एक शादीशुदा महिला पर आरोपी संक्या 1 एवं 2 के बेटे, आरोपी संख्या 3 के संग अफेयर होने का शक था।
- अभियोजन पक्ष के अनुसार, तीनों आरोपियों ने महिला को अपने घर बुलाया तथा उसे आग लगा दी।
- जलने की चोटों के कारण एक सप्ताह बाद उसकी मृत्यु हो गई।
- विचारण न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड पर लाए गए साक्ष्यों ने उचित संदेह से परे अपना मामला स्थापित किया तथा इस प्रकार, सभी तीन आरोपियों को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के साथ IPC की धारा 34 के अधीन अपराध के लिये दोषी ठहराया।
- इसके बाद, विचारण न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि के निर्णय को रद्द करने के लिये कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई थी।
- अपील में, उन्होंने तर्क दिया कि विचारण न्यायालय ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर दिया कि किसी भी प्रत्यक्षदर्शी ने अभियोजन मामले का समर्थन नहीं किया, तथा उसने दोषसिद्धि आदेश पारित करने के लिये शत्रुतापूर्ण साक्षियों पर विश्वास किया।
- अपील को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने विचारण न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार एवं एस रचैया की पीठ ने कहा कि विचारण न्यायालय विधिक साक्ष्य के अभाव में आरोपी को नैतिक रूप से दोषी नहीं ठहरा सकता।
- आगे कहा गया कि हालाँकि विचारण न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष के साक्षियों ने समर्थन नहीं किया है, लेकिन यह माना गया है कि बचाव पक्ष को अपना मामला सिद्ध करना चाहिये था, जो कि आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विपरीत है।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
IPC की धारा 302
- IPC की धारा 302 हत्या के लिये सज़ा से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि हत्या करने वाले किसी भी व्यक्ति को मृत्यु की सज़ा या आजीवन कारावास की सज़ा दी जा सकती है तथा उस पर ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- IPC की धारा 300 के अधीन हत्या के लिये सज़ा का प्रावधान करता है तथा यह अपराध गैर-ज़मानती, संज्ञेय एवं सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।
IPC की धारा 34
परिचय:
- IPC की धारा 34 सामान्य आशय को आगे बढ़ाने के लिये कई व्यक्तियों द्वारा किये गए कार्यों से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जब कोई आपराधिक कार्य सभी के सामान्य आशय को आगे बढ़ाने के लिये कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तो ऐसे प्रत्येक व्यक्ति, उस कार्य के लिये उसी तरह उत्तरदायी होंगे, जैसे कि यह अकेले उनके द्वारा किया गया हो।
- इस धारा के दायरे में, अपराध में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति को आपराधिक कृत्य में उसकी भागीदारी के आधार पर उत्तरदायी ठहराया जाता है।
आवश्यक तत्त्व:
- इस अनुभाग के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं:
- एक आपराधिक कृत्य कई व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिये।
- उस आपराधिक कृत्य को करने के लिये सभी का एक समान आशय होना चाहिये।
- सामान्य आशय के गठन में सभी व्यक्तियों की भागीदारी आवश्यक है।
निर्णयज विधि:
- हरिओम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1993) के मामले में, यह माना गया कि यह आवश्यक नहीं है कि कोई पूर्व षड्यंत्र या पूर्व-चिंतन हो, घटना के दौरान भी सामान्य आशय बन सकता है।