होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
अधिवक्ता
« »22-May-2024
सिद्ध नाथ पाठक एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य "अधिवक्ता के लाइसेंस के निलंबन से उसके विधिक व्यवसाय की अपूरणीय क्षति होगी तथा इससे उसके मुवक्किल/पेशे के साथ-साथ प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ेगा”। न्यायमूर्ति मोहम्मद फैज़ आलम खान |
स्रोत : इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति मोहम्मद फैज़ आलम खान की पीठ ने कहा कि अधिवक्ता के लाइसेंस के निलंबन से उसके विधिक व्यवसाय की अपूरणीय क्षति होगी तथा इससे उसके मुवक्किल/पेशे के साथ-साथ प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ेगा।
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी सिद्ध नाथ पाठक एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में दी।
सिद्ध नाथ पाठक एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अभियुक्त फैज़ाबाद/अयोध्या में सिविल न्यायालय में, विधिक व्यवसाय में संलग्न अधिवक्ता है।
- उसे ट्रायल कोर्ट द्वारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 147, 148, 323, 308 और 452 के अधीन अपराध के लिये 2014 के सत्र परीक्षण संख्या 288 में अन्य लोगों के साथ दोषी ठहराया गया था।
- निवेदक के एक रिश्तेदार ने उस के विरुद्ध, उसकी दोषसिद्धि के आधार पर उसका पंजीकरण (विधिक व्यवसाय करने का लाइसेंस) रद्द करने के लिये उत्तर प्रदेश विधिज्ञ परिषद के समक्ष शिकायत दर्ज की।
- शिकायत के आधार पर उत्तर प्रदेश विधिज्ञ परिषद ने अधिवक्ता को अधिसूचना जारी की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- सिविल न्यायालय, फैज़ाबाद/अयोध्या में विधिक व्यवसाय करने वाले अपीलकर्त्ता अधिवक्ता का लाइसेंस निलंबित होने से, उन पर आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- इस विशिष्ट परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्त्ता एक विधिक व्यवसायी अधिवक्ता है, तथा उसके लाइसेंस के निलंबन से उसके पेशे एवं प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति होगी, न्यायालय ने उसकी सज़ा पर रोक लगाना उचित समझा।
- अतः अपीलकर्त्ता की सज़ा, जैसा कि वर्ष 2014 के सत्र परीक्षण संख्या 288 में दिनांक 16 मार्च 2023 के आक्षेपित निर्णय द्वारा दर्ज किया गया था, को सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक स्थगित/निलंबित रखने का आदेश दिया गया था, ताकि उसके लाइसेंस के संभावित निलंबन से उसके विधिक व्यवसाय में होने वाली अपूरणीय क्षति को रोका जा सके।
एक अधिवक्ता कौन है?
- भारत में अधिवक्ता:
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 भारत में अधिवक्ताओं के विनियमन और नामांकन को नियंत्रित करता है।
- अधिवक्ता की परिभाषा:
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 2 (A) के अनुसार, एक "अधिवक्ता" का अर्थ वह व्यक्ति है जिसका नाम अधिनियम के प्रावधानों के अधीन राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा बनाई गई अधिवक्ताओं की सूची में दर्ज है।
- एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्यताएँ:
इस अधिनियम की धारा 24, राज्य सूची में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये आवश्यक योग्यताएँ निर्धारित करती है:- भारतीय नागरिकता (पारस्परिक अधिकार उपलब्ध होने पर विदेशी नागरिकों के लिये प्रावधान के साथ)
- न्यूनतम आयु 21 वर्ष
- किसी भारतीय विश्वविद्यालय से विधि की डिग्री अथवा मान्यता प्राप्त विदेशी संस्थान से विधि में योग्यता का होना
- निर्धारित नामांकन शुल्क का भुगतान
- राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्दिष्ट किसी भी अन्य शर्त को पूरा करना
- एक अधिवक्ता की भूमिका एवं कर्त्तव्य:
अधिवक्ता न्यायालयों, न्यायाधिकरणों एवं अन्य न्यायिक मंचों पर मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करके न्यायिक प्रशासन में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उनके कर्त्तव्यों में शामिल हैं:- विधिक सलाह एवं परामर्श प्रदान करना
- विधिक प्रलेखों एवं दलीलों का प्रारूप तैयार करना
- न्यायिक कार्यवाही में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करना
- विधिक अनुसंधान एवं विश्लेषण का संचालन करना
- समझौता वार्ता और वैकल्पिक विवाद समाधान करना
- व्यावसायिक नैतिकता एवं आचरण:
- अधिवक्ता, भारतीय विधिज्ञ परिषद एवं संबंधित राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्धारित व्यावसायिक आचरण एवं शिष्टाचार के नियमों से बंधे हैं।
- ये नियम उनके नैतिक व्यवहार, व्यावसायिक उत्तरदायित्वों एवं मुवक्किलों, न्यायालयों तथा अन्य अधिवक्ताओं के साथ बर्ताव को नियमित करते हैं।
अंतर |
|
पद |
परिभाषा |
अधिवक्ता |
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अधीन राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा बनाए गए अधिवक्ताओं की सूची में नामांकित एक व्यक्ति। |
विधि स्नातक |
एक व्यक्ति जिसने भारत में किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है, जैसा कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 2 (H) में परिभाषित है। |
विधिक व्यवसायी |
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 2(i) के अनुसार एक व्यापक शब्द जिसमें अधिवक्ता, किसी भी उच्च न्यायालय के अधिवक्ता, वकील, मुख्तार और राजस्व एजेंट शामिल हैं। |
प्लीडर(अभिवक्ता) |
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(Q) के अनुसार, किसी विशेष न्यायालय में कार्य करने के लिये विधि द्वारा अधिकृत व्यक्ति, अथवा किसी विशिष्ट कार्यवाही में कार्य करने की अनुमति के साथ न्यायालय द्वारा नियुक्त कोई व्यक्ति। |