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सांविधानिक विधि

COI का अनुच्छेद 142

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 04-Mar-2024

हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

"स्वचालित स्थगन अवकाश नियम को रद्द करते हुए, यह माना गया कि लंबित मामलों में दिये गए स्थगन आदेश स्वचालित रूप से समाप्त नहीं होते हैं।"

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में वर्ष 2018 एशियन रिसरफेसिंग निर्णय को पलट दिया है और स्वचालित स्टे वेकेशन नियम को रद्द कर दिया है।

  • उच्चतम न्यायालय ने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों के प्रयोग पर महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश भी जारी किये।

हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (2018) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना था कि लंबित सिविल और आपराधिक मामलों में दिया गया स्थगन आदेश छह महीने के बाद स्वचालित रूप से रद्द हो जाएगा (अस्तित्व समाप्त हो जाएगा)।
  • 1 दिसंबर, 2023 को उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायधीशों की पीठ ने विचार व्यक्त किया कि इस मामले में इस न्यायालय के निर्णय पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार की ज़रूरत है।
  • इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि लंबित मामलों में दिये गए स्थगन आदेश स्वचालित रूप से समाप्त नहीं होते हैं। खंडपीठ ने यह भी माना कि न्यायालय के पास अनुच्छेद 142 के तहत स्थगन आदेशों को स्वत: रद्द करने की घोषणा करने की विवेकाधीन शक्ति नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने स्वत: स्टे वेकेशन नियम को रद्द कर दिया और वादकारियों पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव का उल्लेख किया।
  • COI के अनुच्छेद 142 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के लिये न्यायालय द्वारा दिये गए महत्त्वपूर्ण मापदंडों को निम्नानुसार संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है:
    • न्यायालय के समक्ष पक्षकारों के बीच पूर्ण न्याय करने के लिये क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग बड़ी संख्या में उन वादियों द्वारा उनके पक्ष में वैध रूप से पारित न्यायिक आदेशों के आधार पर प्राप्त लाभों को रद्द करने के लिये नहीं किया जा सकता है जो इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के पक्षकार नहीं हैं।
    • अनुच्छेद 142 इस न्यायालय को वादकारियों के मूल अधिकारों की अनदेखी करने का अधिकार नहीं देता है।
    • COI के अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए यह न्यायालय मामलों के शीघ्र और समय पर निपटान सुनिश्चित करने के लिये प्रक्रियात्मक पहलुओं को सुव्यवस्थित करने और प्रक्रियात्मक कानूनों में कमियों को दूर करने के लिये हमेशा न्यायालयों को प्रक्रियात्मक निर्देश जारी कर सकता है। हालाँकि, ऐसा करते समय, यह न्यायालय उन वादियों के मूल अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता जो उसके समक्ष मामले में पक्षकार नहीं हैं। प्रतिकूल आदेश पारित करने से पहले सुनवाई का अधिकार प्रक्रिया का मामला नहीं है बल्कि एक मूल अधिकार है।
    • अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय की शक्ति का प्रयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को पराजित करने के लिये नहीं किया जा सकता है, जो हमारे न्यायशास्त्र का अभिन्न अंग हैं।
    • संवैधानिक न्यायालयों को, सामान्य तौर पर, किसी अन्य न्यायालय के समक्ष लंबित मामलों के निपटान के लिये समयबद्ध कार्यक्रम तय करने से बचना चाहिये। संवैधानिक न्यायालय केवल असाधारण परिस्थितियों में मामलों के समयबद्ध निपटान के लिये निर्देश जारी कर सकते हैं।
    • मामलों के निपटान को प्राथमिकता देने का मुद्दा संबंधित न्यायालयों के निर्णय पर छोड़ देना चाहिये, जहाँ मामले लंबित होते हैं।

COI का अनुच्छेद 142 क्या है?

  • परिचय:
  • यह उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों के प्रवर्तन एवं प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश से संबंधित है, इसमें कहा गया है कि-
    (1) उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हों और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।
    (2) संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालयों के पास भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाज़िर कराने के, किन्हीं दस्तावेज़ों के प्रकटीकरण या पेश कराने अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दण्ड देने के प्रयोजन के लिये कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी।
  • उद्देश्य:
    • COI का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को पक्षकारों के बीच पूर्ण न्याय करने की एक अद्वितीय शक्ति प्रदान करता है, जहाँ, कभी-कभी, कानून कोई उपाय प्रदान नहीं कर सकता है।
    • उन स्थितियों में, न्यायालय किसी विवाद को इस तरह समाप्त करने के लिये अपना विस्तार कर सकता है जो मामले के तथ्यों के अनुकूल हों।
  • निर्णयज विधि:
    • यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस (1991) में उच्चतम न्यायालय ने स्वयं को संसद या राज्यों की विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों से ऊपर रखते हुए कहा कि, पूर्ण न्याय करने के लिये, वह संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को भी समाप्त कर सकता है।
    • सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1998), उच्चतम न्यायालय ने कहा कि COI के अनुच्छेद 142 का उपयोग मौजूदा कानून को प्रतिस्थापित करने के लिये नहीं किया जा सकता है, बल्कि केवल कानून के पूरक के लिये किया जा सकता है।