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सिविल कानून
मध्यस्थ की नियुक्ति
« »26-Dec-2023
स्मैश लीज़र लिमिटेड वी. एंबिएंस कमर्शियल डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड। "किसी पक्ष को केवल तीन व्यक्तियों वाले एक संकीर्ण पैनल से मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।" न्यायमूर्ति ज्योति सिंह |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्मैश लीज़र लिमिटेड बनाम एंबिएंस कमर्शियल डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि किसी पक्ष को केवल तीन व्यक्तियों वाले एक संकीर्ण पैनल से मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है।
स्मैश लीज़र लिमिटेड वी. एंबिएंस कमर्शियल डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता गेमिंग और मनोरंजन केंद्रों के व्यवसाय में शामिल है और प्रतिवादी एक भू-संपदा समूह (Real Estate Group) है।
- एक मनोरंजन केंद्र के संचालन एवं प्रबंधन के लिये एंबिएंस मॉल, वसंत कुंज, चरण- II, नई दिल्ली (पट्टे पर परिसर) के भीतर परिसर के पट्टे के लिये याचिकाकर्त्ता और प्रतिवादी के बीच 1 अगस्त, 2017 को एक पट्टा विलेख निष्पादित किया गया था।
- पट्टे की अवधि 20 वर्ष थी।
- COVID-19 महामारी से उत्पन्न अभूतपूर्व चुनौतियों से जुड़ी वित्तीय कठिनाइयों के कारण, याचिकाकर्त्ता ने वर्ष 2020 में पट्टा समाप्त कर दिया।
- प्रतिवादी ने पट्टा विलेख में निहित विवाद समाधान को लागू किया और दिल्ली उच्च न्यायालय के तीन पूर्व न्यायाधीशों के नाम प्रस्तावित किये, याचिकाकर्त्ता से उनमें से एक को एकमात्र मध्यस्थ के रूप में नामित करने का अनुरोध किया।
- याचिकाकर्त्ता ने तीन नामों को स्पष्ट रूप से स्वीकार न करने की बात कही।
- याचिकाकर्त्ता की आपत्तियों के बावजूद, प्रतिवादी एकपक्षीय मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये आगे बढ़ा।
- याचिकाकर्त्ता की गैर-भागीदारी के बावजूद, मध्यस्थ विवादित निर्णय पारित करने के लिये आगे बढ़े।
- इससे व्यथित होकर, याचिकाकर्त्ता ने इसे माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) के तहत चुनौती दी।
- न्यायालय ने मध्यस्थ की अयोग्यता के आधार पर पंचाट को रद्द कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने कहा कि केवल तीन व्यक्तियों वाले मध्यस्थों का पैनल व्यापक आधार वाला नहीं है, इसलिये किसी पक्ष को ऐसे संकीर्ण पैनल से मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि केवल मध्यस्थ कार्यवाही में भागीदारी को A&C अधिनियम की धारा 12(5) के आवेदन की छूट के रूप में नहीं माना जा सकता है, इसलिये किसी पक्ष को केवल मध्यस्थ कार्यवाही में भागीदारी के आधार पर न्यायाधिकरण की अधिकारिता को चुनौती देने से नहीं रोका जा सकता है, यदि यह आपत्ति मामले की उत्पत्ति से संबंधित है और मध्यस्थ को अयोग्य बना देती है।
A&C अधिनियम की धारा 12(5) क्या है?
- परिचय:
- इस धारा में कहा गया है कि इसके विपरीत किसी भी पूर्व समझौते के बावजूद, कोई भी व्यक्ति जिसका संबंध, पक्षों या वकील या विवाद की विषय-वस्तु के साथ, सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी श्रेणी के अंतर्गत आता है, मध्यस्थ के रूप में नियुक्त होने के लिये अयोग्य होगा।
- निर्णयज विधि:
- पर्किन्स ईस्टमैन आर्किटेक्ट्स DPC और अन्य बनाम HSCC लिमिटेड, (2020) में उच्चतम न्यायालय ने कानून में स्थिति को स्पष्ट कर दिया कि मध्यस्थ की एकपक्षीय नियुक्ति A&C अधिनियम की धारा 12(5) के तहत रद्द कर दी जाएगी क्योंकि यह स्वायत्तता के सिद्धांत को प्रभावित करती है।
- सरोज पांडे बनाम आर्यावर्त प्रोडक्ट्स इंडिया प्रा. लिमिटेड, (2023), उच्चतम न्यायालय ने माना कि एक बार जब मध्यस्थ A&C अधिनियम की धारा 12(5) के तहत कार्य करने के लिये अक्षम और अयोग्य हो जाता है, तो इस प्रश्न की जाँच करना भी आवश्यक नहीं है कि क्या नियुक्ति से असहमत पक्ष ने नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी और यदि यह मान भी लिया जाए कि उक्त पक्ष ने नियुक्ति पर कोई आपत्ति जताए बिना, मध्यस्थ कार्यवाही में भाग लिया था, तो भी यह इसे मानने के लिये पर्याप्त नहीं है कि उसने धारा 12(5) के तहत अपना अधिकार छोड़ दिया है।