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सांविधानिक विधि
COI का अनुच्छेद 23
« »04-Apr-2024
शिव प्रताप मौर्य एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, प्रधान सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग एवं अन्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार बेगार निषिद्ध है। न्यायमूर्ति मनीष कुमार |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शिव प्रताप मौर्य एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, प्रधान सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग एवं अन्य मामले में माना है कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 23 के अनुसार बेगार निषिद्ध है।
शिव प्रताप मौर्य एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, प्रधान सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, याचिकाकर्त्ताओं को उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (पुरुष) के पद पर अक्तूबर 2012 से मार्च 2013 के बीच अलग-अलग तिथियों पर नियुक्त किया गया था।
- यह नियुक्ति राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन नामक योजना के अंतर्गत तीन वर्ष की अवधि के लिये थी, जो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक योजना थी।
- निदेशक, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ने एक पत्र जारी किया कि भारत सरकार, ऐसे पुरुष श्रमिकों की संविदा नियुक्ति के लिये केवल 31 मार्च, 2014 तक ही वित्तीय सहायता देगी, उससे आगे की अवधि के लिये नहीं।
- इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर करके चुनौती दी गई थी, जहाँ एक अंतरिम आदेश दिया गया था, जिसमें निर्देश दिया गया था कि ऐसे संविदा बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (पुरुष) को 31 मार्च, 2014 में बाद कार्य जारी रखने की अनुमति दी जाए क्योंकि प्रारंभिक नियुक्ति 2012 से 3 साल की अवधि के लिये की गई थी।
- इसके बाद भारत सरकार ने राज्य को पत्र लिखकर कहा कि कर्मचारियों के वेतन के संबंध में वित्तीय सहायता 30 सितंबर, 2014 तक प्रदान की जाएगी, उसके बाद नहीं।
- हाईकोर्ट ने याचिका मंज़ूर कर ली।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने कहा कि COI के अनुच्छेद 23 के अनुसार बेगार निषिद्ध है।
- यह भी माना गया कि अंतरिम आदेश के अधीन या अन्यथा सेवा की अवधि के लिये उन्हें वेतन का भुगतान न करना उनसे बेगार लेने के समान होगा, जो COI के अनुच्छेद 23 के अधीन निषिद्ध है।
- आगे यह माना गया कि COI के अनुच्छेद 23 में बेगार के संबंध में व्यापक निहितार्थ एवं संभावनाएँ हैं, अर्थात किसी से काम करवाना लेकिन उसके लिये भुगतान नहीं करना, जो COI के अनुच्छेद 21 के अधीन आने वाली आजीविका के अधिकार से जुड़ा है।
COI का अनुच्छेद 23 क्या है?
परिचय:
- यह अनुच्छेद मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाने से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-
(1) मानव तस्करी एवं भिखारियों तथा अन्य समान प्रकार के बलात्श्रम निषिद्ध हैं और इस प्रावधान का कोई भी उल्लंघन विधि के अनुसार दण्डनीय अपराध होगा।
(2) इस अनुच्छेद में कुछ भी राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये अनिवार्य सेवा लागू करने से नहीं रोकेगा, और ऐसी सेवा लागू करने में राज्य केवल धर्म, नस्ल, जाति या वर्ग या उनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। - यह अधिकार भारत के नागरिकों के साथ-साथ गैर-नागरिकों को भी उपलब्ध है।
- यह व्यक्तियों को राज्य के साथ-साथ निजी नागरिकों से भी बचाता है।
- यह अनुच्छेद मानव तस्करी एवं बलात्श्रम के अन्य रूपों जैसे शोषण की अनैतिक प्रथाओं को समाप्त करने के लिये राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व डालता है।
- यह लेख निम्नलिखित प्रथाओं पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाता है:
- बेगार
- मानव तस्करी
- बलात्श्रम
निर्णयज विधि :
- पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1983) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने COI के अनुच्छेद 23 के सीमा की व्याख्या की। अनुच्छेद 23 की सीमा विशाल एवं असीमित है। अनुच्छेद 23 के अधीन बल शब्द का बहुत व्यापक अर्थ है। इसमें न केवल शारीरिक या विधिक बल शामिल है, बल्कि उन आर्थिक परिस्थितियों को भी मान्यता दी गई है जो किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध न्यूनतम मज़दूरी से कम पर काम करने के लिये विवश करती है। न्यायालय द्वारा सरकार को निर्देश दिया गया कि वह निजी व्यक्तियों द्वारा अनुच्छेद 23 के अधीन प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को दण्डित करने के लिये आवश्यक कदम उठाए।