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सिविल कानून

मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति

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 15-May-2024

मेसर्स श्री स्वामीनारायण ट्रेवल्स बनाम मेसर्स ऑयल नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड

“न्यायालय धारा 11(6) के अंतर्गत मध्यस्थ तभी नियुक्त कर सकती है जब दोनों पक्ष नोटिस के बाद भी विवाद को मध्यस्थता के लिये संदर्भित करने में विफल रहते हैं”।

 मुख्य न्यायमूर्ति धीरज सिंह ठाकुर

स्रोत: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायलय

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में एक मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 11(6) के तहत एक आवेदन को मान्य करने के लिये, आवेदक को यह प्रदर्शित करना होगा कि प्रतिवादियों ने मध्यस्थता के लिये निर्धारित आवश्यकताओं का पालन नहीं किया है एवं मध्यस्थता को सक्रिय करने के लिये नोटिस दिये जाने के बावजूद विवादों को मध्यस्थ को संदर्भित करने में विफल रहे हैं।

मेसर्स श्री स्वामीनारायण ट्रेवल्स बनाम मेसर्स ऑयल नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ONGC) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • ONGC ने चार वर्षों में 24 घंटे की ड्यूटी के लिये आठ 25 सीटों वाली एसी शिफ्ट बसों को किराए पर लेने के लिये एक निविदा जारी की।
  • याचिकाकर्त्ता ने अनुबंध सुरक्षित कर लिया और 08.04.2019 को एक समझौता किया।
  • विवाद उत्पन्न हुआ, ONGC ने बाद के बिलों से 65,61,300/- रुपए की वसूली की माँग की।
  • याचिकाकर्त्ता ने बाहरी विशेषज्ञ समिति (OEC) के माध्यम से समाधान का अनुरोध किया परंतु उसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
  • याचिकाकर्त्ता ने A&C अधिनियम की धारा 11(6) के तहत आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।
  • प्रतिवादियों ने समझौते के अनुसार मध्यस्थता के माध्यम से निर्णय के लिये तर्क दिया।
  • उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 11 आवेदन के लिये पूर्व मध्यस्थता नोटिस की आवश्यकता है।
  • समझौते के खंड 27.1.3 और A&C अधिनियम की धारा 21 के अनुसार नोटिस की अनुपस्थिति के कारण आवेदन खारिज कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • अदालत ने कहा कि अनुबंध का खंड 27.1 निर्दिष्ट करता है कि मध्यस्थता समझौते में अनिवार्य विवाद नोटिस जारी होने के उपरांत केवल 60 दिन की अवधि के बाद ही शुरू की जा सकती है।
  • खंड 27.3 विवाद समाधान प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिसके लिये किसी भी पक्ष द्वारा विरोधी पक्ष के अधिकारी को एक लिखित विवाद नोटिस देना आवश्यक है।दोनों पक्षों को गोपनीयता बनाए रखते हुए निर्दिष्ट 60 दिन की अवधि के भीतर एक सौहार्दपूर्ण समाधान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये।
  • आगे न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता द्वारा OEC द्वारा सुलह के माध्यम से विवादों को हल करने के स्पष्ट प्रयास के बावजूद, 60 दिन की अवधि समाप्त होने के उपरांत भी प्रतिवादियों को मध्यस्थता खंड लागू करने का कोई औपचारिक नोटिस नहीं दिया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने A&C अधिनियम की धारा 11(6) का हवाला दिया, जो दोनों पक्षों को मध्यस्थ के पास विवाद संदर्भ के लिये आवेदन करने का अधिकार देता है यदि दूसरा पक्ष निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने में विफल हो जाता है।
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 11(6) के तहत एक आवेदन को बनाए रखने के लिये, याचिकाकर्त्ता को यह प्रदर्शित करना आवश्यक था कि प्रतिवादी मध्यस्थता खंड का पालन करने में विफल रहे एवं मध्यस्थता खंड को लागू करने वाला नोटिस प्राप्त करने के उपरांत भी विवादों को मध्यस्थ के पास नहीं भेजा।
  • साथ ही, उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि A&C अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन प्रारंभ करना, मध्यस्थता के लिये नामित दावों के संबंध में, मध्यस्थता की सूचना देने के बाद ही स्वीकार्य है।
  • हालाँकि, उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि, समझौते के खंड 27.1.3 और A&C अधिनियम की धारा 21 के अनुसार प्रतिवादियों को दिये गए किसी भी नोटिस की अनुपस्थिति के कारण, विवादों को निर्णय के लिये एक स्वतंत्र मध्यस्थ के पास नहीं भेजा जा सकता है।

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 क्या है?

  • A&C अधिनियम की धारा 11 में हाल के वर्षों में विभिन्न निर्वचन एवं संशोधन हुए हैं।
  • भारतीय न्यायालय परंपरागत रूप से मानते थे कि धारा 11 के अंतर्गत जाँच का दायरा मध्यस्थता समझौते के अस्तित्त्व का निर्धारण करने तक ही सीमित था।
  • धारा 11 के अंतर्गत न्यायपालिका की भूमिका, विवाद के विवरण को बिना जाने, मध्यस्थता समझौते और विवाद की प्रारंभिक पहचान करने तक सीमित थी।
  • धारा 11 के अंतर्गत एक आवेदन ने न्यायालय को अपनी भागीदारी का आकलन करने के लिये बाध्य किया जिसके बिंदु निम्नवत हैं :
    • क्या पार्टियों के बीच वैध मध्यस्थता समझौता मौजूद है, और
    • यदि ऐसे समझौते से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद के लिये मध्यस्थ की नियुक्ति आवश्यकता है।
  • हालाँकि, हाल के निर्णयों में इस स्थापित सिद्धांत से विचलन देखा गया है। न्यायालय अब न केवल मध्यस्थता समझौते की पहचान करती हैं बल्कि संबंधित प्रथम दृष्टया प्रश्नों की जाँच एवं निर्धारण भी करती हैं।

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 की रूपरेखा क्या है?

  • अधिनियम की धारा 11, मध्यस्थता कार्यवाही में मध्यस्थों की नियुक्ति को संबोधित करती है।
  • यह पक्षों को मध्यस्थों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सहमत होने के विकल्प प्रदान करता है।
  • यदि पक्ष मध्यस्थ नियुक्तियों पर सहमत नहीं हो सकते हैं, तो धारा 11 उन्हें उप-धारा (4), (5) और (6) के माध्यम से ऐसी नियुक्तियों के लिये माननीय सर्वोच्च न्यायालय या माननीय उच्च न्यायालय से संपर्क करने में सक्षम बनाती है।
  • धारा 11 में संशोधन, मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 ("2015 संशोधन") तथा मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 ("2019 संशोधन"), के माध्यम से निहित किये गए हैं।
  • वर्ष 2015 के संशोधन ने धारा 11 में उपधारा 6 A जोड़ दी, जिससे अदालत की जाँच केवल मध्यस्थता समझौते के 'अस्तित्त्व' तक सीमित हो गई।
  • 2019 संशोधन ने सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा, मध्यस्थों की नियुक्ति की शक्ति को, न्यायालयों से नामित मध्यस्थ संस्थानों में स्थानांतरित कर दिया, हालाँकि यह संशोधन अभी तक प्रभावी नहीं है।

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 से संबंधित प्रमुख संशोधन क्या हैं?

  • संशोधन 2015:
    • मध्यस्थों की नियुक्ति अब भारत के मुख्य न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बजाए मामले की प्रकृति के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा की जाएगी।
    • मध्यस्थों की नियुक्ति के लिये आवेदनों का तुरंत निपटान किया जाएगा, विरोधी पक्ष को नोटिस की तारीख से 60 दिन की अवधि के भीतर उन्हें हल करने का प्रयास किया जाएगा।
    • उच्च न्यायालय को मध्यस्थ न्यायाधिकरण की फीस तथा ऐसे भुगतान के तरीके बका निर्धारण के लिये नियम स्थापित करने का अधिकार दिया गया है। इन नियमों के लिये अधिनियम की चौथी अनुसूची में उल्लिखित शुल्क दरों पर विचार करना चाहिये।
  • संशोधन 2019:
    • 2019 संशोधन अधिनियम, उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट की अनुशंसाओं के आधार पर, संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था।
    • प्रमुख संशोधनों में सम्मिलित हैं:
      • स्वतंत्र एवं स्वायत्त "भारतीय मध्यस्थता परिषद" की स्थापना।
    • अधिनियम की धारा 11 में, विशेष रूप से "मध्यस्थों की नियुक्ति" पर ध्यान केंद्रित करते हुए संशोधन करना ।
    • इस संशोधन के माध्यम से उप-धारा (6-A) और (7) को निरस्त कर दिया गया।
    • ACA की संशोधित धारा 11(6) यह अनिवार्य करती है कि मध्यस्थों को नामित मध्यस्थ संस्था द्वारा नियुक्त किया जाए।
    • नियुक्ति प्रक्रिया पक्षों के आवेदन पर आधारित होती है एवं अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिये सर्वोच्च न्यायालय अथवा अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के अतिरिक्त अन्य मध्यस्थता के लिये उच्च न्यायालय द्वारा नामित मध्यस्थ संस्था द्वारा की जाती है।

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • दोनों में, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम नरभेराम पावर एंड स्टील प्राइवेट लिमिटेड और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हुंडे इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन (2018) में उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता करार के अस्तित्त्व की पहचान करने के अतिरिक्त, जाँच किया कि क्या मध्यस्थता करार को प्रभावी बनाने के लिये संविदा में निर्धारित शर्तें पूरी की गई हैं।
  • गरवरे वॉल रोप्स लिमिटेड बनाम कोस्टल मरीन कंस्ट्रक्शन्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड (2018) मामले में उच्चतम न्यायालय की राय थी कि धारा 11 के अंतर्गत एक आवेदन पर तभी निर्णय लिया जा सकता है, जब मध्यस्थता खंड या मध्यस्थता खंड वाले संविदा पर पर्याप्त मुहर लगी हो। उप-धारा (6-A) पर विचार करते हुए कोई यह तर्क दे सकता है कि मध्यस्थता करार के अस्तित्त्व की जाँच में यह शामिल नहीं है कि क्या इस तरह के करार पर पर्याप्त मुहर लगी है।