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सांविधानिक विधि
भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 311(2)
« »03-Oct-2023
विश्वनाथ विश्वकर्मा बनाम प्रधान सचिव, राजस्व विभाग लखनऊ के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य "किसी कर्मचारी को दोषी ठहराए जाने के बाद, निष्कासन या बर्खास्तगी आदेश पारित करते समय, कर्मचारी के आचरण पर विचार किया जाना चाहिये।" न्यायमूर्ति नीरज तिवारी |
स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कहा कि किसी कर्मचारी को दोषी ठहराए जाने के बाद निष्कासन या बर्खास्तगी का आदेश पारित करते समय कर्मचारी के आचरण पर विचार किया जाना चाहिये।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विश्वनाथ विश्वकर्मा बनाम प्रधान सचिव, राजस्व विभाग लखनऊ के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य मामले में टिप्पणी की।
विश्वनाथ विश्वकर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- याचिकाकर्त्ता ने उत्तर प्रदेश के ज़िला सुल्तानपुर में लेखपाल के रूप में कार्य किया।
- उन पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे, जिसमें उन्हें हत्या और गैरकानूनी सभा के लिये दोषी ठहराया गया था।
- दोषसिद्धि के परिणामस्वरूप, उन्हें उनकी सेवानिवृत्ति से ठीक एक दिन पहले वर्ष 2014 में उनको सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
- याचिकाकर्त्ता ने एक विभागीय अपील दायर की जिसमें कहा गया कि वह केवल सामान्य भविष्य निधि (GPF) प्राप्त करने का हकदार होगा और अन्य सभी बकाया राशि का फैसला उच्च न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
- याचिकाकर्त्ता ने तब इस निर्णय को भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 311(2) के आधार पर चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि केवल दोषसिद्धि सेवाओं को बर्खास्त करने का आधार नहीं हो सकती।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण ने इस पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया और याचिकाकर्त्ता को केवल उसकी सज़ा के आधार पर बर्खास्त करने का एक मशीनी प्रकृति का आदेश दिया, इसलिये बर्खास्तगी और सेवानिवृत्ति के बाद के बकाया से संबंधित आदेश को रद्द कर दिया गया।
अनुच्छेद 311(2) क्या है?
- परिचय:
- अनुच्छेद 311(2) में लिखा है: "उपर्युक्त ऐसे किसी भी व्यक्ति को तब तक बर्खास्त या निष्कासित या पदावन्नती नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे उसके संबंध में प्रस्तावित कार्रवाई के खिलाफ कारण बताने का उचित अवसर नहीं दिया गया हो।"
- अर्थ:
- इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति संघ या राज्य सरकार के तहत नागरिक क्षमता में कार्यरत है, उसे प्रस्तावित कार्रवाई के खिलाफ खुद का बचाव करने का उचित अवसर दिये बिना बर्खास्त नहीं किया जा सकता है, निष्कासित नहीं जा सकता है या पदावन्नत्ति नहीं की जा सकती है।
- उचित अवसर:
- वाक्यांश "उचित अवसर" महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसका तात्पर्य है कि सरकारी कर्मचारी को दिया गया अवसर उचित, पर्याप्त और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार होना चाहिये।
- अपवाद:
- अनुच्छेद 311(2) सामान्य नियम में कुछ अपवाद प्रस्तुत करता है।
- जहाँ ऐसी जांच के बाद उस पर ऐसा कोई जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है, ऐसा जुर्माना ऐसी जांच के दौरान पेश किये गए साक्ष्यों के आधार पर लगाया जा सकता है और ऐसे व्यक्ति को जुर्माने पर अभ्यावेदन करने का कोई अवसर देना आवश्यक नहीं होगा।
- यह खंड निम्नलिखित पर लागू नहीं होगा:
(क) जहाँ किसी व्यक्ति को आचरण के आधार पर बर्खास्त या निष्कासित या पदावन्नती कर दिया जाता है जिसके कारण उसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है; या
(ख) जहाँ किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने या निष्कासित या पदावन्नती करने का अधिकार प्राप्त प्राधिकारी संतुष्ट है कि किसी कारण से, उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किये जाने पर, ऐसी जांच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है; या
(ग) जहाँ, जैसा भी मामला हो, राष्ट्रपति या राज्यपाल इस बात से संतुष्ट हैं कि राज्य की सुरक्षा के हित में, ऐसी जांच कराना समीचीन नहीं है।
ऐतिहासिक फैसले क्या हैं?
- भारत संघ और अन्य बनाम तुलसीराम पटेल (वर्ष 1985):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि किसी सरकारी कर्मचारी को जांच के उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित करने से पहले, पहला विचार यह होगा कि क्या संबंधित सरकारी कर्मचारी का आचरण ऐसा है जो बर्खास्तगी, निष्कासन या पदावन्नती के दंड को उचित ठहराता है।
- श्याम नारायण शुक्ला बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (वर्ष 1988):
- इलाहाबाद उच्चतम न्यायालय ने माना कि जब भी किसी सरकारी कर्मचारी को किसी अपराध के लिये दोषी ठहराया जाता है, तो उसे केवल दोषसिद्धि के आधार पर सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन उपयुक्त प्राधिकारी को ऐसे कर्मचारी के आचरण पर विचार करना होगा जिससे उसकी दोषसिद्धि हो और फिर यह निर्णय लेना होगा कि क्या किया जाए और उसे क्या सज़ा दी जानी है।