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सांविधानिक विधि

अनुच्छेद 16

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 03-Jun-2024

रविकुमार धनसुखलाल महेता एवं अन्य बनाम गुजरात उच्च न्यायालय एवं अन्य

“किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा पदोन्नति को विधिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है”।

न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई. चंद्रचूड़, जे.बी. पारदीवाला एवं मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?    

हाल ही में रविकुमार धनसुखलाल महेता एवं अन्य बनाम गुजरात उच्च न्यायालय एवं अन्य के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने ज़िला न्यायाधीश के रिक्त पदों के लिये गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई पदोन्नति प्रक्रिया को यथावत् बनाए रखा तथा सरकारी कर्मचारियों में पदोन्नति की मांग करने के अंतर्निहित अधिकार के अभाव पर बल दिया।

  • इसने इस बात पर ज़ोर दिया कि पदोन्नति नीतियाँ मुख्य रूप से विधायिका या कार्यपालिका का विशेषाधिकार हैं, न्यायिक समीक्षा भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 16 के अंतर्गत समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन के मामलों तक सीमित है।

एस. शिवराज रेड्डी (मृत) बनाम रघुराज रेड्डी एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान रिट याचिका पर दो न्यायाधीशों की पीठ ने प्रथम दृष्टया यह टिप्पणी की कि अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ एवं अन्य (2002) 4 SCC 247 के मामले ने उच्चतर न्यायिक सेवा में पदोन्नति के लिये योग्यता आधारित मानदंडों के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
    • न्यायालय ने कहा कि ज़िला न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति 'योग्यता-सह-वरिष्ठता' के आधार पर होनी चाहिये।
  • गुजरात उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल, 2022 को एक भर्ती नोटिस जारी किया, जिसमें वर्ष 2005 के नियमों के नियम 5(1)(I) के अनुसार 'योग्यता-सह-वरिष्ठता' और उपयुक्तता परीक्षण के आधार पर 65% कोटा के तहत सिविल जज (वरिष्ठ डिवीज़न) से ज़िला न्यायाधीशों के संवर्ग में पदोन्नति के लिये 68 रिक्तियों की घोषणा की गई।
  • नोटिस के साथ ही सिविल जज (सीनियर डिवीज़न) कैडर के 205 न्यायिक अधिकारियों की सूची जारी की गई, जिसमें रिक्तियों को भरने के लिये 'विचार का क्षेत्र' शामिल है। इस सूची में सबसे वरिष्ठ सिविल जज (सीनियर डिवीज़न) शामिल थे, जो अधिसूचित रिक्तियों से तीन गुना से अधिक नहीं थे।
  • विचाराधीन क्षेत्र के 205 उम्मीदवारों की उपयुक्तता का मूल्यांकन चार घटकों के आधार पर किया जाना था: लिखित परीक्षा (वस्तुनिष्ठ प्रकार- MCQs), पिछले पाँच वर्षों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों का मूल्यांकन, पिछले पाँच वर्षों में औसत निपटान दर का मूल्यांकन तथा पिछले एक वर्ष में दिये गए निर्णयों का मूल्यांकन।
  • पदोन्नति के लिये चयन सूची में शामिल होने के लिये उम्मीदवारों को प्रत्येक घटक में न्यूनतम 40% अंक और सभी चार में न्यूनतम कुल 50% अंक प्राप्त करने की आवश्यकता थी।
  • लिखित परीक्षा के बाद, 175 उम्मीदवारों ने कम-से-कम 40% अंक प्राप्त करके इसमें उत्तीर्ण हुए।
  • इसके बाद ACRs, न्यायालयी निर्णयों और मामले के निपटान दरों का मूल्यांकन करने के बाद, 149 उम्मीदवार पदोन्नति के लिये पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • इसके बाद उच्च न्यायालय ने 10 मार्च, 2023 को अंतिम चयन सूची तैयार की, जिसमें 149 पात्र उम्मीदवारों में से सबसे वरिष्ठ 68 उम्मीदवारों को ज़िला न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने पदोन्नति प्रक्रिया के बारे में चिंता जताते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत न्यायालय में आवेदन किया है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति की मांग करने का कोई विधिक अधिकार नहीं है तथा पदोन्नति नीति में न्यायालय का हस्तक्षेप केवल उन मामलों तक ही सीमित होना चाहिये, जहाँ संविधान के अनुच्छेद 16 में निहित समानता के प्रावधान का उल्लंघन होता हो।
  • 17 मई को न्यायालय ने योग्यता-सह-वरिष्ठता सिद्धांत के आधार पर वरिष्ठ सिविल न्यायाधीशों को ज़िला न्यायाधीशों के 65% पदोन्नति कोटे में पदोन्नत करने के लिये गुजरात उच्च न्यायालय की वर्ष 2023 की अनुशंसा के वैधता की पुष्टि की।
    • न्यायालय ने कहा कि चूँकि संविधान में पदोन्नति के लिये कोई मानदंड निर्धारित नहीं है, इसलिये सरकारी कर्मचारी अंतर्निहित अधिकार के रूप में पदोन्नति की मांग नहीं कर सकते।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पदोन्नति नीतियाँ मुख्य रूप से विधायिका या कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार में आती हैं, जबकि न्यायिक समीक्षा की परिधि सीमित है।
  • न्यायालय ने कहा कि भारत में कोई भी सरकारी कर्मचारी पदोन्नति को अपना अधिकार नहीं मान सकता, क्योंकि संविधान में पदोन्नति वाले पदों पर सीटें भरने के लिये कोई मानदंड निर्धारित नहीं किया गया है।
    • विधानमंडल या कार्यपालिका रोज़गार की प्रकृति एवं उम्मीदवार से अपेक्षित कार्यों के आधार पर पदोन्नति पदों पर रिक्तियों को भरने की विधि तय कर सकती है।
    • न्यायालय यह तय करने के लिये समीक्षा नहीं कर सकते कि पदोन्नति के लिये अपनाई गई नीति 'सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों' के चयन के लिये उपयुक्त है या नहीं, जब तक कि सीमित आधार पर यह संविधान के अनुच्छेद 16 के अंतर्गत समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन न करे।
  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और गुजरात राज्य न्यायिक सेवा नियम, 2005 के नियम 5 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए, ज़िला न्यायाधीश (65% कोटा) के कैडर में वरिष्ठ सिविल न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिये गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा जारी चयन सूची को अमान्य करने की मांग की थी।
    • नियम 5 के अनुसार ज़िला न्यायाधीश संवर्ग में 65% पदोन्नतियाँ योग्यता-सह-वरिष्ठता तथा उपयुक्तता परीक्षण उत्तीर्ण करने के आधार पर होनी चाहिये।
  • न्यायालय ने अनुशंसा की है कि गुजरात उच्च न्यायालय उपयुक्तता परीक्षण से संबंधित अपने नियमों को संशोधित कर उन्हें उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा नियम, 1975 के अनुरूप बनाए।
    • मुख्य सुझावों में मौखिक परीक्षा को एक अतिरिक्त परीक्षण घटक के रूप में शामिल करना, प्रत्येक मौजूदा घटक के लिये उत्तीर्णता की सीमा को बढ़ाना, एक के बजाय पिछले दो वर्षों के निर्णयों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना तथा योग्यता सूची को अंतिम रूप देते समय परीक्षा के अंकों में वरिष्ठता के आधार को सम्मिलित करना है।

COI, 1950 का अनुच्छेद 16 क्या है?

  • परिचय:
    • COI, 1950 का अनुच्छेद 16 राज्य के अधीन सार्वजनिक रोज़गार के मामलों में अवसर के समानता की गारंटी देता है।
    • यह राज्य के अधीन किसी भी रोज़गार या कार्यालय के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
    • अनुच्छेद 16 यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को सरकारी रोज़गार में समान अवसर प्राप्त हों तथा कुछ विशेषताओं के आधार पर अनुचित व्यवहार पर रोक लगाई जाए।
    • इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 16 ऐतिहासिक एवं सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिये अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों जैसे वंचित समूहों के लिये सार्वजनिक रोज़गार में आरक्षण की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 16:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोज़गार के मामलों में समानता के अधिकार से संबंधित है।
    • समान अवसर: अनुच्छेद 16(1) राज्य के अधीन सार्वजनिक रोज़गार के मामले में सभी नागरिकों को अवसर की समानता की गारंटी देता है।
    • सार्वजनिक रोज़गार तक समान पहुँच: अनुच्छेद 16(2) राज्य को सार्वजनिक रोज़गार के मामले में नागरिकों के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव करने से रोकता है।
    • आरक्षण: अनुच्छेद 16(4) राज्य को नागरिकों के किसी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये प्रावधान करने की शक्ति देता है, जिसका राज्य के राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये विशेष प्रावधान: अनुच्छेद 16(4A) सार्वजनिक रोज़गार में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में पदों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
      पदोन्नति में आरक्षण: अनुच्छेद 16(4B) राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में राज्य के अधीन सेवाओं में किसी भी वर्ग या वर्गों के पदों पर पदोन्नति के मामलों में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देता है।
    • पदोन्नति में आरक्षण: अनुच्छेद 16(6) राज्य को खंड (4) में उल्लिखित वर्ग के अतिरिक्त किसी भी आर्थिक रूप से कमज़ोर नागरिक वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों को आरक्षित करने की अनुमति देता है, जो मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त और प्रत्येक श्रेणी में अधिकतम 10% पदों के अधीन है।

भारत में पदोन्नति से संबंधित विधियाँ कैसे विकसित हुईं?

  • ब्रिटिश राज के दौरान, पदोन्नति मुख्य रूप से वरिष्ठता पर आधारित थी, जैसा कि ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रथाओं में देखा गया था तथा 1793 के चार्टर अधिनियम के माध्यम से वर्ष 1861 तक इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई थी।
  • वर्ष 1861 के भारतीय सिविल सेवा अधिनियम ने वरिष्ठता और योग्यता दोनों के आधार पर पदोन्नति की एक प्रणाली शुरू की, जिसे 'वरिष्ठता-सह-योग्यता' के रूप में जाना जाता है, जिसमें ईमानदारी, क्षमता एवं योग्यता शामिल है।
  • प्रतियोगी परीक्षाएँ वर्ष 1854 में शुरू की गईं, जिसका उद्देश्य राजनीतिक प्रभावों और पूर्वाग्रहों को समाप्त करने के लिये सिविल सेवाओं में संरक्षण-आधारित प्रणाली को योग्यता-आधारित दृष्टिकोण से परिवर्तित करना था।
  • स्वतंत्रता के बाद, वर्ष 1947 में प्रथम वेतन आयोग ने सीधी भर्ती एवं पदोन्नति के संयोजन की अनुशंसा की, जिसमें उच्च पदों के लिये कार्यालयी अनुभव एवं योग्यता की आवश्यकता वाली भूमिकाओं के लिये वरिष्ठता की समर्थन किया गया।
  • वर्ष 1959 और 1969 में बाद के वेतन आयोगों ने वरिष्ठता के साथ-साथ योग्यता-आधारित पदोन्नति का समर्थन किया, वरिष्ठता को निष्ठा का संकेत तथा पक्षपात के लिये निवारक माना।
  • पदोन्नति में वरिष्ठता का सिद्धांत इस विश्वास से निकला माना जाता है कि अनुभव योग्यता से जुड़ा हुआ है तथा विवेक एवं पक्षपात को सीमित करता है।
  • भारतीय संवैधानिक संदर्भ में, सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति की मांग करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान में पदोन्नति के लिये कोई विशिष्ट मानदंड निर्धारित नहीं किया गया है।
  • पदोन्नति की नीतियाँ सरकार या विधायिका द्वारा रोज़गार की प्रकृति एवं नौकरी की आवश्यकताओं के आधार पर निर्धारित की जाती हैं, जिसमें न्यायिक हस्तक्षेप केवल तभी सीमित होता है जब ऐसी नीतियाँ संविधान के अनुच्छेद 16 के अंतर्गत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करती हैं।

COI के अनुच्छेद 16 से संबंधित निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • इंद्रा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ, 1993
    • नौ न्यायाधीशों की पीठ के अनुसार, अनुच्छेद 16(4) पदोन्नति में आरक्षण नहीं देता है, क्योंकि यह केवल नियुक्तियों में आरक्षण पर लागू होता है। सरकारी नौकरियों में SCs/STs को दिये जाने वाले सभी पदोन्नति आरक्षण अब इस निर्णय के कारण खतरे में हैं।
    • 16 नवंबर 1992 के बाद, न्यायालय के निर्णय ने पदोन्नति में आरक्षण को अगले पाँच वर्ष तक बनाए रखने की अनुमति दी।
    • एम. नागराज बनाम भारत संघ, 2006: उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित सभी संशोधनों की संवैधानिक वैधता को यथावत् रखा।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14, 15 एवं 16 के अंतर्गत समानता के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करते हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि संशोधन सक्षम करने वाले प्रावधान हैं, जो राज्यों को पिछड़ेपन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व की पहचान करने और समग्र दक्षता बनाए रखने पर पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देते हैं, लेकिन बाध्य नहीं करते हैं।