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सिविल कानून
मुख्य समझौते में माध्यस्थम् खंड
« »21-Mar-2024
NBCC (इंडिया) लिमिटेड बनाम ज़िलियन इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड “विवाद को माध्यस्थम् हेतु संदर्भित करने के लिये मुख्य संविदा में माध्यस्थम् खंड का उल्लेख किया जाना चाहिये।” न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि विवाद को माध्यस्थम् हेतु संदर्भित करने के लिये मुख्य संविदा में माध्यस्थम् खंड का उल्लेख किया जाना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने NBCC (इंडिया) लिमिटेड बनाम ज़िलियन इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में यह व्यवस्था दी।
NBCC (इंडिया) लिमिटेड बनाम ज़िलियन इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड मामला की पृष्ठभूमि क्या थी?
- NBCC (इंडिया) लिमिटेड, जिसे पहले नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड के नाम से जाना जाता था, एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी और भारत सरकार का उपक्रम है जो निर्माण परियोजनाओं से संबंधित है।
- ज़िलियन इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्रा. लिमिटेड, जिसे पहले दुरा कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता था, एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है जो निर्माण और बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र से संबंधित है।
- NBCC ने DVC, CTPS, चंद्रपुरा, ज़िला-बोकारो, झारखंड- पैकेज "A" में दामोदर नदी पर एक बाँध के निर्माण के लिये निविदा हेतु निमंत्रण जारी किया।
- ज़िलियन इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्रा. लिमिटेड ने अपनी बोली प्रस्तुत की और NBCC द्वारा उसे बाँध के निर्माण का ठेका दिया गया।
- इससे NBCC और ज़िलियन इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, जिसके कारण ज़िलियन ने माध्यस्थम् का आह्वान किया।
- NBCC ने माध्यस्थम् का आह्वान करने वाले ज़िलियन के नोटिस का जवाब नहीं दिया, जिससे ज़िलियन ने उच्च न्यायालय में माध्यस्थम् अधिनियम की धारा 11(6) के तहत एक आवेदन दायर किया।
- उच्च न्यायालय ने इसको स्वीकार करते हुए इसमें उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश को एकमात्र मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया।
- NBCC ने अंतरिम और अंतिम दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने A&C अधिनियम की धारा 7(5) के आलोक में माध्यस्थम् धाराओं को शामिल करने के संबंध में एम.आर. इंजीनियर्स मामले में स्थापित सिद्धांतों को दोहराया।
- इसमें कहा गया कि L.O.I. के खंड 7.0 में विशेष रूप से कहा गया है कि विवादों को दिल्ली में सिविल न्यायालयों के माध्यम से हल किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामला एक संदर्भ मामला था, निगमन मामला नहीं, और NBCC के तर्क को बरकरार रखा।
- इसमें उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया गया और अपीलों को बिना किसी अनुतोष के प्रावधान के स्वीकार किया गया।
संविदा में माध्यस्थम् खंड के संदर्भ में ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?
- एम.आर. इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सोम दत्त बिल्डर्स लिमिटेड (2009):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि एक दस्तावेज़ के माध्यस्थम् खंड के संदर्भ को दूसरे संविदा में शामिल करने के क्रम में, विशिष्ट शर्तों को पूरा किया जाना चाहिये।
- इसमें स्पष्ट किया गया कि किसी अन्य संविदा के सामान्य संदर्भ में स्वयं से माध्यस्थम् खंड शामिल नहीं होगा, जब तक कि कोई विशिष्ट उल्लेख न हो।
- न्यायालय ने इसको शामिल करने के लिये मानदण्ड निर्धारित किये और पक्षकारों के बीच स्पष्ट आशय के महत्त्व पर बल दिया।
- ड्यूरो फेलगुएरा, एस.ए. बनाम गंगावरम पोर्ट लिमिटेड (2017):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माध्यस्थम् धाराओं को शामिल करने के संबंध में एम.आर. इंजीनियर्स मामले में स्थापित सिद्धांतों को दोहराया।
- इसमें संदर्भ सहित माध्यस्थम् खंडों के विशिष्ट संदर्भ को संविदा में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।
- एलीट इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन (हैदराबाद) प्राइवेट लिमिटेड बनाम टेकट्रांस कंस्ट्रक्शन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (2018):
- एम.आर. इंजीनियर्स मामले में स्थापित उदाहरण के बाद, उच्चतम न्यायालय ने इस सिद्धांत को बरकरार रखा कि माध्यस्थम् खंड को शामिल करने के लिये किसी अन्य संविदा का सामान्य संदर्भ पर्याप्त नहीं होगा।
- इसमें दोहराया गया कि माध्यस्थम् खंड को संविदा में शामिल करने के लिये इसका विशिष्ट उल्लेख या संदर्भ होना चाहिये।
- आईनॉक्स विंड लिमिटेड बनाम थर्मोकेबल्स लिमिटेड (2018):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने एम.आर. इंजीनियर्स मामले में निर्धारित सिद्धांतों से अलग रुख अपनाया।
- इसमें यह माना गया कि व्यापार संघों एवं पेशेवर निकायों के साथ-साथ संविदा के मानक रूप का एक सामान्य संदर्भ, माध्यस्थम् खंड को शामिल करने हेतु पर्याप्त होगा।
- हालाँकि न्यायालय ने माध्यस्थम् खंड की प्रयोज्यता निर्धारित करने के लिये प्रत्येक मामले की विनिर्दिष्ट परिस्थितियों की जाँच करने के महत्त्व पर बल दिया।