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सांविधानिक विधि
संविधान का अनुच्छेद 42
« »01-Jan-2024
स्रोत: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय
लोरेटो कॉन्वेंट तारा हॉल स्कूल की प्रबंध समिति के सचिव बनाम शारू गुप्ता और अन्य "गर्भधारण, बच्चे को जन्म देना और उसकी देखभाल करना न केवल महिला का मूल अधिकार है, बल्कि समाज के अस्तित्व के लिये उसके द्वारा निभाई जाने वाली एक पवित्र भूमिका भी है।" न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की पीठ ने कहा कि "गर्भधारण करना, बच्चे को जन्म देना और उसकी देखभाल करना न केवल महिला का मूल अधिकार है, बल्कि समाज के अस्तित्व के लिये उसके द्वारा निभाई जाने वाली एक पवित्र भूमिका भी है।"
- उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी लोरेटो कॉन्वेंट तारा हॉल स्कूल की प्रबंध समिति के सचिव बनाम शारू गुप्ता और अन्य के मामले में दी।
लोरेटो कॉन्वेंट तारा हॉल स्कूल की प्रबंध समिति के सचिव बनाम शारू गुप्ता और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- प्रतिवादी महिला को याचिकाकर्त्ताओं में से एक के विद्यालय में अनुबंध के आधार पर सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया था।
- वह विस्तारित परिवीक्षा अवधि पर काम कर रही थी और बाद में जब वह छुट्टी पर थी तो उसकी सेवाएँ समाप्त कर दी गईं।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि सेवा नियमों के अनुसार, एक कर्मचारी, एक आवेदन पर, मातृत्व अवकाश का हकदार है, लेकिन वर्तमान मामले में शिकायतकर्त्ता ने कभी भी याचिकाकर्त्ताओं को अपनी गर्भावस्था के बारे में सूचित नहीं किया और उसने कभी भी किसी मातृत्व लाभ के लिये आवेदन नहीं किया तथा उसके द्वारा शिकायत दर्ज करना याचिकाकर्त्ताओं से लाभ प्राप्त करने के लिये एक बाद का विचार है, जिसके लिये वह बिल्कुल भी हकदार नहीं थी।
- प्रतिवादी ने कहा कि यह तथ्य कि वह गर्भवती थी, के विषय में प्रबंधन के साथ-साथ प्रिंसिपल को भी जानकारी थी।
- श्रम आयुक्त-सह-कारखानों के मुख्य निरीक्षक-सह-अपीलीय प्राधिकरण ने प्रतिवादी के पक्ष में आदेश दिया, याचिकाकर्त्ताओं ने आदेश को रद्द करने के लिये HC से संपर्क किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- HC ने कहा कि "माँ बनने का अधिकार भी सबसे महत्त्वपूर्ण मानवाधिकारों में से एक है और इस अधिकार को हर कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिये तथा इसलिये, जहाँ भी लागू हो, मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये"।
- अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता संबंधित अधिकारियों के निर्देशानुसार प्रतिवादी की पुनः ज्वाइनिंग स्वीकार करने का इरादा नहीं रखते हैं, तो उन्हें अधिकारियों द्वारा पहले से दिये गए मातृत्व लाभ के अलावा, प्रतिवादी को पंद्रह लाख का मुआवज़ा देना होगा क्योंकि इस अधिनियम के अक्षरश: कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु मातृत्व लाभ के अनुदान को विफल करने के किसी भी मामले से गंभीरता से निपटा जाना चाहिये।
भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 42 क्या है?
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में अनुच्छेद 42:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 42 DPSP से संबंधित है।
- DPSP देश के शासन में पालन करने के लिये राज्य को दिये गए दिशानिर्देशों और सिद्धांतों का एक समूह है।
- वे किसी भी न्यायालय द्वारा लागू करने के लिये अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह नीतियाँ बनाते समय और कानून बनाते समय उन्हें ध्यान में रखे।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 42 विशेष रूप से काम की उचित और मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत के प्रावधान से संबंधित है। यह कहता है -
- "राज्य काम की उचित और मानवीय स्थितियाँ सुनिश्चित करने और मातृत्व राहत के लिये प्रावधान करेगा।"
- अनुच्छेद 42 विशेष रूप से काम की उचित और मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत के प्रावधान से संबंधित है। यह कहता है -
- उद्देश्य:
- यह निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिये राज्य की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देता है कि काम करने की स्थितियाँ निष्पक्ष व मानवीय हों।
- इसमें मातृत्व राहत के प्रावधानों की भी मांग की गई है, जो गर्भावस्था और प्रसव के दौरान महिला श्रमिकों के हित के लिये चिंता का संकेत देता है।
- ऐतिहासिक निर्णय:
- दिल्ली नगर निगम बनाम महिला श्रमिक (मस्टर रोल) (2003):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि माँ बनना एक महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है और इसके लिये लाभकारी कानून यानी मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 कामकाजी महिला को उसकी सेवा के संबंध में सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ लाभों के विस्तार के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया है।
- दिल्ली नगर निगम बनाम महिला श्रमिक (मस्टर रोल) (2003):