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सांविधानिक विधि
COI का अनुच्छेद 20(3)
« »16-Apr-2024
श्रीमती नजमुनिशा, अब्दुल हामिद चांदमिया उर्फ लाडू बापू बनाम गुजरात राज्य COI का अनुच्छेद 20(3) नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 के अधीन तलाशी एवं अभिग्रहण के प्रावधान अपरिवर्तित रहेंगे। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस एवं ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती नजमुनिशा, अब्दुल हामिद चांदमिया उर्फ लाडू बापू बनाम गुजरात राज्य, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मामले में माना है कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 20 (3) में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS अधिनियम) के अधीन तलाशी एवं अभिग्रहण के प्रावधान अपरिवर्तित हैं।
श्रीमती नजमुनिशा, अब्दुल हामिद चांदमिया उर्फ लाडू बापू बनाम गुजरात राज्य, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, श्रीमती. नजमुनिशा (अभियुक्त संख्या 01) को मूल रूप से NDPS अधिनियम के प्रावधानों के अधीन दोषी ठहराया गया था। विचारण न्यायालय ने उसे दस वर्ष के कठोर कारावास एवं 30,000 रुपए के ज़ुर्माने की सज़ा सुनाई थी।
- इस सज़ा को बाद में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा संशोधित किया गया था, जबकि उसकी अपील को आंशिक रूप से इस आशय से अनुमति दी गई थी कि, उसका ज़ुर्माना न्यूनतम निर्धारित ज़ुर्माना 1,00,000 रुपए तक बढ़ा दिया गया था/ज़ुर्माना अदा न करने पर सज़ा को एक वर्ष के साधारण कारावास से कम लेकिन तीन माह की साधारण कारावास की सज़ा कर दिया गया था।
- अब्दुल हामिद चांदमिया उर्फ लाडू बापू (अभियुक्त संख्या 04) अभियुक्त संख्या 01 का पति है, जिसे NDPS अधिनियम 1985 के प्रावधानों के अधीन दोषी ठहराया गया था तथा तेरह वर्ष के कठोर कारावास एवं 100,000 रुपए के ज़ुर्माने की सज़ा सुनाई गई थी। गुजरात उच्च न्यायालय ने उनकी अपील को भी खारिज करते हुए इसकी पुष्टि की थी।
- मूल अभियुक्त संख्या 01 एवं अभियुक्त संख्या 04 द्वारा दायर की गई आपराधिक अपीलों में गुजरात उच्च न्यायालय की डिवीज़न बेंच के आम आक्षेपित निर्णय को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष त्वरित आपराधिक अपीलें दायर की गई हैं।
- अपीलों को स्वीकार करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के साथ-साथ विचारण न्यायालय के निर्णय को भी रद्द कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में, हम मुख्य रूप से NDPS अधिनियम 1985 के न्यायशास्त्र के आधार पर प्रभावित हैं, जो राज्य द्वारा अपनी कार्यपालिका को किसी भी सभ्य राष्ट्र में सामाजिक सुरक्षा की सुरक्षा के लिये प्रशासनिक हथियार के रूप में प्रदत्त तलाशी एवं अभिग्रहण की शक्ति से शुरू होती है।
- आगे कहा गया कि ऐसी शक्ति संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों की मान्यता के साथ-साथ वैधानिक सीमाओं द्वारा स्वाभाविक रूप से सीमित है। साथ ही, यह मानना वैध नहीं है कि COI का अनुच्छेद 20(3) तलाशी और अभिग्रहण के प्रावधानों से प्रभावित होगा। इस प्रकार, ऐसी शक्ति को संबंधित व्यक्ति के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।
COI का अनुच्छेद 20(3) क्या है?
परिचय:
- अनुच्छेद 20, अपराधों के लिये दोषसिद्धि के संबंध में, सुरक्षा से संबंधित है।
- अनुच्छेद 20(3) पुष्टि करता है कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने विरुद्ध साक्षी बनने के लिये विवश नहीं किया जाएगा।
- इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त अधिकार, एक ऐसा अधिकार है, जो किसी अभियुक्त को मुकदमे या जाँच के दौरान चुप रहने का विशेषाधिकार देता है, जबकि राज्य का उसके द्वारा किये गए संस्वीकृति पर कोई दावा नहीं है।
निर्णयज विधि:
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्याय की प्रक्रिया, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत होनी चाहिये।
- सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि COI के अनुच्छेद 20(3) को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। यह प्रावधान, आपराधिक प्रक्रिया में एक आवश्यक सुरक्षा है और जाँच अधिकारियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली यातना एवं अन्य बलप्रयोग के तरीकों के विरुद्ध भी एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा है।